Thursday, October 30, 2025

आगे जाता आसियान और पिछड़ता सार्क


हाल में दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया को लेकर दो तरह की खबरें मिली थीं, जिनसे दो तरह की प्रवृत्तियों के संकेत मिलते हैं। आसियान-भारत शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वर्चुअल तरीके से और विदेशमंत्री एस जयशंकर स्वयं उपस्थित हुए थे। इस मौके पर प्रधानमंत्री ने कम्युनिटी विज़न 2045 को अपनाने के लिए आसियान की सराहना की। कम्युनिटी विज़न 2045 अगले बीस वर्षों में इस क्षेत्र को एक समेकित समन्वित विकास-क्षेत्र में तब्दील करने की योजना है।

अपने आसपास के राजनीतिक माहौल को देखते हुए यह ज़ाहिर होता जा रहा है कि भारत को पूर्व की दिशा में अपनी कनेक्टिविटी का तेजी से विस्तार करना होगा। यह विस्तार हो भी रहा है, पर म्यांमार की अस्थिरता और बांग्लादेश की अनिश्चित राजनीति के कारण कुछ सवाल खड़े हो रहे हैं। दक्षिण-पूर्व एशिया के पाँच देशों (कंबोडिया, लाओस, म्यांमार, थाईलैंड और वियतनाम) के साथ सांस्कृतिक और वाणिज्यिक संबंधों को बढ़ावा देने वाले गंगा-मीकांग सहयोग कार्यक्रम में हमें तेजी लानी चाहिए।

अब उस दूसरी खबर की ओर आएँ, जो इस सिलसिले में महत्वपूर्ण है। भारत के सरकारी स्वामित्व वाले भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) ने गत 22 अक्तूबर से अपने पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए बांग्लादेश से इंटरनेट बैंडविड्थ का आयात बंद कर दिया। इस कदम का सीधा असर पूर्वोत्तर की इंटरनेट कनेक्टिविटी पर पड़ेगा, जो अभी तक बांग्लादेश अखौरा बंदरगाह के माध्यम से आयातित बैंडविड्थ पर निर्भर थी।

यह फैसला अचानक नहीं हुआ है। पिछले साल दिसंबर में बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने हसीना सरकार के उस फैसले को पलट दिया, जिसमें भारत के पूर्वोत्तर को बैंडविड्थ की आपूर्ति के लिए बांग्लादेश को ट्रांज़िट पॉइंट के रूप में उपयोग करने की अनुमति दी गई थी। बांग्लादेश टेलीकम्युनिकेशंस रेग्युलेटरी कमीशन (बीटीआरसी) का कहना था कि भारत को ट्रांज़िट पॉइंट देने से क्षेत्रीय इंटरनेट हब बनने की हमारी क्षमता कमज़ोर हो जाएगी।

भारत का पूर्वोत्तर पहले घरेलू फाइबर ऑप्टिक नेटवर्क का उपयोग करके चेन्नई में समुद्री केबलों के माध्यम से सिंगापुर से जुड़ा हुआ था। चूंकि चेन्नई में लैंडिंग स्टेशन पूर्वोत्तर से लगभग 5,500 किमी दूर है, इसलिए इंटरनेट की गति पर असर पड़ता था।

Wednesday, October 29, 2025

रूसी तेल पर पाबंदियाँ और भारत-अमेरिका रिश्ते


रूस पर दबाव बढ़ाने के लिए उसकी दो सबसे बड़ी तेल कंपनियों और 34 सहायक कंपनियों पर अमेरिका ने जो प्रतिबंध लगाए हैं, उनका असर भारत पर भी पड़ेगा. कोई भी बैंक, जो इन कंपनियों के तेल की खरीद में मदद करेगा, उसे अमेरिकी वित्तीय प्रणाली से अलग किया जा सकता है.

रोज़नेफ्ट और लुकॉइल नामक इन कंपनियों से भारत की दो कंपनियाँ (रिलायंस और नायरा) तेल खरीदती रही हैं. रिलायंस का रोज़नेफ़्ट से क़रार था और नायरा में भी रोज़नेफ़्ट की हिस्सेदारी है. रिलायंस ने प्रतिबंधों को स्वीकार करने के साथ भारत सरकार के साथ खड़े होने की प्रतिबद्धता भी व्यक्त की है.

उधर भारत-अमेरिका व्यापार वार्ता निर्णायक मोड़ पर है. लगता है कि दोनों देशों ने कुछ पत्ते दबाकर रखे हैं, जिनके सहारे मोल-तोल चल रहा है. इस दौरान अमेरिका यह संकेत भी दे रहा है कि दोनों के रिश्तों में बिगाड़ नहीं है.

ट्रंप इस हफ्ते दक्षिण पूर्व और पूर्व एशिया की यात्रा पर आए हैं. मलेशिया, जापान और दक्षिण कोरिया में वे रुकेंगे. उनकी चीन के शी जिनपिंग के साथ बैठक होगी. बुधवार को बुसान में इस बैठक के बाद अमेरिका और तीन के बीच की रस्साकशी के परिणाम सामने आएँगे, साथ ही अमेरिका के एशिया पर प्रभाव की असलियत का पता भी लगेगा. 

ट्रंप साबित करना चाहेंगे कि अमेरिका का अब भी दक्षिण पूर्व एशिया में बोलबाला है, जहाँ बीजिंग का दबदबा बढ़ रहा है. उम्मीद थी कि उनकी और पीएम मोदी की मुलाकात कुआलालंपुर में आसियान शिखर सम्मेलन में होगी, पर मोदी वहाँ नहीं गए. ज़ाहिर है कि भारत सरकार, अमेरिका के साथ निकटता दिखाने से बच रही है.

अन्य प्रतिबंध

रूस की सैन्य क्षमताओं को कम करने के उद्देश्य से विमान उपकरण और सेमीकंडक्टर जैसे उच्च तकनीक वाले उत्पादों के रूस को निर्यात पर रोक भी लगाई गई है.  

ये निर्यात प्रतिबंध उन वस्तुओं पर भी लागू होंगे, जिनका उत्पादन अन्य देश अमेरिकी तकनीक का उपयोग करके करते हैं. अमेरिकी वित्तमंत्री स्कॉट बेसेंट ने कहा कि ‘युद्ध को ख़त्म करने से इनकार’ की वजह से प्रतिबंध जरूरी हैं.

अमेरिका ने यह कार्रवाई अकेले नहीं की है, बल्कि उसके सहयोगियों ने भी की है. पिछले हफ्ते ब्रिटेन ने भी इन्हीं दोनों कंपनियों पर प्रतिबंध लगाए थे. यूरोपियन यूनियन ने भी प्रतिबंध लगाए हैं.

