इसमें दो राय नहीं कि मोदी सरकार का चुनावी साल
का बजट लोक-लुभावन बातों से भरपूर है, पर इसके पीछे सामाजिक-दृष्टि भी है। इस बजट
से तीन तबके सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे। एक सीमांत किसान, दूसरे असंगठित क्षेत्र
के श्रमिक और तीसरे वेतन भोगी वर्ग। छोटे किसानों और मध्यवर्ग के लिए की गई घोषणाओं
पर करीब एक लाख करोड़ रुपये (जीडीपी करीब 0.5 फीसदी) के खर्च की घोषणा सरकार ने की
है, पर राजकोषीय अनुशासन बिगड़ा नहीं है। इस सरकार की उपलब्धि है, टैक्स-जीडीपी
अनुपात को 2013-14 के 10.1 फीसदी से बढ़ाकर 11.9 फीसदी तक पहुंचाना। यानी कि
कर-अनुपालन में प्रगति हुई है। आयकर चुकता करने वालों की तादाद से और जीएसटी में
क्रमशः होती जा रही बढ़ोत्तरी से यह बात साबित हो रही है।
सरकार ने छोटे और सीमांत किसानों को आय समर्थन
के लिए करीब 75,000 करोड़ रुपये की योजना की घोषणा की है। यह धनराशि कृषि उपज के
मूल्य में कमी की भरपाई करेगी। सरकार का यह कदम कल्याणकारी राज्य की स्थापना की
दिशा में एक कदम है। तेलंगाना में यह कार्यक्रम पहले से चल रहा है। केन्द्र सरकार
इसका श्रेय चाहती है, तो इसमें गलत क्या है? दूसरी कल्याण योजना है असंगठित क्षेत्र के
श्रमिकों के लिए पेंशन। कल्याण योजनाओं के लिए संसाधन मौजूदा कार्यक्रमों में कमी
करके उपलब्ध कराए गए हैं। यह भी सच है कि आयकर-दाताओं के सबसे निचले स्लैब को राहत
देने से राजनीतिक लाभ मिलेगा। इस लिहाज से यह बजट विरोधी-दलों को खटक रहा है।
अंतरिम बजट में बड़े नीतिगत फैसले को लेकर उनकी आपत्ति है, पर पहली बार अंतरिम बजट
में बड़ी घोषणाएं नहीं हुईं हैं।
महत्वपूर्ण यह है कि इन घोषणाओं से किस वर्ग को
लाभ मिलेगा। ‘किसान
सम्मान निधि’ से करीब 12 करोड़ छोटे किसानों का भला होगा।
इसी तरह से आयकर और बैंकों में ब्याज पर टीडीएस की छूट मिलने से करीब तीन करोड़
लोगों को लाभ होगा। इसी तरह आवास से जुड़ी छूटों का लाभ है। देश के करीब आधे
परिवार किसी न किसी रूप में इन कार्यक्रमों से प्रभावित होंगे। इसमें उन सभी
वर्गों का इसमें ध्यान रखा गया है, जो जनमत तैयार करते हैं। ऐसा भी नहीं कि इन
घोषणाओं से खजाना खाली हो जाएगा, बल्कि अर्थ-व्यवस्था बेहतरी का इशारा कर रही है।
दो हेक्टेयर से कम जोत वाले किसानों को सालाना
छह हजार रुपये की मदद देने की जो घोषणा की गई है, उसे सार्वभौमिक न्यूनतम आय कार्यक्रम
की शुरूआत मान सकते हैं। बेशक यह चुनाव से जुड़ा है, पर इस अधिकार से सरकार को
वंचित नहीं कर सकते। अलबत्ता पूछ सकते हैं कि इसे लागू कैसे करेंगे? व्यावहारिक रूप से इन्हें लागू करने में कोई
दिक्कत नहीं आएगी। बल्कि आने वाले वर्षों में ये स्कीमें और ज्यादा बड़े आकार में
सामने आएंगी, क्योंकि अर्थ-व्यवस्था इन्हें सफलता से लागू करने की स्थिति में है। यह
स्कीम 1 दिसम्बर 2018 से लागू हो रही है। यानी कि इसकी पहली किस्त चुनाव के पहले
किसानों को मिल भी जाएगी।
पाँच लाख रुपये तक की आय के करमुक्त होने की
अकेली घोषणा इतनी जबर्दस्त थी कि सदन में काफी देर तक मोदी-मोदी का घोष होता रहा।
पीयूष गोयल ने कहा, पिछले चार वर्षों में प्रत्यक्ष करों के राजस्व में 81 फीसदी
की वृद्धि हुई है। 2013-14 में आयकर राजस्व 6.38 लाख करोड़ रुपये था, जो पिछले साल
12 लाख करोड़ रुपये हो गया है। इसके अलावा जीएसटी भी पिछले साल 97 हजार करोड़
रुपये प्रतिमाह की दर पर आ गया है और जनवरी के महीने में उसने एक लाख की सीमा पार
कर ली है। जीएसटी के सही रास्ते पर आ जाने के बाद राजस्व से होने वाली आय में
