Tuesday, July 19, 2022

गर्मी से परेशान यूरोप

 

मंगलवार के वॉलस्ट्रीट जरनल के पहले पेज पर प्रकाशित तस्वीर। बकिंघम पैलेस पर तैनात संतरी को ठंडा पानी पिलाता उसका अफसर। 

पश्चिमी यूरोप इन दिनों झुलसाने वाली गर्मी का सामना कर रहा है। ज़बरदस्त गर्म हवाओं के उत्तर की ओर बढ़ने के साथ ही मंगलवार को पश्चिमी यूरोप में पारा चढ़ता जा रहा है। कई देशों ने इसे राष्ट्रीय संकट घोषित कर दिया है। फ्रांस और यूके में सोमवार 18 जुलाई को बेहद गर्मी की चेतावनी जारी की गई। वहीं स्पेन में सोमवार को 43 डिग्री तापमान रहा।

फ्रांस, पुर्तगाल, स्पेन और ग्रीस में जंगल की आग के कारण हज़ारों लोगों को अपना घर छोड़कर सुरक्षित जगहों की तरफ जाना पड़ा है। विशेषज्ञ कहते हैं कि ब्रिटेन जल्द ही अपने सबसे गर्म दिन का सामना करेगा और फ्रांस के कुछ हिस्सों में "कयामत की गर्मी बरस" रही है।

पूरा यूरोप गर्मी में उबल रहा है। जंगलों में लगी आग ने मुश्किलों का और बढ़ा दिया है। यूनाइटेड किंगडम (यूके) से लेकर हर हिस्से में तापमान नए रिकॉर्ड बना रहा है। स्पेन में लगी आग में दो लोगों की मौत ने इसे और गंभीर बना दिया है। स्पेन के प्रधानमंत्री पेद्रो सांचेज ने इसे ग्लोबल वॉर्मिंग से जोड़ा है और कहा है कि जलवायु परिवर्तन लोगों की जान ले रहा है।

दक्षिणी इंग्‍लैंड में सोमवार को तापमान 38 डिग्री था जो मंगलवार को 41 डिग्री के आसपास है। नेशनल रेल सर्विस ने यात्रियों को सलाह दी है कि जब तक जरूरी न हो सफर न करें। पूर्वोत्तर इंग्‍लैंड में कई जगह रेल सेवा बंद कर दी गई है।

Monday, July 18, 2022

अदालत में लड़ी जाएगी ट्विटर और मस्क की लड़ाई


सोशल मीडिया कंपनी ट्विटर और टेस्ला-प्रमुख एलन मस्क के बीच 44 अरब डॉलर का सौदा खटाई में पड़ गया है। अब यह मामला लम्बी कानूनी लड़ाई का रूप लेने जा रहा है। इसमें दोनों पक्षों के अरबों डॉलर स्वाहा होंगे। ट्विटर के चेयरमैन ब्रेट टेलर का कहना है कि ट्विटर बोर्ड निर्धारित शर्तों पर समझौते को लागू कराएगा। इसके लिए हम डेलावेयर कोर्ट ऑफ चांसरी जा रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे विवादों में आमतौर पर डेलावेयर कोर्ट का रुख रहता है कि दोनों पक्ष आपस में बैठकर नया समझौता कर लें।  

ऐसे मौके भी आए हैं, जब अदालतों ने किसी एक पक्ष को समझौता मानने को मजबूर किया हो, पर वे छोटे करार थे। यह करार बहुत बड़ा है। एलन मस्क जैसे जुनूनी पूँजीपति को अपनी इच्छा के विपरीत कम्पनी खरीदने के लिए तैयार करना भी मुश्किल है। ज्यादा से ज्यादा एक अरब डॉलर का खामियाजा भरने के लिए कहा जा सकता है। समझौते में ब्रेक-अप फ़ी एक अरब डॉलर है। दोनों कम्पनियों ने देश की नामी लॉ फर्म्स को इस काम के लिए जोड़ा है, पर दोनों के सामने अनिश्चित भविष्य है।

