Friday, April 23, 2021

मौके-बेमौके तमाशा क्यों बनते हैं केजरीवाल?

सतीश आचार्य का एक पुराना कार्टून, जो आज भी मौजूं है

आम आदमी पार्टी और उसके नेता अरविंद केजरीवाल की पहचान अराजक मुख्यमंत्री के रूप में पहले से थी, अब उनकी विश्वसनीयता खत्म होने का खतरा पैदा होता जा रहा है। महामारी के दौर में देश के दस सबसे त्रस्त राज्यों के मुख्यमंत्रियों साथ पीएम मोदी की बैठक के दौरान अरविंद केजरीवाल ने जो बातें कहीं, वे टीवी चैनलों पर लाइव दिखाई गईं। यह सब अनायास ही लाइव नहीं हुआ होगा। कहीं न कहीं उनके प्रचार-तंत्र ने चैनलों के साथ मिलकर काम किया होगा।

बहरहाल उन्होंने प्रोटोकॉल को तोड़कर जो किया, उससे उन्हें बदनामी ही मिलेगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनके व्यवहार से नाराज हुए हैं। सम्भव है केजरीवाल को इससे कोई फर्क न पड़े, पर राजनीतिक रूप से वे विरोधी दलों के बीच भी अविश्वसनीय व्यक्ति बनते जा रहे हैं। केजरीवाल ने पीएम मोदी से कहा कि कोरोना मरीजों के लिए ऑक्सीजन की कमी होने से बहुत बड़ी त्रासदी हो सकती है। हालात से निबटने के लिए राष्ट्रीय योजना की आवश्यकता है। दिल्ली को कम ऑक्सीजन मिल रहा है। साथ ही उन्होंने एक देश एक वैक्सीन प्राइस की बात कही।

सरकारी सूत्रों के अनुसार पहली बार प्रधानमंत्री के साथ मुख्यमंत्रियों की बातचीत को लाइव टीवी पर दिखाया गया। सरकारी सूत्रों का कहना है कि केजरीवाल ने पीएम-सीएम संवाद का इस्तेमाल राजनीति के लिए किया। केजरीवाल ने तथ्य जानते हुए भी वैक्सीन की कीमत को लेकर झूठ फैलाया। उन्होंने ऑक्सीजन को एयरलिफ्ट करने का मुद्दा उठाया। शायद उन्हें पता नहीं था कि पहले से ही ऑक्सीजन एयरलिफ्ट की जा रही है। उनका पूरा भाषण समस्या के हल को नहीं बता रहा था, बल्कि वह राजनीति से प्रेरित और जिम्मेदारियों से भागने वाला था।

यूट्यूब-पत्रकारिता के खुलते दरवाजे


यूट्यूब-पत्रकारिता ने अभिव्यक्ति और सूचना के द्वार खोले हैं। अनेक पत्रकारों के चैनल सामने आए हैं। खबरों और विचार से ही नहीं जीवन के सभी क्षेत्रों से जुड़े चैनल सामने आ रहे हैं। यह बहुत अच्छा है और इससे बहुत सी नई बातों को सामने आने का मौका मिल रहा है। जीवन, समाज, संस्कृति, पर्यटन, खान-पान जैसे तमाम विषयों पर बहुत अच्छी बातें डिजिटल मीडिया के मार्फत दिखाई पड़ रही हैं। स्थानीय स्तर पर ऐसी जगहों से खबरें आ रहीं हैं, जहाँ मुख्यधारा के पत्रकार तैनात नहीं होते हैं। 

बावजूद इसके मुझे विचार और अभिव्यक्ति को लेकर एक खतरा दिखाई पड़ रहा है। वह खतरा हर जगह है और यूट्यूब पर और ज्यादा है। आप फेसबुक पर भी देखें। कई तरह के खेमे हैं। वे खेमों में ही यकीन करते हैं। संतुलित राय में बहुत कम लोगों की दिलचस्पी है। हाँ प्रचार के लिए सत्य-निष्ठा और ऑब्जेक्टिविटी जैसे शब्दों का इस्तेमाल सभी करते हैं और इससे  कोई किसी को रोक नहीं सकता।

