अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल में कहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फरवरी में अमेरिका की यात्रा पर आ सकते हैं. उसके बाद से अनुमान लगाया जा रहा है कि संभवतः अगले कुछ दिनों में उनकी यात्रा की तिथियाँ घोषित हो सकती हैं.
यह यात्रा अभी हो या कुछ समय बाद, अमेरिकी-नीतियों में आ रहे बदलाव को देखते हुए यह ज़रूरी है. बेशक, दोनों मित्र देश हैं, पर अब जो पेचीदगियाँ पैदा हो रही हैं, उन्हें देखते हुए भारत को सावधानी से कदम बढ़ाने होंगे.
पहला हमला
राष्ट्रपति ट्रंप ने पहला हमला कर भी दिया है, जिसका वैश्विक-व्यापार, विकास और मुद्रास्फीति पर प्रभाव पड़ेगा. शनिवार को उन्होंने अमेरिका के तीन सबसे बड़े व्यापारिक साझेदारों पर भारी टैरिफ लगाने वाले कार्यकारी आदेशों पर हस्ताक्षर किए हैं.
अमेरिका मंगलवार 4 फरवरी से कनाडा और मैक्सिको से हो रहे आयात पर 25 प्रतिशत अतिरिक्त टैरिफ और चीन पर 10 प्रतिशत अतिरिक्त टैरिफ लगा रहा है. इन तीन देशों से अमेरिकी-आयात का लगभग 40 प्रतिशत हिस्सा आता है.
यह फैसला इन देशों को हो रहे अवैध आव्रजन, जहरीले फेंटेनाइल और अन्य नशीले पदार्थों को अमेरिका में आने से रोकने और अपने वादों के प्रति जवाबदेह बनाने के लिए किया गया है. कनाडा और मैक्सिको ने इसपर जवाबी कार्रवाई की घोषणा भी की है, जबकि चीन ने कहा है कि हम विश्व व्यापार संगठन में जाएँगे.
ट्रंप-प्रशासन की दिलचस्पी अमेरिका में विनिर्माण को बढ़ावा देने, नौकरियों की रक्षा करने और व्यापार घाटे से निपटने में है. इस पहले हमले से वैश्विक-बाजारों में अनिश्चितता पैदा होगी. देखना होगा कि इससे भारत पर क्या प्रभाव पड़ेगा.
मोदी की यात्रा
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने गत शुक्रवार को कहा कि भारत-अमेरिका की व्यापक नीतिगत-साझेदारी को गहरा करने के लिए दोनों पक्ष प्रधानमंत्री मोदी की शीघ्र अमेरिका यात्रा पर काम कर रहे हैं.
प्रधानमंत्री इस महीने द्विपक्षीय यात्रा पर पेरिस भी जा रहे हैं, इसलिए अनुमान है कि अमेरिका की यात्रा का कार्यक्रम पेरिस के आगे-पीछे हो सकता है. पेरिस में वे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एक्शन समिट में भी भाग लेंगे, जो 11-12 फरवरी को होगा.
पेरिस में ट्रंप को भी आमंत्रित किया गया है, लेकिन अभी तक उनकी उपस्थिति के बारे में कोई पुष्टि नहीं हुई है. यदि वे वहाँ गए, तो मोदी और ट्रंप की भेंट वहाँ भी हो सकती है.
आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में चीन की प्रगति को देखते हुए यह सम्मेलन महत्वपूर्ण है. एआई शिखर सम्मेलन के पिछले संस्करण नवंबर 2023 में यूनाइटेड किंगडम में और मई 2024 में दक्षिण कोरिया में आयोजित किए गए थे.
नाभिकीय-ऊर्जा
इस साल का बजट पेश करते हुए वित्तमंत्री ने नाभिकीय ऊर्जा को लेकर कुछ बड़ी घोषणाएँ की हैं. उन्होंने स्वदेशी लघु मॉड्यूलर रिएक्टर (एसएमआर) विकसित करने के लिए 20,000 करोड़ रुपये के 'परमाणु ऊर्जा मिशन' की घोषणा की. 2033 तक इनमें से कम से कम पाँच रिएक्टर चालू हो जाएँगे.
