Wednesday, December 4, 2024

महाराष्ट्र ने बदल दी राष्ट्रीय-राजनीति की दिशा

हरियाणा के बाद महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी और उसके सहयोगी दलों को मिली भारी विजय ने लोकसभा चुनाव में लगे झटके को काफी हद तक कम कर दिया है। इन परिणामों से पार्टी कार्यकर्ता के मनोबल बढ़ा है, वहीं ‘इंडिया’ गठबंधन के पैरोकार हताश होने लगे हैं। वहीं उत्तर प्रदेश के उपचुनावों में नौ में से सात सीटें जीतकर पार्टी ने अखिलेश यादव की सोशल इंजीनियरी को मात दी है, जिसके परिणाम दूरगामी होंगे। हालांकि उत्तर प्रदेश के चुनाव में कांग्रेस पार्टी शामिल नहीं थी, पर बिना चुनाव लड़े ही वह राज्य में एक कदम और पीछे चली गई है। यदि उसने अपनी रणनीति में कोई बड़ा बदलाव नहीं किया, तो वह हमेशा के लिए समाजवादी पार्टी की पिछलग्गू बनकर रह जाएगी। 

महाराष्ट्र और झारखंड दोनों राज्यों ने प्रो-इनकंबैंसी वोट दिया है। इनमें महिलाओं और दूसरे सामाजिक-वर्गों की भूमिका है, जिन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ मिला है। दोनों राज्यों के चुनाव-परिणामों को समझने के अलावा उत्तर प्रदेश में हुए नौ उपचुनावों के परिणामों और उसके कुछ समय पहले हुए हरियाणा (और कश्मीर के जम्मू क्षेत्र) के परिणामों के निष्कर्षों को समझने की ज़रूरत भी है। इन सभी परिणामों की वर्ष के शुरू में हुए लोकसभा चुनाव के परिणामों के साथ तुलना की जानी चाहिए। इसके बाद ही राष्ट्रीय-राजनीति की भावी दशा-दिशा के बारे में अनुमान लगाए जा सकते हैं।

झारखंड और महाराष्ट्र, दोनों जगह सत्ताधारी गठबंधनों ने अपने किले बचा लिए। ऐसा ही कुछ समय पहले हरियाणा में हुआ था। झारखंड में सत्ता हासिल करने में असमर्थता के बावजूद भाजपा ने 2019 के अपने वोट शेयर को बरकरार रखा है। फिर भी कहा जा सकता है कि राज्य में भाजपा ने अपना वर्चस्व कायम रखा है। 21 सीटों पर विजय के बावजूद वोट शेयर के आधार पर वह राज्य की सबसे बड़ी पार्टी है। 

महाराष्ट्र में एमवीए ने जातिगत दरारों पर बहुत ज़्यादा भरोसा किया और देवेंद्र फडणवीस पर बार-बार पेशवा के तौर पर हमला किया और जाति से जुड़े कई दूसरे आरोप लगाए। महायुति ने अघाड़ी की इस रणनीति को सफलता के साथ पराजित कर दिया। कांग्रेस ने मुसलमान, किसान और दलित समीकरण पर ध्यान केंद्रित किया जो ज़मीन पर पूरी तरह से विफल रहा। आँकड़े बता रहे हैं कि महायुति को सभी वर्गों-ओबीसी, एससी/एसटी, किसान, महिलाओं और युवाओं- का भारी समर्थन मिला।

अभूतपूर्व परिघटना

राज्य के चुनाव-परिणाम के आँकड़े देखें, तो हैरत होती है। भारत के चुनावी इतिहास में यह अभूतपूर्व परिघटना है। लगता है जैसे किसी अदृश्य हाथ ने अघाड़ी के मंसूबों पर पानी फेरते हुए पाँच महीने पहले हुए लोकसभा चुनाव का जबर्दस्त बदला ले लिया। ऐसा कोई अन्य उदाहरण नहीं है जब एक राष्ट्रीय पार्टी के नेतृत्व वाले गठबंधन ने विधानसभा चुनाव में अपनी लोकसभा चुनावी हार को पलट दिया हो। इस परिणाम ने चुनाव-परिणामों का सार्वकालिक-रिकॉर्ड दर्ज कर दिया है, जिसे दुहराना आसान नहीं। कहाँ लोकसभा चुनाव में महायुति की 17-30 की हार और कहाँ विधानसभा में 235-49 की जीत। उस चुनाव में वोट शेयर एक फीसदी कम हुआ था और अब 14 फीसदी की बढ़त है। 