बहरहाल यह व्यक्तियों की प्राथमिकता पर निर्भर करता है कि वे किस राय को चुनते हैं, पर खेमेबाज़ी किस तरह विचार को प्रभावित करती है, इसे आप यूट्यूब पर देखें। यूट्यूब पर विज्ञापन दो आधार पर मिलते हैं। एक, आपके सब्स्क्राइबर कितने हैं और दूसरे आपके वीडियो को कितने लोगों ने देखा। इसका व्यावहारिक अर्थ है कि यूट्यूब पर आप किसी राजनीतिक, व्यावसायिक या किसी अन्य प्रकार के समूह से जुड़ें, और उसके लिए काम करें। सफलता की सम्भावनाएं तभी ज्यादा हैं।

एक जमाने में चुनाव के एक- दो महीने पहले से छोटे-छोटे अखबार निकलने लगते थे। वैसा ही है। यह वही प्रचारक-पत्रकारिता है, जिसे लेकर मेरे मन में मुख्यधारा की पत्रकारिता को लेकर पहले से अंदेशा है। मूल्यों का यह अंतर्विरोध भारत में सदा से रहा है। मेरे पास विदेशी पत्रकारिता का अनुभव नहीं है। अलबत्ता कुछ प्रसंग जरूर याद हैं, जब पत्रकारिता की मूल्य-बद्धता की परीक्षा हुई। ऐसी ही परीक्षा भारत में भी हुई है। चूंकि 1947 के पहले की हमारी पत्रकारिता राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़ी रही, इसलिए बहुत सी बातें उसमें ही छिपी रह गईं।

मेडिकल-ऑक्सीजन की आपूर्ति बढ़ेगी


कोरोना की दूसरी लहर और स्वास्थ्य-प्रणाली को लेकर उठे सवालों के परिप्रेक्ष्य में केंद्र सरकार सक्रिय हुई है। कल प्रधानमंत्री ने इस सिलसिले में बैठकों में भाग लिया और आज भी बैठकें हो रही हैं। संकट की इस स्थिति में गुरुवार को प्रधानमंत्री ने हस्तक्षेप करके अधिकारियों को निर्देश दिया कि ऑक्सीजन का उत्पादन बढ़ाया जाए। इस बीच गृह मंत्रालय ने हस्तक्षेप करके राज्यों को निर्देश दिया कि वे ऑक्सीजन की वितरण योजना का ठीक से पालन करें। प्रधानमंत्री आज भी कोविड-19 की स्थिति पर अधिकारियों और राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ विचार-विमर्श कर रहे हैं। 

कोरोना की दूसरी लहर का तेज हमला एक तरफ से हो ही रहा था कि अस्पतालों में बिस्तरे कम होने और वेंटीलेटरों और ऑक्सीजन की कमी की खबरें आने लगीं। ऑक्सीजन की कमी खासतौर से चार राज्यों, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा और गुजरात से सुनाई पड़ी। ये चारों राज्य राजनीति दृष्टि से भी संवेदनशील हैं। महामारी के दौर में प्राणवायु की इस किल्लत ने त्राहि-त्राहि मचा दी है। इसबार के संक्रमण में सबसे ज्यादा परेशानी साँस को लेकर है। शरीर में ऑक्सीजन की कमी तेजी से होने लगती है। ऐसे में ऑक्सीजन देने की जरूरत होती है।

Thursday, April 22, 2021

दूसरी लहर और सरकारी भूमिका पर सवाल

 


देश में कोविड-19 संक्रमण की दूसरी लहर इस साल 28 मार्च को होली के चार-पाँच दिन बाद तक कम से कम उत्तर भारत के लोगों को नजर नहीं आ रही थी। पिछले 15 दिनों में इसकी शिद्दत का पता लगा और पिछले एक हफ्ते में इसकी भयावहता सामने आई है। बीमारों की असहायता को देखते हुए स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर जनता की नाराजगी जायज है। पहली नजर में इसके लिए सरकारें ही जिम्मेदार हैं। पर इसे राजनीतिक रंग देना भी ठीक नहीं। कई तरह की गलत सूचनाएं पिछले कुछ दिनों में राजनेताओं के ट्विटर हैंडलों से जारी हुई हैं। शायद उन्हें लगता है कि इसका राजनीतिक लाभ उन्हें मिलेगा।  