कमजोर कारोबार

कॉरपोरेट लॉ विशेषज्ञ मानते हैं कि ट्विटर का केस अपेक्षाकृत मजबूत है। मस्क के लिए यह साबित करना मुश्किल होगा कि ट्विटर ने जो विवरण दिया है, वह अधूरा है या उससे कम्पनी के कारोबार में भारी फर्क पड़ने का खतरा है। पर ट्विटर का आर्थिक आधार बहुत मजबूत नहीं है। डिजिटल-विज्ञापन के बाजार में भारी उतार-चढ़ाव आ रहे हैं। मस्क की जेब भारी है, पर क्या उनके पास इतना पैसा है कि वे लम्बी लड़ाई लड़ सकें?

दोनों कम्पनियों के शेयरों के भाव गिरे हुए हैं। इन बातों से दोनों का आर्थिक-भविष्य भी जुड़ा है। अदालती फैसला मस्क के खिलाफ गया, तो उन्हें अब टेस्ला के कुछ और शेयर बेचने होंगे। अप्रेल में उन्होंने टेस्ला के 8.5 अरब के शेयर बेचे थे। दूसरी तरफ जनवरी से अप्रेल के बीच उन्होंने 2.6 अरब डॉलर की कीमत के ट्विटर के शेयर भी खरीदे थे।

पहले ना, फिर हाँ

इस साल 13 अप्रेल को जब एलन मस्क ने ट्विटर पर कब्जा करने के इरादे से 54.20 डॉलर की दर से शेयर खरीदने की पेशकश की, तो सोशल मीडिया में सनसनी फैल गई थी। दुनिया का सबसे अमीर आदमी सोशल मीडिया के एक प्लेटफॉर्म की इतनी बड़ी कीमत क्यों देना चाहता है? टेकओवर वह भी जबरन, जिसे रोकने के लिए ट्विटर प्रबंधन ने पहले तो ‘पॉइज़न पिल’ का इस्तेमाल किया और फिर तैयार हो गए। पर ढाई-तीन महीने के भीतर समझौता टूटना उतना ही नाटकीय है, जितना समझौता होना।

एलन मस्क ने यह कहकर हाथ खींचा है कि इस क़रार से जुड़ी शर्तों को कई बार तोड़ा गया, जिसकी वजह से वे पीछे हट रहे हैं। मस्क के अनुसार कम्पनी ने उनको ट्विटर के फ़र्ज़ी हैंडलों के बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं दी थी। इसके अलावा भी समझौते की कई शर्तों को तोड़ा गया है। समझौते के साथ मस्क और ट्विटर दोनों की साख जुड़ी हुई हैं। दोनों के कारोबार पर भी इसका असर होगा।

Sunday, July 17, 2022

आई2यू2 यानी भारत की ‘लुक-वेस्ट’ नीति


भारत-इजराइल-अमेरिका और यूएई के बीच नवगठित समूह आई2यू2 की गुरुवार 14 जुलाई को हुई पहली शिखर बैठक में भारत के लिए नए अवसर खुले हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन, इजरायल के प्रधानमंत्री येर लेपिड और यूएई के राष्ट्रपति शेख मोहम्मद बिन ज़ायेद अल नाह्यान की इस वर्चुअल बैठक में दो अहम परियोजनाओं को हरी झंडी दिखाई गई, जो भारत में शुरू होंगी। भारत और यूएई के बीच फूड एक कॉरिडोर बनाया जाएगा। दूसरे भारत के द्वारका में अक्षय ऊर्जा हब बनाया जाएगा। यह आर्थिक कार्यक्रम है, पर इसके पीछे पश्चिम एशिया की भावी राजनीति और इसमें भारत की भूमिका को भी देखा जा सकता है। 