महाराष्ट्र में ऐसा कैसे हुआ और वे कौन से कारक हैं, जिन्होंने महायुति को ऐसी ऐतिहासिक जीत दिलाने में मदद की? इस सवाल के कई जवाब हैं। मोटे तौर पर एमवीए के नेताओं ने आत्म-संतुष्टि, अदूरदर्शिता और आपसी टाँग-खिंचाई के कारण एक बड़ा मौका खो दिया। लोकसभा चुनावों ने एमवीए को विधानसभा चुनाव के ठीक पहले एक बड़ा मौका दे दिया था, पर इस गठबंधन के तीनों प्रमुख दल अपने हितों और भावी मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर लड़ते रहे। 

दूसरी तरफ महायुति ने लोकसभा चुनाव में मिले धक्के से सबक सीखा और ‘गेम-प्लान’ बनाया। राज्य सरकार ने बड़ी तेजी से काम करना शुरू किया। ‘लड़की बहन’ समेत कई योजनाओं का घोषणाएँ हुईं, जो महिलाओं को आकर्षित कर रही थीं। महायुति के ओबीसी समर्थक कदम जैसे कि समर्पित ओबीसी मंत्रालय और ओबीसी छात्रों के लिए मुफ्त छात्रावासों का अच्छा प्रभाव पड़ा। ओबीसी और दलितों को जोड़ने का काम हुआ साथ ही पार्टी संगठन ने पूरे जोश के साथ चुनाव में भाग लेने का फैसला किया। 

विदर्भ में कांग्रेस ने सोयाबीन एमएसपी और महंगाई के बारे में किसानों की परेशानी को बताने पर बहुत ज़्यादा ध्यान केंद्रित किया था। वहीं महायुति ने किसानों के लिए मुफ़्त बिजली, सोयाबीन के लिए 6,000 रुपये प्रति क्विंटल की एमएसपी और 24 घंटे सौर ऊर्जा से चलने वाली बिजली की व्यवस्था करके किसानों को अपने साथ बनाए रखा। फिर भी 14 प्रतिशत वोट की बढ़त की व्याख्या करना आसान नहीं है। शायद मुस्लिम-वोट को एकसाथ लाने के विचार पर प्रति-ध्रुवीकरण के कारण ऐसा हुआ हो। 

चौंकाने वाले आँकड़े

बेशक नतीजे चौंकाने वाले नहीं हैं, पर संख्याएं निश्चित रूप से चौंकाने वाली हैं।  ज्यादातर एग्ज़िट पोल चुनाव के मैदान में महायुति की विजय की घोषणा कर रहे थे, पर ऐसी सुनामी की पूर्व-घोषणा किसी ने नहीं की थी। महायुति के प्रत्याशियों ने 76 प्रतिशत के अभूतपूर्व स्ट्राइक रेट से विजय हासिल की है, जबकि एमवीए के प्रत्याशियों का स्ट्राइक रेट 15.6 प्रतिशत रहा। इन परिणामों के बाद कांग्रेस तो राष्ट्रीय पार्टी होने की वजह से अपने अस्तित्व को बचा लेगी, लेकिन शरद पवार की राष्ट्रवादी पार्टी और उद्धव ठाकरे की शिवसेना के सामने अब अस्तित्व और पहचान का संकट पैदा हो जाएगा। 

चुनाव-परिणामों का विस्तृत विश्लेषण होने में समय लगेगा, पर फौरी विश्लेषण के आँकड़े आश्चर्यजनक कहानी सुना रहे हैं। एक तरफ महायुति ने 235 सीटें और 49.6 प्रश वोट शेयर हासिल करते हुए असाधारण जीत दर्ज की, वहीं उसका विरोधी गठबंधन एमवीए 35.3 प्रश वोट के साथ केवल 49 सीटें जीत पाया। हरेक सीट पर वोट शेयर और जीत के अंतर का विश्लेषण करने पर इस प्रभुत्व का पता लगता है। महायुति ने 138 सीटों पर 50 फीसदी से ज्यादा वोट हासिल किए, जबकि एमवीए ने केवल 16 सीटों पर 50 प्रतिशत से ज्यादा वोट प्राप्त किए। 

भाजपा ने 149 सीटों पर चुनाव लड़ा और 132 पर जीत हासिल कीं और 26.8 प्रश वोट शेयर हासिल किया। दोनों तथ्य महाराष्ट्र में पार्टी के लिए रिकॉर्ड हैं। इनमें से 84 जीतें 50 प्रश से ऊपर वोट शेयर के साथ आईं। उसने 60 प्रश से ज़्यादा वोट शेयर के साथ 26 सीटें जीतीं और सतारा में 80.4 प्रश के साथ इस चुनाव में सबसे ज़्यादा वोट शेयर हासिल किया।

