पुलवामा हमले के बाद देश के कई इलाकों में कश्मीरी
मूल के लोगों पर हमले की खबरें आईं और इस सिलसिले में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र
सरकार समेत 11 राज्यों को नोटिस जारी किया है. अदालत ने सभी राज्यों के चीफ
सेक्रेटरी और डीजीपी को निर्देश दिया है कि कश्मीरियों पर होने वाले किसी भी हमले के
खिलाफ तुरंत कार्रवाई करें. जिन राज्यों को नोटिस दिया गया है उनमें जम्मू कश्मीर
उत्तराखंड, हरियाणा, यूपी, बिहार, मेघालय,
छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल, पंजाब
और महाराष्ट्र शामिल हैं.
कश्मीरियों पर हमलों की खबरों
के साथ ऐसी खबरें भी हैं कि कई जगहों पर इन्हें बचाने वाले लोग
भी सामने आए. हालांकि ऐसी खबरों को ज्यादा तवज्जोह नहीं मिली, पर सुप्रीम कोर्ट के
निर्देश से भरोसा बढ़ा है. भले ही बचाने वालों की संख्या कम रही हो, पर हमारे बीच
सकारात्मक सोच वाले भी मौजूद हैं. लोगों को भावनाओं में बहाना आसान है, सकारात्मक
सोच पैदा करना काफी मुश्किल है. पर हमें इसके व्यापक पहलुओं पर विचार करना चाहिए. साथ ही मॉब लिंचिंग की मनोदशा को पूरी ताकत से धिक्कारना होगा. यदि हम कश्मीरियों को कट्टरपंथी रास्ते पर जाने से रोकना चाहते हैं, तो पहले हमें उस रास्ते का बहिष्कार करना होगा.
पुलवामा कांड के फौरन बाद यह खबर मीडिया में थी
कि फौजी भरती के लिए बड़ी संख्या में कश्मीरी नौजवान आगे आए हैं. यह बात क्या
बताती है? यही कि कश्मीरी छात्र भी मुख्यधारा में शामिल होना
चाहते हैं. सम्भव है उनके इलाके में लोग उन्हें भड़काते और बहकाते हों, पर यदि
हमारा व्यवहार उनके साथ अच्छा होगा, तो वे क्यों बहकेंगे? उनके साथ वैचारिक
असहमति हो तब भी हम उनके साथ अच्छे तरीके से बात कर सकते हैं, उन्हें अपनी बात
समझाने का प्रयास कर सकते हैं. उन्हें घेरने, सताने और भगाने से तो किसी समस्या का
समाधान नहीं होगा.
हजारों की तादाद में कश्मीरी छात्र और छोटे
कारोबारी अपने घरों को छोड़कर देश के दूसरे इलाकों में आते हैं. उनकी आड़ में
देशद्रोही तत्व भी हो सकते हैं, पर इसके लिए सभी को तो जिम्मेदार नहीं माना जा
सकता. हमारी लड़ाई पाकिस्तान-परस्त उग्रवादियों से है, सभी कश्मीरियों से नहीं.
यदि कश्मीर को हम अपना मानते हैं, तो कश्मीरी भी हमारे हैं. वे इतनी दूर रहने और
पढ़ने आए हैं, तो किसी भरोसे पर ही आए होंगे. उन्हें भी हमपर भरोसा होगा. सम्भव है
कि उनके मन में साम्प्रदायिक और क्षेत्रीय भावनाएं भरी गई हों, पर जब उनका हमारे
बीच छात्रों से सम्पर्क होगा, तो अनेक गलतफहमियाँ दूर की जा सकती हैं. वे अपने घर
वापस जाकर हमारे लिए संदेशवाहक और सेतु का काम कर सकते हैं.
शुरुआती दिनों में खबरें आईं कि देहरादून के दो
कॉलेजों ने घोषणा की है कि अगले सत्र से कश्मीरी छात्रों को प्रवेश नहीं देंगे.
खबरें यह भी थीं कि देहरादून में कुछ कश्मीरी छात्राएं घिर गईं हैं. छात्राओं को
घेरना किसी भी तरीके से अमानवीय नहीं था. हमें अपनी बहन-बेटियों के बारे में सोचना
चाहिए. कश्मीरी छात्रों को दाखिला नहीं देने का बयान देने वाले देहरादून के दो
कॉलेजों ने बाद में अपने बयानों पर सफाई देते कहा कि वे दबाव में थे और उनके
प्रबंधन ने ऐसा कोई फैसला नहीं किया है.
