हाँ, इससे इतना फर्क ज़रूर पड़ा है कि भारत और
चीन के रिश्तों में सुधार हुआ है. पर भारत को इन रिश्तों से आर्थिक, तकनीकी और
सामरिक-क्षेत्रों में कोई बड़ी उपलब्धि हासिल नहीं होगी. इस सुधार की एक सकारात्मक
भूमिका है, जिसे स्वीकार करना चाहिए.
महत्वपूर्ण बात यह है वैश्विक-व्यवस्था में
बुनियादी तौर पर बड़े परिवर्तन आ रहे हैं. इन परिवर्तनों का असर संयुक्त राष्ट्र
और उसकी वित्तीय संरचनाओं पर भी पड़ेगा. भारत अब किसी एक ग्रुप या गिरोह का
पिछलग्गू बनकर नहीं रह पाएगा.
भारत पहले से बहुध्रुवीयता के सिद्धांत का
समर्थक है, पर बहुध्रुवीय-व्यवस्था के अपने खतरे भी हैं. जब अनेक प्रकार की
शक्तियाँ विश्व में सक्रिय होंगी, तब उनकी गतिविधियों पर नज़रें रखना भी आसान नहीं
होगा. उसमें शक्ति-संतुलन की स्थापना सबसे बड़ी जरूरत होगी है.