Saturday, October 25, 2025

पीयूष पांडे और हिन्दुस्तान अखबार

महिला प्रेस क्लब के लॉन की इस तस्वीर में बाएँ से अनिता सिंह, संजय अभिज्ञान, प्रमोद जोशी, मृणाल जी, गैबी श्मिट और जसनीत बिंद्रा। 
विज्ञापन गुरु पीयूष पांडे के निधन की खबर आने के बाद मेरे मन में उनसे एक या दो मुलाकातों की याद ताज़ा हो गई, जब 2008 में हिन्दुस्तान अखबार के दूसरे रिलॉन्च के सिलसिले में हमारी कंपनी ने उनकी सहायता ली थी। उसके तहत उन्होंने एक टीवी विज्ञापन तैयार किया था, जिसके साथ एक गीत बजता था, अब हिन्दुस्तान की बारी है, क्या पूरी तैयारी है?’ उन दिनों हमारे यहाँ इस गीत की कॉलर ट्यून भी बनाई गई थी।

हालाँकि उस समय तक सोशल मीडिया का भारत में उदय हो चुका था, पर कम से कम मैं उसमें बहुत सक्रिय नहीं था और अफसोस इस बात का है कि मैंने उस विज्ञापन को रिकॉर्ड करके नहीं रखा। बहरहाल आज मैंने यूट्यूब पर उसे सर्च किया, पर मिला नहीं। इसके बाद मैंने गूगल के सर्च इंजन पर सवाल डाला कि क्या आपको हिन्दुस्तान अखबार का विज्ञापन गीत की जानकारी है?

इसपर जवाब मिला, विज्ञापन गीत के लिए यह जानना ज़रूरी है कि आप किस विशेष विज्ञापन के बारे में पूछ रहे हैं, क्योंकि हिन्दुस्तान अखबार के कई विज्ञापन अभियान चले हैं और उनके विज्ञापन गीत भी अलग-अलग हैं। हालांकि, उनका एक लोकप्रिय और यादगार अभियान था, जिसका गीत इस प्रकार था: "तरक्की का नया हिन्दुस्तान, नए विचारों का हिन्दुस्तान।"

Wednesday, October 22, 2025

फ्रांचेस्का ऑर्सीनी के प्रवेश पर रोक


हिंदी की अग्रणी विद्वान और लंदन विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ ओरिएंटल एंड अफ्रीकन स्टडीज (एसओएएस) की प्रोफेसर एमेरिटा फ्रांचेस्का ऑर्सीनी के देश में प्रवेश करने से रोक लगाने की कार्रवाई चिंता पैदा कर रही है। एक अखबार की रिपोर्ट के अनुसार गृह मंत्रालय के एक अधिकारी का दावा है कि उनकी पिछली यात्राओं के दौरान ‘वीज़ा शर्तों का उल्लंघन’ ही उन्हें देश में प्रवेश देने से इनकार करने का आधार है। इस विषय में सरकार को जल्द से जल्द पूरी जानकारी सामने रखनी चाहिए।

यह बात समझ में नहीं आती। वे साधारण महिला नहीं हैं। यदि वीज़ा को लेकर कोई तकनीकी दिक्कत थी, तो उसका पता इस तरह से अचानक नहीं लगना चाहिए था। अभी तक ऑर्सीनी की ओर से कोई बात सामने नहीं आई है, पर जो भी हुआ है, वह दुखद और निंदनीय है। वापस जाने वाली फ्लाइट में सवार ऑर्सीनी से कोई टिप्पणी नहीं मिल पाई, लेकिन द वायर ने पहले उनके हवाले से कहा था कि उन्हें दिल्ली एयरपोर्ट पर रोके जाने का कोई कारण नहीं बताया गया। उन्होंने कहा, ‘मुझे निर्वासित किया जा रहा है। मुझे बस इतना ही पता है।’

ऑर्सीनी के पति पीटर कोर्निकी, जो कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में जापानी भाषा के एमेरिटस प्रोफेसर और ब्रिटिश अकादमी के फैलो हैं। उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस से पुष्टि की कि ऑर्सीनी हांगकांग से दिल्ली आई थीं और उन्हें हांगकांग वापस भेज दिया गया। उन्होंने कहा कि इसके पीछे कोई कारण नहीं बताया गया।

वीज़ा उल्लंघन के आरोपों के बारे में पूछे जाने पर, उन्होंने कहा कि उन्हें ‘इन मामलों की कोई जानकारी नहीं है।’ यह पूछे जाने पर कि क्या उन्होंने हाल में भारत में किसी सम्मेलन में भाग लिया है, उन्होंने कहा कि उन्हें ऐसी किसी भी बात की जानकारी नहीं है। मूल रूप से इटली की रहने वाली ऑर्सीनी ने हिंदी में स्नातक की पढ़ाई पूरी की, बाद में उन्होंने दिल्ली में केंद्रीय हिंदी संस्थान और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में अध्ययन किया।


ऑर्सीनी ने 'द हिंदी पब्लिक स्फीयर 1920-1940: लैंग्वेज एंड लिटरेचर इन द एज ऑफ नेशनलिज्म' नामक पुस्तक लिखी है, जो 2002 में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस द्वारा प्रकाशित हुई थी और यह उनके पीएचडी के दौरान एसओएएस में किए गए शोध का हिस्सा थी। इस पुस्तक में उन्होंने पत्रिकाओं और साहित्य के माध्यम से उन दशकों के राष्ट्रवाद के संदर्भ में हिंदी भाषा का परीक्षण किया है। इसका हिंदी में अनुवाद नीलाभ ने किया है, जिसका वाणी ने 2011 में प्रकाशन किया। मुझे थोड़ी हैरत हुई कि इस दौरान हिंदी के लेखक भी अंगरेजी किताब का ज़िक्र कर रहे हैं, हिंदी पुस्तक का नहीं। मुझे नहीं लगता कि इसे अंगरेजी में भी हिंदी वालों ने ज्यादा पढ़ा है, बहरहाल।  

ऑर्सीनी 2013-14 में हार्वर्ड विश्वविद्यालय के रैडक्लिफ संस्थान में फैलो थीं। उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय और एसओएएस में अध्यापन किया, और संस्थान के साथ तीन दशकों से अधिक समय तक जुड़े रहने के बाद, 2021 में वहाँ से सेवानिवृत्त हुईं।

उनका भारत से चार दशक से भी ज़्यादा पुराना नाता रहा है, उन्होंने यहीं हिंदी का अध्ययन किया है। वे समकालीन और मध्यकालीन हिंदी साहित्य की विद्वान हैं। उनका ज़्यादातर साहित्य मौखिक है, इसलिए वे लोगों से बातचीत करती थीं, जानकारी इकट्ठा करती थीं और विद्वानों से मिलती थीं। उन्होंने कई विद्वानों का मार्गदर्शन भी किया है और ग्रंथों का अनुवाद भी किया है। यह उनकी सामान्य वार्षिक यात्राओं में से एक थी,’ दिल्ली विश्वविद्यालय के एक प्रोफ़ेसर और ऑर्सीनी के एक मित्र ने नाम न बताने की शर्त पर बताया।

Tuesday, October 21, 2025

अपने कट्टरपंथी मकड़जाल में फँसा पाकिस्तान

 


पाकिस्तान के रक्षामंत्री ख्वाजा आसिफ ने रविवार को कहा कि पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान दोहा में उच्च स्तरीय वार्ता के बाद तत्काल संघर्ष विराम पर सहमत हो गए हैं. दोनों ने आगे चर्चा के लिए 25 अक्तूबर को इस्तानबूल में फिर से मिलने की उम्मीद भी ज़ाहिर की है.

