Friday, April 3, 2015

अखबारों के रीडरशिप सर्वे को लेकर फिर विवाद

इडियन रीडरशिप सर्वे को लेकर देश के बहुसंख्यक प्रकाशनों का विरोध फिर सामने आया है। हिन्दू ने IRS 2014: ‘Stale wine in a new bottle’ में लिखा है कि आईआरएस-2013 की देश के 18 प्रकाशन समूहों ने भर्त्सना की थी। लगभग सभी प्रकाशन समूह इस बार भी नाराज हैं। इसे एक विज्ञापन के रूप में कुछ अखबारों ने आज प्रकाशित किया है। आज के अमर उजाला और जागरण ने भी अपने पहले पेज पर इस आशय की रिपोर्ट छापी हैं। रीडरशिप सर्वे करने वाली संस्था चुनावपूर्व सर्वे और एक्जिट पोल भी संचालित करती है।
अमर उजाला में प्रकाशित रपट
इंडियन रीडरशिप सर्वे में फिर गुमराह करने की कोशिश
अमर उजाला नेटवर्क
नई दिल्ली। इंडियन रीडरशिप सर्वे 2014 ने फिर झूठे आंकड़ों के दम पर पाठकों को गुमराह करने की नाकाम और ओछी कोशिश की है। उसने तीन चौथाई झूठ के साथ एक चौथाई सच मिलाकर नई बोतल में पुरानी शराब पेश कर दी है।
आईआरएस के ताजा कहे जाने वाले आंकड़ों के अनुसार इस सूचना को जारी करने वाले पांचों प्रकाशनों के पाठकों की संख्या बढ़ी है। दैनिक जागरण ने सात फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की है और इसकी पाठक संख्या 166.3 लाख पर पहुंच गई है। दैनिक भास्कर ने आठ फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज कर अपने पाठकों की संख्या 138.3 लाख कर ली है। अमर उजाला के पाठक दस फीसदी बढ़े हैं और इनकी संख्या 78 लाख पहुंच गई है। टाइम्स ऑफ इंडिया ने अपने पाठकों की संख्या पांच फीसदी बढ़ाई है और यह 75.9 लाख पहुंच गई है, जबकि द हिंदू ने दस फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की है और इसके पाठकों की तादाद 16.2 लाख पर पहुंच चुकी है। साफ है, ये सारे अखबार अपने प्रमुख प्रतिद्वंद्वी अखबार हिन्दुस्तान टाइम्स और हिन्दुस्तान (दोनों अखबारों की पाठकों की तादाद चार फीसदी बढ़ी है) की तुलना में पाठकों की तादाद बढ़ाने में आगे रहे हैं। ये आंकड़े हमें मुफीद बैठते हैं और हम अपना डंका पीटने के लिए इनका इस्तेमाल कर सकते हैं। लेकिन सच्चाई और निष्पक्षता के हक में हम इसका फायदा लेना पसंद नहीं करेंगे। दरअसल बदनाम हो चुके ‘आईआरएस 2013’ के तीन चौथाई हिस्से को ही आईआरएस 2014 के तौर पर पेश कर दिया गया है। सिर्फ एक चौथाई सैंपल नए हैं। पाठकों को याद होगा कि आईआरएस 2013 की देश के 18 अग्रणी समाचारपत्र समूहों ने एक स्वर से निंदा की थी। इन प्रमुख समाचारपत्रों ने इसे पूरी तरह खारिज करते हुए खामियों का पुलिंदा करार दिया था। सार्वजनिक हित में जारी एक बयान में इन अखबारों ने कहा था, ‘इस सर्वेक्षण में भारी असमानताएं हैं। सर्वेक्षण सामान्य तर्कों की कसौटी पर फेल साबित हुआ है। सर्वेक्षण के आंकड़े ऑडिट ब्यूरो ऑफ सर्कुलेशन के प्रमाणित आंकड़ों से बिल्कुल उलट हैं। सबसे ज्यादा चौंकाने वाले उदाहरणों में ‘हिंदू बिजनेस लाइन’ से जुड़े आंकड़े थे। इनके हिसाब से ‘हिंदू बिजनेस लाइन’ के जितने पाठक चेन्नई में थे उसके तिगुने मणिपुर में थे। नागपुर के अग्रणी अंग्रेजी अखबार हितवाद की प्रमाणित प्रसार संख्या 60,000 है, लेकिन सर्वेक्षण के मुताबिक इसका एक भी पाठक नहीं था।
