Friday, August 13, 2021

तालिबान सत्ता में आए भी, तो मान्यता नहीं


अफगानिस्तान को लेकर कतर की राजधानी दोहा में दो दिन से चल रही अलग-अलग वार्ताएं भी पूरी हो गईं और उनका परिणाम विश्व-समुदाय की इस उम्मीद के रूप में सामने आया है कि प्रांतीय राजधानियों पर हो रहे हमले फौरन रोके जाएं और बातचीत के जरिए शांति-प्रक्रिया को बढ़ाया जाए। अमेरिका, चीन और कुछ दूसरे देशों के प्रतिनिधियों के बीच हुई वार्ता के बाद जारी बयान में कहा गया है कि अफगानिस्तान में ताकत के जोर पर बनाई गई सरकार को दुनिया का कोई भी देश मान्यता नहीं देगा। इस प्रक्रिया में अफगान सरकार और तालिबान-प्रतिनिधियों से बातचीत भी की गई। एक्सटेंडेड ट्रॉयका की इस बैठक में पाकिस्तान, ईयू और संरा प्रतिनिधि भी शामिल थे।

वार्ता के बाद जारी बयान में कहा गया है कि प्रांतीय राजधानियों पर हमलों और हिंसा को फौरन रोका जाना चाहिए। दोनों पक्षों को बैठकर राजनीतिक-समझौता करना चाहिए। इस वार्ता के दौरान और उसके अलावा बाहर भी अफगानिस्तान सरकार ने कहा है कि हम तालिबान सत्ता में भागीदारी के लिए तैयार हैं। वार्ता में शामिल विश्व-समुदाय के प्रतिनिधियों ने कहा है कि यदि दोनों पक्ष शांतिपूर्ण-समझौते पर राजी होंगे, तब देश के पुनर्निर्माण के लिए सहायता दी जाएगी।

उधर बीबीसी संवाददाता सिकंदर किरमानी ने तालिबान के अधीन-क्षेत्रों का दौरा करने के बाद लिखा है कि तालिबान ने कहा, अगर पश्चिमी संस्कृति नहीं छोड़ी, तो हमें उन्हें मारना होगा। किरमानी ने लिखा है, अंतरराष्ट्रीय सैनिकों की वापसी के बाद से तालिबान हर दिन नए क्षेत्रों पर अपना नियंत्रण स्थापित कर रहे हैं. लेकिन इन सबके बीच जो लोग सबसे ज्यादा प्रभावित हैं, वो है यहाँ की आम जनता, जो काफ़ी डरी हुई है। हाल के सप्ताहों में लाखों आम अफ़ग़ान नागरिकों ने अपना घर छोड़ दिया है। सैकड़ों लोग या तो मारे गए हैं या घायल हुए हैं।

जर्मन रेडियो के अनुसार एक सुरक्षा सूत्र ने बताया कि पहाड़ियों से घिरी राजधानी काबुल में आने जाने के सारे रास्ते बंद कर दिए गए हैं। रॉयटर्स एजेंसी से इस सूत्र ने कहा, "इस बात का डर है कि खुदकुश हमलावर शहर के राजनयिक दफ्तरों वाले इलाकों में घुसकर हमला कर सकते हैं ताकि वे लोगों को डरा सकें और सुनिश्चित कर सकें कि जल्द से जल्द सारे लोग चले जाएं।” संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि पिछले एक महीने में एक हजार से ज्यादा आम नागरिकों की मौत हो चुकी है। रेड क्रॉस ने कहा है कि सिर्फ इस महीने में 4,042 घायल लोगों का 15 अस्पतालों में इलाज हुआ है।

Thursday, August 12, 2021

क्या तालिबान की वापसी होगी, अफगान-सरकार को गिरने देगा अमेरिका?

हेरात में तालिबान के खिलाफ तैयार इस्माइल खान के सैनिक  

लगातार तालिबानी बढ़त के बाद अफगान सरकार कुछ हरकत में आई है। उसने तालिबान को सरकार में शामिल होने का निमंत्रण दिया है। वहीं अमेरिकी इंटेलिजेंस के एक अधिकारी के हवाले से खबर है कि तीन महीने के भीतर काबुल सरकार गिर जाएगी। सवाल है कि क्या अमेरिका इस सरकार को गिरने देगा
?  दूसरा सवाल है कि साढ़े तीन लाख सैनिकों वाली अफगान सेना करीब 75 हजार सैनिकों वाली तालिबानी सेना से इतनी आसानी से पराजित क्यों हो रही है? अमेरिका कह रहा है कि तालिबान ने ताकत के जोर पर कब्जा किया तो हम उस सरकार को मान्यता नहीं देंगे। अमेरिकी राष्ट्रपति ने दुनिया के देशों से अपील भी की है कि वे तालिबान को मान्यता नहीं दें, पर क्या ऐसा सम्भव है? क्या रूस, चीन और पाकिस्तान उसे देर-सबेर मान्यता नहीं देंगे? अशरफ ग़नी की सरकार को गिरने से अमेरिका कैसे रोकेगा और सरकार गिरी तो वह क्या कर लेगा?

