Sunday, December 14, 2014

मोदी के गले की फाँस बनेगा हार्डकोर हिन्दुत्व

मोदी के गले की हड्डी ‘कट्टर हिंदुत्व’

  • 28 मिनट पहले

नरेंद्र मोदी का कार्टून

केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार आने के बाद देश में कुछ दिनों तक हिन्दुत्व को लेकर शांति रही.
लोकसभा चुनाव के आख़िरी दौर में कुछ मसले ज़रूर उठे थे, लेकिन मोदी ने उन्हें तूल नहीं दिया.
अब ‘कट्टर हिन्दुत्व’ नरेंद्र मोदी सरकार के गले की फाँस बनता दिख रहा है.

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गिरिराज सिंह, भाजपा नेता, बिहार

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ‘कट्टरपंथी’ माना जाता है, पर चुनाव अभियान में उन्होंने राम मंदिर की बात नहीं की, बल्कि गिरिराज सिंह और प्रवीण तोगड़िया जैसे नेताओं को कड़वे बयानों से बचने की सलाह दी.
उनके रुख़ के विपरीत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सहयोगी संगठनों से जुड़े कुछ नेता विवादित मुद्दों को हवा दे रहे हैं. जैसे, विहिप नेता अशोक सिंघल ने दावा किया कि दिल्ली में 800 साल बाद 'गौरवशाली हिंदू' शासन करने आए हैं.

नरेंद्र मोदी, हिन्दुत्व, भाजपा

साध्वी निरंजन ज्योति और योगी आदित्यनाथ के तीखे तेवरों के बीच साक्षी महाराज का नाथूराम गोडसे के महिमा-मंडन का बयान आया. बयान बाद में उसे वापस ले लिया गया, पर तीर तो चल चुका था.
इधर, उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाइक ने कहा कि अयोध्या में राम मंदिर जल्द से जल्द बनना चाहिए. इसी तरह ‘धर्म जागरण’ और ‘घर वापसी’ जैसी बातें पार्टी की नई राजनीति से मेल नहीं खातीं.

मोदी के नादान दोस्त

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साक्षी महाराज के बयान पर एतराज जताया है। साथ ही अपने सहयोगियों को सलाह दी है कि ऐसा बयान नहीं दें जिससे विवाद पैदा हो और विपक्ष को बैठे-बिठाए बड़ा मुद्दा मिल जाए। संसद का शीतकालीन सत्र माफीनामों का इतिहास बना रहा है। पिछले दसेक दिन में कम से कम दो बार प्रधानमंत्री ने संयम बरतने की अपील की है। इस दौरान तीन सांसद माफी मांग चुके हैं। नाथूराम गोडसे को देशभक्त बताने वाले साक्षी महाराज के दो बार खेद जताने के बाद ही शुक्रवार को संसद सामान्य हो पाई। इससे पहले केंद्रीय राज्य मंत्री निरंजन ज्योति और तृणमूल कांग्रेस के कल्याण बनर्जी को भी माफी मांगनी पड़ी थी।

Saturday, December 13, 2014

‘आदर्श’ राजनीति के इंतज़ार में गाँव

बदलाव लाने का एक तरीका होता है चेंज लीडर्स तैयार करो। ऐसे व्यक्तियों और संस्थाओं को बनाओ, जो दूसरों को प्रेरित करें। इस सिद्धांत पर हमारे देश में आदर्शों के ढेर लग गए हैं। आदर्श विद्यालय, आदर्श चिकित्सालय, आदर्श रेलवे स्टेशन, बस स्टेशन से लेकर आदर्श ग्राम तक। सैद्धांतिक रूप से यह उपयोगी धारणा है, बशर्ते इसे लागू करने का कोई आदर्श सिद्धांत हो। विकास की वास्तविक समस्या अच्छी नीतियों को खोजने की नहीं, राजनीतिक प्रक्रिया को खोजने की है। राजनीति सही है, तो सही नीतियाँ अपने आप बनेंगी। खराब संस्थाओं के दुष्चक्र को तोड़ने का एक रास्ता है आदर्श संस्थाओं को तैयार करना। कुछ दशक पहले अमेरिकी अर्थशास्त्री पॉल रोमर ने व्यवस्थाओं को ठीक करने का एक समाधान सुझाया यदि आप अपना देश नहीं चला सकते तो उसे किसी दूसरे को सब कॉण्ट्रैक्ट कर दीजिए। उन्होंने अपनी अवधारणा को नाम दिया चार्टर सिटीज़। देश अपने यहाँ खाली ज़मीन विदेशी ताकत को सौंप दें, जो नया शहर बसाए और अच्छी संस्थाएं बनाए। एकदम बुनियाद से शुरू करने पर अच्छे ग्राउंड रूल भी बनेंगे।