उत्तराखंड में अमर उजाला नैनीताल और देहरादून से अपने संस्करण निकालता है। आइआरएस में इन दोनों की संयुक्त पाठक संख्या 4 लाख दिखाई गई है। वहीं हिन्दुस्तान सिर्फ देहरादून से प्रकाशित होता है जबकि इस अकेले संस्करण की पाठक संख्या 5.26 लाख बता दी गई है। गलतियों का एक और नायाब उदाहरण अमर उजाला के मुरादाबाद संस्करण को लेकर सामने आया है। एबीसी के जुलाई-दिसंबर, 2014 के सर्वे के मुताबिक मुरादाबाद संस्करण की प्रसार संख्या 1.36 लाख आंकी गई थी और आईआरएस 2014 ने इसकी पाठक संख्या महज 81000 बताई थी। इस तरह की विषमताएं समझ से परे हैं। प्रसार संख्या के प्रमाणित आंकड़ों से ये बिल्कुल मेल नहीं खाते । आईआरएस 2013 में कहा गया कि दिल्ली में अंग्रेजी अखबारों के पाठकों की तादाद में 19.5 फीसदी की गिरावट आई है। आंकड़ों की इन्हीं विषमताओं की वजह से दैनिक भास्कर, जागरण समूह, द हिंदू, बैनेट कोलमेन एंड कंपनी लिमिटेड (टाइम्स ऑफ इंडिया की प्रकाशक कंपनी) और अमर उजाला समेत कई मीडिया कंपनियों ने आईआरएस2013 को खारिज कर दिया था। कई मीडिया घरानों ने तो बाद में आईआरएस की अपनी सदस्यता ही खत्म कर ली थी। पक्षपात और गलतियों से भरे आईआरएस 2013 की अनेक गलतियों का आईआरएस2014 के ताजा दौर में शामिल होना लाजिमी है क्योंकि सर्वे में इस्तेमाल किए गए तीन चौथाई आंकड़े समान हैं। और भी बुरी बात यह है कि जिन कथित नए सैंपलों का दावा किया जा रहा है वे भी जनवरी-फरवरी 2014 में लिए गए हैं। यानी एक साल पुराने आंकड़ों को नया कहा जा रहा है। अगर सही कहा जाए तो आईआरएस 2014 का सही नाम आईआरएस 2014, पहली तिमाही होना चाहिए। लेकिन इसे आईआरएस 2014 कहा जा रहा है। इससे ऐसा लग रहा है कि इसमें पूरे साल भर के नए तथ्य हैं। हकीकत यह है कि पूरे आंकड़े एक साल पहले के और पूरी तरह संदर्भहीन हैं। दरअसल हमें तो यह समझ में ही नहीं आ रहा है कि आखिरकार एमआरयूसी जैसे प्रतिष्ठित संगठन की ओर से ऐसे बासी आंकड़ों को परोसने की क्या मजबूरी रही होगी, जबकि वह भी इस बात से वाकिफ होगा कि ये खामियों से भरे हैं। हम उस वक्त का इंतजार कर रहे हैं जब आईआरएस वास्तव में ऐसा सर्वे पेश करेगा जो विवादों से बिल्कुल परे होगा। तब तक हम उनके तथ्यों की विषमताओं के बारे में बताते रहेंगे और उनके किसी भी आंकड़े पर विश्वसनीयता की मुहर नहीं लगाएंगे। भले ही वे आंकड़े हमारे पक्ष में ही क्यों न हों। कुछ लोग झूठी कहानी, सफेद झूठ और गलत आंकड़ों का सहारा लेते हैं। लेकिन हम मानते हैं कि आंकड़ों की पवित्रता बनी रहनी चाहिए। उन्हें अपनी मनमर्जी से तोड़ने-मरोड़ने से बचा जाना चाहिए।

गलतियों का पुलिंदा
अमर उजाला उत्तराखंड में नैनीताल और देहरादून की संयुक्त पाठक संख्या 4 लाख दिखाई गई। वहीं हिन्दुस्तान के सिर्फ देहरादून से प्रकाशित होने के बावजूद इसकी पाठक संख्या 5.26 लाख बता दी गई।
एबीसी के मुताबिक अमर उजाला के मुरादाबाद संस्करण की प्रसार संख्या 1.36 लाख है और आईआरएस 2014 ने इसकी पाठक संख्या महज 81000 बताई है।
‘हिंदू बिजनेस लाइन’ के जितने पाठक चेन्नई में थे उसके तिगुने मणिपुर में थे।
नागपुर के अंग्रेजी अखबार हितवाद की प्रमाणित प्रसार संख्या 60,000 थी लेकिन सर्वेक्षण के मुताबिक इसका एक भी पाठक नहीं था।

आज के कुछ अखबारों में छपा विज्ञापन
                               

आईआरएस-2013 के बारे में तहलका में प्रकाशित रपट

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