पाँच महीने में बाजी पलटी

इस विजय ने पाँच महीने पहले हुए लोकसभा चुनाव की बाजी पूरी तरह पलट दी। राज्य की 48 संसदीय सीटों में से सिर्फ 17 पर महायुति के प्रत्याशियों को जीत मिली थी। एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना और अजित पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी ने भी शानदार प्रदर्शन किया। शिवसेना को मिली 57 सीटों में से 30 सीटों पर पार्टी के प्रत्याशियों को 50 प्रश से  ज़्यादा वोट मिले। एनसीपी ने 41 में से 20 सीटें आधे से ज़्यादा वोट शेयर के साथ जीतीं। 

मामला केवल जीती गई सीटों के नंबर तक सीमित नहीं है, बल्कि सभी सीटों पर विजय का अंतर भी असाधारण है। महायुति के सभी प्रत्याशियों की विजय का औसत अंतर 40,100 से ज़्यादा वोट का है, जो एमवीए के प्रत्याशियों की जीत के औसत अंतर 19,200 के दुगने से भी ज़्यादा है। कुल मिलाकर, राज्य में विजय का औसत अंतर 36,230 वोट है, जो 2019 में 28,440 और 2014 में 22,810 था। इससे भी साबित होता है कि इसबार मुक़ाबले काफ़ी एकतरफ़ा रहे।

गढ़ में दरार

एमवीए ने उन क्षेत्रों में भी खराब प्रदर्शन किया जहाँ उन्हें सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन की उम्मीद थी। शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी-एसपी) अपने पारंपरिक गढ़ पश्चिम महाराष्ट्र में केवल आठ सीटें हासिल कर पाई, जबकि भाजपा ने इस क्षेत्र में 28 सीटें हासिल कीं। अजित पवार गुट ने 15 सीटें हासिल करके इस क्षेत्र में शरद पवार गुट से बेहतर प्रदर्शन किया। शिंदे की शिवसेना ने नौ सीटें जीतकर शरद पवार की पार्टी को चौथे स्थान पर धकेल दिया। उद्धव ठाकरे की शिवसेना और कांग्रेस दो-दो सीटों पर सिमट गईं। 

विदर्भ ने भी महायुति को शानदार जनादेश दिया। महायुति गठबंधन ने विदर्भ क्षेत्र में 77 प्रतिशत के जबरदस्त स्ट्राइक रेट के साथ 48 सीटें हासिल कीं। भाजपा 38 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। कांग्रेस की मुख्य विफलताएं इसी क्षेत्र से आईं, जहाँ वे केवल 9 सीटें ही जीत पाए। उत्तर महाराष्ट्र की 35 सीटों में से महायुति ने 34 सीटें हासिल कीं और कांग्रेस को केवल एक सीट मिली। सोयाबीन, प्याज, कपास और बागवानी के लिए मशहूर इस कृषि-प्रधान क्षेत्र ने निर्णायक रूप से महायुति को वोट दिया। 

भाजपा और महायुति के चुनावी गणित को सफल बनाने के लिए ओबीसी को साथ लाना ज़रूरी था क्योंकि माना जाता है कि इस समुदाय का विदर्भ की 62 सीटों में से 36 दबदबा है, जहाँ पार्टी का कांग्रेस से सीधा मुक़ाबला था। महाराष्ट्र को जीतने के लिए विदर्भ जीतना ज़रूरी था और विदर्भ जीतने के लिए ओबीसी का समर्थन ज़रूरी था।

कोंकण,परंपरा से शिवसेना का गढ़ रहा है। उसने भी महायुति का साथ दिया। शिंदे की शिवसेना को यहाँ से 16 सीटें मिलीं, और उद्धव ठाकरे की शिवसेना को केवल एक। यहाँ से यह बात भी साबित हुई कि शिवसेना के भीतर ज़मीनी स्तर पर ठाकरे परिवार का असर खत्म हो रहा है। मुंबई एकमात्र ऐसा क्षेत्र है, जहाँ शिवसेना (यूबीटी) को 10 सीटें मिलीं हैं। यहाँ शिंदे की शिवसेना को 6 सीटें मिलीं। शिवसेना के भीतर प्रभाव की निर्णायक-लड़ाई शायद अब मुंबई में ही होगी। भाजपा यहाँ भी 15 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। 

शिंदे की शिवसेना ने शिवसेना (यूबीटी) से सीधे मुकाबलों में 36 पर जीत हासिल की। जबकि अजित पवार की एनसीपी ने 28 सीधे मुकाबलों में एनसीपी-शप से बेहतर प्रदर्शन किया। एनसीपी-शप केवल 7 ऐसे मुकाबलों में जीती। कांग्रेस और भाजपा के बीच 75 सीटों पर सीधा मुकाबला था, कांग्रेस को इनमें से सिर्फ 10 पर जीत मिली। इनमें से 6 सीटों पर कांग्रेस दूसरे नंबर पर भी नहीं रही, बल्कि तीसरे नंबर पर रही। भाजपा ने 63 जीत के साथ दबदबा बनाया।

