Wednesday, January 23, 2013

शिन्दे जी ने यह क्या कह दिया?

हिन्दू में सुरेन्द्र का कार्टून
कांग्रेस के साथ दिक्कत यह है कि कितनी भी अच्छी स्क्रिप्ट हो, कहानी के अंत में एंटी क्लाइमैक्स हो जाता है। जयपुर में राहुल गांधी के भावुक वक्तव्य और पार्टी की नई दिशा के सकारात्मक  इशारों के बावज़ूद सुशील कुमार शिन्दे के छोटे से वक्तव्य ने एजेंडा बदल दिया। चर्चा जिन बातों की होनी चाहिए थी, वे पीछे चली गईं और बीजेपी को अच्छा मसाला मिल गया। जैसे 2007 के गुजरात चुनाव में  सोनिया गांधी के मौत के सौदागर वक्तव्य ने काम किया लगभग वही काम शिन्दे जी के वक्तव्य ने किया है।

ऐसा नहीं कि शिन्दे जी नादान हैं। और न दिग्विजय सिंह अबोध है। भगवा आतंकवाद शब्द का प्रयोग इसके पहले तत्कालीन गृहमंत्री पी चिदम्बरम भी कर चुके हैं। ये वक्तव्य कांग्रेस की योजना का हिस्सा हैं। पर इस बार तीर गलत निशाने पर जा लगा है। खासकर हाफिज सईद के बयान से इसे नया मोड़ मिल गया। जनार्दन द्विवेदी ने पार्टी की ओर से तत्काल सफाई पेश कर दी, पर नुकसान जो होना था वह हो गया। कांग्रेस इधर एक तरफ संगठित नज़र आ रही थी और दूसरी ओर गडकरी प्रकरण के कारण भाजपा का जहाज हिचकोले ले रहा था। पर भाजपा को इसके कारण सम्हलने का मौका मिल गया। इनकम टैक्स विभाग के छापों के बाद गडकरी के लिए टिके रहना और मुश्किल हो गया, पर इसका लाभ भाजपा को ही मिला। अब वह अपेक्षाकृत बेहतर संतुलित हो गई है, हालांकि उसका जहाज दिशाहीन है।

Monday, January 21, 2013

राहुल के पदारोहण से आगे नहीं गया जयपुर चिंतन


राहुल गांधी के उपाध्यक्ष बनने मात्र से कांग्रेस का पुनरोदय नहीं हो जाएगा, पर इतना ज़रूर नज़र आता है कि कांग्रेस अपनी खोई ज़मीन को फिर से हासिल करने की कोशिश कर रही है। राहुल चाहेंगे तो वे उन सवालों को सम्बोधित करेंगे जो आज प्रासंगिक हैं। राजनीति में इस बात का महत्व होता है कि कौन जनता के सामने अपनी इच्छा व्यक्त करता है। फिलहाल कांग्रेस के अलावा दूसरी कोई पार्टी दिल्ली में सरकार बनाने की इच्छा व्यक्त नहीं कर रहीं है। सम्भव है कल यह स्थिति न रहे, पर आज बीजेपी यह काम करती नज़र नहीं आती। बीजेपी ने राहुल गांधी के उपाध्यक्ष बनाए जाने पर वंशानुगत नेतृत्व का नाम लेकर जो प्रतिक्रिया व्यक्त की है, वह नकारात्मक है। कांग्रेस यदि वंशानुगत नेतृत्व चाहती है तो यह उसका मामला है। आप स्वयं को उससे बेहतर साबित करें। अलबत्ता कांग्रेस पार्टी ने जयपुर में वह सब नहीं किया, जिसका इरादा ज़ाहिर किया गया था। अभी तक ऐसा नहीं लगता कि यह पार्टी बदलते समय को समझने की कोशिश कर रही है। लगता है कि जयपुर शिविर केवल राहुल गांधी को स्थापित करने के वास्ते लगाया गया था। कांग्रेस को गठबंधन की राजनीति और देश के लिए उपयुक्त आर्थिक और प्रशासनिक नीतियों की ज़रूरत है। साथ ही उन नीतियों को जनता तक ठीक से पहुँचाने की ज़रूरत भी है। फिलहाल लगता है कि कांग्रेस विचार-विमर्श से भाग रही है। उसके मंत्री फेसबुक और सोशल मीडिया को नकारात्मक रूप में देख रहे हैं, जबकि सोशल मीडिया उन्हें मौका दे रहा है कि अपनी बातों को जनता के बीच ले जाएं। पर इतना ज़रूर ध्यान रखें कि देश के नागरिक और उनके कार्यकर्ता में फर्क है। नागरिक जैकारा नहीं लगाता। वह सवाल करता है। सवालों के जवाब जो ठीक से देगा, वह सफल होगा। 

Friday, January 18, 2013

डॉ सॉक ने कहा, कैसा पेटेंट?