बैठक में अमेरिकी राष्ट्रपति और इजराइल के प्रधानमंत्री तेल अवीव से शामिल हुए थे। जो बाइडेन 13 से 16 जुलाई तक पश्चिम एशिया के दौरे पर थे। उनकी इस यात्रा के पीछे पश्चिम एशिया में अपने मित्र देशों के आधार को मजबूत करने के अलावा यूक्रेन युद्ध के कारण इस समय दुनिया में पेट्रोलियम की कीमतों में तेजी को रोकना भी है। इस तेजी का लाभ रूस को मिल रहा है। अमेरिका की कोशिश है कि सऊदी अरब के सहयोग से इस तेजी पर काबू पाया जाए।
फलस्तीन की समस्या

बाइडेन चाहते हैं कि इजरायल और फलस्तीनियों के बीच दीर्घकालीन समझौता हो जाए। पर यह समझौता फलस्तीनी अथॉरिटी के महमूद अब्बास के साथ होगा। जो बाइडेन टू स्टेट अवधारणा क समर्थन कर रहे हैं। उनकी महमूद अब्बास से मुलाकात भी हुई है। पर समझौता आसान नहीं है। खासतौर से हमस का रुख काफी कड़ा है और गज़ा पट्टी पर हमस का ही दबदबा है। महमूद अब्बास के संगठन और इजरायल दोनों के साथ भारत के रिश्ते अच्छे हैं, जिनका लाभ लिया जा सकता है।

हमस मूलतः उग्रवादी संगठन है, पर 2005 के बाद से उसने गज़ा पट्टी के इलाके में राजनीतिक प्रक्रिया में हिस्सा लेना भी शुरू कर दिया। वह फलस्तीनी अथॉरिटी के चुनावों में शामिल होने लगा। गज़ा में फतह को चुनाव में हराकर उसने प्रशासन अपने अधीन कर लिया है। अब फतह गुट का पश्चिमी तट पर नियंत्रण है और गज़ा पट्टी पर हमस का। अंतरराष्ट्रीय समुदाय पश्चिमी तट के इलाके की अल फतह नियंत्रित फलस्तीनी अथॉरिटी को ही मान्यता देता है। 

शिखर बैठक के बाद भारत के विदेश सचिव विनय क्वात्रा ने कहा कि शुरूआती दौर में फिलहाल गुजरात और मध्य प्रदेश में यह पार्क बनाने की कवायद आगे बढ़ी है। उन्होंने बताया कि भारत की केला, चावल, आलू, प्याज और मसालों की फसलों को आरंभिक दौर में चिह्नित भी किया गया है। इन परियोजनाओं के जरिए भारतीय किसानों के उत्पादों को बड़ा बाजार मिलेगा, वहीं रोजगार के नए अवसर भी बनेंगे।

दो अरब डॉलर का निवेश

इस शिखर बैठक के बाद संयुक्त अरब अमीरात ने घोषणा की कि वह एकीकृत फूड पार्कों की श्रृंखला का विकास करने के लिए भारत में दो अरब डॉलर का निवेश करेगा। इसका उद्देश्य दक्षिण और पश्चिम एशिया में खाद्य असुरक्षा की समस्या का सामना करना है। बैठक के बाद जारी संयुक्त बयान में कहा गया है कि इस कार्य के लिए भूमि और किसानों को जोड़ने का काम भारत करेगा। इस बैठक में इस इलाके की खाद्य-सुरक्षा और स्वच्छ ऊर्जा, खाद्य उत्पादन तथा वितरण प्रणाली में बदलावों को सुनिश्चित करने पर विचार हुआ, ताकि वैश्विक खाद्य-सामग्री का भंडार बनाया जा सके।

