इस बात को निःसंकोच कहा जा सकता है कि नरेंद्र मोदी को केवल आर्थिक मामलों में
ही नहीं, हर तरह के विषयों में अरुण जेटली का काफी सहारा था। एनडीए सरकार के पहले
दौर में अनेक मौकों पर सरकार का पक्ष सामने रखने के लिए उन्हें खड़ा किया गया। राज्यसभा
में अल्पमत होने के कारण सरकार के सामने जीएसटी और दिवालिया कानून को पास कराने की
चुनौती थी, जिसपर पार पाने में जेटली को सफलता हासिल हुई। ये दो कानून आने वाले
समय में मोदी सरकार की सफलता के सूत्रधार बनेंगे। खासतौर से जीएसटी को लेकर जेटली
ने विभिन्न राज्य सरकारों को जितने धैर्य और भरोसे के साथ आश्वस्त किया वह साधारण
बात नहीं है।
इस साल मई में जब नई सरकार का गठन हो रहा था, अरुण जेटली ने जब कुछ समय के लिए
कोई सरकारी पद लेने में असमर्थता व्यक्त की थी, तभी समझ में आ गया था कि समस्या
गंभीर है। जून, 2013 में जब बीजेपी के भीतर प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी को लेकर
विवाद चल रहा था, जेटली ने खुलकर मोदी का साथ दिया। बीजेपी और कांग्रेस के बीच जब
भी महत्वपूर्ण मसलों पर बहस चली, जेटली ने पार्टी का वैचारिक पक्ष बहुत अच्छे
तरीके से रखा। मोदी सरकार बनने के बाद उन्होंने न केवल वित्तमंत्री का पद संभाला,
बल्कि जरूरत पड़ने पर रक्षा और सूचना और प्रसारण मंत्रालय की बागडोर भी थामी। वे
अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में भी मंत्री रहे। उन्होंने वाणिज्य और उद्योग,
विधि, कम्पनी कार्य तथा सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय संभाले। वे सन 2009 से 2014 तक
राज्यसभा में विपक्ष के नेता रहे।