अमेरिका को दुनिया के सबसे आधुनिक-देश के रूप में गिना जाता है, पर कोविड-19 के दौर में वहाँ से कुछ ऐसी बातें निकलकर बाहर आ रही हैं, जिनसे स्वास्थ्य के प्रति उसकी जागरूकता को लेकर संदेह पैदा होता है। सबसे बड़ा संदेह वैक्सीन के प्रति नागरिकों के रवैये को लेकर है। कोविड-19 का असर कम होने की वजह से वहाँ मास्क पहनने की अनिवार्यता खत्म कर दी गई और प्रतिबंधों में ढील दे दी गई। रेस्तराँओं में बगैर-मास्क भीड़ जा रही है। कुछ रेस्तरां में सूचना लगी होती है कि जिन्होंने वैक्सीन नहीं लगाई है, कृपया मास्क पहन कर आएं, पर यह देखने वाला कोई नहीं है कि किसने वैक्सीन लगाई है और किसने नहीं।
परिणाम
यह हुआ कि वहाँ संक्रमण का खतरा फिर बढ़ रहा है। देश के स्वास्थ्य सलाहकार डॉ एंथनी
फाउची ने पिछले हफ्ते कहा, टीका न लगवाना कोरोना को फैलाने का सबसे अहम कारण होगा।
अभी तक अमेरिका की 49.7 प्रतिशत आबादी को दोनों टीके लगाए गए हैं और करीब 58 फीसदी
आबादी को कम से कम एक टीका लगा है। करीब 17 करोड़ लोगों को टीका नहीं लगा है। अब
जो संक्रमण हो रहा है, उनमें से ज्यादातर लोग वे हैं, जिन्हें अभी तक टीका नहीं
लगा है। मरने वालों में करीब 90 फीसदी ऐसे लोग हैं।
वैक्सीन का विरोध
पूरे देश में कोरोना का संक्रमण तेजी से फैल रहा है। देश के सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) के अनुसार जुलाई में नए मामलों की औसतन साप्ताहिक संख्या में 47 फीसदी की वृद्धि हुई है। जिन इलाकों में वैक्सीनेशन कम हुआ है, वहाँ बीमारी का प्रकोप ज्यादा है। देश में बड़ी संख्या ऐसे लोगों की है, जो वैक्सीन के विरोधी हैं। राजनीतिक-दृष्टि से देखें तो रिपब्लिकन पार्टी के 49 प्रतिशत पुरुष समर्थक और 34 फीसदी महिला समर्थक खुद को एंटी-वैक्सर्स मानते हैं। डेमोक्रेटिक पार्टी के 14 प्रतिशत पुरुष और 6 प्रतिशत महिला समर्थक वैक्सीन-विरोधी हैं। पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हालांकि टीका लगवा लिया, पर वे इस बात को छिपाते रहे। अलबत्ता वैक्सीन-विरोधी अभियान का नेतृत्व कर रहे हैं प्राकृतिक चिकित्सक डॉ जोसफ मर्कोला। वे होम्योपैथी तथा वैकल्पिक चिकित्सा के समर्थक हैं। उनके लेख सोशल मीडिया में लोकप्रिय हैं। वैक्सीन के खिलाफ जबर्दस्त ऑनलाइन अभियान है।