नरेन्द्र मोदी की
सार्वजनिक सभाओं के लाइव टीवी प्रसारण के पीछे क्या कोई साजिश, योजना या रणनीति है? और है तो उसकी जवाबी योजना
और रणनीति क्या है? इसमें दो राय नहीं कि समाज को बाँटने वाले या ध्रुवीकरण करने
वाले नेताओं की सूची तैयार करने लगें तो नरेन्द्र मोदी का नाम सबसे ऊपर ऊपर की ओर होगा.
उनकी तुलना में भाजपा के ही अनेक नेता सेक्यूलर और सौम्य घोषित हो चुके हैं. मोदी के
बारे में लिखने वालों के सामने सबसे बड़ा संकट या आसानी होती है कि वे खड़े कहाँ हैं.
यानी उनके साथ हैं या खिलाफ? किसी एक तरफ रहने में आसानी है और बीच के रास्ते में संकट.
पर अब जब बीजेपी के लगभग नम्बर एक नेता के रूप में मोदी सामने आ गए हैं, उनके गुण-दोष
को देखने-परखने की जरूरत है. जनता का बड़ा तबका मोदी के बारे में कोई निश्चय नहीं कर
पाया है. पर राजनेता और आम आदमी की समझ में बुनियादी अंतर होता है. राजनेता जिसकी खाता
है, उसकी गाता है. आम आदमी को निरर्थक गाने और बेवजह खाने में यकीन नहीं होता.
कई बार लगता है कि मोदी ज़मीन से आते हैं और राहुल पाठ्य पुस्तकों के सहारे बोलते हैं. राहुल कवि हैं तो मोदी मंच के कवि.
वे मंच का लाभ उठाना जानते हैं. फिक्की की महिला शाखा की सभा का पूरा फायदा मोदी ने उठाया, बल्कि पूरी बहस को स्त्रियों के सशक्तिकरण से जोड़कर वे एक कदम आगे चले गए हैं.
पिछले चुनाव के दौरान गुजरात से आने वाले बताते थे कि मोदी स्त्रियों के बीच काफी लोकप्रिय हैं. सोमवार की सभा में यह बात समझ में आई कि वे क्यों लोकप्रिय हैं.
चार दिन पहले राहुल गांधी का भाषण विचारों के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण था. लेकिन राहुल इस सवाल को छोड़ गए कि यह सब हासिल कैसे होगा.
मोदी के भाषण में वे बातें थीं, जो हो चुकी हैं. जो किया है उसके सहारे यह बताना आसान होता है कि क्या सम्भव है.
नरेन्द्र मोदी के सोमवार के भाषण में राजनीतिक संदर्भ केवल दो जगह आए और उन्होंने संकेत में बात कह कर इसका फायदा उठाया.
एक जगह उन्होंने राज्यपाल के दफ्तर में अटके स्त्रियों को आरक्षण देने वाले विधेयक का जिक्र किया और दूसरी जगह दूसरों के खोदे गड्ढों को भरने की बात कही.
"अभिनय में राहुल गांधी नरेन्द्र मोदी के मुकाबले हल्के बैठते हैं. नरेन्द्र मोदी के भाषण में नाटकीयता होती है. फिक्की की महिला शाखा के समारोह में नरेन्द्र मोदी ने मातृशक्ति के साथ अपनी बात को जिस तरह जोड़ा वह राहुल गांधी के भाषणों में नहीं मिलता. "
प्रमोद जोशी
इसके अलावा जस्सू बेन के पीज्जा का जिक्र करते हुए उन्होंने कलावती का नाम लेकर राहुल पर चुटकी ली. बेशक गुजरात में मानव विकास को लेकर तमाम सवाल है, पर वे इस सभा में उठाए नहीं जा सकते थे.
मोदी को इस मंच पर घेरना सम्भव ही नहीं था. इस सभा में उपस्थित लोग उद्यमिता और कारोबार की भाषा समझते हैं. और गुजरात की ताकत उद्यमिता और कारोबार हैं.
यह लेख अप्रेल 2013 का है. सिर्फ रिकॉर्ड के लिए यहाँ लगाया है.