Tuesday, June 15, 2021

जी-7 ने ‘इंटरनेट-शटडाउन’ पर शब्दावली भारत के सुझाव पर बदली?

बाएं आज के हिन्दू की लीड और दाएं कोलकाता के टेलीग्राफ की लीड

रविवार को सम्पन्न हुए जी-7 के शिखर सम्मेलन में भारत ने खुले समाज से जुड़े एक संयुक्त घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किए हैं। इसे लेकर कल भारतीय मीडिया में टिप्पणियाँ थीं कि भारत ने इंटरनेट शटडाउन-विरोधी इस घोषणापत्र पर दस्तखत कैसे कर दिए, जबकि 2019 में उसने जम्मू-कश्मीर में शटडाउन किया था। आज के हिन्दू की लीड है कि भारत के कहने पर इस घोषणापत्र की भाषा बदली गई और इसमें राष्ट्रीय-सुरक्षा को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के ऊपर रखा गया है।

मूलतः इस घोषणापत्र में ऑनलाइन और ऑफलाइन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तथा लोकतांत्रिक मूल्यों को बढ़ावा देने की बातें हैं, ताकि लोग भय और शोषण-मुक्त माहौल में रह सकें। इस घोषणापत्र में इन स्वतंत्रताओं में इंटरनेट की भूमिका को खासतौर से रेखांकित किया गया है। इस विषय पर चर्चा के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि लोकतंत्र और वैचारिक स्वतंत्रता की रक्षा के साथ भारत की सभ्यतागत प्रतिबद्धता है।

भारत ने इस घोषणापत्र पर हस्ताक्षर करने के पहले इस विषय पर अपनी राय भी रखी थी। मई के महीने में जी-7 विदेश मंत्रियों के सम्मेलन में भारत के विदेशमंत्री एस जयशंकर ने कहा था कि वैचारिक स्वतंत्रता की रक्षा के साथ-साथ इस स्वतंत्रता के दुरुपयोग, खासतौर से फ़ेकन्यूज़ और डिजिटल छेड़छाड़ के खतरों से बचने की जरूरत भी होगी।

हिन्दू की खबर के अनुसार भारत सरकार के सूत्रों का कहना है कि भारत के जोरदार-विरोध के बाद इंटरनेट-शटडाउन की आलोचना से जुड़ी शब्दावली में संशोधन किया गया। अगस्त 2019 में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी बनाए जाने के बाद राज्य में काफी समय तक इंटरनेट और मोबाइल टेलीफोन सेवाएं बंद रहीं। उसके बाद नागरिकता कानून के विरोध में हुए आंदोलन और जनवरी, 2021 में दिल्ली में किसान-आंदोलन के दौरान दिल्ली और असम में भी ऐसी पाबंदियाँ लगाई गई थीं। दुनिया के कुछ और देशों में भी इंटरनेट शटडाउन हुआ है। इसमें हांगकांग का शटडाउन उल्लेखनीय है।

वैक्सीन को पेटेंट-फ्री करने में दिक्कत क्या है?

इस साल जबसे दुनिया में कोरोना वैक्सीनेशन शुरू हुआ है, गरीब और अमीर देशों के बीच का फर्क पैदा होता जा रहा है। अमीर देशों में जहाँ आधी आबादी को टीका लग गया है, वहीं बहुत से गरीब देशों में टीकाकरण शुरू भी नहीं हुआ है। वैक्सीन उपभोक्ता सामग्री है, जिसकी कीमत होती है। गरीबों के पास पैसा कहाँ, जो उसे खरीदें। विश्व व्यापार संगठन के ट्रेड रिलेटेड इंटलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स (ट्रिप्स) इसमें बाधा बनते हैं। दवा-कम्पनियों का कहना है कि अनुसंधान-कार्यों को आकर्षक बनाए रखने के लिए पेटेंट जरूरी है।

भारत और दक्षिण अफ्रीका ने पिछले साल अक्तूबर में विश्व व्यापार संगठन में कोरोना वैक्सीनों को पेटेंट-मुक्त करने की पेशकश की थी। इसे करीब 100 देशों का समर्थन हासिल था। हालांकि अमेरिका ने केवल कोरोना-वैक्सीन पर एक सीमित समय के लिए छूट देने की बात मानी है, पर वैक्सीन कम्पनियों को इसपर आपत्ति है। यूरोपियन संघ ने भी आपत्ति व्यक्त की है।

ब्रिक्स भी आगे आया

इस महीने ब्रिक्स देशों के विदेशमंत्रियों के एक सम्मेलन में भारत और दक्षिण अफ्रीका के उस प्रस्ताव का समर्थन किया गया, जिसमें गरीब देशों के वैक्सीन देने, उनकी तकनीक के हस्तांतरण और उत्पादन की क्षमता के विस्तार में सहायता देने की माँग की गई है, ताकि इन देशों में भी बीमारी पर जल्द से जल्द काबू पाया जा सके।