आज के टाइम्स ऑफ इंडिया ने अपने सम्पादकीय में खासतौर से ऑक्सीजन की कमी का उल्लेख किया है। अखबार ने लिखा है कि कोविड-19 के इलाज रेमडेसिविर जैसी दवा की उतना भूमिका नहीं है, जितनी बड़ी भूमिका ऑक्सीजन की है। पर पिछले एक साल में ज्यादा अस्पतालों ने हवा से ऑक्सीजन एकत्र करने वाले संयंत्रों को नहीं लगाया। अब जब इस मामले की समीक्षा करने का समय आएगा, तब केंद्र और राज्य सरकारों को सार्वजनिक-स्वास्थ्य पर कम बजट का जवाब देना होगा। उधर ऑक्सीजन की सप्लाई को लेकर राज्यों के बीच विवाद खड़े हो गए हैं। केंद्र को इसमें समन्वय करना होगा। साथ ही राजनीति को पीछे रखना होगा।

Tuesday, April 20, 2021

ईरान और सऊदी वार्ता से पश्चिम एशिया में माहौल सुधरने की सम्भावना

 


पश्चिम एशिया में दो परम्परागत प्रतिस्पर्धी सऊदी अरब और ईरान के वरिष्ठ अधिकारियों के बीच करीब पाँच साल बाद पहली बार सीधी बात हुई है। बताया जा रहा है कि इराक की राजधानी बग़दाद में हुई इस बैठक में दोनों देशों के बीच रिश्तों को सामान्य बनाने पर विमर्श हुआ। दोनों देशों ने करीब पाँच साल पहले अपने राजनयिक रिश्ते तोड़ लिए थे।

फाइनेंशियल टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक बग़दाद में इसी महीने हुई इस बैठक में लंबे अंतराल के बाद पहली बार गंभीर बातचीत हुई है। रिपोर्ट के मुताबिक़ सऊदी अरब की ओर से इस वार्ता का नेतृत्‍व खुफिया प्रमुख खालिद बिन अली अल हुमैदान ने किया। बातचीत की पहल इराक के प्रधानमंत्री मुस्तफा अल क़दीमी ने की है। इस खुफिया बैठक के बारे में सऊदी अरब ने कोई टिप्पणी नहीं की है। ईरानी वैबसाइट पार्सटुडे ने फाइनेंशियल टाइम्स का हवाला देते हुए इस खबर को प्रकाशित जरूर किया है, पर ईरान सरकार ने फौरन कोई औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं दी।

बाद में इसी वैबसाइट पर प्रकाशित एक रिपोर्ट में ईरान के विदेश विभाग के प्रवक्ता सईद ख़तीबज़ादे ने कहा कि ईरान और सऊदी अरब के मध्य वार्ता दोनों देशों के लोगों के हित में है और वह क्षेत्रीय शांति व सुरक्षा में मददगार बनेगी। उन्होंने इराक़ में ईरान और सऊदी अरब की वार्ता की रिपोर्टों के बारे में कहा कि हमने संचार माध्यमों में देखा कि इस बारे में विरोधाभासी ख़बरें प्रकाशित हुई हैं। सऊदी अरब के साथ वार्ता का ईरान स्वागत करता है और यह चीज़ दोनों देशों के लोगों के हित में है।

इराकी पहल

इराक़ी प्रधान मंत्री अल-काज़मी ने सऊदी शाह सलमान के निमंत्रण पर पिछले महीने रियाज़ का दौरा किया था, जहां इस वार्ता का ख़ाका तैयार किया गया था। इस रिपोर्ट में एक इराक़ी अधिकारी के हवाले से उल्लेख किया गया है कि बग़दाद ने ईरान-मिस्र और ईरान-जॉर्डन के बीच संपर्क का एक चैनल स्थापित किया है। हाल में सऊदी विदेश मंत्री ने कहा था कि विश्वास बढ़ाने के लिए खाड़ी के अरब देशों से वार्ता हो सकती है। इस रिपोर्ट में एक इराक़ी अधिकारी के हवाले से उल्लेख किया गया है कि बग़दाद ने ईरान-मिस्र और ईरान-जॉर्डन के बीच संपर्क का एक चैनल स्थापित किया है।