Tuesday, December 23, 2025

भारत की राष्ट्रीय-शक्ति में निरंतर निखार


लोवी इंस्टीट्यूट का एशिया पावर इंडेक्स

ऑस्ट्रेलियाई थिंक टैंक लोवी इंस्टीट्यूट द्वारा जारी एशिया पावर इंडेक्स के 2025 संस्करण के अनुसार, अमेरिका और चीन के बाद, भारत एशिया की तीसरी प्रमुख शक्ति है। 40 अंक से अधिक के समग्र शक्ति स्कोर के साथ, जो ‘प्रमुख शक्ति (मेजर पावर)’ का दर्जा पाने की प्रारंभिक सीमा है, भारत ने अमेरिका और चीन के बाद तीसरे स्थान पर अपनी जगह बना ली है। हालाँकि भारत को तीसरा स्थान पिछले साल ही मिल गया था, पर 'प्रमुख शक्ति' के रूप में पहली बार मान्यता मिली है।

एशिया का देश अमेरिका नहीं है, पर उसकी एशिया में उपस्थिति है, इस वजह से उसे रैंकिंग में रखा गया। ऐसा ही रूस के साथ है। इस वर्ष डॉनल्ड ट्रंप की नीतियों के कारण अमेरिकी शक्ति में गिरावट आ रही है। रिपोर्ट के अनुसार ट्रंप प्रशासन की नीतियां एशिया में अमेरिकी शक्ति के लिए कुल मिलाकर नकारात्मक रही हैं, लेकिन उनका वास्तविक प्रभाव आने वाले वर्षों में ही महसूस किया जाएगा।’ एक वर्ष में अमेरिका के समग्र शक्ति स्कोर में 1.2 अंक की गिरावट आई, जबकि चीन के स्कोर में 1 अंक की वृद्धि हुई है।

चीन का उभार

सैन्य क्षमता के मामले में भी अमेरिका की बढ़त को चीन लगातार कम करता जा रहा है। इस बीच, एशिया में रूस की ताकत भी बढ़ रही है। वह ऑस्ट्रेलिया को पीछे छोड़कर एशिया का पाँचवाँ सबसे शक्तिशाली देश बन गया है। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘एशिया में रूस की ताकत बढ़ रही है, जिसे उत्तर कोरिया और चीन से समर्थन मिल रहा है।’

पिछले वर्ष, भारत का व्यापक शक्ति स्कोर 39.1 था, जो उसे केवल 'मध्यम शक्ति' का दर्जा देता था। पाकिस्तान, जिसने इस वर्ष मई में भारत के साथ चार दिन का संक्षिप्त युद्ध लड़ा था और वर्तमान में अफगानिस्तान से लड़ रहा है, ताइवान, फिलीपींस, न्यूजीलैंड, वियतनाम और थाईलैंड जैसे देशों से पीछे 16वें स्थान पर है।

Sunday, December 21, 2025

2025: महत्त्वपूर्ण शक्ति के रूप में उभरता भारत


2025 में भारत की विदेश नीति महाशक्तियों अमेरिका, चीन और रूस के साथ संतुलन बैठाने, दक्षिण एशिया में अपनी उपस्थिति को मज़बूत करने और ग्लोबल साउथ के साथ रिश्तों को बेहतर बनाने पर केंद्रित रही.

पुतिन की यात्रा के साथ, जहाँ रूस के साथ खड़े होकर भारत ने अपनी स्वतंत्र-नीति का परिचय दिया, वहीं धैर्य का परिचय देते हुए अंततः अमेरिका के साथ व्यापार-समझौते का आधार तैयार करके व्यावहारिक राजनीति का परिचय भी दिया.

यूक्रेन के युद्ध में हालाँकि भारत ने रूस की प्रकट आलोचना नहीं की, पर प्रकारांतर से यह संदेश देने में देरी भी नहीं की कि यह वक्त लड़ाइयों का नहीं है. पुतिन की यात्रा के बाद यूक्रेन के राष्ट्रपति की भारत-यात्रा इस संतुलन को प्रकट करती है. इस साल चीन के साथ भारत के रिश्तों में भी बर्फ पिघली है.

वैश्विक-राजनीति में संतुलन बैठाते हुए भारत ने हार्ड-डिप्लोमेसी, आर्थिक लचीलेपन और सामरिक-शक्ति को बढ़ाने पर जोर दिया. इस साल वह विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है.

भारत सक्रिय रूप से ग्लोबल साउथके एजेंडे को आगे बढ़ा रहा है और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद जैसे अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों में सुधारों की वकालत कर रहा है. अपनी वैश्विक स्थिति को बढ़ाने के लिए जी20, ब्रिक्स और एससीओ जैसे मंचों का उपयोग कर रहा है.

