Wednesday, February 23, 2011

बीबीसी हिन्दी रेडियो को बचाने की अपील


बीबीसी की हिन्दी सेवा को बचाने के प्रयास कई तरफ से हो रहे हैं। एक ताज़ा प्रयास है लंदन के अखबार गार्डियन में छपा पत्र जिसपर भारत के कुछ प्रतिष्ठित नागरिकों के हस्ताक्षर हैं। बीबीसी की हिन्दी सेवा को देश के गाँवों तक में सुना जाता है। तमाम महत्वपूर्ण अवसरों पर यह सेवा हमारी जनता की खबरों का स्रोत बनी। इसकी हमें हमेशा ज़रूरत रहेगी।


यह पत्र पढ़कर मुझे खुशी हुई, पर दुख भी हुआ कि हमारे पास एक भी रेडियो या टीवी सेवा ऐसी नहीं है, जिसे हम सूचना का विश्वसनीय माध्यम मानते। सरकारी मदद से चलने वाली और अब कम से कम नाम के लिए स्वायत्त प्रसार भारती की सेवाएं यह काम कर सकतीं थीं। देश के निजी चैनलों ने करीब डेढ़ दशक में लुटिया डुबाई सो अभी तक डूबी है। 

इस पत्र का रोचक पहलू यह भी है कि इसपर दस्तखत करने वालों में स्वामी अग्निवेश को छोड़कर ज्यादातर लोग अंग्रेजी हैं। बहरहाल उनके इस प्रयास की तारीफ होनी चाहिए।

BBC Hindi still offers vital service


The Guardian, Saturday 19 February 2011 
We are astonished at the news that the BBC management has decided to stop transmission of BBC Hindi radio on short wave from 1 April (Jonathan Freedland, Comment, 9 February). For nearly seven decades BBC Hindi radio has been a credible source of unbiased and accurate information, especially in times of crisis: the 1971 war, the emergency in 1975, the communal riots after the demolition of the Ayodhya mosque in 1992.

Today India is facing other serious problems: the ongoing conflicts in Kashmir, in the north-east and in vast areas in central and eastern India, where Maoist militants are fighting the state.

Ten million listeners in India – most of them in rural and often very poor areas – need BBC Hindi radio and the accurate, impartial and independent news it provides.
BBC Hindi transmissions are accessible in rural and remote areas and, as short-wave receivers can be battery-operated, they are available in places without electricity or during power cuts; they are an essential source of learning for schoolchildren and college students in rural India preparing for competitive exams; and they cannot be silenced in times when democracy is under threat.
We strongly urge the UK government to rethink its decision to severely cut the funding for the BBC World Service to enable the continued transmissions of BBC Hindi on short-wave radio.

Sir Mark Tully Broadcaster and author, Gillian Wright , Arundhati Roy Booker Prize winner, Vikram Seth Author, William Dalrymple Author, Ram Guha Historian, Kuldip Nayyar Journalist and columnist, Amjad Ali Khan Musician, Inder Malhotra Journalist and columnist, MJ Akbar Editor, India Today, Sam Miller Journalist and author, Sunita Narayan Environmentalist and Editor, Down to Earth magazine, New Delhi, Kiran Bedi Reformist and the first woman IPS officer of India, Tessa Hamblin Director, Rehabilitation, Indian nstitute of Cerebral Palsy, Swami Agnivesh Anti-slavery activist, Prashant Bhushan Supreme court lawyer, Dilawar K Singh Financial adviser (defence services), Ministry of Defence, Neelima Mathur Foundation for Responsible Media, New Delhi, India.



This article appeared on p37 of the Main section section of the Guardian on. It was published on guardian.co.uk at .
इस पत्र को गार्डियन में पढ़ें




