पिछले हफ्ते राष्ट्रीय जाँच एजेंसी ने जम्मू-कश्मीर में आतंकी गतिविधियों
को चलाने के लिए पाकिस्तान से पैसा लाने की साजिश के सिलसिले में कुछ लोगों को
गिरफ्तार किया है. एजेंसी ने अपनी जाँच में कश्मीर की घाटी के करीब चार दर्जन ऐसे
किशोरों का पता लगाया है जो नियमित रूप से सुरक्षा बलों पर पत्थर मारने का काम
करते हैं.
इन किशोरों के बारे में दूसरी बातों के अलावा यह बात भी पता लगी कि वे वॉट्सएप
ग्रुपों के माध्यम से एक-दूसरे से जुड़े हैं. इन ग्रुपों को पाकिस्तान में बैठे
लोग चलाते हैं. ये लोग एक तरफ तो बच्चों को बरगलाने के लिए भड़काने वाली सामग्री
डालते हैं और दूसरी तरफ पत्थर मारने से जुड़े कार्यक्रमों और दूसरे निर्देशों से
इन्हें परिचित कराते हैं. वॉट्सएप जैसे एनक्रिप्टेड संदेशों को पकड़ना आसान भी
नहीं है.
सन 2014 में ट्विटर ने पाकिस्तानी संगठन लश्करे तैयबा के अमीर हाफिज
सईद का ट्विटर अकाउंट सस्पेंड किया. इसके कुछ समय बाद ही हाफिज सईद के तीन नए
अकाउंट तैयार हो गए. भारत विरोधी प्रचार चलता रहा. उन्हीं दिनों आईएस के एक ट्वीट
हैंडलर की बेंगलुरु में गिरफ्तारी के बाद जो बातें सामने आईं उनसे साबित हुआ कि ‘सायबर
आतंकवाद’ का खतरा उससे कहीं ज्यादा बड़ा है, जितना सोचा जा
रहा था.
ब्रिटेन के जीसीएचक्यू (गवर्नमेंट कम्युनिकेशंस
हैडक्वार्टर्स) प्रमुख रॉबर्ट हैनिगैन के अनुसार फेसबुक और ट्विटर आतंकवादियों और
अपराधियों के कमांड एंड कंट्रोल नेटवर्क बन गए हैं. फाइनेंशियल टाइम्स में
प्रकाशित एक लेख में उन्होंने बताया कि आईएस (इस्लामिक स्टेट) ने वैब का पूरा
इस्तेमाल करते हुए सारी दुनिया से ‘भावी जेहादियों’ को प्रेरित-प्रभावित करना शुरू
कर दिया है.
सायबर आतंकी अब अपनी पहचान छिपाने में भी कामयाब हो रहे हैं.
वे ऐसे एनक्रिप्शन टूल्स का इस्तेमाल कर रहे हैं जो पहले केवल सरकारी एजेंसियों को
ही उपलब्ध थे. हालांकि अब इस्लामिक स्टेट की जमीनी गतिविधियों पर काफी रोक लग चुकी
है, पर सोशल मीडिया में उनकी गतिविधियाँ अब भी चल रहीं हैं.
आईएस के कार्यकर्ता फेसबुक, यूट्यूब, वॉट्सएप, ट्विटर, इंस्टाग्राम, टम्बलर, इंटरनेट मीम
और सोशल मीडिया के दूसरे प्लेटफॉर्मों का भरपूर इस्तेमाल कर रहे हैं. वे हर रोज
तमाम वीडियो, फोटो और प्रचार संदेश अपलोड कर रहे हैं. जो
काम वे युद्ध के मैदान में नहीं कर पा रहे हैं वह सोशल मीडिया के मैदान में आसानी
से हो जा रहा है. यह केवल आतंकी गिरोहों की बात है. दूसरे अपराधी गिरोह अपने तरीके
से सक्रिय हैं.
जम्मू-कश्मीर में भारतीय सेना ने हाल में अपनी कार्रवाई
तेज की है. इसके विरोध में ट्विटर और फेसबुक में विरोध के स्वर सुनाई पड़ने लगे
हैं. ऐसे में लोकतांत्रिक मूल्यों की दुहाई दी जाती है और सेना की कार्रवाई को
अमानवीय साबित करने की कोशिश की जाती है. इन संदेशों के साथ जो तस्वीरें लगाई जाती
हैं, उनमें से काफी का कश्मीर से कोई वास्ता नहीं होता. फलस्तीन, सीरिया, इराक या
म्यांमार की तस्वीरें लगाकर दावा किया जाता है कि कश्मीर में भारतीय सेना अत्याचार
कर रही है. यह प्रचार केवल कश्मीर के लिए नहीं होता, दूसरे इलाकों में भी होता है.