एक कॉलेज के अध्यक्ष ने बताया, कश्मीरी छात्रों को निकालने की मांग करते हुए करीब 400-500 लोगों की
भीड़ संस्थान के दरवाजे पर जमा हो गई थी और इसी दबाव में हमें ऐसा करना पड़ा. एक
कॉलेज से कश्मीरी मूल के डीन को हटाए जाने की खबर भी आई.
वस्तुतः कश्मीरी छात्रों को दाखिला नहीं देने का
कोई नीतिगत फैसला ये कॉलेज कर नहीं सकते. यह हमारा सांविधानिक दायित्व है. कॉलेज
प्रशासन ने शायद भीड़ के दबाव में ऐसी घोषणा कर दी, पर हमें भीड़ की मनोदशा के
बारे में भी सोचना चाहिए. हाल के वर्षों में कई मौकों पर मॉब-लिंचिंग की खबरें आईं
हैं. हमें इस मनोवृत्ति से बाहर निकलना चाहिए. पढ़े-लिखे लोगों को तो इस अन्याय को
स्वीकार नहीं करना चाहिए. भीड़ की इस मनोवृत्ति के कारण कई निर्दोषों की जान गई
है.
कुछ कश्मीरी छात्रों के वॉट्सऐप और फेसबुक
संदेशों ने भी आग में घी का काम किया, पर यह मानना चाहिए कि ये संदेश भी भावनाओं
की आग को भड़काने की साज़िश का परिणाम हैं. वे हमारे बीच टकराव चाहते हैं.
पाकिस्तानी योजना का यह भी एक उद्देश्य है. बहरहाल ऐसी परिस्थितियों को रोकने की
जिम्मेदारी सामान्य नागरिकों से ज्यादा सरकारों की है.
यह पहला मौका नहीं है, जब एक खास समुदाय को
निशाना बनाया गया है. ऐसे में कानून-व्यवस्था को बनाए रखने और नागरिकों को बचाने
की जिम्मेदारी सरकारों की है. सुप्रीम कोर्ट ने यही बात राज्य सरकारों को बताई है.
अफसोस इस बात का है कि इस मामले में अदालत को हस्तक्षेप करना पड़ा. वास्तव में
कहाँ क्या हुआ, अभी पूरी जानकारी भी हमारे पास नहीं है.
जिस वक्त कश्मीरी छात्रों का उत्पीड़न किए जाने
की खबरें आ रहीं थीं, मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावडेकर का बयान आया कि
कश्मीरियों पर कोई संकट नहीं है. यह बात पूरी तरह सही नहीं थी. मीडिया में कई जगह से
खबरें थीं कि हमले हो रहे हैं और इस बात की खबरें थीं कि कॉलेजों पर दबाव डालकर
लिखवाया जा रहा है कि वे कश्मीरियों को प्रवेश नहीं देंगे. इन बातों की अनदेखी भी
नहीं की जा सकती.
अति तब हो गई जब मेघालय के राज्यपाल तथागत रॉय
का बयान आया कि कश्मीरियों, कश्मीरी उत्पादों और कश्मीरी कारोबारियों का पूरी तरह
बहिष्कार होना चाहिए. कोई मामूली व्यक्ति ऐसी बात कहे, तो समझ में आता है. एक
राज्यपाल को यह शोभा नहीं देता. कश्मीर के नागरिकों पर अलगाववादियों के समर्थन का
आरोप है, पर यह भी तो देखिए कहीं हम खुद इस अलगाववाद को हवा तो नहीं दे रहे हैं. कश्मीर
हमारा है और उसे हड़पने की हर कोशिश का हम विरोध करेंगे, पर हमारी लड़ाई मर्यादाहीन
नहीं है. हम नैतिक तरीकों से ही जीतेंगे.
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (26-02-2019) को "अपने घर में सम्भल कर रहिए" (चर्चा अंक-3259) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन 122वीं जयंती - अमरनाथ झा और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteकश्मीरी युवाओं को कोई देश से अलग नहीं कर रहा है, लेकिन कई सारे युवा हैं जो खुलेआम पाकिस्तान का समर्थन करते हैं और अभी भी कर रहे हैं।
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
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