क़तर के प्रयास के दोनों देशों के बीच हुई इस वार्ता से मसले सुलझेंगे या नहीं, कहना मुश्किल है, पर टकराव ने बड़ी शक्ल ले ली है. यह टकराव सीधी पारंपरिक लड़ाई नहीं होगा. तालिबान खुले मैदान में नहीं लड़ता.

चार साल पहले अगस्त 2021 में, जब तालिबान ने काबुल पर कब्जा किया था, तब बहुत कम लोग इस बात की कल्पना कर सकते थे कि दोनों दोस्त, आगे जाकर दुश्मन जैसा व्यवहार करने लगेंगे.  

पाकिस्तान अपनी ही बोई फसल काट रहा है. भारत से अज़ली दुश्मनी रखने के अंतर्विरोध उसके इस संकट के पीछे हैं. एक तरफ टीटीपी सीमा पार से हमलों और आत्मघाती विस्फोटों के साथ जवाबी कार्रवाई कर रहा है, वहीं पाकिस्तान आर्थिक और राजनीतिक अस्थिरता से घिरा है. उसके लिए यह अच्छा संकेत नहीं है.

पाकिस्तानी प्रशासन आग से खेलने का शौकीन है. हिंसा और आतंकवाद उसकी विचारधारा के अनिवार्य अंग बन चुके हैं. यह रणनीति केवल कश्मीरी मसले को सुलगाए रखने तक सीमित नहीं है. पिछले तीन-चार दशकों में दुनिया के किसी भी कोने में हुई आतंकी गतिविधि में कहीं न कहीं पाकिस्तानी हाथ होता है.

उन्मादी राजनीति

ग्यारह साल पहले 16 दिसम्बर 2014 को जब पेशावर के आर्मी पब्लिक स्कूल पर आतंकवादी हमले में करीब डेढ़ सौ बच्चों की मौत हुई थी, तब शायद वहाँ के नागरिकों को पहला झटका लगा था. खूनी विचारधारा ने उनके बच्चों की जान लेनी शुरू कर दी थी. 

इस हत्याकांड के बाद पाकिस्तान के राजनेताओं की प्रतिक्रियाएं रोचक थीं. अवामी नेशनल पार्टी के रहनुमा ग़ुलाम अहमद बिलौर ने कहा, ये ना यहूदियों और ना ही हिंदुओं ने, बल्कि हमारे मुसलमान अफ़राद ने किया. 

पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के सीनेटर फ़रहत उल्ला बाबर ने बीबीसी उर्दू से कहा, इस बात का हमें बरमला एतराफ़ करना पड़ेगा कि पाकिस्तान का सब से बड़ा दुश्मन सरहद के उस पार नहीं, सरहद के अंदर है. आप ही के मज़हब की पैरवी करता है, आप ही के ख़ुदा और रसूल का नाम लेता है, आप ही तरह है, हम सब की तरह है और वो हमारे अंदर है.  

उन्होंने कहा, शिद्दतपसंदों का नज़रिया और बयानिया बदकिस्मती से रियासत की सतह पर सही तरीक़े से चैलेंज नहीं हुआ. शिद्दतपसंदों ने पाकिस्तानी सियासत में दाख़िल होने के रास्ते बना लिए हैं. पाकिस्तान में समझदार और शांतिप्रिय लोग भी हैं, पर राजनीतिक कारणों से उन्मादी विचार हावी रहते  हैं. 

तीन मोर्चे

पाकिस्तान तीन देशों-भारत, ईरान और अफ़ग़ानिस्तान-के साथ अंतरराष्ट्रीय सीमा साझा करता है. इसके अलावा, पीओके में चीन के साथ भी इसकी 438 किलोमीटर लंबी सीमा लगती है.

पाकिस्तान की भारत के साथ 3,323 किलोमीटर लंबी सीमा है और अफगानिस्तान के साथ 2,430 किलोमीटर लंबी सीमा है. यदि भारत के साथ पाकिस्तान का पूर्वी मोर्चा और अफगानिस्तान के साथ पश्चिमी मोर्चा दोनों सक्रिय हैं, तो इसका मतलब होगा कि 5,753 किलोमीटर लंबी सक्रिय सीमा रेखा होगी.

इसके अतिरिक्त, बलोचिस्तान लिबरेशन आर्मी (बीएलए) से लगातार खतरों के कारण पाकिस्तान को ईरान के साथ अपनी 959 किलोमीटर लंबी सीमा की भी सुरक्षा करने की आवश्यकता है. इस प्रकार लगभग 8,000 किलोमीटर लंबी सीमा की रक्षा करना एक अत्यंत कठिन कार्य है.

पाकिस्तान ने अपनी अधिकांश सेना (लगभग 70-80%) को नियंत्रण रेखा (एलओसी) और भारत के साथ अंतरराष्ट्रीय सीमा पर तैनात किया है, जिससे पश्चिमी मोर्चे पर संसाधनों की कमी है.

इस उपेक्षा का मूल कारण रणनीतिक गहराई का सिद्धांत है, जिसे 1980 के दशक में जनरल जिया-उल-हक के शासनकाल में औपचारिक रूप दिया गया था, जिसके अनुसार अफगानिस्तान मजबूत मोर्चा नहीं, बल्कि भारत के खिलाफ एक बफर/बैकबैक है.

मई में भारत के साथ हुए संक्षिप्त युद्ध के बाद, पाकिस्तान ने वित्त वर्ष 2025-26 में अपने रक्षा बजट को बढ़ाकर 11.67 अरब अमेरिकी डॉलर कर दिया है.

पाकिस्तान का रक्षा पूंजीगत व्यय लड़ाकू विमानों और वायु रक्षा पर केंद्रित है, जो पूर्वी मोर्चे पर इस्लामाबाद के फोकस को रेखांकित करता है, क्योंकि तालिबान के पास कोई वायु सेना नहीं है. इसी प्रकार, परमाणु शस्त्रागार बनाए रखने पर पाकिस्तान का खर्च विशेष रूप से भारत पर केंद्रित है।

बगराम एयरबेस

इस बीच, अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने भी अफ़ग़ानिस्तान के मसलों में हस्तक्षेप करने का संकेत दिया है. उन्होंने बार-बार बगराम एयरबेस पर फिर से कब्जा करने की इच्छा जताई है. इसमें उन्हें पाकिस्तान की मदद मिलेगी.

पाकिस्तान अपनी वायुसेना का सहारा ले रहा है. इसी रणनीति का सहारा अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिकी सेना ने लिया था. पर उसे सफलता नहीं मिली. बहरहाल दोनों देशों के बीच पिछले दस-बारह दिन में टकराव में तेजी आई है.

व्यावहारिक स्थिति यह है कि अफ़ग़ानिस्तान के ज्यादातर हिस्सों पर पाकिस्तान आसानी से हवाई हमले कर सकता है, जबकि तालिबान की ताकत तोपखाने तक सीमित है. पर वह पाकिस्तान के भीतर टीटीपी के लड़ाकों का इस्तेमाल करके छापामार शैली का इस्तेमाल कर सकता है.

पाकिस्तानी धमकियाँ

पाकिस्तानी वायुसेना ने 9 अक्तूबर को अफ़ग़ानिस्तान में दो-तीन जगहों पर हवाई हमले किए. उसी रोज़ तालिबान के विदेशमंत्री अमीर ख़ान मुत्तकी भारत आए थे. अनुमान लगाया जा सकता है कि पाकिस्तान की ओर से वह तालिबान के नाम संदेश था.  