बीबीसी लंदन से हिंदी में प्रसारण पहली बार 11 मई 1940 को हुआ था. इसी दिन विंस्टन चर्चिल ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बने थे.
बीबीसी हिन्दुस्तानी सर्विस के नाम से शुरु किए गए प्रसारण का उद्देश्य द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारतीय उपमहाद्वीप के ब्रितानी सैनिकों तक समाचार पहुंचाना था.
भारत की आज़ादी और विभाजन के बाद हिन्दुस्तानी सर्विस का भी विभाजन हो गया,और 1949 में जनवरी महीने में इंडियन सेक्शन की शुरुआत हुई.
इस सेवा की शुरुआत भारत के जाने-माने प्रसारक ज़ुल्फ़िकार बुख़ारी ने की थी, बाद में बलराज साहनी और जॉर्ज ऑरवेल जैसे शानदार प्रसारक हिन्दुस्तानी सेवा से जुड़े.
पुरुषोत्तम लाल पाहवा, आले हसन, हरीशचंद्र खन्ना और रत्नाकर भारतीय जैसे शीर्ष प्रसारकों ने मोर्चा संभाला और हिंदी सेवा ने झंडे गाड़ दिए.
1950 के दशक में बीबीसी हिंदी सेवा में इंदर कुमार गुजराल ने भी पत्रकारिता और प्रसारण कौशल के क्षेत्र में अपने हाथ आज़माए, तब वे एक शर्मीले व्यापारी हुआ करते थे और 47 साल बाद भारत के प्रधानमंत्री बने.
1960 के दशक में आए महेंद्र कौल, हिमांशु कुमार भादुड़ी और ओंकारनाथ श्रीवास्तव, कैलाश बुधवार, भगवान प्रकाश, विश्वदीपक त्रिपाठी और सुभाष वोहरा 1970 के दशक में बीबीसी हिंदी सेवा से जुड़े.
बाद के दशकों में परवेज़ आलम, अचला शर्मा, शिवकांत, नरेश कौशिक, पंकज सिंह, नीलाभ, धीरंजन मालवे, मधुकर उपाध्याय, विजय राणा, ममता गुप्ता और संजीव श्रीवास्तव जैसे कई पत्रकार और प्रसारक आए और यह सिलसिला अब भी जारी है.
बीबीसी हिंदी डॉट कॉम
समय बदला और अन्य संचार माध्यमों की तरह बीबीसी ने वेबसाइट की अहमियत को भी पहचाना और वर्ष 2001 में बीबीसी हिंदी डॉट कॉम की शुरुआत हुई. इसका उद्देश्य भारत और दुनिया भर के हिंदीभाषी पाठकों तक समाचार और विश्लेषण पहुंचाना था.
यह एक 24X7वेबसाइट है और पत्रकारों की एक टीम सप्ताह के सातों दिन, चौबीस घंटे दुनिया भर के पाठकों के लिए सामग्री उपलब्ध कराती है.
बीबीसी हिंदी डॉट कॉम के पहले पन्ने पर सभी प्रमुख समाचारों को जगह दी जाती है. और इसके अलावा विश्लेषण, जनरुचि की ख़बरों और फ़ीचरों का प्रकाशन किया जाता है. हमारी वेबसाइट के अन्य इंडेक्स हैं- भारत, खेल, मनोरंजन, विज्ञान, कारोबार, मल्टीमीडिया, ब्लॉग/फ़ोरम और लर्निंग इंगलिश.
दो पूर्व प्रधानमंत्री, इंद्र कुमार गुजराल और विश्वनाथ प्रताप सिंह बीबीसी हिंदी डॉट कॉम के स्तंभकार रह चुके हैं. इसके अलावा मशहूर फ़िल्मकार देवानंद, सुपरिचित कवि और लेखक निदा फ़ाज़ली,  साहित्यकार असग़र वजाहत, फ़िल्म स्तंभकार कोमल नाहटा और खेल पत्रकार प्रदीप मैगज़ीन समय-समय पर वेबसाइट से जुड़े रहे हैं.
उपरोक्त जानकारी मैने बीबीसी की हिन्दी वैबसाइट से ली है। इसे पूरा पढ़ने के लिए आप या तो ऊपर दिए शीर्षक को अथवा यहाँ  क्लिक करें

8 comments:

  1. यह बात आपने सही कही कि हमारी अपनी कोई भी रेडियो सेवा विश्वसनीय नहीं बन पाई.फिर भी बी.बी.सी. को बचने का प्रयास सराहनीय है.

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  2. air ke pass ek avsar hai jo bbc ki tarah jagah bana sake anytha iski jagah koi aur bhar dega kyoki koi bhi jagah lambe samay tak khli nahi rah sakati hai
    sanjay

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  3. बी बी सी के बंद होने से पहले आकाशवाणी समाचार को इसे अपने लिए बड़ा अवसर मानकर बीबीसी के श्रोता तक जगह बनानी चाहिए ,वरना उसकी जगह कोई और ले लेगा , कोई जगह लंबे समय तक खली नहीं रहती कोई न कोई भर ही दे

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  4. जैसा कि ऊपर की टिप्पणी में पापा ने भी कहा है कि हमारी अपनी कोई भी रेडियो सेवा विश्वसनीय नहीं बन पाई इस दृष्टि से बी बी सी हिंदी रेडियो सेवा समाप्ति की घोषणा बहुत निराशाजनक है.
    यह एक अच्छी खबर है इस सेवा का आस्तित्व बनाये रखने के प्रयास ज़ारी हैं.
    सर!आप के लेख से इस सेवा के बारे में विस्तार से जानने को भी मिला.

    धन्यवाद सहित

    सादर
    यशवन्त

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  5. बी.बी.सी. को बचने का प्रयास सराहनीय है|

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  6. मेरा मानना है बी बी सी हिंदी को बंद करने के पीछे सिर्फ़ बजट कटौती ही कारण नहीं है| दरअसल हममे से कोई भी बी बी सी की निष्पक्षता के कायल ज़रूर हो सकते हैं लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि दुनिया की कोइ भी समाचार संस्था एक खास अभियान और हित के तहत काम करती है| बी बी सी भी उससे बरी नहीं है|इससे पहले वॉयस ऑफ अमेरिका ने भी अपनी हिंदी सेवा बंद की थी
    इसके पीछे बहुत से ऐसे कारण हैं जो शायद बहार ना आ पाए| लेकिन इसे बंद नहीं करना चाहिए क्योंकि यह सीधे लोगों के दिल से जुडी संस्था है और अभी भी इसके करोडो श्रोता हैं|

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  7. प्रमोद जी

    बहुत शुक्रिया, बहुत सारी पुरानी यादें फिर से ताज़ा हो गयीं. बहुत दिन हो गए shortwave रेडियो सुने हुए. बीबीसी में एक जनाब शफी नकी जामी हुआ करते थे, हिंदी और उर्दू, दोनों लफ्जों में पुरे उस्ताद. पता नहीं अब कहाँ हैं जनाब.

    हमेशा की तरह, इतने बढ़िया लेख के लिए बहुत बहुत धन्यवाद !

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