मीडिया की सजगता या अतिशय सनसनी फैलाने के इरादों के कारण
पिछले एक महीने से जहर-बुझे बयानों की झड़ी लग गयी है. हेट स्पीच का आशय है किसी
सम्प्रदाय, जाति, भाषा वगैरह के प्रति दुर्भावना प्रकट करना. चूंकि यह चुनाव का
समय है, इसलिए हमारा ध्यान राजनीतिक बयानों पर केंद्रित है, पर गौर से देखें तो
हमें अपने सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन में अभद्र और नफरत भरे विचार प्रचुर मात्रा में
मिलेंगे. अक्सर लोग इसे अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मानते हैं. पर जब यह सुरुचि
और स्वतंत्रता का दायरा पार कर जाती है, तब उसे रोकने की जरूरत होती है. राजनीति के
अलावा यह भाषा और विचार-विनिमय का मसला भी है.
संघ परिवार से जुड़े लोगों के 'ज़हरीले' बयानों ने नरेंद्र मोदी को एकबारगी सांसत में डाल दिया है. पिछले कुछ दिन से मोदी अपनी छवि को सौम्य बनाने की कोशिश कर रहे हैं. इस बयानबाज़ी ने इस छवि-निर्माण को कुछ देर के लिए छिन्न-भिन्न कर दिया है.
क्या ये अमानत में ख़यानत है? अपनों की दगाबाज़ी? या अतिशय नासमझी? इसे संघ परिवार के भीतर बैठे मोदी विरोधियों का काम मानें या कोई और बात?
पार्टी ने अमित शाह के बयान पर ठंडा पानी डालकर हालात सुधारे ही थे कि विहिप नेता क्लिक करेंप्रवीण तोगड़िया और बिहार में भाजपा के एक प्रत्याशी गिरिराज सिंह के बयानों ने सारी कोशिशों पर काफ़ी पानी फेर दिया. शिवसेना के रामदास कदम ने रही-सही कसर पूरी कर दी.
पीछा छुड़ाने के लिए नरेंद्र मोदी ने इन टिप्पणियों को 'ग़ैर ज़िम्मेदाराना' ज़रूर करार दिया है, पर 'कालिख' लग चुकी है. फिलहाल मोदी खुद और उनकी पार्टी नहीं चाहती कि विकास और सुशासन का जो दावा वे कर रहे हैं, उस पर इन बयानों की आंच आए.
मोदी ने एक के बाद एक दो ट्विटर संदेशों में कहा, "'जो लोग बीजेपी का शुभचिंतक होने का दावा कर रहे हैं, उनके बेमतलब बयानों से कैंपेन विकास और गवर्नेंस के मुद्दों से भटक रही है. मैं ऐसे किसी भी ग़ैर ज़िम्मेदाराना बयान को खारिज करता हूं और ऐसे बयान देने वालों से अपील कर रहा हूं कि वे ऐसा न करें."