हालाँकि पाकिस्तान कह रहा है कि तालिबान की ताज़ा गतिविधियाँ भारत से प्रेरित हैं, पर घटनाक्रम बता रहा है कि पाकिस्तान ने मुत्तकी की भारत-यात्रा पर अपनी नाराज़गी ज़ाहिर करने के लिए 9 अक्तूबर का दिन ही चुना. यानी पहल पाकिस्तान की तरफ से हुई.

पाकिस्तान की ओर से रक्षामंत्री ख्वाजा आसिफ उग्र बयान जारी कर रहे हैं. हाल में उन्होंने सोशल मीडिया पर कहा कि काबुल के साथ संबंध अब पहले जैसे नहीं रहेंगे. अब शांति के लिए कोई अपील नहीं होगी; कोई भी प्रतिनिधिमंडल काबुल नहीं जाएगा. आतंकवाद का स्रोत जहाँ भी है, उसे भारी कीमत चुकानी पड़ेगी.

बहरहाल दोहा में बात करने भी वही गए. आसिफ ने अफ़ग़ानिस्तान पर भारत की गोद में बैठकर पाकिस्तान के खिलाफ साज़िश रचने का आरोप लगाते हुए कहा कि इस्लामाबाद अब पहले की तरह काबुल के साथ संबंध नहीं रख सकता. 'पाकिस्तानी ज़मीन पर मौजूद सभी अफगानों को अपने वतन वापस जाना होगा.

क्रिकेट-मैच रद्द

शुक्रवार 17 अक्तूबर की रात कंधार के स्पिन बोल्डक ज़िले में पाकिस्तान के हवाई हमलों में तीन अफ़ग़ानिस्तानी क्रिकेटरों सहित 40 लोग मारे गए. ये हवाई हमले रिहायशी इलाकों में हुए.

इन हमलों के बाद अफ़ग़ानिस्तान ने पाकिस्तान के साथ होने वाली आगामी त्रिकोणीय टी-20 सीरीज़ से हटने की घोषणा की है. नवंबर में होने वाली इस सीरीज़ में तीसरी टीम श्रीलंका है. अब अफ़ग़ानिस्तान की जगह ज़िम्बाब्वे की टीम आएगी.

इसके पहले अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान की सीमा पर रविवार 12 अक्तूबर को दोनों देशों की सेनाओं के बीच रात भर घातक झड़प हुई. दोनों पक्षों के बीच भारी गोलीबारी हुई, जो पिछले कई वर्षों में हिंसा में सबसे बड़ी घटना थी.

क़तर-सऊदी हस्तक्षेप

टकराव की शिद्दत को देखते हुए क़तर और सऊदी अरब ने दोनों पक्षों से संयम बरतने की अपील की, जिसके कारण आधी रात को लड़ाई रुक गई. दोनों देशों की सेनाओं के बीच सीमा पर पहले भी टकराव होता रहा है, पर अब उसकी शिद्दत ज्यादा है.

पाकिस्तान ने बार-बार तालिबान सरकार पर तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान, को पनाह देने का आरोप लगाया है. उसने भारत पर टीटीपी का समर्थन करने का आरोप लगाया है.

पाकिस्तानी सेना और स्वतंत्र तथा संयुक्त राष्ट्र विशेषज्ञों के अनुसार, टीटीपी नेतृत्व को अफ़ग़ान सरकार से वित्तीय सहायता मिलती है. तालिबान इस बात से इनकार करता है.

सुधार के प्रयास

दोनों सरकारों ने हाल में अपने संबंधों को सुधारने की कोशिश भी की है. दोनों देशों के शीर्ष राजनयिकों ने अगस्त में अपने चीनी नेताओं से मुलाकात की थी, लेकिन पाकिस्तान ने तालिबान को अफ़ग़ानिस्तान के वैध शासक के रूप में मान्यता नहीं दी है.

पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान का सबसे बड़ा निर्यात साझेदार है, और यह उन लाखों अफ़ग़ानों की मेज़बानी करता है जो पिछले दशकों में असुरक्षा और बेरोज़गारी के कारण भागकर आए हैं. हाल के महीनों में, पाकिस्तान सरकार ने इन अफ़ग़ानों के निष्कासन के आदेश दिए हैं, जिसके कारण हज़ारों अफ़ग़ान वापस अफ़ग़ानिस्तान लौट आए हैं.

9 अक्तूबर की रात को, काबुल और पूर्वी अफ़ग़ानिस्तान के अन्य हिस्सों पर हुए हवाई हमलों के तुरंत बाद, सोशल मीडिया पर अटकलें लगाई गईं कि टीटीपी के प्रमुख नूर वली महसूद को निशाना बनाया गया है.

बाद में जानकारी सामने आई कि महसूद बच गया है. तालिबान के प्रवक्ता जबीहुल्ला मुजाहिद ने जोर देकर कहा कि टीटीपी अमीर न तो काबुल में थे और न ही अफ़ग़ानिस्तान में.

पाकिस्तान की रचना

तालिबान, पाकिस्तान की ही रचना हैं. नब्बे के दशक में अपने जन्म के बाद से वे पाकिस्तान के सहयोगी बने हुए हैं. पाकिस्तान ने 1996 में तालिबान शासन को तेजी से मान्यता दी थी. वही तालिबान अब डूरंड रेखा को मान्यता देने से इनकार करते हैं और टीटीपी को शरण देते हैं.

2021 में तालिबान के काबुल पर कब्जे के दो दिन बाद टीटीपी के अमीर मुफ्ती नूर वली महसूद ने इस्लामी अमीरात के प्रति निष्ठा की शपथ ली. पाकिस्तान में टीटीपी की गतिविधियाँ तब से बढ़ती जा रही है. जवाब में, पाकिस्तान ने व्यापार को प्रतिबंधित करके, और पिछले दो वर्षों में हजारों अफ़ग़ान शरणार्थियों को निष्कासित किया है.

तालिबान और टीटीपी

टीटीपी को समझने के पहले तालिबान को समझना होगा. तालिबान शब्द का अर्थ है छात्र. अफ़ग़ान और पाकिस्तानी मदरसों या धार्मिक स्कूलों में इस्लाम की शिक्षा लेने वालों से 1990 के दशक में यह बना था.

1994 तक, तालिबान दक्षिण अफ़ग़ानिस्तान में अपनी पैठ बना चुका था. उसका पहला कदम कुरान की शिक्षाओं और न्यायशास्त्र की सख्त व्याख्याओं को लागू करना था. इसका सबसे बड़ा असर स्त्रियों, राजनीतिक विरोधियों और धार्मिक अल्पसंख्यकों पर पड़ा.

टीटीपी 2007 में विभिन्न गुटों के गठबंधन से बना था. इसका मुख्य उद्देश्य पाकिस्तान में सख्त व्याख्या वाले इस्लामी शरिया कानून को लागू करना है. खासतौर से पश्तून कबायली इलाकों, जैसे पूर्व फेडरली एडमिनिस्ट्रेटेड ट्राइबल एरियाज (फाटा) और खैबर पख्तूनख्वा प्रांत, में पाकिस्तान सरकार के असर को खत्म करना.

