Friday, March 28, 2025

फिर क्यों शुरू हो गया, गज़ा के दुःस्वप्न का दौर?


इस साल की शुरुआत में जब 19 जनवरी को इसराइल और हमास ने तीन चरणों में युद्ध-विराम पर सहमति जताई थी, तभी कुछ पर्यवेक्षकों ने कहा था कि  स्थायी-शांति तो छोड़िए, युद्ध-विराम का पहला चरण ही पूरा हो जाए, इसकी दुआ कीजिए. 

किसी तरह से रोते-बिलखते पहला चरण 1 मार्च को पूरा हो गया, पर उसके पहले दूसरे चरण के लिए जो बातचीत होनी थी, वह नहीं हुई. उस बातचीत का उद्देश्य इसराइली सेना की पूरी तरह वापसी और सभी बंधकों की रिहाई के साथ युद्ध को समाप्त करना था. ऐसा नहीं हुआ और गज़ा-पट्टी पर इसराइली बमबारी फिर शुरू हो गई.

मामला केवल हवाई हमलों तक सीमित नहीं रहा. नेत्ज़ारिम कॉरिडोर तक पहुँचने के लिए इसराइली सेना ने ज़मीनी हमला बोलकर कब्ज़ा कर लिया. यह कॉरिडोर गज़ा के उत्तर और दक्षिण को विभाजित करता है. उधर हमास द्वारा संचालित स्वास्थ्य अधिकारियों ने बताया है कि युद्ध शुरू होने के बाद से गज़ा में मरने वालों की कुल संख्या रविवार को 50,000 को पार कर गई. 

Thursday, March 27, 2025

बेहद ज़रूरी है न्याय-व्यवस्था की साख को बचाना


नेशनल ज्यूडीशियल डेटा ग्रिड के अनुसार इस हफ्ते 26 मार्च तक देश की अदालतों में चार करोड़ 54 लाख से ज्यादा मुकदमे विचाराधीन पड़े थे। इनमें 46.43 लाख से ज्यादा केस 10 साल से ज्यादा पुराने हैं। यह मान लें कि औसतन एक मुकदमे में कम से कम दो या तीन व्यक्ति पक्षकार होते हैं तो देश में करीब 10 से 15 करोड़ लोग मुकदमेबाजी के शिकार हैं। यह संख्या लगातार बढ़ रही है। सामान्य व्यक्ति के नजरिए से देखें तो अदालती चक्करों से बड़ा चक्रव्यूह कुछ नहीं है। एक बार फँस गए, तो बरसों तक बाहर नहीं निकल सकते। 

सरकार और न्यायपालिका लगातार कोशिश कर रही है कि कम से कम समय में मुकदमों का निपटारा हो जाए। यह तभी संभव है जब प्रक्रियाएं आसान बनाई जाएँ, पर न्याय व्यवस्था का संदर्भ केवल आपराधिक न्याय या दीवानी मुकदमों तक सीमित नहीं है। व्यक्ति को कारोबार का अधिकार देने, मुक्त वातावरण में अपना धंधा चलाने, मानवाधिकारों तथा अन्य अधिकारों की रक्षा के लिए भी उपयुक्त न्यायिक संरक्षण की जरूरत है। उसके पहले हमें अपनी न्याय-व्यवस्था की सेहत पर भी नज़र डालनी होगी, जिसके उच्च स्तर को लेकर कुछ विवाद खड़े हो रहे हैं। 

इस समय सवाल तीन हैं। न्याय-व्यवस्था को राजनीति और सरकारी दबाव से परे किस तरह रखा जाए? जजों की नियुक्ति को पारदर्शी कैसे बनाया जाए? तीसरे और सबसे महत्वपूर्ण सवाल है कि सामान्य व्यक्ति तक न्याय किस तरह से उपलब्ध कराया जाए? अक्सर कहा जाता है कि देश में न्यायपालिका का ही आखिरी सहारा है। पर पिछले कुछ समय से न्यायपालिका को लेकर उसके भीतर और बाहर से सवाल उठने लगे हैं। उम्मीदों के साथ कई तरह के अंदेशे हैं। कई बार लगता है कि सरकार नहीं सुप्रीम कोर्ट के हाथ में देश की बागडोर है। पर न्यायिक जवाबदेही को लेकर हमारी व्यवस्था पारदर्शी नहीं बन पाई है। 

Friday, March 21, 2025

अपने नागरिक को रिहा कराने अमेरिकी दूत काबुल पहुँचे


अफगानिस्तान में दो साल से अधिक समय तक बंधक रखे जाने के बाद एक अमेरिकी एयरलाइन मिकेनिक को तालिबान ने रिहा कर दिया है। इस सामान्य सी खबर का महत्व इस तथ्य से बढ़ जाता है कि इस रिहाई के लिए बंधक मामलों के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति के दूत एडम बोहलर और अफगानिस्तान के लिए अमेरिका के पूर्व विशेष दूत ज़लमय खलीलज़ाद खासतौर से काबुल गए और उन्होंने तालिबान के विदेशमंत्री से भी मुलाकात की। इस खबर का एक विशेष पहलू यह भी है कि संभवतः अमेरिका ने अपनी इस गतिविधि से पाकिस्तानी सेना को अलग रखा है।  

अमेरिकी नागरिक जॉर्ज ग्लीज़मैन, जिन्हें दिसंबर 2022 में एक पर्यटक के रूप में यात्रा करते समय हिरासत में लिया गया था, अमेरिका वापस जाने से पहले गुरुवार शाम को विमान से कतर पहुँच गए। तालिबान सरकार के विदेशमंत्री ने उनकी रिहाई की पुष्टि की। जनवरी में ट्रंप के पदभार ग्रहण करने से पहले, दो अमेरिकियों, रयान कॉर्बेट और विलियम वालेस मैकेंटी को अमेरिका में कैद एक अफगान के बदले में अफगानिस्तान से रिहा किया गया था।