अमेरिका ने जिस अफगान सेना को प्रशिक्षण देकर खड़ा किया है, उसके जनरल या तो भाग रहे हैं या तालिबान के सामने समर्पण कर रहे हैं। एक पुरानी रिपोर्ट के अनुसार तालिबान का सालाना बजट डेढ़ अरब डॉलर से ज्यादा का होता है। कहाँ से आता रहा है यह पैसा? बीबीसी के अनुसार तालिबान ने पिछले एक हफ़्ते में अफ़ग़ानिस्तान की 10 प्रांतीय राजधानियों को अपने कब्ज़े में ले लिया है। समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार अमेरिकी ख़ुफ़िया रिपोर्ट में बताया गया है कि 90 दिनों के भीतर तालिबान काबुल को अपने नियंत्रण में ले सकता है। क्या तालिबान ऐसे ही आगे बढ़ता रहेगा और अफ़ग़ान सरकार तमाशबीन बनी रहेगी? क्या अफ़ग़ानिस्तान में अशरफ़ ग़नी सरकार को जाना होगा? पिछले बीस वर्षों में बड़ी संख्या में अफगान स्त्रियाँ पढ़-लिखकर डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक और शिक्षक बनी हैं, उनका क्या होगा? क्या देश फिर से उसी मध्ययुगीन अराजकता के दौर में लौट जाएगा? क्या वहाँ के नागरिक यही चाहते हैं?

कतर की राजधानी दोहा में आज गुरुवार 12 अगस्त को अमेरिका की पहल पर बैठक हो रही है, जिसमें भारत भी भाग ले रहा है। इसमें इंडोनेशिया और तुर्की भी शामिल हैं। इसके पहले मंगलवार को एक और बैठक हुई थी, जिसमें अमेरिका के अलावा चीन, पाकिस्तान, उज्बेकिस्तान, ब्रिटेन, संरा और ईयू के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इसके बाद बुधवार को रूसी पहले पर ट्रॉयका प्लस यानी चार-पक्षीय सम्मेलन हुआ। चीन, अमेरिका, रूस व पाकिस्तान से आए प्रतिनिधियों ने अफ़गानिस्तान की हालिया स्थिति पर विचार विमर्श किया और शांति-वार्ता के विभिन्न पक्षों से जल्द ही संघर्ष और हिंसा को खत्म कर मूलभूत मुद्दों पर समझौता संपन्न करने की अपील की।

क्या तालिबान मानेंगे?

बातचीत का क्रम जारी है, पर सवाल है कि क्या तालिबान किसी समझौते के लिए तैयार होंगे? इस बीच पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा है कि तालिबान वर्तमान काबुल सरकार के साथ किसी प्रकार का समझौता करने को तैयार नहीं हैं। न्यूज़ चैनल अल-जज़ीरा से अफ़ग़ानिस्तान के गृहमंत्री ने कहा है कि तालिबान को हराने के लिए हमारी सरकार प्लान बी पर काम कर रही है।  गृहमंत्री जनरल अब्दुल सत्तार मिर्ज़ाकवाल ने बुधवार को अल-जज़ीरा से कहा कि तालिबान को पीछे धकेलने के लिए तीन स्तरीय योजना के तहत स्थानीय समूहों को हथियारबंद किया जा रहा है।

संसदीय कर्म का ह्रास, जिम्मेदार कौन?


इस सप्ताह जिस मॉनसून-सत्र का समापन हुआ है, उसे पिछले दो दशक में लोकसभा के तीसरे सबसे कम और राज्यसभा में आठवें सबसे कम उत्पादक सत्र के रूप में याद किया जाएगा। संसदीय-कर्म के इस विचलन और विद्रूप के पीछे सरकार और विरोधी-दलों दोनों को जिम्मेदार माना जाना चाहिए। यानी मोटे तौर पर यह भारतीय-राजनीति का विद्रूप है, जो अक्सर दिखाई पड़ता है। सत्र समापन के बाद दोनों पक्षों के राजनेताओं का मुस्कराते हुए नजर आना क्या कहता है?