यह पहला मौका है, जब ब्रिक्स देशों ने इस मामले में एक होकर अपनी राय व्यक्त की है। हालांकि अमेरिका ने शुरूआती झिझक के बाद इस सुझाव को मान लिया है, पर यूरोपियन यूनियन ने इसे स्वीकार नहीं किया है। ईयू ने गत 4 जून को डब्लूटीओ को एक प्रस्ताव दिया है, जिसके तहत टीकों के वैश्विक वितरण में तेजी लाने का सुझाव है, पर उसमें लाइसेंस से जुड़े नियमों में छूट देने की सलाह नहीं है।

Monday, June 14, 2021

नेतन्याहू अपदस्थ, इसराइली राजनीति में अस्थिरता का एक और दौर शुरू


अंततः रविवार 13 जून को इसराइली प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू को अपना पद छोड़ना पड़ा। उनके स्थान पर आठ पार्टियों के गठबंधन के नेता नेफ़्टाली बेनेट ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली है, पर लगता नहीं कि यह सरकार भी लम्बी चलेगी। इस अनुमान के पीछे कुछ बड़े कारण हैं। एक तो इस सरकार के पास बहुमत नाममात्र का है। रविवार को हुए मतदान में 120 सदस्यों के सदन में सरकार बेनेट को 60 और नेतन्याहू को 59 वोट मिले। एक सदस्य ने मतदान में भाग नहीं लिया। दूसरे, इस गठबंधन में वैचारिक एकता का भारी अभाव है। इसमें धुर दक्षिणपंथी, मध्यमार्गी और वामपंथियों के अलावा इसराइल के इतिहास में पहली बार एक इस्लामिक अरब पार्टी के सांसद सरकार में शामिल होने जा रहे हैं।

नई सरकार बनाने के लिए जो गठजोड़ बना है, उसमें विचारधाराओं का कोई मेल नहीं है। यह गठजोड़ नेतन्याहू के साथ पुराना हिसाब चुकाने के इरादे से एकसाथ आए नेताओं ने मिलकर बनाया है, जो कब तक चलेगा, कहना मुश्किल है। खासतौर से यदि विपक्ष का नेतृत्व नेतन्याहू जैसे ताकतवर नेता के हाथ में होगा, तो इसका चलना और मुश्किल होगा। इसराइल में आनुपातिक प्रतिनिधित्व की चुनावी प्रक्रिया की वजह से किसी एक पार्टी के लिए चुनाव में बहुमत जुटाना मुश्किल होता है। इसी वजह से वहाँ पिछले दो साल में चार बार चुनाव हो चुके हैं।

चुनावी फ्रॉड!

नेतन्याहू ने विपक्ष के सरकार बनाने के फैसले को लोकतांत्रिक इतिहास का सबसे बड़ा चुनावी फ्रॉड करार दिया है। उधर देश के सुरक्षा-प्रमुख ने राजनीतिक हिंसा होने की आशंका भी व्यक्त की है। नेतन्याहू ने यह आरोप विपक्षी दलों के चुनाव प्रचार के दौरान किए गए वायदों को लेकर लगाया है। गठबंधन बनाने में सफलता प्राप्त करने वाले नेफ़्टाली बेनेट ने चुनाव-प्रचार के दौरान कहा था कि हम वामपंथियों, मध्यमार्गी पार्टियों और अरब पार्टी के साथ गठबंधन नहीं करेंगे। अब उन्हीं दलों के साथ उन्होंने गठबंधन किया है। इसी को लेकर नेतन्याहू ने आरोप लगाया कि यह इलेक्शन फ्रॉड है।

जी-7 ने शुरू की चीन की घेराबंदी


रविवार को ब्रिटेन में सम्पन्न हुई जी-7 देशों की बैठक के एजेंडा में आधिकारिक रूप से तीन प्रमुख विषय थे-कोरोना, वैश्विक जलवायु और चीन। पर राजनीतिक दृष्टि से इस सम्मेलन का महत्व चीन के बरक्स दुनिया के लोकतांत्रिक देशों की रणनीति से जुड़ा था। इस सम्मेलन को लेकर चीन की जैसी प्रतिक्रिया आई है, उससे भी यह बात स्पष्ट है। इंग्लैंड के कॉर्नवाल में हुए सम्मेलन दौरान चीन में जारी मानवाधिकारों का मुद्दा भी उठा। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने इस मंच पर इस बात को दोहराया कि यह आशंका अभी खत्म नहीं हुई है कि दुनिया में कोरोना-संक्रमण चीनी-प्रयोगशाला से फैला हो। इस बैठक में वायरस की उत्पत्ति की निष्पक्ष जांच को लेकर मांग उठी।