इस्लामी अमीरात

यह समूह पाकिस्तान में इस्लामी अमीरात स्थापित करना और पाकिस्तानी सरकार को उखाड़ फेंकना ज़रूरी मानता है. उसके अनुसार पाकिस्तान की स्थापना के मूल उद्देश्य को पूरा करने के लिए वर्तमान गैर-इस्लामी संविधान को खत्म करना होगा.  

वह अफगान तालिबान को अपना रोल मॉडल मानता है और उनके नेता को अपना सर्वोच्च नेता स्वीकार करता है. वह खुद को पश्तून जनजातियों का रक्षक बताता है और पश्तून राष्ट्रवादी तत्वों को बढ़ावा देता है, हालांकि उसका मुख्य फोकस जिहादी है.

टीटीपी के पहले नेता बैतुल्लाह महसूद की मृत्यु 5 अगस्त 2009 को हुई और उनके उत्तराधिकारी हकीमुल्लाह महसूद की मृत्यु 1 नवंबर 2013 को हुई.  नवंबर 2013 में टीटीपी के केंद्रीय शूरा ने मुल्ला फजलुल्लाह को समूह का समग्र नेता नियुक्त किया.

फजलुल्लाह कट्टर पश्चिम-विरोधी और इस्लामाबाद-विरोधी था. वह कठोर रणनीति का समर्थन करता था, जिसका प्रमाण नवंबर 2012 में शिक्षा अधिकार कार्यकर्ता मलाला युसुफज़ई की हत्या के प्रयास से मिलता है.

महसूद-नेतृत्व

2018 में टीटीपी का तत्कालीन अमीर, मुल्ला फजलुल्लाह अमेरिकी ड्रोन हमले में मारा गया था. उसके बाद महसूद को उनका उत्तराधिकारी बनाया गया. फजलुल्लाह, एकमात्र गैर-महसूद टीटीपी प्रमुख था. 2014 के आर्मी पब्लिक स्कूल नरसंहार के बाद इस समूह को काफी आलोचना का सामना करना पड़ा था.

महसूद के अधीन टीटीपी ने पाकिस्तानी सुरक्षा बलों को भारी नुकसान पहुँचाया है. पिछले चार वर्षों में, पाकिस्तान ने अफ़ग़ान तालिबान अधिकारियों से कई बार टीटीपी पर लगाम लगाने का आग्रह किया है. इससे कोई फर्क नहीं पड़ा क्योंकि टीटीपी ने सीमा पार अपनी हिंसा को बढ़ाना जारी रखा.

पाकिस्तानी कार्रवाई

पाकिस्तान ने पिछले दो वर्षों में पूर्वी अफ़ग़ानिस्तान में टीटीपी के गढ़ों को निशाना बनाकर हमले किए हैं. व्यापार प्रतिबंध भी लगाए और देश में रहने वाले दस लाख से अधिक अफ़ग़ान शरणार्थियों को निर्वासित करना शुरू कर दिया, इस उम्मीद में कि तालिबान दबाव में आ जाएगा.

सितंबर 2023 से अब तक लगभग 8,15,000 अफ़ग़ानों को पाकिस्तान से निकाला जा चुका है. संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि 30 लाख लोग अब भी वहाँ हैं. दोनों देशों के बीच व्यापार में भारी गिरावट आई है. फिर भी, तालिबान टस से मस नहीं हुए हैं.

भारत-तालिबान संपर्क

इस साल तालिबान ने पहलगाम कांड की भर्त्सना करके भारत को एक संदेश दिया. ऑपरेशन सिंदूर के फौरन बाद 16 मई को विदेशमंत्री एस जयशंकर ने मुत्तकी से टेलीफोन पर बात की और पहलगाम हमले पर उनके समर्थन और संवेदना के लिए धन्यवाद दिया.

माना जा रहा है कि भारत ने दुश्मन के दुश्मन के करीब जाने की रणनीति अपनाई है, पर कारण केवल यही नहीं है. तेजी से अस्थिर होते पड़ोस में, भारत कम से कम तालिबान से किसी भी खतरे को बेअसर करना चाहता है.

दूसरा उद्देश्य मध्य एशिया से संपर्क और व्यापार का है. ज़मीनी रास्ता बंद हैं. पाकिस्तान पारगमन की अनुमति नहीं देता और अमेरिका ने ईरान के चाबहार बंदरगाह पर परियोजनाओं के लिए प्रतिबंध फिर से लगा दिए हैं, जिसे भारत वैकल्पिक मार्ग के रूप में विकसित कर रहा था.

2001 से 2021 के दौरान भारत ने अफ़ग़ानिस्तान के पिछले प्रशासन के साथ दोस्ती बनाई थी. द्विपक्षीय व्यापार बढ़ाने के लिए भारत ने हवाई गलियारा भी बनाया और वहाँ बुनियादी ढाँचे की कई परियोजनाओं पर काम किया.

यह भी ध्यान रखना होगा कि अतीत में तालिबान के पाकिस्तानी सेना के साथ घनिष्ठ संबंध रहे हैं. काबुल और कंधार में तालिबान नेतृत्व के बीच मतभेद भी हैं.

तालिबानी रणनीति

पिछले महीने तालिबान ने काबुल में ईरानी विदेशमंत्री की मेज़बानी की. ऐसा 2017 के बाद पहली बार हुआ. जनवरी में भारत के विदेश सचिव की दुबई में तालिबान विदेशमंत्री से मुलाकात से भी पाकिस्तान बेचैन हुआ.

अब मुत्तकी की भारत-यात्रा ने जले में नमक छिड़का है. पाकिस्तान को लगता है कि इस उभरती दोस्ती के पीछे उसकी पूर्वी और पश्चिमी दोनों सीमाओं पर शत्रुतापूर्ण एजेंडा है.

पाकिस्तान के पिछले सेनाध्यक्ष कमर जावेद बाजवा ने सुझाव दिया था कि पाकिस्तान को चाहिए कि कश्मीर समस्या को लंबे समय तक के लिए ठंडे बस्ते में डाले और भारत के साथ रिश्ते बनाए. पाकिस्तानी सुरक्षा के लिए यह बेहतर कदम होगा.

उस समय इमरान खान प्रधानमंत्री थे, जिन्होंने इस दिशा में कदम बढ़ा भी दिए थे, पर उन्हें यू-टर्न लेना पड़ा. 2015 में तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ ने भारत से बातचीत की पहल की थी, पर वे न केवल बाद में चुनाव हारे, बल्कि उन्हें जेल में भी डाल दिया गया. इसके पीछे पाकिस्तानी डीप स्टेट का हाथ बताया गया.  

