किसान-आंदोलन जिस करवट भी बैठे, भारत में खेती से जुड़े बुनियादी सवाल अपनी जगह बने रहेंगे। विडंबना है कि महामारी से पीड़ित इस वित्तीय वर्ष में हमारी जीडीपी लगातार दो तिमाहियों में संकुचित होने के बावजूद केवल खेती में संवृद्धि देखी गई है। इस संवृद्धि के कारण ट्रैक्टर और खेती से जुड़ी मशीनरी के उत्पादन में भी सुधार हुआ है। अनाज में आत्म निर्भरता बनाए रखने के लिए हमें करीब दो प्रतिशत की संवृद्धि चाहिए, जिससे बेहतर ही हम कर पा रहे हैं, फिर भी हम खेती को लेकर परेशान हैं।
खेती से जुड़े हमारे सवाल केवल अनाज की सरकारी खरीद, उसके बाजार और खेती पर मिलने वाली सब्सिडी तक सीमित नहीं हैं। समस्या केवल किसान की नहीं है, बल्कि गाँव और कृषि-आधारित अर्थव्यवस्था की है। गाँव, गरीब और किसान को लेकर जो बहस राजनीति और मीडिया में होनी चाहिए थी वह पीछे चली गई है। भारत को इस बात का श्रेय जाता है कि उसने अन्न के लिहाज से एक अभाव-पीड़ित देश की छवि को दूर करके अन्न-सम्पन्न देश की छवि बनाई है, फिर भी हमारा किसान परेशान है। हमारी अन्न उत्पादकता दुनिया के विकसित देशों के मुकाबले कम है। ग्रामीण शिक्षा, संचार, परिवहन और सार्वजनिक स्वास्थ्य के मानकों पर हम अपेक्षित स्तर को हासिल करने में नाकामयाब रहे हैं।