Wednesday, September 25, 2013

भाजपा का नमो नमः


देश की राजनीति का रथ अचानक गहरे ढाल पर उतर गया है, जिसे अब घाटी की सतह का इंतजार है जहाँ से चुनाव की चढ़ाई शुरू होगी। संसद के सत्र में जरूरी विधेयकों को पास कराने में सफल सरकार ने घायल पड़ी अर्थव्यवस्था की मरहम-पट्टी शुरू कर दी है। दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी ने नरेन्द्र मोदी को लेकर लम्बे अरसे से चले आ रहे असमंजस को खत्म कर दिया है। देखने को यह बचा है कि अब लालकृष्ण आडवाणी करते क्या हैं। मुजफ्फरनगर के दंगों के कारण पश्चिमी उत्तर प्रदेश में माहौल बिगड़ चुका है। कुछ लोग इसे भी चुनाव की तैयारी का हिस्सा मान रहे हैं। बहरहाल चुनाव आयोग ने पाँच राज्यों के विधानसभा चुनाव की तैयारियां शुरू कर दी हैं। आयोग की टीम ने उन सभी पाँच राज्यों का दौरा शुरू कर दिया है, जहां साल के अंत में चुनाव होने हैं।

Sunday, September 22, 2013

तीन सर्वेक्षण तेरह तरह के नतीजे

 शनिवार, 21 सितंबर, 2013 को 11:41 IST तक के समाचार
आगामी विधानसभा चुनावों में चार राज्यों की तस्वीर क्या होगी इसे लेकर क़यास शुरू हो गए हैं.
इन क़यासों को हवा दे रहे हैं चुनाव-पूर्व सर्वेक्षण जिनपर भले ही यक़ीन कम लोगों को हो पर वे चर्चा के विषय बनते हैं.
हालांकि चुनाव तो पांच राज्यों में होने हैं लेकिन सर्वेक्षण करने वालों ने सारा ध्यान चार राज्यों पर केंद्रित कर रखा है.
हाल में जो सर्वेक्षण सामने आए हैं वे क्लिक करेंकांग्रेस के ह्रास और भारतीय जनता पार्टी के उदय की एक धुंधली सी तस्वीर पेश कर रहे हैं.
सर्वेक्षणों ने राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीगढ़ के बारे में कमोबेश साफ़ लेकिन दिल्ली के बारे में भ्रामक तस्वीर बनाई है.
इसकी एक वजह आम आदमी पार्टी यानी ‘आप’ की उपस्थिति है जो एक राजनीतिक समूह है. उसकी ताक़त और चुनाव को प्रभावित करने के सामर्थ्य के बारे में क़यास इस भ्रम को और भी बढ़ा रहे हैं.
तीन सर्वेक्षण तीन तरह के नतीजे दे रहे हैं जिनसे इनकी विश्वसनीयता को लेकर संदेह पैदा होते हैं. सर्वेक्षणों के बुनियादी अनुमानों में इतना भारी अंतर है कि संदेह के कारण बढ़ जाते हैं.
दिल्ली का महत्व
दिल्ली भारत के मध्य वर्ग का प्रतिनिधि शहर है. यहाँ पर होने वाली राजनीतिक हार या जीत के व्यावहारिक रूप से कोई माने नहीं हों पर प्रतीकात्मक अर्थ गहरा होता है. यहाँ से उठने वाली हवा के झोंके पूरे देश को प्रभावित करते हैं.
हाल में दिल्ली गैंगरेप के ख़िलाफ़ और उसके पहले अन्ना हज़ारे के आंदोलन की ज़मीन देश-व्यापी नहीं थी पर दिल्ली में होने के कारण उसका स्वरूप राष्ट्रीय बन गया. इसकी एक वजह वह क्लिक करेंख़बरिया मीडिया है, जो दिल्ली में निवास करता है.
भाजपा का लोगो
हाल ही में भाजपा ने दिल्ली में अपने प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार की घोषणा की.
दिल्ली की इसी प्रतीकात्मक महत्ता के कारण यहाँ के नतीजे महत्वपूर्ण होते हैं भले ही वे दिल्ली विश्वविद्यालय, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्रसंघों के हों या दिल्ली विधानसभा के.
हाल में भाजपा के मंच पर प्रधानमंत्री के प्रत्याशी का नाम घोषित करने की प्रक्रिया पर जो ड्रामा शुरू हुआ था उसका असर दिखाई पड़ने लगा है और इसमें भी पहल दिल्ली की है.
नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी घोषित करने के साथ ही उनकी रैलियों का कार्यक्रम बन रहा है.

क्या है मोदी की विश्व-दृष्टि?

