दिल्ली में पिछले कुछ महीनों से आम आदमी पार्टी कांग्रेस पर दबाव बना रही है कि बीजेपी को हराना है, जो हमारे साथ गठबंधन करना होगा। हाल में हरियाणा के जींद विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी रणदीप सिंह सुरजेवाला के तीसरे स्थान पर रहने के बाद अरविंद केजरीवाल ने इस बात को फिर दोहराया। उन्होंने यह भी कहा कि कांग्रेस अगर दिल्ली की सातों सीटें जीतने की गारंटी दे, तो हम सभी सीटें छोड़ने को तैयार हैं। सवाल है कि ऐसी गारंटी कौन दे सकता है? हो सकता है कि आम आदमी पार्टी ऐसी गारंटी देने की स्थिति में हो, पर कांग्रेस के सामने केवल बीजेपी को हराने का मसला ही नहीं है।
कांग्रेस को उत्तर भारत में अपनी स्थिति को बेहतर बनाना है, तो उसे अपनी स्वतंत्र राजनीति को भी मजबूत करना होगा। उत्तर प्रदेश में नब्बे के दशक में कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी के सामने हथियार डाल दिए थे और मान लिया था कि बीजेपी के खिलाफ लड़ाई में एकमात्र सहारा सपा ही है। उस रणनीति के कारण यूपी में वह अपनी जमीन पूरी तरह खो चुकी है। दिल्ली में अभी उसकी स्थिति इतनी खराब नहीं है। दूसरे उसे भविष्य में खड़े रहना है, तो सबसे पहले आम आदमी पार्टी को किनारे करना होगा। क्योंकि बीजेपी के खिलाफ दो मोर्चे बनाने पर हर हाल में फायदा बीजेपी को होगा। भले ही आज फायदा न मिले, पर दीर्घकालीन लाभ अकेले खड़े रहने में ही है।
कांग्रेस को यह नहीं भूलना चाहिए कि आम आदमी पार्टी पंजाब में कांग्रेस की विरोधी पार्टी है। वह किसी तरह अपने लिए जमीन बनाना चाहती है। उसने अपनी जगह कांग्रेस-विरोधी आंदोलन से बनाई है। कांग्रेस को अपनी जड़ें वापस जमानी हैं, तो आम आदमी पार्टी का सफाया करना होगा। शायद कांग्रेस इस बात को अच्छी तरह समझती है। उधर डीएमके के एमके स्टालिन और तेदेपा के चन्द्रबाबू नायडू ने केजरीवाल को सुझाव दिया था कि कांग्रेस के साथ रिश्ते सुधारो। जनवरी 2019 में आम आदमी पार्टी ने एक बार फिर से कांग्रेस से सम्पर्क साधने की कोशिश की, पर जवाब नकारात्मक मिला।
इतना ही नहीं दिल्ली कांग्रेस की अध्यक्ष शीला दीक्षित और पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने काफी कड़े बयान भी जारी किए। इस पर निराश होकर केजरीवाल ने कहा कि कांग्रेस को गलतफहमी है कि हम उसके साथ गठबंधन बनाने की कोशिश में हैं। अब हम दिल्ली की सातों सीटों के अलावा पंजाब और गोवा की सभी सीटों पर लड़ेंगे। इसके बाद शीला दीक्षित ने भी कहा कि हम दिल्ली में सातों सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़े करेंगे।
यह बात ठीक है कि कांग्रेस का मुकाबला बीजेपी से है, पर इस बात को नहीं भुलाया जा सकता कि कांग्रेस का स्थान आम आदमी पार्टी ने ले लिया है। उसे वापस हासिल करने के लिए आम आदमी पार्टी का सफाया होना जरूरी है। देखना होगा कि इस लोकसभा चुनाव में ऐसा होता है या नहीं। यदि लोकसभा चुनाव में दिल्ली और पंजाब में आम आदमी पार्टी को शिकस्त मिली, तो विधानसभा के अगले चुनाव में कांग्रेस की स्थिति सुधरेगी और शायद आम आदमी पार्टी का सूर्यास्त हो जाएगा।
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कांग्रेस को उत्तर भारत में अपनी स्थिति को बेहतर बनाना है, तो उसे अपनी स्वतंत्र राजनीति को भी मजबूत करना होगा। उत्तर प्रदेश में नब्बे के दशक में कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी के सामने हथियार डाल दिए थे और मान लिया था कि बीजेपी के खिलाफ लड़ाई में एकमात्र सहारा सपा ही है। उस रणनीति के कारण यूपी में वह अपनी जमीन पूरी तरह खो चुकी है। दिल्ली में अभी उसकी स्थिति इतनी खराब नहीं है। दूसरे उसे भविष्य में खड़े रहना है, तो सबसे पहले आम आदमी पार्टी को किनारे करना होगा। क्योंकि बीजेपी के खिलाफ दो मोर्चे बनाने पर हर हाल में फायदा बीजेपी को होगा। भले ही आज फायदा न मिले, पर दीर्घकालीन लाभ अकेले खड़े रहने में ही है।
कांग्रेस को यह नहीं भूलना चाहिए कि आम आदमी पार्टी पंजाब में कांग्रेस की विरोधी पार्टी है। वह किसी तरह अपने लिए जमीन बनाना चाहती है। उसने अपनी जगह कांग्रेस-विरोधी आंदोलन से बनाई है। कांग्रेस को अपनी जड़ें वापस जमानी हैं, तो आम आदमी पार्टी का सफाया करना होगा। शायद कांग्रेस इस बात को अच्छी तरह समझती है। उधर डीएमके के एमके स्टालिन और तेदेपा के चन्द्रबाबू नायडू ने केजरीवाल को सुझाव दिया था कि कांग्रेस के साथ रिश्ते सुधारो। जनवरी 2019 में आम आदमी पार्टी ने एक बार फिर से कांग्रेस से सम्पर्क साधने की कोशिश की, पर जवाब नकारात्मक मिला।
इतना ही नहीं दिल्ली कांग्रेस की अध्यक्ष शीला दीक्षित और पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने काफी कड़े बयान भी जारी किए। इस पर निराश होकर केजरीवाल ने कहा कि कांग्रेस को गलतफहमी है कि हम उसके साथ गठबंधन बनाने की कोशिश में हैं। अब हम दिल्ली की सातों सीटों के अलावा पंजाब और गोवा की सभी सीटों पर लड़ेंगे। इसके बाद शीला दीक्षित ने भी कहा कि हम दिल्ली में सातों सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़े करेंगे।
यह बात ठीक है कि कांग्रेस का मुकाबला बीजेपी से है, पर इस बात को नहीं भुलाया जा सकता कि कांग्रेस का स्थान आम आदमी पार्टी ने ले लिया है। उसे वापस हासिल करने के लिए आम आदमी पार्टी का सफाया होना जरूरी है। देखना होगा कि इस लोकसभा चुनाव में ऐसा होता है या नहीं। यदि लोकसभा चुनाव में दिल्ली और पंजाब में आम आदमी पार्टी को शिकस्त मिली, तो विधानसभा के अगले चुनाव में कांग्रेस की स्थिति सुधरेगी और शायद आम आदमी पार्टी का सूर्यास्त हो जाएगा।
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