भारत के 2047 तक 100 गीगावॉट परमाणु ऊर्जा सुनिश्चित करने के बड़े लक्ष्य के लिहाज से यह महत्वपूर्ण है. पिछली जुलाई में अपने बजट भाषण में उन्होंने कहा था कि सरकार भारत लघु रिएक्टर (बीएसआर) की स्थापना, भारत लघु मॉड्यूलर रिएक्टर (बीएसएमआर) के अनुसंधान और विकास, तथा परमाणु ऊर्जा के लिए नई प्रौद्योगिकियों के अनुसंधान और विकास के लिए निजी क्षेत्र के साथ साझेदारी करेगी.
भारत में परमाणु बिजली बनाने का काम अभी तक सरकारी कंपनी न्यूक्लियर पावर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड करती है. अब संकेत इस बात के हैं कि परमाणु ऊर्जा अधिनियम तथा परमाणु क्षति के से जुड़े दायित्व अधिनियम में संशोधन किया जाएगा. यानी कि नाभिकीय-बिजली उत्पादन में निजी क्षेत्र का प्रवेश भी होगा, जिसमें विदेशी-कंपनियों की भागीदारी भी हो सकती है.
संवाद की वापसी
यह घोषणा नाभिकीय-ऊर्जा के मामले में भारत-अमेरिका संवाद फिर से कायम होने की ओर इशारा कर रही है. 2008 के न्यूक्लियर डील ने भारत और अमेरिका को काफी करीब कर दिया था, पर इसी डील ने दोनों के बीच खटास भी पैदा की थी.
न्यूक्लियर डील होते वक्त लगता था कि भारत नाभिकीय ऊर्जा के लिए अपने दरवाज़े खोलेगा, पर उस दिशा में प्रगति नहीं हुई, बल्कि सब कुछ धीमा पड़ गया. 2011 में जापान के फुकुशिमा एटमी बिजलीघर की दुर्घटना के बाद उससे जुड़े जोखिम को लेकर भी सवाल उठे.
भारतीय संसद ने 2010 में सिविल लायबिलिटी फॉर न्यूक्लियर डैमेज एक्ट पास किया, जिसमें वे व्यवस्थाएं थीं, जो परमाणु दुर्घटना की स्थिति में मुआवजे का भार उपकरण सप्लाई करने वाली कंपनी पर डालती हैं. इस कानून की धारा 17 से जुड़े मसले पर दोनों देशों के बीच सहमति नहीं रही है.
यह असहमति केवल अमेरिका के साथ ही नहीं है, दूसरे देशों के साथ भी है. 2010 में जब यह कानून पास हो रहा था, तब भारतीय जनता पार्टी भी कड़ी शर्तें लागू करने की पक्षधर थी. बाद में यूपीए सरकार पर जब अमेरिकी दबाव पड़ा तो रास्ते खोजे जाने लगे.
रक्षा-तकनीक
पिछले कुछ समय से भारत ने रक्षा-तकनीक के मामले में रूस पर निर्भरता को कम किया है और फ्रांस और अमेरिका के साथ नाता जोड़ा है. पेरिस-यात्रा के दौरान भारत और फ्रांस के बीच 26 राफेल-एम लड़ाकू विमानों की खरीद और नौसेना के लिए तीन अतिरिक्त स्कोर्पिन श्रेणी की पनडुब्बियों की डिलीवरी से जुड़े 10 अरब डॉलर से ज़्यादा के दो बड़े रक्षा सौदों को भी अंतिम रूप दिया जा सकता है.
उसके पहले इन दोनों सौदों की घोषणा की तैयारी में, उन्हें मंजूरी के लिए सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति के समक्ष रखे जाने की उम्मीद है. भारत पाँचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान एम्का (एडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट) के लिए 110 किलो न्यूटन के इंजन के सह-विकास के लिए फ्रांस के साथ बातचीत कर रहा है.