जिस तरह रुक्सा खातून के नाम से बहुत कम लोग परिचित हैं उसी तरह  जोनास एडवर्ड सॉक (28 अक्टूबर1913-23 जून 1995) के नाम से भी बहुत ज्यादा लोग परिचित नहीं हैं। परिचित हैं भी तो इस बात से कि उन्होंने पोलियो का वैक्सीन तैयार किया। हालांकि आज इस वैक्सीन में सुधार हो चुका है, पर उन्हें श्रेय जाता है ऐसी बीमारी का टीका तैयार करने का जो 1955 के पहले तक सार्वजनिक स्वास्थ्य के सामने खड़े सबसे बड़े खतरे के रूप में पहचानी जाती थी।जोनास एडवर्ड सॉक के यहूदी माता-पिता ज्यादा पढ़े लिखे नहीं थे, पर उनकी तमन्ना थी कि उनका बेटा कोई अच्छा काम करे। न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन में सॉक ने डॉक्टरी की पढ़ाई की, पर वे विलक्षण इस बात में साबित हुए कि उन्होंने रिसर्च का रास्ता पकड़ा।

सन 2009 में बनी एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म के अनुसार सन 1952 में अमेरिका में पोलियो की महामारी ने तकरीबन 58,000 लोगों को निशाना बनाया। उस वक्त अमेरिकी लोगों के मन में एटम बम के बाद दूसरी सबसे खतरनाक चीज पोलियो की बीमारी थी। अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी रूज़वेल्ट इसके सबसे प्रसिद्ध शिकारों में एक थे। इसके सबसे ज्यादा पीड़ित बच्चे थे, जो बच भी जाते तो पूरा जीवन विकलांग के रूप में बिताते थे। सॉक की वैक्सीन बनने के बाद इसके फील्ड ट्रायल भी विलक्षण थे। अमेरिका के 20,000 डॉक्टरों और सार्वजनिक स्वास्थ्य कर्मियों, 64,000 स्कूल कर्मचारियों, 2,20,000 वॉलंटियरों और 18,00,000 बच्चों ने इसके परीक्षण में हिस्सा लिया। 12 अप्रेल 1955 को जब इस वैक्सीन की सफलता की घोषणा हुई तो सॉक को चमत्कारिक व्यक्ति के रूप में याद किया गया। वह दिन राष्ट्रीय अवकाश जैसा हो गया। और जब एक टीवी इंटरव्यू में सॉक से सवाल किया गया कि इस टीके का पेटेंट किसके नाम है, सॉक ने जवाब दिया, "कोई पेटेंट नहीं, क्या आप सूरज को पेटेंट करा सकते हैं?"("There is no patent. Could you patent the sun?")

सॉक के जीवन काल में ही एड्स की बीमारी दुनिया में प्रवेश कर चुकी थी और उन्होंने जीवन के अंतिम वर्ष उसकी वैक्सीन तैयार करने पर लगाए। वे यह काम पूरा कर नहीं पाए।

डॉ सॉक ने पेटेंट से इनकार क्यों किया
ओपन माइंड डॉ सॉक का इंटरव्यू

आपने रुक्सा खातून का नाम सुना है?


