Wednesday, June 9, 2010

कैसा विश्व कप?

बेशक दक्षिण अफ्रीका में हो रहे विश्व कप फुटबॉल के फाइनल राउंड में दुनिया की सर्वश्रेष्ठ टीमें उतर रहीं हैं, पर इसे विश्व कप कहने के पहले सोचें। इसमे न चीन की टीम है न भारत की। पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ईरान, बांग्लादेश, इंडोनेशिया, मलेशिया और रूस भी नहीं। सबसे ज्यादा टीमें युरोप की हैं, क्योंकि सबसे बड़ा कोटा युरोप का है। दुनिया की काफी बड़ी आबादी का प्रतिनिधित्व इसमें नहीं है। और न यह खेल के स्तर का परिचायक है।

युरोप में फुटबॉल बहुत खेला जाता है। सारी दुनिया के अच्छे खिलाड़ियों को वे खरीद लाते हैं। पर युरोप का क्षय हो रहा है। उसे खेल की जो अर्थ व्यवस्था चला रही है, वह इंसानियत के लिए बहुत उपयोगी नहीं है।
खेल का कृत्रिम बिजनेस सोसायटी को कुछ देता नहीं। विश्व कप के सहारे दक्षिण अफ्रीका में कुछ आर्थिक गतिविधियाँ होंगी। परिवहन और यातायात सुविधाएं बढ़ेंगी, पर्यटन स्थल विकसित होंगे।  पर अफ्रीका के रूपांतरण के लिए बड़े स्तर पर आर्थिक बदलाव की ज़रूरत होगी।

हमारे लिए इसमें एक संदेश है कि हम खेल को व्यवस्थित करें। जनता का ध्यान खींचने के लिए खेल से बेहतर कुछ नहीं, पर खेल माने आईपीएल नहीं। और खेल माने ऐयाशी भी नहीं।
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