जहाँ भारत-फ्रांस रक्षा-सहयोग पिछले कुछ वर्षों में बढ़ा है, वहीं अमेरिका के साथ भी भारत के रक्षा-सहयोग में तेजी आई है. 2008 में दोनों देशों के बीच न्यूक्लियर डील होने के बाद से भारत ने अमेरिका के साथ 25 अरब डॉलर के रक्षा-समझौते किए हैं.
जहाँ तक रक्षा सौदों का मामला है, चार महीने पहले ही 31 एमक्यू-9बी ड्रोन की खरीद के 3.3 अरब डॉलर के समझौते पर दस्तखत हुए हैं. इस ड्रोन के निर्माता जनरल एटॉमिक्स के साथ इनके रख-रखाव की व्यवस्था भारत में ही करने के लिए 52 करोड़ डॉलर का एक और समझौता हुआ है.
डोनाल्ड ट्रंप चाहते हैं कि भारत अब और रक्षा-तकनीक अमेरिका से खरीदे. दूसरी तरफ भारत के विशेषज्ञ अमेरिका को संदेह की नज़रों से भी देखते हैं. ऐसा देखा गया है कि मौका पड़ने पर अमेरिका अपना नज़रिया बदल लेता है.
तेजस का इंजन
भारत ने अमेरिका के साथ तेजस मार्क-1ए और मार्क-2 के लिए इंजनों की सप्लाई और भारत में ही उनके निर्माण का समझौता किया है, पर इस समय तेजस मार्क-1ए की डिलीवरी लगातार अपने समय से पिछड़ती जा रही है, क्योंकि जीई-400 इंजन की आपूर्ति नहीं हो पाई है. इसके पीछे सप्लाई चेन की दिक्कतें बताई जा रही है.
तेजस मार्क-2 के लिए जीई-414 इंजन के भारत में ही निर्माण के लिए समझौते पर बातचीत चल रही है. अमेरिका से स्ट्राइकर बख्तरबंद इनफेंट्री कॉम्बैट वेहिकल खरीदने का समझौता भी होने वाला है.
भारत इस समय अपने 114 एमआरएफए (मल्टी रोल फाइटर एयरक्राफ्ट) के डील को अंतिम रूप देने जा रहा है. इसके लिए अमेरिकी लॉकहीड मार्टिन के एफ-21 और बोइंग के एफ-15ईएक्स भी प्रतियोगिता में हैं. बेंगलुरु में 10 से 14 फरवरी तक हो रहे एयरोइंडिया-2025 शो में अमेरिका के पाँचवीं पीढ़ी के विमान एफ-35 का प्रदर्शन भी होने वाला है.
यह भी सच है कि अमेरिका ने एस-400 के मामले में अभी तक भारत को पाबंदियों से मुक्त रखा है और इस बात को स्वीकार किया है कि रूस के साथ भारत के रिश्तों के पीछे ऐतिहासिक कारण हैं.
टेलीफोन कॉल
गत 27 जनवरी को मोदी और ट्रंप के बीच टेलीफोन पर बात हुई थी. राष्ट्रपति ट्रंप के शपथ ग्रहण के बाद यह उनकी फोन पर बातचीत थी. उसके बाद ट्रंप ने कहा था कि नरेंद्र मोदी संभवतः फरवरी में, ह्वाइट हाउस आने वाले हैं.
विचार यह है कि इस साल के अंत में क्वाड नेताओं के शिखर सम्मेलन के लिए ट्रंप के भारत आने से पहले प्रधानमंत्री मोदी का दौरा जल्दी हो जाना चाहिए. प्रधानमंत्री की इस यात्रा की योजना आव्रजन और टैरिफ जैसे कठिन मुद्दों पर बातचीत को सुचारू बनाने के लिए भी बनाई जा रही है.
पिछले दो दशक से ज्यादा समय में भारत-अमेरिका संबंधों में साल-दर-साल सुधार हुआ है और अब ट्रंप-प्रशासन भी सकारात्मक संकेत दे रहा है. भारत के विदेशमंत्री एस जयशंकर की ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह में उपस्थिति, क्वाड विदेश मंत्रियों की बैठक और उनके समकक्ष मार्को रूबियो के साथ द्विपक्षीय-वार्ता को देखते हुए भी यह बात स्पष्ट है.
