Monday, September 26, 2011

दिल्ली प्रहसन ...ब्रेक के बाद

कल्पना कीजिए यूपीए-प्रथम के कार्यकाल में नागरिकों को जानकारी पाने का अधिकार न मिला होता तो आज यूपीए-द्वितीय के सामने खड़ी अनेक परेशानियों का अस्तित्व ही नहीं होता। वही अर्जुन और वही बाण हैं। पर गोपियों को लुटने से बचा नहीं पा रहे हैं। इन बातों से आजिज आकर कॉरपोरेट मामलों के मंत्री वीरप्पा मोइली ने कहा है कि आरटीआई पर राष्ट्रीय बहस होनी चाहिए, क्योंकि यह कानून स्वतंत्र सरकारी काम-काज में दखलंदाजी को बढ़ावा दे रहा है। यूपीए-द्वितीय की परेशानियाँ इस कानून के कारण बढ़ी हैं या ‘स्वतंत्र सरकारी काम-काज‘ की परिभाषा में कोई दोष है? जिस वक्त यह कानून पास हो रहा था, तबसे अब तक फाइलों की नोटिंग-ड्राफ्टिंग और आधिकारिक पत्रों को आरटीआई के दायरे में रखने को लेकर सरकारी प्रतिरोध में कभी कमी नहीं हुई। सरकारों को स्वतंत्र और निर्भय होकर काम करना चाहिए, इस बात का विरोध किसी ने नहीं किया। पर टीप का बंद यह है कि काम पारदर्शी तरीके से होना चाहिए।

Saturday, September 24, 2011

मीडिया-भ्रष्टाचार के खिलाफ बंद !!!

ऐसा पहली बार सुनाई पड़ा है। कर्नाटक के एक कस्बे में जनता ने मीडिया के भ्रष्टाचार के विरोध में बंद रखा। आमतौर पर कन्नड़ पत्रकारों से जुड़े मीडिया ब्लॉग सैंस सैरिफ ने यह खबर कन्नड़ अखबार प्रजा वाणी के मार्फत दी है। बहरहाल अब यह पता लगाने की ज़रूरत है कि मीडिया के किस तरह के काम से जनता नाराज़ है।  एक शिकायत पक्षपात की होती है, यहाँ तो बात वसूली और आरटीआई के दुरुपयोग वगैरह की है।

सैंस सैरिफ के अनुसार उत्तरी कर्नाटक के मुधोल शहर में यह बंद पूरी तरह सफल रहा। इस बंद में दुकानदार, कर्मचारी राजनेता, सामाजिक कार्यकर्ता, यहाँ तक कि पत्रकार भी शामिल हुए। सैंस सैरिफ की रपट इस प्रकार हैः-


A town shuts down to protest media corruption!24 September 2011Unbelievable as it may sound, residents of the town of Mudhol in North Karnataka observed a bandh (shutdown) on Tuesday, September 20, to protest “blackmail journalism” and the growing number of imposters masquerading as journalists to extort money.
According to a report in the Kannada daily Praja Vani, the bandhin the town of 100,000 residents was a “complete success”.
Shops and business establishments downed their shutters for a few hours, and vehicles were off the roads.
The protestors included politicians, farmers, even journalists, and a host of other organisations. They marched to thetahsildar‘s office and presented a memorandum.
One protestor slammed weekly newspapers for bringing a bad name to the entire profession, and another targetted the misuse of the right to information (RTI) Act to ferret out information that was later used for extortion.
Mudhol town is famous for its country-bred hounds used for hunting.

सैंस सैरिफ पढ़ने के लिए क्लिक करें

पीएम जी और उनके 2जी !!!

वित्त मंत्रालय का वह नोट किस तरह बना, क्यों बना, किसने उसे माँगा और उसका अभी तक जिक्र क्यों नहीं हुआ, यह बातें अगले जो-एक रोज़ में रोचक मोड़ लेंगी। फिलहाल प्रधानमंत्री जब देश वापस आएंगे तो कुछ नई परेशानियाँ उनके सामने होंगी। पारदर्शिता का ज़माना है। आज हिन्दू में सुरेन्द्र का कार्टून जोरदार है।  आनन्द लें


इस मामले पर फर्स्ट पोस्ट में रमन किरपाल ने लिखा है कि यह नोट किसी ह्विसिल ब्लोवर का काम है। जबकि हिन्दुस्तान टाइम्स की रपट कहती है कि यह सरकार के बचाव के लिए अच्छी तरह विचार-विमर्श के बाद तैयार किया गया नोट है। आप खुद इस नोट को पढ़ कर देखना चाहते हैं तो क्लिक करें