वृद्धि ही होगी।
पिछले पांच वर्षों के दौरान सरकार की वित्तीय
स्थिति सुधरी है. कर राजस्व में 81 प्रतिशत की वृद्धि तब हुई है, जब सकल घरेलू
उत्पाद में 67 प्रतिशत के आसपास बढ़ोतरी हुई है। इसका मतलब है कि कर-अनुपालन में
भी सुधार हुआ है। जीडीपी वृद्धि के मुकाबले कर राजस्व बढ़ाने के लिए सरकार ने
बेहतर प्रयास किए हैं। वित्तमंत्री ने कहा कि हमने राजकोषीय घाटे को 3.4 फीसदी के
स्तर पर रहने दिया है। हम चाहते तो यह 3.3 फीसदी पर भी रखा जा सकता था, पर इस वक्त
छोटे किसानों की आर्थिक स्थिति को देखते हुए हमने उनकी मदद करने का फैसला किया और
राजकोषीय घाटे को आगामी वर्षों में ठीक किया जा सकता है। सरकार मान कर चल रही है
कि आने वाले वर्षों में आर्थिक-संवृद्धि की दर में काफी सुधार होगा।
सबसे बड़ी बात है कि बैंकिंग सेक्टर में सुधार हुआ
है. 2.6 लाख करोड़ रुपये के पुनर्पूंजीकरण से सरकारी बैंकों की स्थिति बेहतर हुई
है। तीन लाख करोड़ रुपये वापस आए हैं। बैंक ऑफ इंडिया, बैंक ऑफ महाराष्ट्र और ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स को पीसीए के
प्रतिबंधों को हटाया गया है और शेष बैंक भी जल्द ही नियमित व्यवस्था में आएंगे।
यानी कि पूँजी निवेश का माहौल ठीक होगा।
पिछले साल के बजट में सरकार ने इंफ्रास्ट्रक्चर
में भारी निवेश किया था। उसके परिणाम सामने आए हैं। इस वक्त हर दिन 27 किलोमीटर हाईवे
बन रहे हैं. पिछले पांच साल में हवाई यात्रियों की संख्या दोगुनी हुई। देश में 100
हवाई अड्डे हो गए हैं। देश की व्यवस्था का डिजिटाइज़ेशन केवल तकनीकी आधुनिकीकरण की
तरफ ही इशारा नहीं कर रहा है, बल्कि सुधार का संकेत भी कर रहा है। हमारे देश में
दुनिया की सबसे सस्ती मोबाइल फोन सेवा उपलब्ध है। सरकार की योजना है कि अगले पाँच
वर्षों में एक लाख डिजिटल गाँव बनेंगे।
आयकर के संदर्भ में ज्यादा विस्तार जून में पेश
होने वाले मुख्य बजट में नजर आएंगे। यह सवाल अपनी जगह है कि वह बजट कौन सी सरकार
पेश करेगी? वित्तमंत्री ने कहा कि यह अंतरिम बजट नहीं है, देश की
विकास-यात्रा का माध्यम है। सरकार
ने इस अंतरिम बजट में सन 2030 तक की एक तस्वीर खींची है। पीयूष गोयल ने उसके जो दस
बिन्दु पेश किए हैं उनमें सबसे महत्वपूर्ण है पाँच साल में पाँच ट्रिलियन और आठ
साल में दस ट्रिलियन की अर्थ-व्यवस्था बनना। इस वक्त हमारी अर्थ-व्यवस्था करीब ढाई
ट्रिलियन डॉलर की है। क्या अगले 11 साल में वह सम्भव है, जो कई सौ साल में नहीं
हुआ? जवाब अगले दशक में मिलेगा।
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन विश्व कैंसर दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteमुझे लगता है कि श्री प्रमोद जोशी ने बीजेपी से कलम उधार लेकर यह आलेख लिखा है. लोकसभा चुनाव से ठीक पहले के इस अंतरिम बजट को मुख्यतः 2019 के अप्रैल और मई के चौथे सप्ताह तक के आय-व्यय के लिए प्रस्तुत किया जाना था और इसमें पिछले बजट से कोई भी नीतिगत बदलाव नहीं किया जा सकता था लेकिन राजस्थान, मध्य प्रदेश और छतीसगढ़ में पटखनी खाने के बाद बीजेपी सरकार ने हताशा में यह लोक-लुभावन बजट पेश किया है.
ReplyDeleteइस बजट में जो वादे और जो दावे किए गए हैं उनका क्रियान्वयन तो चुनाव के बाद ही हो पाएगा इसलिए इस दांव को खेलने में बीजेपी सरकार ने सभी नियमों की और परम्पराओं की धज्जियाँ उड़ा दी हैं.
इस बजट के वादों के क्रियान्वयन में अनेक अर्थशास्त्री प्रश्नचिह्न लगा रहे हैं किन्तु प्रमोद जोशी जी को उन से कोई सरोकार नहीं है.