इस कार्य में अमेरिका और इजराइल से निजी क्षेत्रों को आमंत्रित किया जाएगा और उनकी विशेषज्ञता का लाभ उठाया जाएगा। वे परियोजना की कुल वहनीयता में योगदान देते हुए नवोन्मेषी समाधानों की पेशकश भी करेंगे। पूँजी निवेश से उपज बेहतर होगी और इससे दक्षिण एशिया एवं पश्चिम एशिया में खाद्य असुरक्षा से निपटा जा सकेगा।

आई2यू2 ग्रुप

आई2यू2 यानी अंग्रेजी आई 2 (इंडिया और इजरायल) और यू 2 (यानी यूएसए और यूएई)। इसे पश्चिम एशिया का क्वॉड भी कहा जा रहा है। इस अनौपचारिक समूह की शुरुआत अक्तूबर 2021 में विदेशमंत्री एस जयशंकर की इजरायल यात्रा के दौरान उपरोक्त चारों देशों के विदेशमंत्रियों की एक पहल के रूप में हुई थी। उस समय इसे आर्थिक सहयोग का अंतरराष्ट्रीय फोरम भी कहा गया था।

आई2यू2 समूह को महत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि पश्चिम एशिया में भारत के साथ अमेरिकी साझेदारी गेम चेंजर हो सकती है। यह बात पूर्व इजरायल के पूर्व एनएसए मेजर जनरल याकोव अमिद्रोर ने गत 14 जुलाई को फोरम की पहली उच्च स्तरीय बैठक से पहले कही। भारत सरकार ने मंगलवार 12 जुलाई को आई2यू2 नेताओं के वर्चुअल शिखर सम्मेलन की घोषणा करते हुए कहा कि यह समूह पानी, ऊर्जा, परिवहन, अंतरिक्ष, स्वास्थ्य और खाद्य सुरक्षा जैसे छह पारस्परिक रूप से पहचाने गए क्षेत्रों में संयुक्त निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए काम करेगा।

इजरायल  के पूर्व एनएसए ने कहा,  आई2यू2 दुनिया के हितों को ध्यान में रखकर बनाया गया है। इसमें इजरायल  और यूएई में रणनीतिक साझेदारी की घोषणा की उम्मीद है। उन्होंने कहा, भारत की भूमिका यूरोप और इजरायल  के साथ एक सेतु की है और पूरे संदर्भ में भारत एक बड़ा व्यापारिक भागीदार है।

नया क्वॉड

इसमें दो राय नहीं कि हाल के वर्षों में भारत ने इस इलाके में सम्पर्क बढ़ाया है। हाल में जर्मनी में हुई जी-7 की शिखर-बैठक में शामिल होने के बाद प्रधानमंत्री मोदी यूएई की संक्षिप्त-यात्रा पर भी गए थे। अमेरिका की दिलचस्पी इस बात में भी है कि इजरायल के रिश्ते इस क्षेत्र के देशों के साथ बेहतर हों। इसमें यूएई के अलावा सऊदी अरब की भूमिका भी है। इसमें यूएई, मोरक्को और बहरीन के साथ हुआ अब्राहमिक समझौता मददगार होगा। इस प्रक्रिया को आई2यू2 समूह बढ़ाएगा।

भारत के उपराष्ट्रपति की भूमिका

जगदीप धनखड़

उपराष्ट्रपति पद के लिए भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी के रूप में जगदीप धनखड़ का नाम सामने आने के बाद दो तरह की बातें सामने आई हैं। एक, धनखड़ से जुड़ी और दूसरी देश के उपराष्ट्रपति की भूमिका को लेकर। हालांकि राष्ट्रपति की तुलना में उपराष्ट्रपति पद छोटा है, पर राजनीतिक-प्रशासनिक जीवन में उसकी भूमिका ज्यादा बड़ी है, बल्कि संसदीय प्रणाली में भारत के उपराष्ट्रपति का पद अपने आप में अनोखा है। ब्रिटिश संसदीय प्रणाली में ऐसा सम्भव ही नहीं है, क्योंकि वहाँ राजा के बाद कोई उप-राजा नहीं होता। 