Friday, September 23, 2011

एटमी ऊर्जा की तस्वीर साफ होनी चाहिए

जयललिता के आश्वासन के बाद तमिलनाडु के कूडानकुलम एटमी बिजलीघर के विरोध में चल रहा आमरण अनशन स्थगित हो गया है, पर मामला कुछ और जटिल हो गया है। जयललिता ने कहा है कि प्रदेश विधानसभा प्रस्ताव पास करके केन्द्र से अनुरोध करेगी कि बिजलीघर हटा ले। जापान के फुकुशीमा हादसे के बाद नाभिकीय ऊर्जा विवाद का विषय बन गई है, पर अभी दुनिया भर में एटमी बिजलीघर चल रहे हैं और लग भी रहे हैं। चीन ने नए रिएक्टर स्थापित करने पर रोक लगाई थी, पर अब 25 नए रिएक्टर लगाने की घोषणा की है। केवल विरोध के आधार पर बिजलीघरों के मामले में फैसला नहीं होना चाहिए। हाँ सरकार को यह बताना चाहिए कि ये बिजलीघर किस तरह सुरक्षित हैं।


इस साल मार्च में जापानी सुनामी के बाद जब फुकुशीमा एटमी बिजलीघर में विस्फोट होने लगे तभी समझ में आ गया था कि आने वाले दिनों में नए एटमी बिजलीघर लगाना आसान नहीं होगा। एटमी बिजलीघरों की सुरक्षा को लेकर बहस खत्म होने वाली नहीं। रेडिएशन के खतरों को लेकर दुनिया भर में शोर है। पर सच यह भी है कि आने वाले लम्बे समय तक एटमी बिजली के बराबर साफ और सुरक्षित ऊर्जा का साधन कहीं विकसित नहीं हो पा रहा है। सौर, पवन और हाइड्रोजन जैसे वैकल्पिक ऊर्जा विकल्प या तो बेहद छोटे हैं या बेहद महंगे।

Wednesday, September 21, 2011

श्रीलाल शुक्ल और अमरकांत को ज्ञानपीठ पुरस्कार

ज्ञानपीठ पुरस्कार देश का सबसे सम्मानित पुरस्कार है। 1965 में जब यह पुरस्कार शुरू हुआ था तब उसे अंग्रेजी मीडिया में भी तवज्जोह मिल जाती थी। धीरे-धीरे अंग्रेजी मीडिया ने उस तरफ ध्यान देना बंद कर दिया। अब शेष भारतीय भाषाओं का मीडिया भी उस तरफ कम ध्यान देता है। बहरहाल आज लखनऊ के जन संदेश टाइम्स ने इस खबर को लीड की तरह छापा तो मुझे विस्मय हुआ। यह खबर एक रोज पहले जारी हो गई थी, इसलिए इसे इतनी प्रमुखता मिलने की सम्भावना कम थी। पर लखनऊ और इलाहाबाद के लिए यह बड़ी खबर थी ही। इन शहरों के लेखक हैं। क्या इन शहरों के युवा जानते हैं कि ये हमारे लेखक हैं? बहरहाल मीडिया को तय करना होता है कि वह इसे कितना महत्व दे। लेखकों, साहित्यकारों और दूसरे वैचारिक कर्मों से जुड़े विषयों की कवरेज अब अखबारों में कम हो गई है।

1965 से अब तक हिन्दी के सात लेखकों को यह पुरस्कार मिल चुका है। इनके नाम हैं- 1.सुमित्रानंदन पंत(1968), 2.रामधारी सिंह "दिनकर"(1972), 3.सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय(1978), 4.महादेवी वर्मा(1982), 5.नरेश मेहता(1992), 6.निर्मल वर्मा(1999), 7.कुंवर नारायण।

कोई लेखक, विचारक, कलाकार, रंगकर्मी क्यों महत्वपूर्ण होता है, कितना महत्वपूर्ण होता है, लगता है  इसपर विचार करने की ज़रूरत भी है। फिल्मी कलाकारों, क्रिकेट खिलाड़ियों या किसी दूसरी वजह से सेलेब्रिटी बने लोगों के सामने ये लोग फीके क्यों पड़ते हैं, यह हम सबको सोचना चाहिए। अखबारों में पुरस्कार राशि भी छपी है। यह राशि ऐश्वर्या या करीना कपूर की एक फिल्म या शाहरुख के एक स्टेज शो की राशि के सामने कुछ भी नहीं है। बहरहाल आज के जन संदेश टाइम्स के सम्पादकीय पेज पर वीरेन्द्र यादव का लेख पढ़कर भी अच्छा लगा। खुशी इस बात की है कि किसी ने इन बातों पर ध्यान दिया।

वीरेन्द्र यादव का लेख पढ़ने के लिए कतरन पर क्लिक करें