नरम-गरम रिश्ते
रायटर्स की एक खबर के अनुसार ट्रंप ने मोदी के सामने निष्पक्ष द्विपक्षीय व्यापार संबंध की दिशा में आगे बढ़ने के महत्व पर ज़ोर दिया तथा नई दिल्ली से अमेरिका निर्मित रक्षा उपकरणों की खरीद बढ़ाने का आह्वान किया है. भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार अमेरिका है. 2023-24 में उनका द्विपक्षीय व्यापार 118 अरब डॉलर से अधिक हो गया था, जिसमें भारत ने 32 अरब डॉलर का व्यापार अधिशेष दर्ज किया था.
उच्च व्यापार-बाधाओं के देखते हुए ने ट्रंप ने भारत को ‘टैरिफ का राजा’ कहा है. वस्तुतः भारत ने घरेलू उद्योगों की रक्षा करने, विदेशी निवेश को आकर्षित करने और अपनी ‘मेक इन इंडिया’ नीति को बढ़ावा देने के लिए उच्च टैरिफ का उपयोग किया है.
ट्रंप ने सभी आयातों पर 10 से 20 प्रतिशत टैरिफ लगाने और भारत सहित कुछ चुनींदा देशों पर इससे भी ज्यादा टैरिफ लगाने का इरादा जताया है. सवाल है कि क्या दोनों देश ऐसे में ठोस व्यापार समझौते पर बातचीत कर सकते हैं?
आशावादी होने के कई कारण हैं. ट्रंप, अमेरिकी अर्थव्यवस्था में सुधार करना चाहते हैं. वे टैरिफ का इस्तेमाल अमेरिकी कंपनियों के लिए विदेशी बाजार खोलने के लिए लीवरेज के रूप में करेंगे. दूसरी तरफ मोदी भारत के हित में दीर्घकालीन नीतियों पर चल रहे हैं, जो भारत की अर्थव्यवस्था का विस्तार करने और दुनिया में अपनी भूमिका को बढ़ाने पर केंद्रित है.
चीन का मुकाबला करने के प्रयासों में अमेरिका का रणनीतिक साझेदार भारत, अमेरिका के साथ व्यापार संबंधों को बढ़ाने तथा अपने नागरिकों के लिए कुशल श्रमिक वीज़ा आसान बनाने का इच्छुक है.
अमेरिकी राजनीति में भारतवंशी-अमेरिकनों का प्रभाव बढ़ रहा है, सांसदों के 'समोसा कॉकस' की संख्या बढ़कर छह हो गई है तथा ट्रंप प्रशासन में शीर्ष पदों पर अनेक भारतीयों को नियुक्त किया जा रहा है।
अवैध-आव्रजन
अवैध-आव्रजन को लेकर ट्रंप आक्रामक हैं. हालांकि उनके निशाने पर मुख्यतः मैक्सिको के लोग हैं, पर वहाँ अवैध रूप से पहुँचे भारतवंशी भी हैं. मैक्सिकन लोगों के बाद कानूनन अमेरिकी नागरिकता प्राप्त करने वालों में दूसरा सबसे बड़ा समूह भी भारतीय है.
एच-1बी वीज़ा का बड़ा हिस्सा उनके पास है, जो वैधानिक है, लेकिन अवैध प्रवेश के मामले में भी भारतवंशी तीसरे सबसे बड़े समूह हैं. ये लोग हवाई और समुद्री मार्ग से जोखिम भरी यात्राएँ करते हैं, और फिर दक्षिण और मध्य अमेरिका तथा कनाडा से अमेरिका में पैदल प्रवेश करते हैं.
बताया जाता है कि इस समय 18,000 से अधिक भारतीय निर्वासन के लिए हिरासत केंद्रों में कैद हैं. यह संख्या दो लाख तक पहुँच सकती है. भारत ने सभी अवैध आप्रवासियों को वापस लेने का वचन दिया है, जो भारतीय साबित होंगे. इतना कहने के बावज़ूद समाधान आसान नहीं है.
No comments:
Post a Comment