Tuesday, June 3, 2014

तेलंगाना में झगड़े अभी और भी हैं

छोटे राज्य बनने से विकास का रास्ता खुलेगा या नहीं यह बाद में देखा जाएगा अभी आंध्र के विभाजन की पेचीदगियाँ सिर दर्द पैदा करेंगी। तेलंगाना का जन्म अटपटे तरीके से हुआ है। झारखंड, छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड का जन्म जितनी शांति से हुआ वैसा यहाँ नहीं है। कांग्रेस ने तेलंगाना बनाने का आश्वासन देकर 2004 का चुनाव तो जीत लिया, पर अपने लिए गले की हड्डी मोल ले ली, जिसने उसकी जान ले ली। एक माने में यह देश की सबसे पुरानी माँग है। अलग राज्य तेलंगाना बनाने की माँग देश के पुनर्गठन का सबसे महत्वपूर्ण कारक बनी थी। 1953 में पोट्टी श्रीरामुलु की आमरण अनशन से मौत के बाद तेलुगुभाषी आंध्र का रास्ता तो साफ हो गया था, पर तेलंगाना इस वृहत् आंध्र योजना में जबरन फिट किया गया। भाषा के आधार पर देश का पहला राज्य आंध्र ही बना था, पर उस राज्य को एक बनाए रखने में भाषा मददगार साबित नहीं हुई। राज्य पुनर्गठन आयोग की सलाह थी कि हैदराबाद को विशेष दर्जा देकर तेलंगाना को अलग राज्य बना दिया जाए और शेष क्षेत्र अलग आंध्र बने। नेहरू जी भी आंध्र और तेलंगाना के विलय को लेकर शंकित थे। उन्होंने शुरू से ही कहा था कि इस शादी में तलाक की संभावनाएं बनी रहने दी जाएं। और अंततः तलाक हुआ।

हड़बड़ी में बना राज्य
पन्द्रहवीं लोकसभा के आखिरी सत्र के आखिरी दिन तक इसकी जद्दो-जेहद चली। शोर-गुल, धक्का-मुक्की मामूली बात थी। सदन में पैपर-स्प्रे फैला, किसी ने चाकू भी निकाला। टीवी ब्लैक आउट किया गया। और अभी तय नहीं है कि शेष बचे राज्य का नाम सीमांध्र होगा या कुछ और। उसके मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू 8 जून को कहाँ शपथ लेंगे, विजयवाडा में या गुंटूर में। कर्मचारियों के बँटवारे का फॉर्मूला इस रविवार को ही बन पाया है। दोनों राज्यों की सम्पत्ति, जल तथा अन्य प्राकृतिक संसाधनों का बँटवारा समस्याएं पैदा करेगा।
हैदराबाद शहर दोनों राज्यों की राजधानी का काम करेगा, पर इससे तमाम समस्याएं खड़ी होंगी। नई राजधानी बनाने के लिए दस साल का समय है, पर उसके पहले भौगोलिक समस्याएं हैं। व्यावहारिक रूप से हैदराबाद तेलंगाना में है। तेलंगाना के समर्थक हैदराबाद को अपनी स्वाभाविक राजधानी मानते हैं, क्योंकि भौगोलिक और ऐतिहासिक रूप से यह शहर तेलंगाना की राजधानी रहा है। शेष आंध्र या सीमांध्र किसी भी जगह पर हैदराबाद से जुड़ा नहीं है। उसकी सीमा हैदराबाद से कम से कम 200 किलोमीटर दूर होगी। हैदराबाद राज्य का सबसे विकसित कारोबारी केन्द्र है। अब किसी नए शहर का विकास करने की कोशिश होगी तो उसमें काफी समय लगेगा। अविभाजित आंध्र प्रदेश का तकरीबन आधा राजस्व इसी शहर से आता है। सीमांध्र के पास इस किस्म का औद्योगिक आधार बनाने का समस्या है। यहाँ के कारोबारियों में ज्यादातर लोग गैर-तेलंगाना हैं।

प्राकृतिक साधनों का झगड़ा
केवल हैदराबाद की बात नहीं है, छोटे-छोटे गाँवों और कस्बों के लेकर भी विवाद हैं। तेलंगाना के शहरों में रहने वाली बड़ी आबादी की भावनाएं सीमांध्र से जुड़ी हैं। भविष्य की राजनीति में यह तत्व महत्वपूर्ण साबित होगा। चंद्रबाबू नायडू के तेलगुदेशम का प्रभाव तेलंगाना में भी है। पानी के ज्यादातर स्रोत तेलंगाना से होकर गुजरते हैं। कृष्णा और गोदावरी दोनों नदियां तेलंगाना से आती हैं, जबकि ज्यादातर खेती सीमांध्र में है। तेलंगाना के गठन के समय सीमांध्र को विशेष पैकेज देने की बात कही गई थी। यह पैकेज कैसा होगा, इसे लेकर विवाद खड़ा होगा। इधर पोलावरम बाँध को लेकर विवाद शुरू हो गया है। मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने इस परियोजना के लिए खम्मम जिले के कुछ गांव सीमांध्र को देने का विरोध किया है, जबकि सरकार ने इन गांवों को लेकर अध्यादेश जारी किया है।
राजस्थान पत्रिका में प्रकाशित

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