राष्ट्रपति की अनुपस्थिति में उपराष्ट्रपति उसकी भूमिका निभाता है। राष्ट्रपति की भूमिका कार्यपालिका-प्रमुख तक सीमित है, जबकि उपराष्ट्रपति की भूमिका विधायिका के साथ है। वह राज्यसभा का पदेन अध्यक्ष है। भारत के उपराष्ट्रपति की तुलना अमेरिकी उपराष्ट्रपति से की जा सकती है, जो सीनेट का अध्यक्ष भी होता है। अमेरिका में सीनेट राज्यों का प्रतिनिधि सदन है और भारत में भी राज्यसभा राज्यों का प्रतिनिधि सदन है। प्रतिनिधित्व के मामले में अमेरिकी सीनेट का स्वरूप वही है, जैसा बताया गया है, जबकि राज्यसभा का स्वरूप धीरे-धीरे बदल गया है।

देश के वर्तमान उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू का कार्यकाल 10 अगस्त को पूरा हो रहा है। उसके पहले 6 अगस्त को उपराष्ट्रपति पद का चुनाव होगा। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 63 में कहा गया है, भारत का एक उपराष्ट्रपति होगा। अनुच्छेद 64 में कहा गया है कि उपराष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन सभापति होगा, परन्तु किसी अवधि के दौरान उपराष्ट्रपति, अनुच्छेद 65 के अधीन राष्ट्रपति के रूप में कार्य करता है, उस अवधि के दौरान वह राज्यसभा के सभापति के पद के कर्तव्यों का पालन नहीं करेगा और वह अनुच्छेद 97 के अधीन राज्यसभा के सभापति को संदेय वेतन या भत्ते का हकदार नहीं होगा।

संविधान सभा में उपराष्ट्रपति पद से जुड़े उपबंधों को स्वीकार किए जाने के बाद 29, दिसम्बर 1948 को संविधान की दस्तावेज (ड्राफ्टिंग) समिति के अध्यक्ष भीमराव आम्बेडकर ने इस पद के व्यावहारिक स्वरूप को स्पष्ट करते हुए कहा कि हालांकि संविधान में उपराष्ट्रपति पद का उल्लेख है, पर वस्तुतः वह राज्यसभा का सभापति है। दूसरे शब्दों में वह लोकसभा अध्यक्ष का समतुल्य है।

इस पद के अतिरिक्त वह किसी कारण से राष्ट्रपति पद के रिक्त हो जाने पर राष्ट्रपति पद पर कार्य करेगा। अनुच्छेद 65(1) के अनुसार, राष्ट्रपति की मृत्यु, पदत्याग या पद से हटाए जाने या अन्य कारण से उसके पद में हुई रिक्ति की दशा में उपराष्ट्रपति उस तारीख तक राष्ट्रपति के रूप में कार्य करेगा, जिस तारीख को ऐसी रिक्ति को भरने के लिए इस अध्याय के उपबंधों के अनुसार निर्वाचित नया राष्ट्रपति अपना पद ग्रहण करता है।

अनुच्छेद 65(2) के अनुसार, जब राष्ट्रपति अनुपस्थिति, बीमारी  किसी अन्य कारण से अपने कर्तव्यों के निर्वहन में असमर्थ है, तब उपराष्ट्रपति उस तारीख तक उसके कर्तव्यों का निर्वहन करेगा, जिस तारीख क राष्ट्रपति अपने कर्तव्यों को फिर से संभालता है।