कोरोना वायरस

जो बाइडेन ने कहा कि चीन ने वैज्ञानिकों को अपनी प्रयोगशालाओं तक जाने की इजाजत नहीं दी, जो कोरोना के स्रोत के बारे में अध्ययन के लिए जरूरी था। हालांकि मैं किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा हूँ, पर हमारी खुफिया एजेंसियां इस बात को लेकर आश्वस्त नहीं हैं कि वायरस चमगादड़ से फैला या प्रयोगशाला में बनाया गया। इस सवाल का जवाब ढूंढ़ना जरूरी है। बाइडेन ने यह भी कहा कि कोरोना महामारी के बाद की दुनिया में लोकतांत्रिक देशों और तानाशाही व्यवस्था वाले देशों के बीच टकराव साफ हुआ है।

हालांकि अमेरिका का इशारा चीन और रूस दोनों की ओर है, पर संकेत मिल रहे हैं कि बाइडेन रूस के साथ सम्पर्क बढ़ा रहे हैं और कोशिश कर रहे हैं कि चीन अलग-थलग हो जाए। इस सम्मेलन के बाद बुधवार को जिनीवा में उनकी रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ बातचीत होने वाली है। यह वार्ता काफी महत्वपूर्ण होगी।

जी-7 समूह में अमेरिका, फ्रांस, कनाडा, ब्रिटेन, जर्मनी, जापान और इटली शामिल हैं। ये सभी सदस्य देश बारी-बारी से सालाना शिखर सम्मेलन का आयोजन करते हैं। सम्मेलनों में यूरोपियन कौंसिल और यूरोपियन कमीशन के अध्यक्ष विशेष अतिथि के रूप में शामिल होते हैं।

Sunday, June 13, 2021

कांग्रेस का असंतोष-द्वार


कांग्रेस पार्टी एकबार फिर से संकट का सामना कर रही है। अगले साल के फरवरी-मार्च महीनों में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर में विधान सभा चुनाव होंगे। पिछले बुधवार को पूर्व केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद के पार्टी छोड़ने के बाद राजस्थान में सचिन पायलट खेमे का हौसला बढ़ा है। शुक्रवार को सचिन पायलट के पिता राजेश पायलट की पुण्यतिथि थी। पिछले साल उनकी पुण्यतिथि से पैदा हुए असंतोष ने फिर से सिर उठाया है। यह आक्रोश किस हद तक जाएगा, इसका पता अगले कुछ दिन में लगेगा। पार्टी हाईकमान ने अजय माकन, रणदीप सुरजेवाला और अविनाश पांडेय को जयपुर भेजा है। सचिन खुद शुक्रवार को दिल्ली आ गए हैं और हाईकमान के सम्पर्क में हैं। उनसे फौरन खतरा नजर नहीं आ रहा है, पर पार्टी में असंतोष है।

पंजाब और राजस्थान

पंजाब में नवजोत सिद्धू की महत्वाकांक्षाओं ने सिर उठाया है। मल्लिकार्जुन खड़गे के नेतृत्व में तीन सदस्यों की समिति ने हाईकमान को सुझाव दिया है कि राज्य में वैकल्पिक नेतृत्व तैयार करना चाहिए। कांग्रेस ने अपेक्षाकृत अच्छे परिणाम पंजाब में दिए हैं। इसके पीछे कैप्टेन अमरिंदर सिंह का कड़क नेतृत्व भी है। फिर भी बीजेपी से कांग्रेस में आए सिद्धू की इतनी हिम्मत कैसे होती है? इसके पीछे कारण है कि वे हाईकमान से रिश्ता बनाकर रखते हैं। एकबार वे कह भी चुके हैं कौन कैप्टेन अमरिंदर? मेरे कैप्टेन राहुल गांधी हैं।

उधर राजस्थान में सचिन पायलट के समर्थकों का कहना है कि पार्टी पंजाब में वैकल्पिक नेतृत्व की बात कर रही है और राजस्थान में हमारी उपेक्षा।  हाईकमान के सूत्र कह रहे हैं कि कोई बगावत राजस्थान में नहीं है। मंत्रिमंडल में खाली पड़े नौ पदों को जल्दी ही भरा जाएगा। इतने पदों के लिए करीब 40 दावेदार हैं। पायलट-समर्थक भी 30-35 हैं। अशोक गहलोत सरकार को बहुमत प्राप्त करने के लिए बसपा और निर्दलीय विधायकों का समर्थन लिया गया था। इनकी कुल संख्या 15 के आसपास है। उन्हें भी जगह देनी है।