Wednesday, June 24, 2015

दक्षिण एशिया में उप-क्षेत्रीय सहयोग के नए द्वार

सोमवार को चीन ने नाथूला होकर कैलाश मानसरोवर तक जाने का दूसरा रास्ता खोल दिया गया. चीन ने भारत के साथ विश्वास बहाली के उपायों के तहत यह रास्ता खोला है. इस रास्ते से भारतीय तीर्थ यात्रियों को आसानी होगी. धार्मिक पर्यटन के अलावा यहाँ आधुनिक पर्यटन की भी अपार सम्भावनाएं हैं. पर सिद्धांततः यह आर्थिक विकास के नए रास्तों को खोलने की कोशिश है.

Sunday, June 21, 2015

कितना खिंचेगा ‘छोटा मोदी’ प्रकरण?

ललित मोदी प्रकरण ने कांग्रेस पार्टी और भारतीय जनता पार्टी को अपनी राजनीति ताकत आजमाने का एक मौका दिया है। मोदी को पहली बार इन हालात से गुजरने का मौका मिला है, इसलिए पहले हफ्ते में कुछ अटपटे प्रसंगों के बाद पार्टी संगठन, सरकार और संघ तीनों की एकता कायम हो गई है। कांग्रेस के लिए यह मुँह माँगी मुराद थी, जिसका लाभ उसे तभी मिला माना जाएगा, जब या तो वह राजनीतिक स्तर पर इससे कुछ हासिल करे या संगठन स्तर पर। उसकी सफलता फिलहाल केवल इतनी बात पर निर्भर करेगी कि वह कितने समय तक इस प्रकरण से खेलती रहेगी। राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने गुरुवार को कहा कि अगर विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने अपने पद से इस्तीफा नहीं दिया तो नरेंद्र मोदी के लिए संसद का सामना करना ‘नामुमकिन’ होगा। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव सीताराम येचुरी ने भी तकरीबन इसी आशय का वक्तव्य दिया है।

Saturday, June 20, 2015

कैसे शुरू हुई भाषा?

स्वभाव से जिज्ञासु और विज्ञानोन्मुखी आशुतोष उपाध्याय ऐसे लेखन पर नजर रखते हैं जो जानकारी के किसी नए दरवाजे को खोलता हो और विश्वसनीय भी हो. मैने इसके महले भी उनके अनूदित लेख अपने ब्लॉग पर डाले हैं। उन्होंने हाल में यह लेख भेजा है. इसकी भूमिका में उन्होंने लिखा है कि मनुष्य में भाषा क्षमता के जन्म के बारे में एक विद्वान के कुछ दिन पूर्व प्रकाशित एक हैरतअंगेज लेख ने मुझे प्रेरित किया कि इस विषय पर हिंदी में कुछ तथ्यात्मक व विज्ञान सम्मत सामग्री जुटाई जाय. इस सिलसिले में भाषाविज्ञानी रे जैकेनडौफ के एक शुरुआती आलेख का अनुवाद आप सब के साथ शेयर कर रहा हूं. पसंद आये तो अन्य मित्रों तक भी पहुंचाएं.
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कैसे शुरू हुई भाषा?
रे जैकेनडौफ


इस सवाल का मतलब क्या है? मनुष्य में भाषा सामर्थ्य के जन्म के बारे में पूछते हुए, सबसे पहले हमें यह स्पष्ट करना होगा कि असल में हम जानना क्या चाहते हैं? सवाल यह नहीं कि किस तरह तमाम भाषाएं समय के साथ क्रमशः विकसित होकर वर्तमान वैश्विक मुकाम तक पहुंचीं. बल्कि इस सवाल का आशय है कि किस तरह सिर्फ मनुष्य प्रजाति, न कि चिम्पैंजी और बोनोबो जैसे इसके सबसे करीबी रिश्तेदार, काल क्रम में विकसित होकर भाषा का उपयोग करने के काबिल बने.

और क्या विलक्षण विकास था यह! मानव भाषा की बराबरी कोई दूसरा प्राकृतिक संवाद तंत्र नहीं कर सकता. हमारी भाषा अनगिनत विषयों (जैसे- मौसम, युद्ध, अतीत, भविष्य, गणित, गप्प, परीकथा, सिंक कैसे ठीक करें... आदि) पर विचारों को व्यक्त कर सकती है. इसे न केवल सूचना के सम्प्रेषण के लिए, बल्कि सूचना मांगने (प्रश्न करने) और आदेश देने के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है. अन्य जानवरों के तमाम संवाद तंत्रों के विपरीत, मानव भाषा में नकारात्मक अभिव्यक्तियां भी होती हैं यानी हम मना कर सकते हैं. हर इंसानी भाषा में चंद दर्जन वाक् ध्वनियों से निर्मित दसियों हजार शब्द होते हैं. इन शब्दों की मदद से वक्ता अनगिनत वाक्यांश और वाक्य गढ़ सकते हैं. इन शब्दों के अर्थों की बुनियाद पर वाक्यों के अर्थ खड़े किए जाते हैं. इससे भी विलक्षण बात यह है कि कोई भी सामान्य बच्चा दूसरों की बातें सुनकर भाषा के समूचे तंत्र को सीख जाता है.

Thursday, June 18, 2015

पूर्व सैनिक क्यों उतरे सड़क पर?

रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर का कहना है कि भारत ने पिछले 40-50 साल से कोई युद्ध नहीं लड़ा, इसलिए देश ने सेना की सुध लेना कम कर दिया है। पर्रिकर ने साथ ही यह बात भी साफ की कि मैं यह नहीं कहना चाहता कि देश को युद्ध करना चाहिए। जयपुर में हुई गोष्ठी में उन्होंने कहा, "शांति के समय लोगों का फौज के प्रति सम्मान कम हो जाता है जिसके कारण सैनिकों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है। अफसरों की दो पीढ़ियां तो बिना कोई युद्ध देखे रिटायर हो गईं। उन्होंने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा,"अपनी सेना का सम्मान न करने वाला देश कभी आगे नहीं बढ़ सकता।... मैंने रक्षा से जुड़े मुद्दों पर कई मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखे। कुछ ने जवाब दिया, जबकि कुछ ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।

Sunday, June 14, 2015

विदेश नीति पर राजनीति नहीं

सामान्य धारणा है कि विदेश नीति और सुरक्षा से जुड़े सवालों को संकीर्ण राजनीति का विषय नहीं बनाया जाना चाहिए। विदेश नीति व्यापक फलक पर राष्ट्रीय हितों से जुड़ी होती है, उसका किसी एक पार्टी के हितों से लेना-देना नहीं होता। इसमें राजनीतिक नेतृत्व की सफलता या विफलता का फैसला जनता करती है, पर उसके लिए सही मौका और सही मंच होना चाहिए। यह बात मणिपुर में की गई फौजी कार्रवाई, पाकिस्तान के साथ चल रहे वाक्-युद्ध और भारत-चीन संवाद तथा अंतरराष्ट्रीय योग दिवस को लेकर उठाए गए सवालों के कारण सामने आई है।