पुलवामा कांड पर
पाँच दिन बाद अपनी प्रतिक्रिया में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान
खान ने कहा है कि भारत हमें जानकारी दे, तो हम जाँच करेंगे। इस बात को काफी
लोगों ने सकारात्मक रूप से लिया है, पर एक बड़ी संख्या में लोगों को, खासतौर से
भारत के लोगों को विश्वास नहीं है। आज के इंडियन एक्सप्रेस में राहुल
त्रिपाठी की एक रिपोर्ट में इस बात का उल्लेख किया है कि इमरान पर यकीन न करने
के कारण क्या हैं। आज के एक्सप्रेस में सम्पादकीय
भी इसी विषय पर है। राहुल त्रिपाठी की
रिपोर्ट में कहा गया है कि जैशे-मोहम्मद के बाबत भारत की और से दी गई सूचनाओं पर
पाकिस्तान पहले से कुंडली मारे बैठा है। भारत के तमाम अनुरोधों के बावजूद वह कुछ
करके नहीं दे रहा है। भारत में हुई कम से कम दो बड़ी आतंकी घटनाओं में मसूद अज़हर
का नाम है। एक है 2001 का संसद पर हमला और दूसरी है 2016 का पठानकोट हमला। मसूद
अज़हर के नाम दो बार इंटरपोल ने दो रेड कॉर्नर नोटिस जारी किए हैं। पहला 2004 में
संसद पर हुए हमले के बाबत और दूसरा 2016 में पठानकोट हमले के संदर्भ में।
जब भारत
ने पठानकोट हमले के सिलसिले में जैश की भागीदारी के सबूत दिए तो 2016 में ही पाकिस्तान
से पाँच सदस्यों की एक जाँच टीम भारत आई। राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (एनआईए) ने अदालत
में दाखिल अपने आरोप पत्र में लिखा है कि पाकिस्तान से आई संयुक्त जाँच टीम से
लिखित रूप में कहा गया कि वे पठानकोट पर हमला करने वाले आतंकियों के परिजनों के
डीएनए सैम्पल हमें उपलब्ध कराएं। इस चार्जशीट में कई नाम हैं। जाहिर है कि भारतीय
टीम ने न केवल आतंकियों की पहचान कर दी, बल्कि उनके रिश्तेदारों की पहचान भी बता
दी। टीम ने कहा, बताते हैं और आज तक नहीं बताया। उसके बाद भारत की और से भेजे गए
पत्रों का जवाब भी नहीं दिया गया। भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को इस
सिलसिले में जो डोज़ियर दिया है उसमें जैशे-मोहम्मद और उसके अल-रहमत ट्रस्ट के
बारे में जानकारियाँ हैं। जैश के ऑनलाइन भोंपू अल-क़मा और रंग-ओ-नूर कराची से
संचालित होते हैं और लगातार भारत-विरोधी प्रचार करते हैं।
इंडियन एक्सप्रेस ने
अपने सम्पादकीय में लिखा है कि इमरान खान या तो बेहद मासूम हैं या घोर कपटी।
उन्होंने पूछा है कि उनके देश को भारत पर आतंकवादी हमले से हासिल क्या होगा? उन्हें सबसे पहले इस बात पर ध्यान देना चाहिए
कि इस हमले से इनकार करने का उनके पास कोई कारण नहीं बचा। हमले के बाद मिनटों के
भीतर जिस जैशे-मोहम्मद ने इसकी जिम्मेदारी ली, वह पाकिस्तान के पंजाब सूबे से
संचालित होता है। यह कहना कि जैश तो 2002 में बैन कर दिया गया था, पर्याप्त नहीं
है। सन 2016 के पठानकोट हमले के बाद पाकिस्तान सरकार ने जैश के मुखिया मसूद अज़हर
को अपने संरक्षण में ले लिया था। जब इमरान खान कहते हैं कि हम आतंकवाद पर बात करने
को तैयार हैं, तब उनकी बात समझदारी की लगती है, पर यदि उन्हें वास्तव में लगता है
कि आतंकवाद से उनके देश का अहित हो रहा है, तो वे जैश और लश्कर जैसे संगठनों के
खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं करते? इनके खिलाफ सबूतों की कमी नहीं है।
एक्सप्रेस ने यह भी लिखा है कि भारत को सऊदी अरब के शाहजादे की यात्रा का
लाभ उठाना चाहिए। सन 2010 में दोनों देशों ने अपने रिश्तों को स्ट्रैटेजिक
पार्टनरशिप के रूप में परिभाषित किया है। सऊदी शाहजादे ने भारत आने के पहले
इस्लामाबाद की अपनी यात्रा के दौरान आतंकवाद के खिलाफ पाकिस्तानी प्रयत्नों की जो
तारीफ की है, वह निरर्थक है। यह बात छिपी नहीं है कि दुनियाभर में इस्लामिक
आतंकवाद का निर्यात सऊदी अरब से ही होता है। सुन्नी देवबंदी गिरोह जैश-ए-मोहम्मद
को धन और विचारधारा दोनों अल-कायदा और तालिबान से मिले हैं। एमबीएस के नाम से
मशहूर शाहजादे की इच्छा सुधार करने की है और वे चाहते हैं कि भारत और पाकिस्तान के
बीच सम्बन्ध सुधरें तो वे पाकिस्तान को वही सलाह दें, जो दुनिया दे रही है।
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल गुरुवार (21-02-2019) को "हिंदी साहित्य पर वज्रपात-शत-शत नमन" (चर्चा अंक-3254) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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देश के अमर शहीदों और हिन्दी साहित्य के महान आलोचक डॉ. नामवर सिंह को भावभीनी श्रद्धांजलि
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डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी ब्लॉग पोस्ट को आज की ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति नमन - नामवर सिंह और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। एक बार आकर हमारा मान जरूर बढ़ाएँ। सादर ... अभिनन्दन।।
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