हिन्दू में सुरेन्द्र का कार्टून |
Friday, April 27, 2012
वैचारिक भँवर में फँसी कांग्रेस
Tuesday, April 24, 2012
अक्षय तृतीया पर हिन्दू का जैकेट
भारत के अखबारों के पास शानदार अतीत है और आज भी अनेक अखबार अपने पत्रकारीय कर्म का बखूबी इस्तेमाल कर रहे हैं। इनमें मैं हिन्दू को सबसे आगे रखता हूँ। पहले भी और आज भी। अखबार के सम्पादकीय दृष्टिकोण की बात छोड़ दें तो उसकी किसी बात से असहमति मुझे कभी नहीं हुई। हाल के वर्षों में हिन्दू व्यावसायिक दौड़ में भी शामिल हुआ है और बहुत से ऐसे काम कर रहा है, जो उसने दूसरे अखबारों की देखादेखी या व्यावसायिक दबाव में किए होंगे। पर ऐसा मैने नहीं देखा कि सम्पादक अपने अखबार की व्यावसायिक नीतियों और सम्पादकीय नीतियों के बरक्स अपनी राय पाठकों के सामने रखे।
Monday, April 23, 2012
राजनीतिक दलदल में आर्थिक उदारीकऱण
प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार कौशिक बसु ने भारतीय राजनीति के संदर्भ में जो कुछ कहा वह उनके गले पड़ गया और तकरीबन उन्हीं कारणों से जिनका जिक्र उन्होंने अपने वक्तव्य में किया था उन्हें अपनी बात वापस लेनी पड़ी। सरकार को भी अपनी सफाई में साबित करना पड़ा कि हम कारगर हैं और काम कर रहे हैं। पर क्या किसी को दिखाई नहीं पड़ा कि रेलमंत्री दिनेश त्रिवेदी ने रेल बजट में जो प्रस्ताव पेश किए थे वे किसी कारण से बदल गए। वे कौन से कारण थे? उसके पहले सरकार को खुदरा बाजार में विदेशी निवेश की अनुमति देने का आदेश वापस लेना पड़ा।
Sunday, April 22, 2012
अग्नि ज़रूरी है उसकी तपिश ज़रूरी नहीं
पिछले बुधवार को भारतीय मीडिया में सुबह से ही अग्नि-5 के परीक्षण की तैयारियों का विवरण जिस तरह आ रहा था उससे लगता है कि किसी स्तर पर इस खबर को सायास ओवरप्ले करने का फैसला किया गया था। पिछले कुछ समय से सेना और रक्षा व्यवस्था को लेकर नकारात्मक बातें मीडिया में आ रही थीं। शायद इस परीक्षण से उनका असर कुछ कम हो। बुधवार की शाम परीक्षण नहीं हो पाया, क्योंकि मौसम साथ नहीं दे रहा था, पर गुरुवार की सुबह परीक्षण सफल हो गया। उसके बाद दिनभर अग्नि की खबरें छाई रहीं।
Friday, April 20, 2012
क्षेत्रीय क्षत्रपों का राष्ट्रीयकरण
ऐसे चित्र आपको कई बार दिखाई पड़ेंगे, सिर्फ चेहरे बदलते रहेंगे |
म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन ऑफ दिल्ली के हाल में हुए चुनाव में कांग्रेस की पराजय हुई। इसे बीजेपी की जीत भी कह सकते हैं। बीजेपी के खिलाफ एंटी इनकम्बैंसी फैक्टर जितना महत्वपूर्ण हो सकता था, नहीं हुआ। पर क्या नगरपालिका चुनाव को महत्व देना चाहिए? क्या उसका कोई राष्ट्रीय महत्व है? पालिका चुनाव में तो मुद्दे ही कुछ और होते हैं। दिल्ली के पहले मुम्बई नगर निगम के चुनाव में भी कांग्रेस की पराजय हो चुकी है।
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