संरा सुरक्षा परिषद की बैठक में अध्यक्ष की कुर्सी पर भारत के विदेश सचिव हर्ष श्रृंगला
अफगानिस्तान से अमेरिका की वापसी पूरी तरह हो चुकी है और अब यह देश स्वतंत्र अफगान इस्लामिक अमीरात है। हालांकि यहाँ की सरकार भी पूरी तरह बनी नहीं है, पर मानकर चलना चाहिए कि जल्द बनेगी और यह देश अपने नागरिकों की हिफाजत, उनकी प्रगति और कल्याण के रास्ते जल्द से जल्द खोजेगा और विश्व-शांति में अपना योगदान देगा। अब कुछ बातें स्पष्ट होनी हैं, जिनका हमें इंतजार है। पहली यह कि इस व्यवस्था के बारे में वैश्विक-राय क्या है, दूसरे भारत और अफगानिस्तान रिश्तों का भविष्य क्या है और तीसरे पाकिस्तान की भूमिका अफगानिस्तान में क्या होगी। इनके इर्द-गिर्द ही तमाम बातें हैं।
जिस दिन अफगानिस्तान से अमेरिकी वापसी पूरी हुई
है, उसी दिन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने एक प्रस्ताव पास किया है, जिसमें
तालिबान को याद दिलाया गया है कि अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद पर लगाम लगाने के अपने
वायदे पर उन्हें दृढ़ रहना होगा। मंगलवार को संरा सुरक्षा परिषद में भारत की अध्यक्षता
का अंतिम दिन था। भारत की अध्यक्षता में पास हुआ प्रस्ताव
2593 भारत की चिंता को भी व्यक्त करता है। यह प्रस्ताव सर्वानुमति से पास नहीं
हुआ है। इसके समर्थन में 15 में से 13 वोट पड़े। इन 13 में भारत का वोट भी शामिल है। विरोध में कोई मत नहीं पड़ा, पर
चीन और रूस ने मतदान में भाग नहीं लिया।
इस अनुपस्थिति को असहमति भले ही न माना जाए, पर सहमति भी नहीं माना जाएगा। अफगानिस्तान को लेकर पाँच स्थायी सदस्यों के विचार एक नहीं हैं और भविष्य के लिए अच्छा संकेत नहीं है। दूसरे यह भी स्पष्ट है कि रूस और चीन के साथ भारत की सहमति नहीं है। सवाल है कि क्या है असहमति का बिन्दु? इसे सुरक्षा परिषद की बैठक में रूसी प्रतिनिधि के वक्तव्य में देखा जा सकता है। उन्होंने कहा कि इस प्रस्ताव के लेखक, यानी अमेरिका ने, अफगानिस्तान में आतंकवादियों को ‘हमारे और उनके (अवर्स एंड देयर्स)’ के खानों में विभाजित किया है। इस प्रकार उसने तालिबान और उसके सहयोगी हक्कानी नेटवर्क को अलग-अलग खाँचों में रखा है। हक्कानी नेटवर्क पर ही अफगानिस्तान में अमेरिकी और भारतीय ठिकानों पर हमले करने का आरोप लगता रहा है।