यह तस्वीर रुक्सा खातून की है। इस साल 12 जनवरी को भारत ने पोलियो की बीमारी से मुक्ति के दो साल पूरे कर लिए। हाल में खबर आई थी कि देश में पोलियो की आखिरी शिकार रुक्सा खातून नाम की छोटी सी लड़की को पैरों में सर्जरी की ज़रूरत है। पोलियों के कारण उसके दोनों पैर बराबर नहीं हैं। कुछ साल पहले तक पोलियो एक भयानक बीमारी थी। पल्स पोलियो अभियान केवल टीकाकरण के लिहाज से ही नहीं मानवीय प्रश्नों पर संचार माध्यमों के इस्तेमाल के लिहाज से दुनिया के सफलतम कार्यक्रमों में से एक है। पोलियो के टीके का विरोध भी हुआ, कोल्ड चेन से लेकर गाँव-गाँव जाने की दिक्कतें भी सामने आईं, पर भारत ने इसे सफल बनाकर दिखाया। दो साल पहले तक पाकिस्तान, अफगानिस्तान, भारत और नाइजीरिया अंग्रेजी में अपने नाम के पहले अक्षरों के आधार पर 'पेन'(PAIN) देश कहलाते थे। भारत का नाम इनमें से हट गया है। शेष देशों का नाम भी हट जाएगा। जब हम निश्चय करके एक बीमारी को खत्म कर सकते हैं तो क्या अपनी तमाम बीमारियों को, शारीरिक, मानसिक, सांस्कृतिक, खत्म नही कर सकते? कर सकते हैं। ज़रूर कर सकते हैं। नीचे कुछ जानकारियाँ देखें और विचार करें।

Tuesday, January 15, 2013

दोनों ओर गरज़ते लाउडस्पीकरों के गोले




हिन्दू में प्रकाशित सुरेन्द्र का कार्टून जम्मू-कश्मीर में नियंत्रण रेखा पर व्याप्त तनाव को अच्छी तरह व्यक्त करता है। दोनों देशों के लाउडस्पीकर तोप के गोलों का काम कर रहे हैं। यह भी एक सच है कि दोनों देश तनाव के किसी भी मौके का फायदा उठाने से नहीं चूकते। बहरहाल जम्मू-कश्मीर में नियंत्रण रेखा पर तनाव का पहला असर हॉकी इंडिया लीग पर पड़ा है। पाकिस्तानी खिलाड़ियों को खेलने से रोक दिया गया है। लगता है कुछ दिन तनाव दूर करने में लगेंगे। हमें इसे स्वीकार करना चाहिए कि हमारा मीडिया तमाम सही मसलों को उठाता है, पर हर बात के गहरे मतलब निकालने के चक्कर में असंतुलन पैदा कर देता है। भारत-पाक मसलों पर तो यों भी आसानी से तनाव पैदा किया जा सकता है। नियंत्रण रेखा पर तनाव कम होने में अभी कुछ समय लगेगा। बेशक हमारे सैनिकों की मौत शोक और नाराज़गी दोनों का विषय है। उससे ज्यादा परेशानी का विषय है सैनिक की गर्दन काटना। यह मध्य युगीन समझ है और पाकिस्तान को अपनी सेना के अनुशासन पर ध्यान देना चाहिए। अलबत्ता इस समय दोनों देशों के बीच झगड़े और तनाव का कोई कारण नहीं है। यह बात अगले दो-तीन हफ्ते में स्पष्ट हो जाएगी। भारत सरकार पर भी लोकमत का भारी दबाव है। 

जम्मू-कश्मीर में नियंत्रण रेखा पर पिछले दस-बारह दिन से गोलियाँ चल रहीं हैं। भारत के दो सैनिकों की हत्या के बाद से देश में गुस्से की लहर है। सीमा पर तैनात सैनिक नाराज़ हैं। वे बदला लेना चाहते हैं। फेसबुक और ट्विटर पर कमेंट आ रहे हैं कि भारत दब्बू देश है। वह कार्रवाई करने से घबराता है। हालांकि भारत ने पाकिस्तान के सामने कड़े शब्दों में अपना विरोध व्यक्त किया है, पर जनता संतुष्ट नहीं है। सैनिकों की हत्या से ज्यादा फौजी की गर्दन काटने से जनता नाराज़ है। पर हमें समझना होगा कि यह घटना क्या जान-बूझकर की गई है? क्या पाकिस्तानी सेना या सरकार का इसमें हाथ है? या यह स्थानीय स्तर पर नासमझी में हुई घटना है? भारत को एक ज़िम्मेदार देश की भूमिका भी निभानी है। केवल आवेश और भावनाओं से काम नहीं होता।