 

आवाज़ द वॉयस में प्रकाशित

Sunday, October 19, 2025

अज्ञान को त्यागें, ज्ञान की रोशनी फैलाएँ


अठारहवीं सदी के शायर नज़ीर अकबराबादी ने लिखा है:- हर इक मकां में जला फिर दिया दिवाली का/हर इक तरफ़ को उजाला हुआ दिवाली का। दिवाली आम त्योहार नहीं है। यह हमारे सामाजिक दर्शन से जुड़ा पर्व है। भारत का यह सबसे शानदार त्योहार है, जो दरिद्रता और गंदगी के खिलाफ है। अंधेरे पर उजाले, दुष्चरित्रता पर सच्चरित्रता, अज्ञान पर ज्ञान की और निराशा पर आशा की जीत का पर्व। यह सामाजिक नजरिया है, ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय।’ ‘अंधेरे से उजाले की ओर जाओ’ यह उपनिषद की आज्ञा है। क्या ज्ञान की इस रोशनी का मतलब हम समझते हैं? दीपावली का वास्तविक संदेश है, अज्ञान को त्यागें और ज्ञान की रोशनी फैलाएँ

दीपावली लक्ष्मी की पूजा का पर्व है। अर्थात हम समृद्धि के पुजारी हैं। समृद्धि का अर्थ है, जीवन में खुशहाली। पर यह खुशहाली तभी सार्थक है, जब वह पूरे समाज के लिए उपलब्ध हो। निजी तौर पर किसी एक व्यक्ति या एक समूह के लिए नहीं। यह विचार और सिद्धांत आज भी जीवन पर लागू होता है। इसका आशय है कि यह समृद्धि समावेशी होनी चाहिए। समाज के प्रत्येक वर्ग तक इस समृद्धि का लाभ पहुँचे। हम अपने परंपरागत पर्वों और उत्सवों की मूल भावना पर गौर करें, तो पाएँगे कि उनकी संरचना इस प्रकार की थी कि समाज का प्रत्येक वर्ग उस खुशी में शामिल था। इसी भावना को आज भी बढ़ावा देने की जरूरत है।

लखनऊ की इस कला का जिक्र
 कुलसूम तल्हा ने अपनी फेसबुक पोस्ट में
किया है। ऐसे कारीगरों को
 संरक्षण देना हमारा काम है। 

दीपावली केवल एक पर्व नहीं है। कई पर्वों का समुच्चय है। इस दौरान पाँच दिनों के पर्व मनाए जाते हैं। इन पाँच दिनों में हमारी परंपरागत जीवन-शैली, खानपान और सामाजिक-संबंधों पर भी रोशनी पड़ती है। हम अपने पारंपरिक उद्यमों को संरक्षण देते हैं, ताकि समाज के सभी वर्गों को उत्सव का लाभ मिले। कृपया अपने पारंपरिक उद्यमों को न भूलें।

सवाल है कि क्या अब हमारी दिवाली वही है, जो इसका मौलिक विचार और दर्शन है? अपने आसपास देखें तो आप पाएँगे कि इस रोशनी के केंद्र में अँधेरा और अंधेर भी है। यह मानसिक दरिद्रता का अंधेरा है। पर्यावरण को प्रदूषित करने वाले पटाखों को दागने में संयम बरतने के लिए हमें सुप्रीम कोर्ट के आदेश का इंतज़ार करना पड़ रहा है। यह तो हमारी अपनी जिम्मेदारी थी। बेशक उत्सव का पूरा आनंद लें, पर उन सामाजिक दायित्वों को न बिसराएँ, जो इन पर्वों के साथ जुड़े हैं। जिनका हमारे पूर्वजों ने पालन किया।

जैसे-जैसे दीपावली नज़दीक आती है, उत्तर भारत के आकाश पर कोहरे की परत गाढ़ी होने लगत है। माहौल में ठंड का प्रवेश होता है, जिसके कारण हवा भारी होने लगती है और वह तेजी से ऊपर नहीं उठती, जिसके कारण धुआँ और गर्द स्मॉग की शक्ल ले लेता है। स्मॉग परंपरागत अवधारणा नहीं है, क्योंकि रोज़मर्रा के जीवन से जुड़ी हमारी गतिविधियाँ स्मॉग बनने नहीं देती थीं। पर औद्योगिक विकास ने स्मॉग को जन्म दे दिया है। सवाल है, ऐसे में हम क्या करें? इसका जवाब है, अपने दायित्वों का निर्वाह करें। पर क्या आप जानते हैं हमारे दायित्व क्या हैं? आपने भले ही न सोचा हो, पर हमारे समझदार पूर्वजों ने ज़रूर सोचा था। बेशक उन्होंने अपने समय के परिप्रेक्ष्य में सोचा था, और हमें आज के परिप्रेक्ष्य में सोचना होगा।

Tuesday, October 14, 2025

भारत-तालिबान के बीच बढ़ती गर्मजोशी और कुछ असमंजस


तालिबान के साथ सांस्कृतिक-अंतर्विरोधों की थोड़ी देर के लिए अनदेखी कर दें, तब भी भारत-अफगानिस्तान रिश्ते हमेशा से दोस्ती के रहे हैं. इस दृष्टि से देखें, तो पिछले हफ्ते तालिबान के विदेशमंत्री अमीर ख़ान मुत्तकी की भारत-यात्रा अचानक नहीं हो गई.

इसकी पृष्ठभूमि दो-तीन साल से बन रही थी. भविष्य की ओर देखें, तो लगता है कि यह संपर्क बढ़ेगा. पिछले कुछ दिनों में पाक-अफगान सीमा पर टकराव को देखते हुए कुछ लोगों ने इसे भारत-पाक रिश्तों की तल्ख़ी से भी जोड़ा है, पर बात इतनी ही नहीं है. अफगान-पाक रिश्तों की तल्ख़ी के पीछे दूसरे कारण ज्यादा बड़े हैं.

पिछले हफ्ते भारतीय विदेश-नीति के सिलसिले में कुछ ऐसी घटनाएँ हुई हैं, जो नए राजनयिक-परिदृश्य की ओर इशारा कर रही हैं. मुत्तकी की यह यात्रा ऐसे समय में हुई, जब ब्रिटेन के प्रधानमंत्री सर कीर स्टार्मर भी भारत में थे.

इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और डॉनल्ड ट्रंप के बीच एक बार फोन पर बातचीत भी हुई है. इसके बाद ट्रंप ने प्रधानमंत्री मोदी को सोमवार को गाज़ा पर मिस्र में हुए ‘शांति सम्मेलन’ में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया. हालाँकि मोदी इसमें गए नहीं, पर यह एक संकेत ज़रूर है.

वे वहाँ जाते, तो ट्रंप से मुलाकात का मौका बनता था. शायद अब यह मौका आसियान सम्मेलन में मिलेगा. बहरहाल भारत-अमेरिका व्यापार-वार्ता अब अपेक्षाकृत बेहतर तरीके से आगे बढ़ रही है. फिलहाल हम भारत-अफ़गान रिश्तों पर ही ध्यान केंद्रित करेंगे.

पिछले साल बांग्लादेश में तख्तापलट होने के बाद से भारत को शिद्दत से अपने इलाके में अच्छे मित्रों की तलाश है. भारत सरकार ने श्रीलंका, मालदीव और म्यांमार के साथ काफी हद तक रिश्तों को बेहतर किया है. उसी शृंखला में अफगानिस्तान को भी रखा जाना चाहिए.

मान्यता का मसला

भारत यह संकेत भी नहीं देना चाहता कि हम तालिबान को राजनयिक रूप से मान्यता दे रहे हैं. मान्यता तभी दी जाएगी, जब अंतरराष्ट्रीय समुदाय ऐसा करेगा, फिलहाल सहयोग-संबंध बनाने के लिए एक प्लेटफॉर्म की ज़रूरत होगी, इसलिए वहाँ दूतावास को फिर से खोलना सही कदम है.