Friday, December 19, 2025

नाभिकीय-ऊर्जा में निजी-क्षेत्र का रास्ता खुला


संसद ने स्टेनेबल हार्नेसिंग एंड एडवांसमेंट ऑफ न्यूक्लियर एनर्जी फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया विधेयक, 2025’ को पारित कर दिया। इसअंग्रेजी नामाक्षरों के आधार पर शांति-विधेयक कहा गया है। हालाँकि कई विपक्षी सांसदों ने विधेयक को संसदीय समिति के पास भेजने की माँग की थी, पर सरकार ने इसे राज्यसभा में चर्चा के लिए भेजकर जल्दी पास कराना उचित समझा। अब यह कानून बन जाएगा। दोनों सदनों की राजनीतिक-बहसों पर ध्यान नहीं दें, तो यह स्पष्ट है कि यह कानून यूपीए सरकार में अमेरिका के साथ हुए न्यूक्लियर-डील का एक महत्वपूर्ण अंग है, जो अब अमेरिका के साथ संभावित व्यापार-समझौते के साथ भी जुड़ा है।

यह कानून अनायास ही नहीं बनाया गया है। कई कारणों से न्यूक्लियर-डील अपने अभीप्सित उद्देश्यों में पूरी तरह सफल नहीं हो सका। एक बड़ा अड़ंगा, संभावित-दुर्घटना की क्षतिपूर्ति को लेकर था, जिसके लिए 2010 में पास हुए नागरिक दायित्व अधिनियम से विदेशी-आपूर्तिकर्त्ता सहमत नहीं थे। 2008 में, भाजपा ने मनमोहन सिंह सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया था, जिसका एक कारण यह भी था कि न्यूक्लियर-डील में ऐसा कोई प्रावधान नहीं था, जिससे क्षतिपूर्ति हो सके।

Tuesday, December 16, 2025

ट्रंप की ‘अमेरिका-फर्स्ट’ विदेश-नीति और भारत


अमेरिका के ट्रंप-प्रशासन ने वस्तुतः इस बात की खुली घोषणा कर दी है कि अमेरिकी-प्रभाव के विस्तार के बजाय उसकी आंतरिक-महानता को फिर से स्थापित करना होगा. यानी कि अमेरिका की विदेश-नीति भी मेक अमेरिका ग्रेट अगेन सिद्धांत पर केंद्रित होगी.

अमेरिका की नई राष्ट्रीय सुरक्षा-नीति (एनएसएस) से ऐसा ही आभास मिलता है. हालाँकि यह दस्तावेज़ 25 नवंबर को जारी हुआ था, पर हाल में ही सामने आया है. इस छोटे से दस्तावेज़ में अमेरिका के अंतरराष्ट्रीय हितों, उन हितों के क्रम और समग्र रूप से बदलती विश्व व्यवस्था पर, अब तक का सबसे स्पष्ट वर्णन किया गया है.

आम बोलचाल की भाषा में लिखे गए, इस दस्तावेज़ में ट्रंप और उनकी टीम की खास शैली झलकती है. शुरुआत से ही, यह दस्तावेज़ रणनीति के वास्तविक अर्थ को परिभाषित करता है.

2021 में अपना पद संभालने के बाद जो बाइडेन ने कहा था, ‘अमेरिका इज़ बैक, हमारी विदेश-नीति के केंद्र में डिप्लोमेसी की वापसी हो रही है।’ वह मानवीय और उदार-अमेरिका था. ट्रंप उस उदार-अमेरिका को तमाम समस्याओं की जड़ मानते हैं.

Wednesday, December 10, 2025

पुतिन की यात्रा और तलवार की धार पर भारत


पुतिन के भारत दौरे से भारत ने अपनी विदेश-नीति की स्वतंत्रता का परिचय दिया वहीं, रूस को अलग-थलग करने की कोशिशों को विफल करने में मदद भी की है. भारत को यह संदेश भी देना है कि हम किसी की दादागीरी के दबाव में नहीं आएँगे और अपनी स्वतंत्र सत्ता को बनाकर रखेंगे.

रूस को अलग-थलग करना इसलिए भी आसान नहीं है, क्योंकि विकासशील देशों के साथ उसके रिश्ते सोवियत-युग से बने हुए हैं. रूस ने बहुत लंबे समय तक इन देशों का साथ दिया है और अब ये देश उसका साथ दे रहे हैं.

इसका अर्थ यह भी नहीं है कि भारत ने अमेरिका से दूरी बनाई है या वह वैश्विक ध्रुवीकरण की प्रक्रिया में किसी एक पाले में जाकर बैठेगा. अलबत्ता यह संकेत ज़रूर दिया कि भारत और रूस की दोस्ती ख़ास है, जो समय की कसौटी पर परखी गई है.

भारत को अमेरिका से रिश्तों में बदलाव आने पर धक्का जरूर लगा है. पिछले दो दशक से भारत यह कोशिश कर रहा था कि अमेरिका के साथ रणनीतिक साझेदारी विकसित हो. डॉनल्ड ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में भारत का दर्जा रणनीतिक रूप से घटाया गया है.

ट्रंप प्रशासन ने इस हफ़्ते अपनी बहुप्रतीक्षित राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति जारी की है, जिसे देखते हुए लगता है कि अमेरिका ने एशिया में चीन से शत्रुता को कम करने और यूरोप में अपने प्रभाव को बढ़ाने का फैसला किया है.