विज्ञान, तकनीक और खासतौर से रक्षा
तकनीक के मामलों में हमें सन 2015 में काफी उम्मीदें हैं। पिछले साल की शुरूआत
भारत के मंगलयान के प्रक्षेपण की खबरों से हुई थी। सितम्बर में मंगलयान अपने
गंतव्य तक पहुँच गया। साल का अंत होते-होते दिसम्बर जीएसएलवी मार्क-3 की सफल उड़ान
के बाद भारत ने अंतरिक्ष में समानव उड़ान का एक महत्वपूर्ण चरण पूरा कर लिया है। अंतरिक्ष
में भारत अपने चंद्रयान-2 कार्यक्रम को अंतिम रूप दे रहा है। साथ ही शुक्र और सूर्य
की ओर भारत के अंतरिक्ष यान उड़ान भरने की तैयारी कर रहे हैं। एक अरसे से रक्षा के
क्षेत्र में हमें निराशाजनक खबरें सुनने को मिलती रही हैं। पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल
वीके सिंह की तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को लिखी गई चिट्ठी के लीक होने के
बाद इस आशय की खबरें मीडिया में आईं कि सेना के पास पर्याप्त सामग्री नहीं है।
रक्षा से जुड़े अनेक फैसलों का
कार्यान्वयन रुका रहा। युद्धक विमान तेजस, अर्जुन टैंक और 155 मिमी की संवर्धित
तोप के विकास में देरी हो रही है। मोदी सरकार के सामने रक्षा तंत्र को दुरुस्त
करने की जिम्मेदारी है। कई प्रकार की शस्त्र प्रणालियाँ पुरानी पड़ चुकी हैं।
मीडियम मल्टी रोल लड़ाकू विमानों के सौदे को अंतिम रूप देना है। सन 2011 में भारत
ने तय किया था कि हम फ्रांसीसी विमान रफेल खरीदेंगे और उसका देश में उत्पादन भी
करेंगे। वह समझौता अभी तक लटका हुआ है। तीनों सेनाओं के लिए कई प्रकार के
हेलिकॉप्टरों की खरीद अटकी पड़ी है। विक्रमादित्य की कोटि के दूसरे विमानवाहक पोत
के काम में तेजी लाने की जरूरत है। अरिहंत श्रेणी की परमाणु शक्ति चालित पनडुब्बी
को पूरी तरह सक्रिय होना है। इसके साथ दो और पनडुब्बियों के निर्माण कार्य में
तेजी लाने की जरूरत है।