हालाँकि इससे तालिबान को कुछ निराशा होगी, पर भारत अमेरिका समेत पश्चिमी खेमे को यह संकेत भी नहीं देगा कि हम रूस-चीन खेमे में शामिल हो गए हैं. बल्कि ऐसा करके पश्चिम के साथ भारत एक पुल की तरह भी काम कर सकता है.

औपचारिक राजनयिक मान्यता नहीं होते हुए भी मुत्तकी को पूरे प्रोटोकॉल के साथ विदेशमंत्री का सम्मान दिया गया. इन बातों को अंतर्विरोधों और व्यावहारिकता की रोशनी में पढ़ा जाना चाहिए.

Saturday, October 11, 2025

ट्रंप की बीस-सूत्री गज़ा शांति योजना क्या है?

 

गज़ा पट्टी का नक्शा, जिसमें आईडीएफ़ की वापसी के प्रथम चरण की रेखा दर्शाई गई है।     स्रोत: वाइट हाउस

इसराइल और हमास के बीच लंबे समय से प्रतीक्षित युद्धविराम आखिरकार शुरू हो गया है। संघर्ष का अंत अभी भी अधर में लटका हुआ है, क्योंकि ट्रंप के शांति के बीस सूत्री रोडमैप में सभी पुरानी बाधाएँ अभी भी मौजूद हैं।

9 अक्तूबर की देर रात, इसराइली कैबिनेट ने हमास के साथ युद्धविराम की योजना को औपचारिक रूप से मंज़ूरी दे दी, जिससे गज़ा शांति प्रक्रिया शुरू हो गई। अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने घोषणा की कि यह उनकी बीस सूत्री शांति योजना का ‘पहला चरण’ है, जिसे वाइट हाउस ने पिछले हफ़्ते पेश किया था। मध्यस्थता प्रयासों में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले कतर ने, इसराइली और हमास अधिकारियों की तरह, इस घटनाक्रम की पुष्टि की है।

मिस्र में इसराइल और हमास और पेरिस में यूरोपीय और अरब सहयोगियों के बीच कई दिनों तक चली गहन वार्ता के बाद युद्धविराम की ओर यह कदम उठाया गया है। यह युद्ध की दो साल की सालगिरह के ठीक पहले हो रहा है, जो 7 अक्तूबर, 2023 को शुरू हुआ था, जब हमास ने गज़ा से दक्षिणी इसराइल पर हमला किया था। हमास लड़ाकों ने लगभग 1,200 लोगों को मार डाला था और 251 अन्य को बंधक बना लिया था। हमास द्वारा संचालित गज़ा स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, इसराइल ने एक बड़े सैन्य हमले के साथ जवाबी कार्रवाई की, जिसमें 67 हज़ार से ज़्यादा फलस्तीनी मारे गए। 

Friday, October 10, 2025

विदेश-नीति के ‘संतुलन’ की परीक्षा


इस साल पहले टैरिफ और फिर ऑपरेशन सिंदूर को लेकर अमेरिकी रुख में आए बदलाव पर भारत की ओर से कोई तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की गई, पर देश में आक्रोश की लहर थी। शुरू में समझ नहीं आता था, पर अब धीरे-धीरे लगता है कि भारत और अमेरिका के बीच, पिछले दो दशक से चली आ रही सौहार्द-नीति में कोई बड़ा मोड़ आने वाला है। कुछ वर्षों से यह सवाल किया जा रहा है कि भारत एक तरफ रूस और चीन और दूसरी तरफ अमेरिका के बीच अपनी विदेश-नीति को किस तरह संतुलित करेगा? इसे स्पष्ट करने की घड़ी अब आ रही है।

भारत ने तालिबान, पाकिस्तान, चीन और रूस के साथ मिलकर अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के अफ़ग़ानिस्तान स्थित बगराम एयरबेस पर कब्ज़ा करने के प्रयास का विरोध किया है। यह अप्रत्याशित घटना तालिबान के विदेशमंत्री आमिर ख़ान मुत्तक़ी की इस हफ़्ते के अंत में होने वाली भारत-यात्रा से कुछ दिन पहले हुई है। अफगानिस्तान पर मॉस्को प्रारूप परामर्श के प्रतिभागियों द्वारा मंगलवार को जारी संयुक्त बयान में बगराम का नाम लिए बिना यह बात कही गई।

अफ़ग़ानिस्तान पर मॉस्को प्रारूप परामर्श की सातवीं बैठक मॉस्को में अफ़ग़ानिस्तान, भारत, ईरान, क़ज़ाक़िस्तान, चीन, किर्गिस्तान, पाकिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान और उज़्बेकिस्तान के विशेष प्रतिनिधियों और वरिष्ठ अधिकारियों के स्तर पर आयोजित की गई थी। बेलारूस का एक प्रतिनिधिमंडल भी अतिथि के रूप में बैठक में शामिल हुआ। इस बैठक में पहली बार विदेशमंत्री अमीर खान मुत्तकी के नेतृत्व में अफगान प्रतिनिधिमंडल ने भी सदस्य के रूप में भाग लिया।

इसके पहले ट्रंप ने कहा था कि तालिबान, देश के बगराम एयर बेस को वाशिंगटन को सौंप दें। सच यह है कि ट्रंप ने ही पाँच साल पहले तालिबान के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, जिसने काबुल से अमेरिका की वापसी का रास्ता साफ किया था। पिछली 18 सितंबर को ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर के साथ एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में ट्रंप ने कहा, ‘हमने इसे तालिबान को मुफ्त में दे दिया। अब हमें वह अड्डा वापस चाहिए।’

Wednesday, October 8, 2025

गज़ा शांति-योजना, सपना है या सच?


29 सितंबर को अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू के साथ खड़े होकर गज़ा में ‘शाश्वत शांति’ के लिए 20-सूत्री योजना पेश की थी. ट्रंप को यकीन है कि अब गज़ा में शांति स्थापित हो सकेगी, पर एक हफ्ते के भीतर ही इसकी विसंगतियाँ सामने आने लगीं हैं.

असल बात यह कि अभी यह योजना है, समझौता नहीं. योजना के अनुसार,  दोनों पक्ष सहमत हुए, तो युद्ध तुरंत समाप्त हो जाएगा. बंधकों की रिहाई की तैयारी के लिए इसराइली सेना आंशिक रूप से पीछे हट जाएगी. इसराइल की ‘पूर्ण चरणबद्ध वापसी’ की शर्तें पूरी होने तक सभी सैन्य अभियान स्थगित कर दिए जाएँगे और जो जहाँ है, वहाँ बना रहेगा.

कुल मिलाकर यह एक छोटे लक्ष्य की दिशा में बड़ा कदम है. इससे पश्चिम एशिया या फलस्तीन की समस्या का समाधान नहीं निकल जाएगा, पर यदि यह सफल हुई, तो इससे कुछ निर्णायक बातें साबित होंगी. उनसे टू स्टेट समाधान का रास्ता खुल भी सकता है, पर इसमें अनेक किंतु-परंतु जुड़े हैं.

