Sunday, January 5, 2014

कांग्रेस की ‘मोदी-रोको’ रणनीति

कांग्रेस पार्टी क्या नरेंद्र मोदी को लेकर घबराने लगी है? उसे क्या वास्तव में मोदी का सामना करने की कोई रणनीति समझ में नहीं आ रही है? या फिर उसे मोदी का तोड़ मिल गया है, जिसके तहत नई रणनीति बनाई जा रही है? इस वक्त प्रधानमंत्री के संवाददाता सम्मेलन की जरूरत क्या थी? क्या यह उनके रिटायरमेंट की घोषणा थी और वे राहुल गांधी के आगमन की घोषणा कर रहे हैं? या वे अपने दस साल के कार्यकाल की उपलब्धियों को गिनाना चाहते हैं? या कांग्रेस पार्टी की नई रणनीति के रूप में नरेंद्र मोदी को निशाना बनाकर लोकसभा चुनाव के कांग्रेस अभियान का श्रीगणेश कर रहे हैं? प्रधानमंत्री इसके पहले भी नरेंद्र मोदी की आलोचना करते रहे हैं, पर इस बार सन 2007 में सोनिया गांधी के 'मौत के सौदागर' बयान को पीछे छोड़ते हुए उन्होंने अहमदाबाद की गलियों में बेगुनाह लोगों के खून का ज़िक्र किया है।  

क्या यह चुनाव गुजरात के दंगों के आधार पर लड़ा जाएगा? सरकार पर लग रहे भ्रष्टाचार और निष्क्रियता के आरोपों से किनाराकशी की रणनीति क्या सेक्युलरिज़्म बनाम सांप्रदायिकता की राजनीति में छिपी है? पार्टी ने जिस तरह से मुज़फ्फरनगर दंगों के बाद उत्तर प्रदेश में पहलकदमी की है उससे भी यह संकेत मिलता है। भारतीय जनता पार्टी ने कम से कम इसी रूप में लिया है। प्रधानमंत्री की प्रेस कांफ्रेंस के फौरन बाद राजनाथ सिंह की प्रतिक्रिया आई और अरुण जेटली का संवाददाता सम्मेलन हुआ, जिसमें इस सवाल को उठाया गया। अरुण जेटली ने कहा कि प्रधानमंत्री को कांग्रेस के ‘डर्टी ट्रिक्स डिपार्टमेंट’ का हिस्सा नहीं बनना चाहिए था।

भाजपा एक अरसे से कांग्रेस पर आरोप लगा रही है कि नरेंद्र मोदी को कई तरह से घेरने की साज़िशें कांग्रेस रच रही है। चुनाव में मोदी से मुँह की खाई। अदालत में भी उन्हें घेरा नहीं जा सका। अब व्यक्तिगत रूप से उनके चरित्र हनन की कोशिश हो रही है। जेटली ने कहा कि 1947 के बाद से कोई ऐसा राजनीतिक नेता नहीं हुआ जिसे किसी मामले में इतनी परीक्षाओं और मूल्यांकनों के दौर से गुजरना पड़ा हो। पुलिस जांच,  आयोग की जांच,  सुप्रीम कोर्ट जांच, फिर एसआईटी की जांच,  न्याय मित्र वगैरह।  मजिस्ट्रेट से क्‍लीन चिट मिली और एसआईटी की रिपोर्ट को स्वीकार किया गया। यह सब उच्चतम न्यायालय की निगरानी में हुआ।

कांग्रेस यदि सेक्युलरिज़्म बनाम सांप्रदायिकता को अपने चुनाव का विषय बनाती है तो यह उसका अधिकार है। यह भी राजनीति का विषय है। पर इसका यह मतलब भी है कि सामाजिक कल्याण के अपने कार्यक्रमों, खाद्य सुरक्षा, मनरेगा और कैश ट्रांसफर जैसी योजनाओं को वह वोट में बदल पाने में अपने को नाकामयाब पा रही है। राजस्थान और दिल्ली में पार्टी का लगभग सफाया होना संकेत कर रहा है कि लोगों के मन में केंद्र सरकार को लेकर नाराज़गी है। वस्तुतः लोगों के मन में समूची राजनीति को लेकर वितृष्णा है। वे राजनीति को भ्रष्टाचार के अलावा जाति और संप्रदाय के जाल से भी मुक्त देखना चाहते हैं।