आतंकवाद प्रचार की प्राणवायु पर जीवित है. यह प्रचार
उन्हें मुफ्त में मिल जाता है. इस काम में लोकतांत्रिक संस्थाओं की मदद लेने में उन्हें
संकोच नहीं है. यह मदद मीडिया से मिलती है. दिक्कत यह है कि मुख्यधारा का मीडिया
जल्दबाजी में अपने कार्यों का आकलन नहीं कर पाता. अक्सर वह आतंकियों के
प्रचारात्मक वीडियो भी दिखाता रहता है.
आतंकवाद के सायबर संग्राम का मुकाबला कई सतहों पर करने की जरूरत है. अंतरराष्ट्रीय
आतंकवाद का मुकाबला अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ही हो सकता है. इसके लिए अंतरराष्ट्रीय
एजेंसियों के बीच समन्वय की जरूरत है. पिछले साल पठानकोट हमले के बाद कुछ लोगों के
मोबाइल फोन नंबर और फेसबुक एकाउंट का पता लगा था. एनआईए और पाकिस्तानी खुफिया
संगठन के समन्वय से यह काम आसानी से हो सकता था. पाकिस्तान की एक टीम पठानकोट आई
भी थी, पर उसके बाद सारा काम ठप पड़ गया.
भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भी सायबर
आतंकवाद के लिए अंतरराष्ट्रीय समन्वय की अपील की है. 2008 के मुंबई हमले में
इंटरनेट टेक्नोलॉजी के दुरुपयोग का उल्लेख करते हुए भारत ने इंटरनेट के प्रबंधन
में बदलाव की बात की. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारतीय राजदूत अशोक कुमार
मुखर्जी ने मुंबई हमले को याद करते हुए कहा, 'वह पहला मौका
था जब हमने आतंकी गतिविधियों को निर्देश देने वाले वॉइस ओवर प्रोटोकॉल का सामना
किया.'
गृह राज्यमंत्री हंसराज अहीर ने पिछले हफ्ते लोकसभा में बताया कि आतंकवादी और
अपराधी गिरोह सोशल मीडिया का और खासतौर से एनक्रिप्टेड सायबर प्लेटफॉर्म का
इस्तेमाल करके अपनी गतिविधियों को बढ़ा रहे हैं. हालांकि राज्यों और केंद्र सरकार
की सुरक्षा और खुफिया एजेंसियाँ इन गतिविधियों पर नजर रखने की कोशिश करती है, पर
इसकी भी सीमाएं हैं.
एनआईए ने ऐसे 28 वॉट्सएप ग्रुपों का पता लगाया है, जिनके एडमिन पाकिस्तान
में हैं. इसके डिजिटल प्रमाण भी एनआईए के पास हैं. एनआईए के अनुसार इन ग्रुपों के
साथ पाँच-पाँच हजार तक मेंबर जुड़े हैं. बहुत से नंबर ऐसे हैं, जो जमात-उद-दावा
यानी लश्करे तैयबा के पोस्टरों में छपे रहते हैं. वॉट्सएप संदेशों में मुठभेड़ों
की जानकारी दी जाती है और कहा जाता है कि अपने गाँव के लोगों को लेकर पहुँचो और
सुरक्षा बलों पर पत्थरबाजी करो. इन्हीं संदेशों के आधार पर एनआईए ने 48 नंबरों का
पता लगाया और उनके कॉल डिटेल्स भी हासिल कर लिए है.
देखना है कि यह संस्था किस हद तक जाती है और अदालतों में आरोपों को साबित
कर पाती है या नहीं. सायबर आतंकवाद को रोकने के लिए कानूनी व्यवस्था भी जरूरी है. सितंबर
2015 में सरकार ने राष्ट्रीय एनक्रिप्शन (कूटलेखन) नीति का मसौदा पेश
करके उसे फौरन वापस ले लिया था. वह मामला ठीक ऐसे मौके पर उठा जब प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी अमेरिका की सिलिकन वैली जाने वाले थे. एनक्रिप्शन नीति पर अब विचार
करने की जरूरत है.
inext में प्रकाशित
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