Monday, May 12, 2025

आतंकवाद की ‘नाभि’ पर प्रहार का प्रारंभ


'ऑपरेशन सिंदूर' के तहत तीन दिन चली लड़ाई के दीर्घकालीन निहितार्थ बाद में समझे जाएँगे, पहली बात यह है कि लंबे अरसे बाद दोनों देशों में आज 12 मई को बात होगी। भले ही यह बात डायरेक्टर जनरल मिलिट्री ऑपरेशंस के लेवल पर है, इसलिए वह फौजी-गतिविधियों पर केंद्रित होगी। हो सकता है कि इसके भीतर से कोई महत्वपूर्ण सूत्र निकल आए। 

भारत ने अपनी सैनिक-कार्रवाई के जिन उद्देश्यों को शुरू में घोषित किया था, वे काफी हद तक हासिल हो चुके हैं। पाकिस्तान के रक्षा-इंफ्रास्ट्रक्चर का जो नुकसान हुआ है, उसकी जानकारी रविवार को सेना के वरिष्ठ अधिकारियों ने अपनी ब्रीफिंग में दी है। फिलहाल हमें पहलगाम के उन छह या आठ हत्यारों को पाताल से भी खोजकर लाना चाहिए, जो ‘आतंकवाद की नाभि’ में बैठे हैं। उस नाभि पर यह पहला वार है।

10 मई की शाम युद्धविराम की घोषणा होने के बाद देर रात तक संशय बना रहा कि लड़ाई रुकी भी है या नहीं। आखिरकार रुकी। इससे पाकिस्तानी सत्ता-प्रतिष्ठान के भीतर की दरारें दिखाई पड़ रही हैं। यकीनन पाकिस्तान के साथ रिश्तों में बहुत सावधानी बरतने की ज़रूरत है और हम सावधान हैं। 

भारत-पाकिस्तान बातचीत से ज्यादा रोचक और सनसनीखेज भारत की आंतरिक-राजनीति और सोशल मीडिया की चिमगोइयाँ हैं, जहाँ ‘किंतु-परंतुओं’ की बाढ़ है। कुछ लोगों को लगता है कि इस लड़ाई से निर्णायक रूप से कुछ हासिल नहीं हुआ। भारत की दिलचस्पी लंबी लड़ाई में थी ही नहीं और पाकिस्तान में लड़ने की कुव्वत नहीं थी। लड़ाई का रुकना सकारात्मक गतिविधि है, पर इसका मतलब यह नहीं है कि अब हम कोई कार्रवाई करेंगे ही नहीं। रविवार को भारतीय वायुसेना ने स्पष्ट कर दिया कि हमारा ऑपरेशन खत्म नहीं हुआ है। 

हासिल तो गज़ा में पिछले डेढ़ साल से ज्यादा समय से चल रही लड़ाई से भी कुछ नहीं हुआ। यूक्रेन की लड़ाई तो उससे भी ज्यादा लंबी है। इस लड़ाई में भारत की ओर से सबसे घातक और खामोश वार सिंधु के पानी का है। पाकिस्तान की दशा ‘जल बिन मछली’ की होने वाली है। भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि फिलहाल बातचीत युद्धविराम की प्रक्रिया से जुड़े मसलों पर ही होगी। शेष किसी भी विषय पर नहीं। युद्धविराम अमेरिका के हस्तक्षेप से हुआ जरूर है, पर यह मध्यस्थता जारी नहीं रहेगी। 1965 में सोवियत संघ ने और 1999 में करगिल-युद्ध मे अमेरिका ने हस्तक्षेप किया था, पर उससे क्या। 

पाकिस्तान का आतंकी चेहरा खुलकर बेनकाब हुआ है। शनिवार को भारत ने उन पाँच बड़े आतंकवादियों की सूची जारी की, जो 'ऑपरेशन सिंदूर' के दौरान मारे गए। ये आईसी-814 से लेकर पुलवामा तक के कातिल थे। इनके अलावा छोटे-बड़े सौ से ज्यादा आतंकी प्यादे और रंगरूट भी मारे गए हैं। जानकारियाँ सामने आने तो दीजिए। बहावलपुर और मुरीद्के में मारे गए इन लोगों के अंतिम संस्कार में जिस तरह से वहाँ के सेनाध्यक्ष और संयुक्त राष्ट्र द्वारा नामित आतंकवादी कंधे से कंधा मिलाकर खड़े थे, उससे पाकिस्तानी सत्ता-प्रतिष्ठान का बदसूरत चेहरा सामने आया है। 

इसबार के ‘सर्जिकल-स्ट्राइक’ का लेवल 2016 और 2019 के मुकाबले ज्यादा बड़ा था। भारत की प्रतिक्रियाओं में क्रमशः कठोरता आ रही है। यह घोषित करके, कि अब किसी भी आतंकी घटना को हम युद्ध मानेंगे, अपनी सहन-सीमा को भारत ने और कठोर बना दिया है। इस दौरान डिप्लोमेसी में पर्दे के पीछे क्या चल रहा है, उसे समझना आसान नहीं है। जितनी बातें पीछे होती हैं, उनमें से 10 फीसदी भी अक्सर सामने नहीं आ पाती हैं। इसलिए फौरन बड़े-बड़े निष्कर्ष मत निकालिए। खामोशी से इंतज़ार कीजिए। 

नवोदय टाइम्स में 12 मई, 2025 को प्रकाशित






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