तालिबान के विदेश मंत्रालय ने कहा कि ग्लीज़मैन की रिहाई "मानवीय आधार पर" और "सद्भावनापूर्ण कदम" है, जबकि अमेरिकी विदेशमंत्री मार्को रूबियो ने इस समझौते को "सकारात्मक और रचनात्मक कदम" बताया। अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल और तालिबान के बीच यह बैठक जनवरी में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के शपथ ग्रहण के बाद से दोनों पक्षों के बीच उच्चतम स्तर की प्रत्यक्ष वार्ता थी। 2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद से दोनों सरकारों के बीच संपर्क आमतौर पर अन्य देशों में हुआ है। कतर ने कहा है कि उसने ग्लीज़मैन की रिहाई के लिए समझौते में मदद की।

Wednesday, March 19, 2025

पाकिस्तान के गले की हड्डी बना बलोचिस्तान




बलोचिस्तानी-आंदोलन ने पाकिस्तानी सिस्टम का पर्दाफाश कर दिया है. हाल में हुए ट्रेन अपहरण से जुड़ी ‘आतंकी-गतिविधियों’ को लेकर हालाँकि सरकारी तौर पर दावा किया गया है कि उनका दमन कर दिया गया है, पर इस सरकारी दावे पर विश्वास नहीं किया जा सकता है.  

बलोच आतंकवादी समूहों ने एक ‘राष्ट्रीय सेना’ शुरू करने की घोषणा की है. इनकी मजीद ब्रिगेड आत्मघाती हमले कर रही है. पहले, उनके पास आत्मघाती हमलों की ऐसी क्षमता नहीं थी. 

11 मार्च को अपहरण हुआ और करीब 48 घंटे तक मोर्चाबंदी जारी रही, फिर भी अभी तक स्पष्ट नहीं है कि ट्रेन में कुल कितने यात्री थे और कितने वापस आए. कई संख्याएँ मीडिया में तैर रही हैं. 

सेना कहती है कि सारे बंधक ‘छुड़ा’ लिए गए हैं, वहीं दूसरे सूत्र बता रहे हैं कि बड़ी तादाद में पाकिस्तानी फौजियों को बलोच लिबरेशन आर्मी ने बंधक बना लिया है. या उनकी हत्या कर दी गई है. इन बंधकों की संख्या सौ से ढाई सौ के बीच बताई गई है. बलोच विद्रोहियों का दावा है कि उन्होंने बंधक बनाए गए 200 से ज्यादा जवानों की हत्या कर दी है.

बलोच आंदोलन

बलोच लिबरेशन आर्मी या बीएलए पाकिस्तान के बलोचिस्तान प्रांत में सक्रिय उग्रवादी अलगाववादी समूह है, जो एक स्वतंत्र बलोच राज्य की वकालत करता है. बलोच (या बलूच) लोग पाकिस्तान के बलोचिस्तान प्रांत, दक्षिण-पूर्वी ईरान और दक्षिणी अफ़गानिस्तान में फैले क्षेत्र के मूल निवासी एक जातीय समूह हैं. उनकी एक अलग भाषाई, सांस्कृतिक और जनजातीय पहचान है, उनकी अपनी भाषा बलोची है, जो ईरानी भाषा परिवार से संबंधित है.

Tuesday, March 11, 2025

तमिलनाडु के चुनाव का प्रस्थानबिंदु है 'भाषा' और 'परिसीमन' का मुद्दा


सत्तारूढ़ भाजपा और द्रमुक के बीच चल रहे वाग्युद्ध के कारण सोमवार को लोकसभा में व्यवधान पैदा हुआ और तमिलनाडु के सांसदों के विरोध के बाद केंद्रीय शिक्षामंत्री धर्मेंद्र प्रधान को अपने बयान से एक शब्द वापस लेना पड़ा। प्रश्नकाल में बहस के दौरान प्रधान ने तमिलनाडु की डीएमके सरकार पर ‘बेईमान’ होने और राज्य के छात्रों के भविष्य के साथ ‘राजनीति’ करने का आरोप लगाया। राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) के प्रति डीएमके सरकार के विरोध की आलोचना करते हुए उन्होंने पीएम-श्री स्कूलों को लेकर ‘यू-टर्न’ लेने का भी आरोप लगाया, जिसके कारण तकरार बढ़ी। लगता है कि यह तकरार अभी बढ़ेगी और ‘भाषा’ और खासतौर से ‘उत्तर-दक्षिण’ के सवालों पर केंद्रित होगी, जो 2026 में तमिलनाडु विधानसभा चुनाव में बड़े मसले बनकर उभरेंगे। 

संसदीय झड़प के तुरंत बाद तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने सोशल मीडिया पर पोस्ट जारी कर प्रधान पर ‘अहंकार’ का आरोप लगाया। स्टालिन ने लिखा, ‘केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान, जो अहंकार से ऐसे बात करते हैं जैसे कि वे राजा हों, उन्हें अपने शब्दों पर ध्यान देने की ज़रूरत है!...’आप तमिलनाडु के उचित फंड को रोक रहे हैं और हमें धोखा दे रहे हैं, फिर भी आप तमिलनाडु के सांसदों को असभ्य कहते हैं?... क्या माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसे मंज़ूरी देते हैं?’  स्टालिन ने लिखा कि तमिलनाडु सरकार ने कभी पीएम-श्री (स्कूल फॉर राइजिंग इंडिया) योजना को लागू करने पर सहमति नहीं जताई।