कोई भी नागरिक जिसकी आयु कम से कम 35 वर्ष है और किसी राज्य या केंद्र शासित क्षेत्र में पंजीकृत मतदाता है, इस पद के लिए प्रत्याशी बन सकता है। इसके लिए उसके नाम का प्रस्ताव कम से कम 20 सांसद करें और 20 सांसद उसके नाम का समर्थन करें। अनुच्छेद 66(2) के अनुसार उपराष्ट्रपति संसद के किसी सदन का या किसी राज्य के विधानमंडल के किसी सदन का सदस्य नहीं होगा। यदि संसद के किसी सदन का या किसी राज्य के विधानमंडल के किसी सदन का कोई सदस्य उपराष्ट्रपति निर्वाचित हो जाता है, तो यह समझा जाएगा कि उसने उस सदन में अपना स्थान उपराष्ट्रपति के रूप में अपने पद-ग्रहण की तारीख से रिक्त कर दिया है।

क्या से क्या हो गया श्रीलंका?


श्रीलंका में राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे ने जनता के दबाव में इस्तीफा दे दिया है। खबरों के मुताबिक वे मालदीव होते हुए सिंगापुर पहुंच गए हैं। प्रधानमंत्री रानिल विक्रमासिंघे को अंतरिम राष्ट्रपति पद की शपथ दिलाई गई है। देश में जनांदोलन का आज 99वाँ दिन है। शनिवार 9 जुलाई को राष्ट्रपति भवन में भीड़ घुस गई। इसके बाद गोटाबाया राजपक्षे ने इस्तीफ़े की घोषणा की। देश में राजनीतिक असमंजस है, आर्थिक स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। वहाँ सर्वदलीय सरकार बनाने की कोशिश हो रही है। अंतरिम राष्ट्रपति के शपथ लेने से समस्या का समाधान नहीं होगा। संसद को राष्ट्रपति चुनना होगा, जो गोटाबाया के शेष कार्यकाल को पूरा करे। उनका कार्यकाल 2024 तक है। 20 जुलाई को नए राष्ट्रपति का चुनाव होगा। इस जनांदोलन के पीछे सकारात्मकता भी दिखाई पड़ी है। भीड़ ने राष्ट्रपति भवन पर कब्जा जरूर किया, पर राष्ट्रीय सम्पत्ति को नष्ट करने की कोई कोशिश नहीं की, बल्कि उसकी रक्षा की। सेना ने भी आंदोलनकारियों के दमन का प्रयास नहीं किया।

अनेक कारण

राजनीतिक स्थिरता के बाद ही आईएमएफ से बेल आउट पैकेज को लेकर बातचीत हो सकती है। सबसे पहले हमें समझना होगा कि समस्या है क्या। समस्या के पीछे अनेक कारण हैं। विदेशी मुद्रा कोष खत्म हो गया है, जिसके कारण जरूरी वस्तुओं का आना बंद हो गया है। 2019 को हुए चर्च में हुए विस्फोट, कोविड-9 के कारण पर्यटन उद्योग को लगा धक्का, खेती में रासायनिक खादों का इस्तेमाल एकमुश्त खत्म करके ऑर्गेनिक खेती शुरू करने की नीति, इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए चीनी कर्ज को चुकाने की दिक्कतें और धीरे-धीरे आर्थिक गतिविधियों का ठप होना। सरकार रास्ते खोज पाती कि जनता का गुस्सा फूट पड़ा। पर समाधान राजनीतिक और प्रशासनिक गतिविधियों से ही निकलेगा।

दिवालिया देश

महीने की शुरुआत में प्रधानमंत्री रानिल विक्रमासिंघे ने कहा था कि देश दिवालिया हो चुका है। पेट्रोल और डीजल खत्म हो चुका है। परिवहन तकरीबन ठप है। शहरों तक भोजन सामग्री नहीं पहुँचाई जा सकती है। दवाएं उपलब्ध नहीं हैं। अस्पतालों में सर्जरी बंद हैं। विदेश से चीजें मंगवाने के लिए पैसा नहीं है। अच्छे खासे घरों में फाके शुरू हो गए हैं। स्कूल बंद हैं। सरकारी दफ्तरों तक में छुट्टी है। निजी क्षेत्र काम ही नहीं कर रहा है। इसके पहले अप्रेल के महीने में श्रीलंका सरकार ने कहा था कि वह 51 अरब डॉलर के विदेशी कर्ज का भुगतान करने की स्थिति में नहीं है। विदेश से पेट्रोल, दवाएं और जरूरी सामग्री खरीदने के लिए विदेशी मुद्रा नहीं है।