मुस्लिम-बहुल क्षेत्र

भाजपा ने जो सूक्ष्म प्रबंधन किया, उसमें वे निर्वाचन क्षेत्र भी शामिल थे, जहाँ मुस्लिम मतदाताओं की अच्छी खासी संख्या है। इसके पहले मुस्लिम वोटों के एकजुट होने के कारण भाजपा मामूली अंतर से हारी थी। 38 विधानसभा सीटों पर, जहां मुस्लिम आबादी 20 प्रतिशत से अधिक है, भाजपा ने अपनी संख्या 2019 की 12 से बढ़ाकर 14 कर ली। दूसरी ओर, कांग्रेस को पाँच साल पहले 11 सीटें मिली थीं, जो इस बार घटकर पाँच रह गईं। इसबार भाजपा का सबसे प्रमुख नारा था ‘एक हैं तो सेफ हैं’, जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनाव-परिणाम आने के बाद 23 नवंबर की शाम को अपने विजय भाषण में दोहराया। 

झारखंड 

झारखंड में झामुमो की 34 सीटों के मुकाबले भाजपा ने 21 सीटें जीतीं, पर भाजपा की मुख्य सहयोगी-आजसू पार्टी ने सिर्फ़ एक सीट जीती जबकि छह सीटों पर वह दूसरे नंबर पर रही। 2019 में आजसू ने दो सीटें जीती थीं और आठ सीटों पर दूसरे नंबर पर रही थी। भाजपा के दो अन्य सहयोगी-जदयू और लोजपा-आर-ने सिर्फ़ एक-एक सीट जीती। झामुमो के सहयोगी दलों में-कांग्रेस और राजद ने क्रमशः16 और 4 सीटें जीतीं, जो 2019 में 14 और 1 थीं। राज्य में झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा पार्टी ने भी अपनी छाप छोड़ी है। पार्टी ने सभी सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़े किए थे, पर पार्टी अध्यक्ष जयराम महतो को छोड़ कोई अन्य उम्मीदवार जीत नहीं पाए। पर पार्टी एक नई ताकत के रूप में उभरी है। 

राज्य में हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली सरकार को लगातार दूसरी बार सत्ता में लाने में महिला मतदाताओं की महत्वपूर्ण भूमिका का उल्लेख बार-बार हो रहा है। इसबार विधानसभा में 12 महिला विधायक चुनी गई हैं, जिनमें से आठ ‘इंडिया’ गठबंधन (कांग्रेस से पाँच और झामुमो से तीन) और चार भाजपा से हैं। राज्य में लोकसभा और विधानसभा चुनावों के बीच छह महीने की अवधि में महिला मतदाताओं की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। 

पुरुष मतदाताओं की संख्या में जहां 17,777 की वृद्धि हुई, वहीं मतदाता सूची में करीब 2.5 लाख महिलाएं जुड़ीं। मतदान में भी महिलाओं की संख्या पुरुषों से अधिक रही। राज्य में 91.16 लाख महिलाओं ने वोट डाला, जबकि पुरुषों की संख्या इससे करीब 6 लाख कम रही। यानी कि 65 प्रतिशत पुरुषों की तुलना में 70.46 प्रतिशत महिलाओं ने वोट डाला।  

झामुमो सरकार ने भी महिला मतदाताओं को लक्षित करके कार्यक्रम चलाए। उसकी ‘मैया सम्मान योजना’ इसका प्रमाण है। इस साल शुरू की गई इस योजना के तहत 18-50 आयु वर्ग की वंचित महिलाओं को 1,000 रुपये की मासिक सहायता दी जाती है। चुनावों से कुछ महीने पहले, सोरेन सरकार ने दिसंबर से सहायता राशि बढ़ाकर 2,500 रुपये करने को मंजूरी दी थी।

चुनाव परिणाम: महाराष्ट्र 

सीटें (वोट प्रतिशत)

भाजपा 132 (26.77)

शिवसेना 57 (12.38)

एनसीपी 41 (9.61)

कांग्रेस 16 (12.42)

शिवसेना उद्धव 20 (9.96)

एनसीपी शप 10 (11.28)

सपा 02 (0.38)

अन्य 10 (13.82)

झारखंड

झामुमो 34 (23.44)

कांग्रेस 16 (15.56)

राजद 04 (3.44)

भाकपा (माले) 02 (1.89)

झालोक्रांमो 01 (6.31)

भाजपा 21 (33.18)

आजसू 01 (3.54)

लोजपा 01 (0.61)

जदयू 01 (0.81)

अन्य 10 (13.82)


भारत वार्ता में प्रकाशित


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