Wednesday, August 11, 2021

कुंदूज हवाई अड्डे और वहाँ खड़े एमआई-35 हेलीकॉप्टर पर तालिबान का कब्जा



तालिबान के बढ़ते हमलों को रोकने में नाकाम रहे अफ़ग़ानिस्तान की सेना के प्रमुख जनरल वली मोहम्मद अहमदज़ई को अब्दुल ग़नी सरकार ने बर्खास्‍त कर दिया है। उनकी जगह पर जनरल हैबतुल्‍ला अलीज़ई को अगला सेना प्रमुख नियुक्‍त किया गया है। जनरल वली को ऐसे समय पर बर्खास्‍त किया गया है जब तालिबान आतंकी देश के 65 फीसदी इलाके पर कब्जा कर चुके हैं। अफ़ग़ानिस्तान की एरियाना न्यूज़ ने सेना प्रमुख की बर्खास्तगी की पुष्टि की है। देश के वित्तमंत्री खालिद पायेंदा पहले ही इस्तीफा देकर देश छोड़ चुके हैं। तालिबान ने कुंदूज के हवाई अड्डे पर भी कब्जा कर लिया है, जहाँ खड़ा एक एमआई-35 अटैक हेलीकॉप्टर भी उनके कब्जे में चला गया है। यह हेलीकॉप्टर भारत ने अफगानिस्तान को उपहार में दिया था।  

 उधर दोहा में आज से तीन दिन की एक बैठक शुरू हुई है, जिसमें संरा, कतर, उज्बेकिस्तान और पाकिस्तान भाग ले रहे हैं। इसके अलावा आज ट्रॉयका की बैठक हो रही है, जिसमें रूस, चीन, अमेरिका सदस्य हैं। उनके अलावा इस बैठक में पाकिस्तान भी शामिल है।

इन तनावपूर्ण हालात में राष्‍ट्रपति अशरफ गनी मजार-ए-शरीफ के दौरे पर पहुंचे हैं जहां उन्होंने अफ़ग़ानिस्तान के बूढ़े शेर कहे जाने वाले अब्दुल रशीद दोस्तम से मुलाकात की है। तालिबान ने पहले ही देश के ग्रामीण इलाकों पर कब्जा कर लिया है और अब उसने शहरों पर कब्जा तेज कर दिया है। सुरक्षा बल तालिबानी हमलों के सामने बेबस नजर आ रहे हैं।

तालिबान के खिलाफ विफल क्यों हो रही है अफगानिस्तान की सेना?


पिछले कुछ दिनों में तालिबान ने अफगानिस्तान के सात सूबों की राजधानियों पर कब्जा कर लिया है। उत्तर में कुंदुज, सर-ए-पोल और तालोकान पर तालिबान ने कब्जा कर लिया। ये शहर अपने ही नाम के प्रांतों की राजधानियां हैं। दक्षिण में ईरान की सीमा से लगे निमरोज़ की राजधानी जरांज पर कब्जा कर लिया है। उज्बेकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान सीमा से लगे नोवज्जान प्रांत की राजधानी शबरग़ान पर भी तालिबान का कब्जा हो गया है। मंगलवार की शाम को उत्तर के बागलान प्रांत की राजधानी पुल-ए-खुमरी पर तालिबान का कब्जा हो गया। ईयू के एक प्रवक्ता के अनुसार देश के 65% हिस्से पर या तो तालिबान का कब्जा है या उसके साथ लड़ाई चल रही है।

उधर खबरें यह भी हैं कि अफगान सुरक्षा बलों ने पिछले शुक्रवार को हेरात प्रांत के करुख जिले पर जवाबी कार्रवाई करते हुए फिर से कब्जा कर लिया। तालिबान ने पिछले एक महीने में हेरात प्रांत के एक दर्जन से अधिक जिलों पर कब्जा कर लिया था। हेरात में इस्माइल खान का ताकतवर कबीला सरकार के साथ है। उसने तालिबान को रोक रखा है। फराह प्रांत में अफगान वायुसेना ने तालिबान के ठिकानों पर बम गिराए। अमेरिका के बम वर्षक विमान बी-52 भी इन हवाई हमलों में अफगान सेना की मदद कर रहे हैं। तालिबान ने इन हवाई हमलों को लेकर कहा है, कि इनके माध्यम से आम अफगान लोगों को निशाना बनाया जा रहा है। उधर अमेरिका का कहना है कि हमारा सैनिक अभियान 31 अगस्त को समाप्त हो जाएगा। उसके बाद देश की रक्षा करने की जिम्मेदारी अफगान सेना की है। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा है कि अफगानिस्तान के नेताओं को अपनी भूमि की रक्षा के लिए अब निकल कर आना चाहिए। 

हवाई हमलों के बावजूद तालिबान की रफ्तार थमी नहीं है। इस दौरान सवाल उठाया जा रहा है कि अफगान सेना तालिबान के मुकाबले लड़ क्यों नहीं पा रही है? कहा यह भी जा रहा है कि अमेरिकी सेना को कम से कम एक साल तक और अफगानिस्तान में रहना चाहिए था। कुछ पर्यवेक्षकों का कहना है कि अमेरिकी सेना को हटना ही था, तो पहले देश में उन कबीलों के साथ मोर्चा बनाना चाहिए था, जो तालिबान के खिलाफ खड़े हैं।