हमें आदर्श गाँव और आदर्श विद्यालय क्यों चाहिए? क्योंकि सामान्य तरीके से गाँवों का विकास नहीं होता। वे डराने लगे हैं। पहले यह देखना होगा कि क्या गाँव डराते हैं? नरेंद्र मोदी की सरकार ने पहले 100 स्मार्ट सिटीज़ की अवधारणा दी और अब आदर्श ग्राम योजना दी है। बदलाव लाने का आइडिया अच्छा है बशर्ते वह लागू हो। इस साल जुलाई में आंध्र प्रदेश से खबर मिली थी कि शामीरपेट पुलिस ने एक मुर्गी फार्म पर छापा मारकर रेव पार्टी का भंडाफोड किया है। मुर्गी फार्म पर मुर्गियाँ नहीं थीं। अलबत्ता कुछ  नौजवानों के सामने औरतें उरियाँ (नग्न) रक़्स कर रही थीं। इस रेव पार्टी से पुलिस ने 14 नौजवानों को गिरफ्तार किया। शामीरपेट हैदराबाद और सिकंदराबाद के जुड़वाँ शहरों से 25 किमी दूर बसा शहर है। यह शहर कभी गाँव होता था। समाजशास्त्री और साहित्यकार श्यामाचरण दुबे ने इस गाँव में पचास के दशक में उस्मानिया विवि के तत्वावधान में एक सामाजिक अध्ययन किया था। उसके आधार पर उन्होंने अपनी मशहूर पुस्तक इंडियन विलेज लिखी थी। उस किताब के अंतिम वाक्यों में उन्होंने लिखा, कहा नहीं जा सकता कि शताब्दी के अंत तक शामीरपेट की नियति क्या होगी। संभव है वह विकराल गति से बढ़ते महानगर का अर्ध-ग्रामीण अंतः क्षेत्र बन जाए...। सन 2014 में उनकी बात सच लगती है।

गाँव को लेकर हमारी धारणाओं पर अक्सर भावुकता का पानी चढ़ा रहता है। अहा ग्राम्य जीवन भी क्या है जैसी बातें कवि सम्मेलनों में अच्छी लगती हैं। किसी गाँव में जाकर देखें तो कहानी दूसरी मिलेगी। गाँव माने असुविधा। महात्मा गांधी का कहना था, भारत का भविष्य गाँवों में छिपा है। क्या बदहाली और बेचारगी को भारत का भविष्य मान लें? गाँव केवल छोटी सी भौगोलिक इकाई नहीं है। हजारों साल की परम्परा से वह हमारे लोक-मत, लोक-जीवन और लोक-संस्कृति की बुनियाद है। सामाजिक विचार का सबसे प्रभावशाली मंच। पर ग्राम समुदाय स्थिर और परिवर्तन-शून्य नहीं है। वह उसमें हमारे सामाजिक अंतर्विरोध भी झलकते हैं। हमारा लोकतंत्र पश्चिम से आयातित है। अलबत्ता 73 वे संविधान संशोधन के बाद जिस पंचायत राज व्यवस्था को अपने ऊपर लागू करने का फैसला किया, उसमें परम्परागत सामाजिक परिकल्पना भी शामिल थी, जो व्यवहारतः लागू हो नहीं पाई है।

Tuesday, December 9, 2014

You messed up my life: Shweta Basu Prasad writes open letter to media

In September this year,actress Shweta Basu Prasad was arrested by Hyderabad Police during a raid conducted in a hotel and was charged of prostitution. Following the arrest the actress was sent to a rescue home, where she stayed for about two months. The allegations of sex work have been cleared by the Hyderabad sessions court and Prasad is now back in Mumbai, currently working with Anurag Kashyap.
You can read her open letter to the media here. It has not been edited for grammatical and punctuation errors.

Dear,
Members of Media,
I grew up admiring some great journalists and reporters who, some times report even live from war-torn borders, natural disaster sites, terror attacked locations, etc. without hesitating a bit. These heroes inspired me to pursue my degree in Mass Media and Journalism degree too. I always thought, ‘wow! These guys, the media, actually risk their lives to bring us the truth’. And boom! You create a mess in my very life. Well done.

Monday, December 8, 2014

योजना आयोग : काम बदलें या नाम?

कांग्रेसी 'योजना' बनाम भाजपाई 'आयोग'

  • 1 घंटा पहले
भारत संघ के राज्यों के मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ.
भारत संघ के राज्यों के मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ.
रविवार को दिल्ली में हुई मुख्यमंत्रियों की बैठक में योजना आयोग को लेकर मचे घमासान और राजनीति का पटाक्षेप नहीं हुआ.
बल्कि लगता है कि इसे लेकर राजनीति का नया दौर शुरू होगा.
यह संस्था जवाहरलाल नेहरू ने शुरू ज़रूर की थी लेकिन इसके रूपांतरण की बुनियाद साल 1991 में बनी कांग्रेस सरकार ने ही डाली थी.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व्यक्ति और विचारक के रूप में नेहरूवादी विरोधी के रूप में उभरे हैं.

कांग्रेस का मोह

राहुल गांधी, सोनिया गांधी
उन्होंने इस साल लाल किले की प्राचीर से स्वतंत्रता दिवस के अपने पहले संदेश में योजना आयोग को समाप्त करने की घोषणा करके व्यवस्था-परिवर्तन के साथ-साथ प्रतीक रूप में अपने नेहरू विरोध को भी रेखांकित किया था.
लगता यह भी है कि कांग्रेस को इसके नाम से मोह है.
वह शायद चाहती है कि इसका काम बदल जाए, पर नाम न बदले. दूसरी ओर सारी कवायद नाम की लगती है. काम घूम-फिरकर फिर वैसा ही रहेगा.