तमिलनाडु में जल्लीकट्टू आंदोलन ने
कई तरह के सवाल खड़े किए हैं. पहला सवाल आधुनिकता और परंपरा के द्वंद्व का है.
उससे ज्यादा बड़ा सवाल सांविधानिक मर्यादा का है. मामला सुप्रीम कोर्ट में होने के
बावजूद राज्य सरकार ने अध्यादेश लाने की पहल की. इसके पहले जनवरी 2016 में केंद्र
सरकार ने कुछ पाबंदियों के साथ जल्लीकट्टू के खेल को जारी रखने की एक अधिसूचना
जारी की थी. अदालत ने उस अधिसूचना को न केवल स्थगित किया, बल्कि केंद्र सरकार से अपनी
नाराजगी भी जाहिर की थी.
Friday, January 27, 2017
हम लाए हैं तूफान से कश्ती निकाल के...
आज के दोष कल दूर होंगे
संयोग है कि इस
साल के गणतंत्र दिवस के आसपास राष्ट्रीय महत्व की दो परिघटनाएं और हो रही हैं।
पहली है विमुद्रीकरण की प्रक्रिया, जो दुनिया में पहली बार अपने किस्म की सबसे
बड़ी गतिविधि है। यह ऐसी गतिविधि है, जिसने प्रत्यक्ष या परोक्ष देश के प्रायः
हरेक नागरिक को छुआ है, भले ही वह बच्चा हो या बूढ़ा। इस अनुभव से हम अभी गुजर ही
रहे हैं। इसके निहितार्थ क्या हैं, इसमें हमने क्या खोया या क्या पाया, यह इस लेख
का विषय नहीं है। यहाँ केवल इतना रेखांकित करने की इच्छा है कि हम जो कुछ भी करते
हैं, वह दुनिया की सबसे बड़ी गतिविधि होती है, क्योंकि हम दुनिया के सबसे बड़े
लोकतंत्र हैं।
बेशक चीन की
आबादी हमसे ज्यादा है, पर वहाँ लोकतंत्र नहीं है। लोकतंत्र के अच्छे और खराब
अनुभवों से हम गुजर रहे हैं। लोकतंत्र के पास यदि वैश्विक समस्याओं का समाधान है
तो वह भारत से ही निकलेगा, अमेरिका, यूरोप या चीन से नहीं। क्योंकि इतिहास के एक
खास मोड़ पर हमने लोकतंत्र को अपने लिए अपनाया और खुद को गणतंत्र घोषित किया।
गणतंत्र माने जनता का शासन। यह राजतंत्र नहीं है और न किसी किस्म की तानाशाही।
भारत एक माने में और महत्वपूर्ण है। दुनिया की सबसे बड़ी विविधता इस देश में ही
है। संसार के सारे धर्म, भाषाएं, प्रजातियाँ और संस्कृतियाँ भारत में हैं। इस
विशाल विविधता को किस तरह एकता के धागे से बाँधकर रखा जा सकता है, यह भी हमें
दिखाना है और हम दिखा रहे हैं।
Monday, January 23, 2017
गणतंत्र दिवस के बहाने...
पिछले कुछ समय से
तमिलनाडु के जल्लीकट्टू आयोजन पर लगी अदालती रोक के विरोध में आंदोलन चल रहा था. विरोध इतना
तेज था कि वहाँ की पूरी सरकारी-राजनीतिक व्यवस्था इसके समर्थन में आ गई. अंततः केंद्र
सरकार ने राज्य के अध्यादेश को स्वीकृति दी और जल्लीकट्टू मनाए जाने का रास्ता साफ
हो गया. जनमत के आगे व्यवस्था को झुकना पड़ा. गणतंत्र दिवस के कुछ दिन पहले संयोग से
कुछ ऐसी घटनाएं हो रही हैं, जिनका रिश्ता हमारे लोकतंत्र की बुनियादी धारणाओं से
है. हमें उनपर विचार करना चाहिए.
Sunday, January 22, 2017
असमंजस में कांग्रेस
जिस तरह पाँच राज्यों के विधानसभा चुनाव बीजेपी के लिए मध्यावधि जनादेश का काम
करेंगे उसी तरह वे कांग्रेस को भी अपनी ताकत को तोलने का मौका देंगे। सन 2014 के
बाद से उसकी लोकप्रियता में लगातार गिरावट आई है। यह पहला मौका है जब पार्टी को सकारात्मकता
दिखाई पड़ती है। उसे पंजाब में अपनी वापसी, उत्तराखंड में फिर से अपनी सरकार और
उत्तर प्रदेश में सुधार की संभावना नजर आ रही है। गोवा में भी उसे अपनी स्थिति को
सुधारने का मौका नजर आता है। पर उसके चारों सपने टूट भी सकते हैं। जिसका मतलब होगा
कि 2019 के सपनों की छुट्टी। रसातल में जाना सुनिश्चित।
Saturday, January 21, 2017
अपनी उपस्थिति दर्ज कराता रहेगा संघ
जयपुर लिटरेचर
फेस्टिवल में आरएसएस के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख मनमोहन वैद्य ने आरक्षण के बारे
में जो कहा है, वह संघ के परंपरागत विचार के विपरीत नहीं है. संघ लंबे अरसे से कहता
रहा है कि आरक्षण अनंतकाल तक नहीं चलेगा. संविधान-निर्माताओं की जो मंशा थी हम उसे
ही दोहरा रहे हैं.
इस वक्त सवाल
केवल यह है कि मनमोहन वैद्य ने इन बातों को कहने के पहले उत्तर प्रदेश के चुनावों
के बारे में सोचा था या नहीं. अमूमन संघ के वरिष्ठ पदाधिकारी बगैर सोचे-समझे बातें
नहीं करते और जो बात कहते हैं वह नपे-तुले शब्दों में होती है. ऐसे बयान देकर वे
अपनी उपस्थिति को रेखांकित करने का मौका खोते नहीं हैं.
Subscribe to:
Posts (Atom)