हालाँकि हमास ने इसराइली बंधकों को रिहा करने पर सहमति व्यक्त की है, लेकिन वे कुछ मुद्दों पर चर्चा करना चाहते हैं. ट्रंप ने हमास के बयान को सकारात्मक माना है, लेकिन अभी तक उनकी बातचीत की माँग के बारे में कुछ नहीं कहा है.

इसराइल ने कहा है कि ट्रंप की योजना के पहले चरण के तहत गज़ा में सैन्य अभियान सीमित रहेंगे, लेकिन उसने यह नहीं कहा है कि हमले पूरी तरह से बंद हो जाएंगे या नहीं.

इसराइली प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू का कहना है कि यह योजना इसराइल के युद्ध उद्देश्यों के अनुरूप है, वहीं अरब और मुस्लिम नेताओं ने इस पहल का शांति की दिशा में एक कदम के रूप में स्वागत किया है. लेकिन एक महत्वपूर्ण आवाज़ गायब है-वह है फ़लस्तीनी लोगों के किसी प्रतिनिधि की.

Thursday, October 2, 2025

इन नौ रावणों का भी अंत होना चाहिए


रामायण और महाभारत जैसे ग्रंथों के लेखन का उद्देश्य वेद के गूढ़ ज्ञान को सरल करना था. कोशिश यह थी कि आम लोगों को ये बातें कहानियों के रूप में सरल भाषा में समझाई जाएँ, ताकि उन्हें उनके कर्तव्यों की शिक्षा दी जा सके.

भारतीय संस्कृति के प्राचीन सूत्रधारों ने ज्ञान को कहानियों, अलंकारों और प्रतीकों की भाषा में लिखा. ऐसी घटनाएँ और ऐसे पात्र हर युग में होते हैं. उनके नाम और रूप बदल जाते हैं, इसलिए इनके गूढ़ार्थ को आधुनिक संदर्भों में भी देखने की ज़रूरत है.

तुलसी के रामचरित मानस और वाल्मीकि की रामायण में रावण को दुष्ट व्यक्ति के रूप में दिखाया गया है, जिसका वध राम ने किया. यह कहानी प्रतीक रूप में है, जिसके पीछे व्यक्ति और समाज के दोषों से लड़ने का आह्वान है.

हमारे पौराणिक ग्रंथों में वर्णित रावण के दस सिरों की अनेक व्याख्याएँ हैं. मोटे तौर पर वे दस नकारात्मक प्रवृत्तियों के प्रतीक हैं. ये प्रवृत्तियाँ हैं काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर, घृणा, ईर्ष्या, द्वेष एवं भय. इन प्रवृत्तियों के कारण व्यक्ति रावण है.

रावण के पुतले का दहन इन बुराइयों को दूर करने और अच्छाई के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है. एक परिभाषा से नौ प्रकार के रावण नौ प्रकार की दुष्प्रवृत्तियों के प्रतिनिधि हैं, जिन्हें रावण के दस सिरों से समझा जा सकता है. ऐसा भी माना जाता है कि रावण का एक सिर सकारात्मक ज्ञान का प्रतीक है, और शेष नौ नकारात्मक प्रवृत्तियों के प्रतिनिधि.  

सैकड़ों साल से रावण के पुतलों का हम दहन करते आए हैं, क्या उसी रावण को हम आज भी मारना चाहते हैं? क्या उन्हीं प्रवृत्तियों से हम लड़ते रहेंगे? क्या हमें उन नई प्रवृत्तियों के विरुद्ध लड़ाई नहीं लड़नी चाहिए, जो आज के संदर्भ में प्रासंगिक हैं.

रामायण बताती है कि रावण विद्वान व्यक्ति था और नीति का विशेषज्ञ, पर उसके अवगुण उसे दुष्ट व्यक्ति बनाते थे. उसके दस सिरों में केवल एक सकारात्मक ज्ञान का प्रतीक था, शेष नौ अवगुणों के. प्रश्न है आज की परिस्थितियों में हम कौन से अवगुणों से युक्त नौ रावणों को मारना चाहेंगे? ऐसे नौ रावण, जिनका मरना देश और मानवता के हित में जरूरी है?

Wednesday, October 1, 2025

बिगड़ती विश्व-व्यवस्था और संयुक्त राष्ट्र


सितंबर के महीने में हर साल होने वाले संरा महासभा के सालाना अधिवेशन का राजनीतिक-दृष्टि से कोई विशेष महत्व नहीं होता. अलबत्ता 190 से ऊपर देशों के शासनाध्यक्ष या उनके प्रतिनिधि सारी दुनिया से अपनी बात कहते हैं, जिसमें राजनीति भी शामिल होती है.

भारत के नज़रिए से देखें, तो पिछले कई दशकों से इस दौरान भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्तों की कड़वाहट सामने आती रही है. भारत भले ही पाकिस्तान का ज़िक्र न करे पर पाकिस्तानी नेता किसी न किसी तरीके से भारत पर निशाना लगाते हैं.

यह अंतर दोनों देशों के वैश्विक दृष्टिकोण को रेखांकित करता है. दोनों देशों के नेताओं के पिछले कुछ वर्षों के भाषणों का तुलनात्मक अध्ययन करें, तो पाएँगे कि पाकिस्तान का सारा जोर कश्मीर मसले के अंतरराष्ट्रीयकरण और उसकी नाटकीयता पर होता है और भारत का वैश्विक-व्यवस्था पर.

इस वर्ष इस अधिवेशन पर हालिया सैनिक-टकराव की छाया भी थी। ऐसे में इन भाषणों पर सबकी निगाहें थी, पर इस बार अमेरिका के राष्ट्रपति के भाषण ने भी हमारा ध्यान खींचा, जिसपर आमतौर पर हम पहले ध्यान नहीं देते थे.

दक्षिण एशिया

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ और भारत के विदेशमंत्री एस जयशंकर के भाषणों में उस कड़वाहट का ज़िक्र था, जिसके कारण दक्षिण एशिया दुनिया के सबसे पिछड़े इलाकों में बना हुआ है. अलबत्ता जयशंकर ने भारत की वैश्विक भूमिका का भी ज़िक्र किया.

इससे पहले पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने मई में तनाव बढ़ने के दौरान पाकिस्तान को राजनयिक समर्थन देने के लिए चीन, तुर्की, सऊदी अरब, क़तर, अजरबैजान, ईरान, संयुक्त अरब अमीरात और संयुक्त राष्ट्र महासचिव सहित पाकिस्तान के ‘मित्रों और साझेदारों’ को धन्यवाद दिया.

उन्होंने एक से ज्यादा बार भारत का नाम लिया और यहाँ तक कहा कि पाकिस्तान ने भारत के साथ युद्ध जीत लिया है और अब हम शांति जीतना चाहते हैं.

उनके इस दावे के जवाब में भारत के स्थायी मिशन की फ़र्स्ट सेक्रेटरी पेटल गहलोत ने 'राइट टू रिप्लाई' का इस्तेमाल करते हुए कहा, ‘तस्वीरों को देखें, अगर तबाह रनवे और जले हैंगर जीत है, तो पाकिस्तान आनंद ले सकता है.’

उन्होंने कहा, इस सभा ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री की बेतुकी नौटंकी देखी, जिन्होंने एक बार फिर आतंकवाद का महिमामंडन किया, जो उनकी विदेश नीति का मूल हिस्सा है.’