दिल्ली के चुनाव में आम आदमी पार्टी के उदय के बाद एक धारणा यह है कि यह राजनीति नरेंद्र मोदी के बढ़ते प्रभाव को रोकेगी। अभी तक कांग्रेस मानती थी कि नरेंद्र मोदी के कारण भाजपा को कोई लाभ मिलने वाला नहीं है। पर राजस्थान का परिणाम दूसरी कहानी कह रहा है। कांग्रेस अब इस महीने राहुल गांधी को औपचारिक रूप से प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी के रूप में घोषित करने जा रही है। यानी कि राहुल बनाम मोदी मुकाबला खुलकर सामने आएगा। इसलिए बेहतर होगा कि मोदी पर निशाना लगाया जाए। मोदी का नकारात्मक पहलू 2002 के गुजरात दंगे हैं। इन दंगों से जुड़ी मुसलमानों की संवेदना का फायदा कांग्रेस लेना चाहती है। खासतौर से उत्तर प्रदेश में जहाँ मुसलमान-वोट माने रखता है। पर उत्तर प्रदेश में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का फायदा भाजपा भी उठाएगी। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाट बहुल क्षेत्र में इसका असर दिखाई पड़ने लगा है। कांग्रेस क्या सांप्रदायिक ध्रुवीकरण चाहती है? पिछले हफ्ते इस इलाके में लालू यादव की यात्रा के बाद मुलायम सिंह की प्रतिक्रिया से जाहिर होता है कि राजनीतिक शक्तियाँ इन सर्दियों में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के माहौल को गरम रखेंगी। मुजफ्फरनगर और शामली के शिविरों में रह रहे लोगों को हटाने और रोकने की कोशिशें इसी राजनीति का हिस्सा हैं।

दिल्ली में आम आदमी पार्टी की विजय से दूसरी बात यह भी ज़ाहिर हुई कि वोटर स्वच्छ प्रशासन और सादगी चाहता है साथ ही लालबत्ती पर सवार होकर निकलने वाली सामंती राजनीति से भी मुक्ति भी। कांग्रेस पार्टी ने आप के उदय को गंभीरता से लिया और आनन-फानन लोकपाल कानून पास कर दिया। पर  नई राजनीति जाति और संप्रदाय के जकड़-जाल से भी बाहर निकलना चाहती है। इस बात को नरेंद्र मोदी ने बखूबी समझा है। मोदी के भाषणों में सांप्रदायिक बातें नहीं होतीं। बावजूद इसके कांग्रेस मोदी को 2002 के इर्द-गर्द ही बनाए रखना चाहती है। यह सामाजिक ध्रुवीकरण की कोशिश है या मुसलमानों को न्याय दिलाने का प्रयास है? इसे अपने-अपने तरीके से पढ़ा जाएगा। पर इतना साफ दिखाई है कि नरेंद्र मोदी की प्रचार मशीनरी प्रत्यक्ष रूप से गवर्नेंस की बात करती है। और कांग्रेस उनकी सांप्रदायिकता का पर्दाफाश करना चाहती है। पर मोदी दिल्ली के करीब आते जा रहे हैं। राज्य की सीमा पर राजस्थान और मध्य प्रदेश से उड़ती धूल इसका संकेत दे रही है।

दिल्ली शहर में मोदी का असर हुआ या नहीं, यह विवेचना का विषय है। पर इतना साफ है कि यहाँ पार्टी ने अपनी स्थिति 2008 के मुकाबले बेहतर की है। कांग्रेस को बचाना है तो मोदी को रोकना होगा। और मोदी को रोकने में आप कारगर होगा। इधर आप की ओर से आनंद कुमार और प्रशांत भूषण ने मोदी विरोध के वक्तव्य भी दिए हैं। इतने मात्र को आप और कांग्रेस का गठबंधन कहना गलत होगा। पर कांग्रेस की रणनीति यह हो सकती है कि एक तरफ से आप अपना काम करे और दूसरी तरफ से हम। शायद इसी रणनीति का हिस्सा है मोदी पर हुआ ताजा हमला।

हरिभूमि में प्रकाशित

प्रधानमंत्री के संवाददाता सम्मेलन के अंश हिंदू में प्रकाशित

मंजुल का कार्टून

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