विदेशी मुद्रा

जनवरी में लगने लगा था कि विदेशी-मुद्रा कोष के क्षरण के कारण श्रीलंका में डिफॉल्ट की स्थिति पैदा हो जाएगी। राजपक्षे परिवार ने चीन और भारत से मदद माँगी। 15 जनवरी को विदेशमंत्री एस जयशंकर ने श्रीलंका के वित्तमंत्री बासिल राजपक्षे के साथ बातचीत की, जिससे स्थिति बिगड़ने से बची। दिसंबर में पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना ने श्रीलंका के साथ 1.5 अरब डॉलर का करेंसी स्वैप किया। 13 जनवरी को भारत ने फौरी तौर पर 90 करोड़ डॉलर के ऋण की घोषणा की थी, ताकि श्रीलंका खाद्य-सामग्री का आयात जारी रख सके। इस दोनों वित्तीय पैकेजों ने कुछ समय के लिए उसे बड़े संकट से बचा लिया, पर यह स्थायी समाधान नहीं था।

अनुशासनहीनता

वर्तमान बदहाली के पीछे राजनीतिक अनुशासनहीनता का हाथ है। 2019 में गोटाबाया राजपक्षा के राष्ट्रपति बनने के बाद आईएमएफ की उन मौद्रिक और राजकोषीय नीतियों को त्याग दिया गया, जो उसके तीन साल पहले इसी किस्म का संकट पैदा होने पर अपनाई गई थीं। श्रीलंका में सत्ता-परिवर्तन के पीछे लंबी जद्दो-जहद थी। नई सरकार ने आते ही तैश में या लोकप्रियता बटोरने के इरादे से टैक्सों और ब्याज में कमी कर दी। यह देखे बगैर की जरूरत किस बात की है। ऊपर से कोविड-19 ने परिस्थिति को बदल दिया। अब आईएमएफ के पास जाना भी राजनीतिक रूप से तमाचा होता। आईएमएफ की शर्तों की वे खुली आलोचना कर चुके थे और इसे संप्रभुता में हस्तक्षेप मानते रहे।  

देखते ही देखते तबाही

संकट तब पैदा हुआ, जब हालात सुधरने की आशा थी। महामारी के दौरान अंतरराष्ट्रीय विमान सेवाओं पर लगी रोक के कारण पर्यटन-कारोबार ठप हो गया था। पर्यटक अब आने लगे हैं, पर पहले के मुकाबले 20 फीसदी भी नहीं हैं। निर्यात बढ़ा, कंपनियों की आय बढ़ी, फिर भी अर्थव्यवस्था लंगड़ा गई। पुराने कर्जों को निपटाने में विदेशी मुद्रा का भंडार खत्म होने लगा। इससे पेट्रोल, रसोई गैस, गेहूँ और दवाओं के आयात पर असर पड़ा। रुपये की कीमत घटती गई, जिससे विदेशी सामग्री और महंगी हो गई। संकट पिछले साल के अंत में ही नजर आने लगा था। नवंबर 2021 में श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार मात्र 1.2 अरब डॉलर रह गया। दिसंबर में एक महीने के आयात के लायक एक अरब डॉलर की मुद्रा हाथ में थी। 18 जनवरी को 50 करोड़ डॉलर के इंटरनेशनल सॉवरिन बॉण्ड की अदायगी अलग से होनी थी, जिसके डिफॉल्ट की स्थिति पैदा हो गई थी। इससे बचने के लिए बाहरी मदद की जरूरत पड़ी।