Friday, May 7, 2010



WHAT HAPPENS IN THE SPEAKER'S SEAT IN BRITISH PARLIAMENT?
The Speaker of the House of Commons is an MP and has to stand for re-election in his or her constituency at every general election. Traditionally the biggest parties in the House of Commons do not stand against the Speaker, although other parties do.
The current Speaker, John Bercow, is standing for election inBuckingham. The Speaker is a neutral figure in Parliament, so Mr Bercow is no longer a member of the Conservative Party as he was before his election to the role (by all the other MPs). However, for the purposes of calculating the number of seats belonging to each party - and calculating those held, gained or lost by each party - Mr Bercow is regarded as a Conservative MP and the seat is regarded as being held by the Conservatives in 2005. 
FROM : BBC
भारतीय समय के अनुसार 7 मई की सुबह 8.30 बजे तक ब्रिटिश चुनाव में त्रिशंकु संसद के आसार हैं. कंज़र्वेटिव पार्टी की स्थिति में काफी सुधर है. लेबर कमजोर हुए हैं. दोनों के बारे में यही अनुमान था. केवल लिबरल-डेमोक्रेट को वह सफलता नहीं मिल रही है, जिसकी आशा थी.

Thursday, May 6, 2010

मेरे जुनूँ का नतीजा ज़रूर निकलेगा
इसी सियाह समंदर से नूर निकलेगा

गिरा दिया है तो साहिल पे इंतज़ार न कर
अगर वोह डूब गया है तो दूर निकलेगा

उसी का शहर, वही मुद्दई, वही मुंसिफ
हमीं यकीन था, हमारा कुसूर निकलेगा

यकीन न आये तो एक बार पूछ कर देखो
जो हंस रहा है वोह ज़ख्मों से चूर निकलेगा

अमीर आगा किज़ल्बाश 
ब्रिटेन में चुनाव 
मुझे लगता है इस बार के ब्रिटिश चुनाव लकीर से हटकर होंगे. ब्रिटिश राज व्यवस्था हमारी व्यवस्था से बेहतर है, पर राजनीति में जब हित टकराते हैं तब घटियापन हर जगह दिखाई पड़ता है. कल दिन में शायद तस्वीर साफ़ होगी. त्रिशंकु संसद होने पर माहौल रोचक हो जायेगा. ऐसे में वहां के मीडिया की भूमिका पर भी नज़र रखनी चाहिए.

Wednesday, May 5, 2010

आवारा 


शहर की रात और मैं नाशाद-ओ-नाकारा फिरूं  
जगमगाती जागती सडकों पे आवारा फिरूं  
गैर की बस्ती है कब तक दर बदर मरा फिरूं  
ऐ गम-ए-दिल क्या करूं ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूं  

झिलमिलाते कुम-कुमों की राह में ज़ंजीर सी  
रात के हाथों में दिन की मोहनी तस्वीर सी 
मेरे सीने पर मगर चलती हुई शमशीर सी  


ऐ गम-ए-दिल क्या करूं ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूं
ये रुपहली छांव ये आकाश पर तारों का जाल जैसे सूफी का तसव्वुर जैसे आशिक का ख़याल आह लेकिन कौन जाने कौन समझे जी का हाल   ऐ गम-ए-दिल क्या करूं ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूं फिर वो टूटा इक सितारा फिर वो छूटी फुलझड़ी जाने किस की गोद में आये ये मोती की लड़ी हूक सी सीने में उठी चोट सी दिल पर पड़ी   ऐ गम-ए-दिल क्या करूं ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूं रात हंस हंस कर ये कहती है के मैखाने में चल फिर किसी शहनाज़-ए-लालारुख के काशाने में चल ये नहीं मुमकिन तो फिर ऐ दोस्त वीराने में चल   ऐ गम-ए-दिल क्या करूं ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूं हर तरफ बिखरी हुई रंगीनियाँ रानाईयाँ हर क़दम पर इशरतें लेती हुई अंगड़ाइयाँ
बढ़ रही है गोद फैलाए हुए रुसवाईयाँ  




ऐ गम-ए-दिल क्या करूं ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूं
रास्ते में रुक के दम ले लूँ मेरी आदत नहीं
लौट कर वापस चला जाऊं मेरी फितरत नही और कोई हमनवा मिल जाए मेरी किस्मत नहीं   ऐ गम-ए-दिल क्या करूं ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूं


मुन्तजिर है एक तूफ़ान-ए-बला मेरे लिए
अब भी जाने कितने दरवाज़े हैं वा मेरे लिए पर मुसीबत है मेरा अहद-ए-वफ़ा मेरे लिए   ऐ गम-ए-दिल क्या करूं ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूं


जी में आता है कि अब अहदे वफ़ा भी तोड़ दूं
उन को पा सकता हूँ मैं ये आसरा भी छोड़ दूं 
हाँ मुनासिब है ये ज़ंजीर-ए-हवा भी तोड़ दूं 




ऐ गम-ए-दिल क्या करूं ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूं
इक महल की आड़ से निकला वो पीला माहताब 
जैसे मुल्ला का अमामा जैसे बनिए की किताब 
जी मुफलिस की जवानी जैसे बेवा का शबाव 




ऐ गम-ए-दिल क्या करूं ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूं
दिल में एक शोला भड़क उठा है आखिर क्या करूं
मेरा पैमाना छलक उठा है आखिर क्या करूं
ज़ख्म सीने का महक उठा है आखिर क्या करूं
ऐ गम-ए-दिल क्या करूं ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूं
मुफलिसी और ये मज़ाहिर हैं नज़र के सामने 
सैकड़ों चंगेज़-ओ-नादिर हैं नज़र के सामने
सैकड़ों सुलतान जाबर हैं नज़र के सामने  
ऐ गम-ए-दिल क्या करूं ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूं
ले के इक चंगेज़ के हाथों से खंज़र तोड़ दूं 
ताज पर उसके दमकता है जो पत्थर तोड़ दूं 
कोई तोड़े या न तोड़े मैं ही बढ़कर तोड़ दूं 
ऐ गम-ए-दिल क्या करूं ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूं बढ़ के इस इन्दर सभा का साज़-ओ- सामां फूंक दूं 
इस का गुलशन फूंक दूं उसका शबिस्तां फूंक दूं 
तख़्त-ए-सुल्तां क्या मैं सारा कस्र-ए-सुल्तां फूंक दूं 




ऐ गम-ए-दिल क्या करूं ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूं
जी में आता है ये मुर्दा चाँद-तारे नोच लूँ
इस किनारे नोच लूं या उस किनारे नोच लूं
एक दो का ज़िक्र क्या सारे के सारे नोच लूं




ऐ गम-ए-दिल क्या करूं ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूं
मजाज़ लखनवी