कांग्रेस का चुनाव प्रचार इस बार इस बात पर केंद्रित था कि हमें जिताओ, वर्ना मोदी आ रहा है। पिछले 12 साल में कांग्रेस ने नरेंद्र मोदी को 'भेड़िया आया' के अंदाज़ में खड़ा किया है। कांग्रेस ने अपनी सकारात्मक राजनीति को सामने लाने के बजाय इस राजनीति का सहारा लिया। जहाँ उसे जाति का लाभ मिला वहाँ जाति और जहाँ धर्म का लाभ मिला वहाँ धर्म का सहारा भी लिया। पश्चिमी देशों के मीडिया में कांग्रेस की इस अवधारणा को महत्व मिला। बावजूद इन बातों के क्या कांग्रेस चुनाव में हार रही है? इस बात को अभी कहना उचित नहीं होगा। सम्भव है भारतीय मीडिया के सारे कयास और अनुमान गलत साबित हों। अलबत्ता यह लेख इस बात को मानकर लिखा गया है कि कांग्रेस अपने अस्तित्व की सबसे बड़ी पराजय से रूबरू होने जा रही है। ऐसा होता है तब कांग्रेस क्या करेगी? बेशक ऐसा नहीं हुआ और कांग्रेस विजयी होकर उभरी तो हमें अपनी समझ का पुनर्परीक्षण करना होगा। पर यदि वह हारी तो उन बातों पर विचार करना होगा जो कांग्रेस के पराभव का कारण बनीं और यह भी कि अब कांग्रेस क्या करेगी।
पिछले साल जून
में भाजपा के चुनाव अभियान का जिम्मा सँभालने के बाद नरेंद्र मोदी ने अपने पार्टी
कार्यकर्ताओं से 'कांग्रेस मुक्त भारत निर्माण' के लिए जुट जाने का आह्वान किया था। उस समय तक वे अपनी पार्टी की ओर से
प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी नहीं बने थे। नरेन्द्र मोदी की बातों में आवेश होता
है। उनकी सारी बातों की गहराई पर जाने की ज़रूरत नहीं होती, पर उन्होंने इस बात को
कई बार कहा, इसलिए यह समझने की ज़रूरत है कि वे कहना क्या चाहते थे। यह भी कि इस
बार के चुनाव परिणाम क्या कहने वाले है।
चुनाव का आखिरी
दौर कल पूरा हो जाएगा और कल शाम ही प्रसारित होने वाले एक्ज़िट पोलों से परिणामों
की झलक मिलेगी। फिर भी परिणामों के लिए हमें 16 मई का इंतज़ार करना होगा। अभी तक
के जो आसार हैं और मीडिया की विश्वसनीय, अविश्वसनीय जैसी भी रिपोर्टें हैं उनसे
अनुमान है कि कांग्रेस हार रही है। हार भी मामूली नहीं होगी। तीसरे मोर्चे वगैरह की
अटकलें हैं। इसीलिए इस चुनाव के बाद कांग्रेस का क्या होने वाला है, इस पर नज़र
डालने की ज़रूरत है। संकट केवल लोकसभा का नहीं है। सीमांध्र और तेलंगाना
विधानसभाओं के चुनाव-परिणाम भी 16 मई को आएंगे। इस साल महाराष्ट्र विधानसभा के
चुनाव भी होंगे। यानी कांग्रेस के हाथ से प्रादेशिक सत्ता भी निकलने वाली है।