ज्ञानपीठ पुरस्कार देश का सबसे सम्मानित पुरस्कार है। 1965 में जब यह पुरस्कार शुरू हुआ था तब उसे अंग्रेजी मीडिया में भी तवज्जोह मिल जाती थी। धीरे-धीरे अंग्रेजी मीडिया ने उस तरफ ध्यान देना बंद कर दिया। अब शेष भारतीय भाषाओं का मीडिया भी उस तरफ कम ध्यान देता है। बहरहाल आज लखनऊ के जन संदेश टाइम्स ने इस खबर को लीड की तरह छापा तो मुझे विस्मय हुआ। यह खबर एक रोज पहले जारी हो गई थी, इसलिए इसे इतनी प्रमुखता मिलने की सम्भावना कम थी। पर लखनऊ और इलाहाबाद के लिए यह बड़ी खबर थी ही। इन शहरों के लेखक हैं। क्या इन शहरों के युवा जानते हैं कि ये हमारे लेखक हैं? बहरहाल मीडिया को तय करना होता है कि वह इसे कितना महत्व दे। लेखकों, साहित्यकारों और दूसरे वैचारिक कर्मों से जुड़े विषयों की कवरेज अब अखबारों में कम हो गई है।
1965 से अब तक हिन्दी के सात लेखकों को यह पुरस्कार मिल चुका है। इनके नाम हैं- 1.सुमित्रानंदन पंत(1968), 2.रामधारी सिंह "दिनकर"(1972), 3.सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय(1978), 4.महादेवी वर्मा(1982), 5.नरेश मेहता(1992), 6.निर्मल वर्मा(1999), 7.कुंवर नारायण।
कोई लेखक, विचारक, कलाकार, रंगकर्मी क्यों महत्वपूर्ण होता है, कितना महत्वपूर्ण होता है, लगता है इसपर विचार करने की ज़रूरत भी है। फिल्मी कलाकारों, क्रिकेट खिलाड़ियों या किसी दूसरी वजह से सेलेब्रिटी बने लोगों के सामने ये लोग फीके क्यों पड़ते हैं, यह हम सबको सोचना चाहिए। अखबारों में पुरस्कार राशि भी छपी है। यह राशि ऐश्वर्या या करीना कपूर की एक फिल्म या शाहरुख के एक स्टेज शो की राशि के सामने कुछ भी नहीं है। बहरहाल आज के जन संदेश टाइम्स के सम्पादकीय पेज पर वीरेन्द्र यादव का लेख पढ़कर भी अच्छा लगा। खुशी इस बात की है कि किसी ने इन बातों पर ध्यान दिया।
वीरेन्द्र यादव का लेख पढ़ने के लिए कतरन पर क्लिक करें
1965 से अब तक हिन्दी के सात लेखकों को यह पुरस्कार मिल चुका है। इनके नाम हैं- 1.सुमित्रानंदन पंत(1968), 2.रामधारी सिंह "दिनकर"(1972), 3.सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय(1978), 4.महादेवी वर्मा(1982), 5.नरेश मेहता(1992), 6.निर्मल वर्मा(1999), 7.कुंवर नारायण।
कोई लेखक, विचारक, कलाकार, रंगकर्मी क्यों महत्वपूर्ण होता है, कितना महत्वपूर्ण होता है, लगता है इसपर विचार करने की ज़रूरत भी है। फिल्मी कलाकारों, क्रिकेट खिलाड़ियों या किसी दूसरी वजह से सेलेब्रिटी बने लोगों के सामने ये लोग फीके क्यों पड़ते हैं, यह हम सबको सोचना चाहिए। अखबारों में पुरस्कार राशि भी छपी है। यह राशि ऐश्वर्या या करीना कपूर की एक फिल्म या शाहरुख के एक स्टेज शो की राशि के सामने कुछ भी नहीं है। बहरहाल आज के जन संदेश टाइम्स के सम्पादकीय पेज पर वीरेन्द्र यादव का लेख पढ़कर भी अच्छा लगा। खुशी इस बात की है कि किसी ने इन बातों पर ध्यान दिया।
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यह गौर करने की बात है कि 'हिन्दी भाषा' के रचनाकारों को घोषित किये गये इस सम्माननीय पुरस्कार की खबर को 'हिन्दी मीडिया' ने कितनी जगह दी है ...और उनके प्रति अपना कितना सम्मान दिखाया है !!!
ReplyDeleteश्रीलाल शुक्ल की याद आज आई !
ReplyDeleteHindi Pakhware mein ek achhchhi khabar sunai di. Hindi Media ko aur prayas jari rakhana chahiye kyuki English media se ko ummid rakhna vastavikata se muh modna jhi hai. Aisi khabron ko samuchit coverage dena chahiye. Puraskar rashi badhaye jane ke liye abhiyan bhi Hindi Media ki hi jimmedari hai. Punaha sadhuvad.
ReplyDeletekuwar narayan ko kis year me yah puruskar prapt huya..
ReplyDeleteसन 2005 का पुरस्कार
ReplyDeletehttp://en.wikipedia.org/wiki/Jnanpith_Award