Wednesday, February 16, 2011

प्रधानमंत्री की प्रभावहीन टीवी कांफ्रेंस


 इसे सम्पादक सम्मेलन कहने को जी नहीं करता। सबसे पहले हिन्दी चैनल आज तक के सम्पादक के नाम पर आए उसके मालिक अरुण पुरी ने अंग्रेजी में सवाल किया। आज सुबह के टेलीग्राफ में राधिका रमाशेसन की खबर थी कि दो चैनलों के मालिकों को खासतौर पर आने को कहा गया है। दूसरे सम्पादक से उनका आशय बेशक प्रणय रॉय होंगे। प्रणय़ रॉय को हम मालिक कम सम्पादक ज्यादा मानते हैं। आज के सम्मेलन में उन्होंने ही सबसे सार्थक सवाल पूछे। अर्णब गोस्वामी के तेवरों पर ध्यान न दें तो वाजिब सवाल उनके भी थे।


बहरहाल शायद राडिया मामले का असर था कि बरखा दत्त नहीं आईं। पर इंडिया टीवी के रजत शर्मा को क्यों नहीं बुलाया गया? किसी ने कहा कि उनके चैनल को न्यूज चैनल नहीं माना जाता। इस नज़रिए से आज तक को न्यूज़ चैनल क्यों  माना जाता है? या स्टार न्यूज समेत सारे हिन्दी चैनल क्यों न्यूज़ चैनल क्यों हैं, जिनमे सुबह से शाम तक एंटरटेनमेंट सीरियल और कॉमेडी शो आते रहते हैं।

आज के ट्वीट्स पर ध्यान दें तो ज्यादातर पेज 3 धर्मी पत्रकार प्रधानमंत्री के सम्मेलन से निराश थे। लगता है प्रधानमंत्री से देश के मध्य वर्ग का मोहभंग हो गया है। ऐसा नहीं कि प्रधानमंत्री ने आज के जवाब ठीक से नहीं दिए, पर वे शुरू से रक्षात्मक मुद्रा में थे। वास्तव मे देश की राजनीति की संरचना ने यह हालत पैदा की है। आप देख लीजिएगा आने वाले वक्त के प्रधानमंत्री इतने सम्मानित भी नहीं होंगे। मनमोहन सिंह को कोई भी बेईमान नहीं कहता, पर बेबस काफी लोग मानते हैं।

पेड न्यूज मुक्त डीएनए


डीएनए के आज के मास्टहैड पर रोचक मोहर लगी है। आपका अखबार पेड न्यूज़ फ्री है। आदित्य सिन्हा से पहले भी डीएनए का यही दावा था। सन 2009 में इस अखबार ने इस किस्म के विज्ञापन दिए थे। पर मास्टहैड पर क्वालिटी मार्क एक नयापन है।

2009 का एक विज्ञापन




5 comments:

  1. प्रमोद जी.आप आज भी उतने ही बेबाक हैं जितना मैंने आपको १५-१६ साल पहले पाया था.बहुत दुरुस्त समीक्षा है.

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  2. यह खबर हमें सोचने को मजबूर करती है| देश का प्रधानमन्त्री अगर बेबस हो तो फिर उस देश का क्या होगा?

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  3. प्रश्न यह है कि आप बेईमानी को कैसे परिभाषित करेंगे. अगर प्रधान मंत्री बेईमानी होती देख कर चुप बैठे रहते हैं, तो उन्हें क्या मन जाये, यह विचार का विषय है. कम से कम वे कुर्सी तो छोड़ ही सकते थे यदि, कोई लाचारी थी तो भी .

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  4. अजीब सी बात है लोग एक कठपुतली को प्रभावहीन कर रहे हैं। ये कहि‍ये इस कठपुतली को नचाने वाले के सारे स्‍वार्थ अभी तक सि‍द्ध हुए हैं, राहुल का बड़बोलापन देखि‍ये जनाब। देश चले ना चले खानदानी राजशाही चलती रहे।

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