पिछले हफ्ते रेवाड़ी में हुई रैली में नरेन्द्र मोदी ने दो महत्वपूर्ण बातें कहीं जिनपर ध्यान दिया जाना चाहिए। उन्होंने एक तो पाकिस्तान के बरक्स अटल बिहारी वाजपेयी की नीतियों का समर्थन किया। और दूसरे यह कहा कि भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश को मिलकर दक्षिण एशिया की गरीबी दूर करने के रास्ते तलाशने चाहिए। पाकिस्तान के अखबार द नेशन इस खबर को शीर्षक दिया फाइट पावर्टी नॉट इंडिया, मोदी आस्क्स पाकिस्तान। मोदी ने कहा, पाकिस्तान के शासक अगले दस साल तक अपनी जमीन का इस्तेमाल आतंकी गतिविधियों में शामिल होने से रोक सकें तो मैं पूरे विश्वास के साथ कहता हूँ कि पाकिस्तान वह प्रगति देखेगा जो पिछले साठ साल में नहीं देखी होगी। मोदी की बातें आमतौर पर उग्र राष्ट्रवादी शब्दावली में लिपटी होती हैं। पिछले स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री को जवाब देने वाले भाषण में उन्होंने चीनी घुसपैठ और पाकिस्तानी सीमा पर सैनिकों की गर्दन काटे जाने के मामलों में मनमोहन सिंह की प्रतिक्रिया को बेहद कमजोर और क्षीण साबित किया था। पर लगता है प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी के रूप में उनका नाम तय हो जाने के बाद उनकी शब्दावली संयत और सार्थक हुई है।

नरेन्द्र मोदी की विश्व दृष्टि क्या है? मसलन यदि वे प्रधानमंत्री बने तो उनकी विदेश नीति क्या होगी? क्या वे पाकिस्तान और चीन से सीधे मुठभेड़ मोल लेंगे? चीन के साथ व्यापारिक सम्बन्धों पर उनका दृष्टिकोण क्या होगा? उन्हें वीजा न देने वाले अमेरिका के साथ उनके रिश्ते कैसे होंगे? इन बातों पर अभी ज्यादा चर्चा नहीं हुई है, पर होनी चाहिए। पहली बात तो यह है कि देश की विदेश नीति पूरे देश की नीति होती है, किसी व्यक्ति विशेष की नीति के रूप में उसे देखना मुश्किल होता है। इसीलिए उसमें एक प्रकार की निरंतरता होती है। दूसरे मोदी एक पार्टी के नेता हैं। पार्टी भी इन सवालों पर विमर्श करती है। व्यक्तिगत रूप से नेता भी इसमें भूमिका निभाते हैं जैसे कि पाकिस्तान के संदर्भ में अटल बिहारी वाजपेयी ने निभाई थी।

Saturday, September 21, 2013

रैनबैक्सीः भारतीय औषधि उद्योग की प्रतिष्ठा को धक्का

रैनबैक्सी की दवाओं पर अमेरिका में पाबंदी लगने से भारतीय शेयर बाजार में निवेशकों के 5,855 करोड़ रुपए एक दिन में ही डूब गए। दुनिया में बिकने वाली तकरीबन चालीस फीसदी जेनरिक दवाएं भारत में बनती हैं। क्या इस फैसले का असर इस पूरे कारोबार पर पड़ेगा? भारत में डॉ रेड्डीज लैबोरेटरीज़, ल्यूपिन लिमिटेड, सन फार्मा और सिपला वगैरह के कारोबार पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ा है। अमेरिकी एफडीए सभी कंपनियों का निरीक्षण नहीं करता, पर रैनबैक्सी के साथ हालात बिगड़ते चले गए। सही है कि अमेरिकी मानक कड़े होते हैं, पर रैनबैक्सी के मामले में शिकायतें केवल कड़ाई की नहीं थीं। क्या हम वास्तव में दवाओं के ठीक से क्लीनिकल ट्रायल भी नहीं कर सकते? सवाल यह भी है कि हमारे देश के औषधि नियामक किस बात का इंतजार कर रहे हैं? क्या उन्हें अपने देश की कम्पनी से जुड़े मामले की जाँच नहीं करनी चाहिए? क्या कारण है कि हमारे देश में ऐसी कंपनियाँ नहीं है जो नए अनुसंधान के आधार पर दवाएं बनाने की कोशिश करें? क्या हम केवल नकल कर सकते हैं वह भी टेढ़े तरीके से? इस मामले में अमेरिका का विसिल ब्लोवर कानून भी काम में आया है। कंपनी के एक पूर्व अधिकारी की शिकायतें भी इसमें शामिल हैं। इसलिए इस सवाल पर भी विचार करने की जरूरत है कि हम विसिल ब्लोवर कानून को पास करने देरी क्यों कर रहे हैं? और यह भी कि इस कानून को निजी कंपनियों पर भी क्यों नहीं लागू करना चाहिए?

Monday, September 16, 2013

मोदीः मसीहा या मुसीबत

 शनिवार, 14 सितंबर, 2013 को 20:16 IST तक के समाचार
भारतीय जनता पार्टी ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का दावेदार आखिरकार घोषित कर दिया. लाल कृष्ण आडवाणी के साथ-साथ कुछ और लोगों के तमाम विरोधों के बावजूद मोदी के नाम की घोषणा क्या बीजेपी में एक नए अध्याय की शुरूआत होगी.
क्या मोदी की उम्मीदवारी बीजेपी के लिए तुरूप का पत्ता साबित होगी या इससे पार्टी का अंदरूनी झगड़ा और बढ़ जाएगा. आप क्या सोचते हैं बीजेपी की इस राजनैतिक पहल पर.
बीबीसी इंडिया बोल में इस शनिवार इसी मुद्दे पर बहस हुई. इस कार्यक्रम में श्रोताओं के सवाल दिए वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद जोशी ने.