पुलवामा हमला 14 फरवरी को हुआ था और भारत ने बालाकोट पर हमला उसके 12 दिन बाद 26 फरवरी को किया। इसबार कार्रवाई क्या और कब होगी, इसे लेकर अटकलें हैं। ऐसी कार्रवाई किसी भी वक्त हो सकती है, पर ज़रूरी नहीं कि बहुत जल्दी हो। रक्षा-प्रतिष्ठान समय और उसके तरीके पर काफी सोच-विचारकर ही फैसला करेगा। कार्रवाई के संभावित परिणामों पर भी विचार करने की जरूरत होती है।
हमारा सत्ता-प्रतिष्ठान किसी किस्म की बदहवासी व्यक्त नहीं कर रहा है, जैसी पाकिस्तान से दिखाई और सुनाई पड़ रही है। पिछले कुछ वर्षों में युद्ध के दो नए पक्ष और जुड़े हैं। एक है साइबर-युद्ध और दूसरा हाइब्रिड-युद्ध। दोनों एक-दूसरे के साथ मिलकर काम करते हैं। 12 नवंबर, 2021 को हैदराबाद में सरदार वल्लभभाई पटेल राष्ट्रीय पुलिस अकादमी में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने 'नागरिक समाज को युद्ध का नया मोर्चा' कहा था। उनके इस बयान पर काफी हंगामा हुआ।
वस्तुतः अजित डोभाल ने चेतावनी दी थी कि युद्ध की अवधारणा बदल रही है। ‘राष्ट्रहित को नुकसान पहुँचाने के लिए सिविल सोसाइटी को भ्रष्ट किया जा सकता है, अधीन बनाया जा सकता है, बाँटा जा सकता है, उसे अपने फायदे में इस्तेमाल किया जा सकता है।’ इस बयान से यह अर्थ नहीं निकलता कि समूची सिविल-सोसायटी दुश्मन है। ‘सिविल-सोसायटी मोर्चा है’ कहने का तात्पर्य है कि उसकी आड़ ली जा सकती है। युद्ध के नए हथियार के रूप में सिविल-सोसायटी का इस्तेमाल भी किया जा सकता है।
आज हाइब्रिड युद्धों का जमाना है। इस लिहाज से युद्ध का एक मोर्चा सिविल-सोसायटी में भी खुलता है या खोला जा सकता है। हाइब्रिड वॉर की अवधारणा कोई आज की बात नहीं है। इस सहस्राब्दी के शुरू से ही यह बात कही जा रही है। ‘फिफ्थ कॉलम’ (घर के भीतर बैठा दुश्मन) या ‘अदृश्य-शत्रु’ शब्द का इस्तेमाल दूसरे विश्व युद्ध के समय से हो रहा है।
पाकिस्तान को समझ में आ गया है कि वह कश्मीर को हासिल नहीं कर सकता। उसका लक्ष्य भारत को कष्ट पहुँचाना है। अब हमारा लक्ष्य भी यही होना चाहिए। अपराधियों को तबतक सताया जाए, जबतक उनकी अक्ल ठिकाने नहीं आती। यह मानसिक-युद्ध का दौर है। भारत की ओर से ठंडी और नाराज़-खामोशी है, और पाकिस्तान बिलबिला रहा है।
पाकिस्तानी सेना को सीधे और ज्यादा से ज्यादा दर्द देने की जरूरत है। इसके लिए नए तरीकों पर विचार करना चाहिए, जिनमें ‘सरप्राइज़’ का तत्व हो और गहरी सामरिक और डिप्लोमैटिक पीड़ा। इस वक्त जिन विकल्पों पर बात हो रही है, उनमें से ज्यादातर को भारत पहले आज़मा चुका है। उन्हें दोहराएँगे भी तो पहले की तुलना में ज्यादा शिद्दत के साथ। सिंधु का पानी बंद करना पाकिस्तान को पीड़ा ज़रूर देगा, पर उसके परिणाम आने में कुछ देर लगेगी।
कोई नहीं चाहता कि लड़ाई लंबी हो। पीएम मोदी कह चुके हैं कि ‘ज़माना युद्धों का नहीं है,’ पर हम आतंकवादियों को छुट्टा भी नहीं छोड़ सकते। उम्मीद है कि इसबार की कार्रवाई पहले की तुलना में कहीं ज्यादा कठोर होगी। उसमें संभावित जवाबी पाकिस्तानी-कार्रवाई का जवाब भी होगा। 2019 में भारत ने टकराव को आगे नहीं बढ़ाया था, पर इसबार बढ़ सकता है। इसलिए लड़ाई लंबी चली, तो कराची की नाकेबंदी के लिए नौसेना तैयार है।
सैनिक कार्रवाई के तहत मुज़फ़्फ़राबाद या मुरीद्के में लश्करे तैयबा के मुख्यालय पर हमले किए जा सकते हैं। ज़रूरी नहीं कि ये हवाई हमले हों। भारत के पास अब ऐसे ड्रोन, गाइडेड प्रिसीशन बम और लॉइटरिंग एम्युनिशन हैं, जिन्हें हम अपनी सीमा के भीतर से चलाकर अचूक मार कर सकते हैं। 2019 में भारत की बालाकोट मदरसे पर की गई बमबारी को पाकिस्तान ने छिपा लिया और अगले ही दिन हवाई हमला करके साबित किया कि हम जवाब दे सकते हैं। इसबार उसे मौका नहीं मिलना चाहिए। फोटो और वीडियो-प्रमाण के साथ पिटाई होनी चाहिए, ताकि दुनिया और खासतौर से अपने देश की जनता के सामने पाकिस्तान की फज़ीहत हो।
एक विकल्प, 2016 के सर्जिकल स्ट्राइक जैसा हो सकता है, जिसमें थलसेना की भूमिका होगी। इसमें हवाई युद्ध की तुलना में जोखिम कम है, पर नियंत्रण रेखा पर 2021 से चल रहे युद्ध-विराम के टूटने का अंदेशा है। गोलाबारी का कवर मिलने से पाकिस्तानी घुसपैठ बढ़ने का खतरा भी है। पिछले एक हफ्ते से वहाँ गोलाबारी चल रही है। थलसेना ने 2011 और 2013 में भी कार्रवाइयाँ की थीं, जब पाकिस्तानी सेना की बॉर्डर एक्शन टीम (बैट) ने भारतीय सैनिकों की गर्दन काटने का अभियान चलाया था।
पाकिस्तान के भीतर भाड़े के लोगों की मदद से जेहादी नेताओं के खुफिया तरीके से सफाए की रणनीति जारी रह सकती है। इससे सीधे तौर हिंसा करने वालों को सज़ा ज़रूर मिलती है, पर पीछे की असली ताकतें बची रहती हैं। सज़ा उन्हें मिलनी चाहिए।
नवोदय टाइम्स में 2 मई, 2025 को प्रकाशित आलेख का विस्तारित संस्करण
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