Sunday, April 3, 2011

विश्व-विजय के अखबार

भारत की टीम क्रिकेट के मैदान में कुछ कर डाले तो समूचा मीडिया झूम पड़ता है। मार्केट की मजबूरी है कि इनमें एक से बढ़कर एक कुछ करने की ललक रहती है। अगली सुबह हर दफ्तर में लहक-लहक कर अपनी तारीफ और दूसरों की कमियों पर इशारा करने का माहौल रहता है। बहरहाल अखबारों के पहले सफे से माहौल का पता लगता हो तो कुछ तस्वीरे लगा रहा हूँ। एक कोलाज मीडिया ब्लॉग चुरुमुरी से लिया है।


Saturday, April 2, 2011

ब्लीडिंग ब्लू

31 मार्च के टाइम्स ऑफ इंडिया और दक्षिण के प्रसिद्ध अखबार हिन्दू के सारे शीर्षक नीले रंग में थे। दोनों अखबारों को जर्मन ऑटो कम्पनी फोक्स वैगन ने विशेष विज्ञापन दिया था। फोक्स वैगन इसके पहले पिछले साल 21 सितम्बर को दोनों अखबार फोक्स वैगन के विशेष टॉकिंग एडवर्टाइज़मेंट का प्रकाशन कर चुके थे।  उसमें अखबार के पन्ने पर करीब दस ग्राम का स्पीकर चिपका था। रोशनी पड़ते ही उस स्पीकर से कम्पनी का संदेश बजने लगता था।

फोक्स वैगन इन दिनों भारत के ऑटो बाज़ार में जमने का प्रयास कर रही है। उसके इनोवेटिव विज्ञापनों में कोई दोष नहीं है, पर अखबारों में विज्ञापन किस तरह लिए जाएं, इस पर चर्चा ज़रूर सम्भव है। 31 मार्च के थिंक ब्लू विज्ञापन का एक पहलू यह भी है कि टाइम्स ने उसके लिए अपने मास्टहैड में ब्लू शब्द हौले से शामिल भी किया है। हिन्दू ने मास्टहैड में विज्ञापन का शब्द शामिल नहीं किया।


टाइम्स इसके पहले कम से कम दो बार और मास्टहैड में विज्ञापन सामग्री जोड़ चुका है।


Friday, April 1, 2011

दक्षिण एशिया में क्रिकेट


हर तोड़ का सुपर जोड़

सुबह पहला टेक्स्ट मैसेज आया, चलो मुम्बई...रावण वेट कर रहा है....सैटरडे को दशहरा है...-)। पिछले कुछ दिनों से फेसबुक, ट्विटर और टीवी पर तीसरे और चौथे विश्वयुद्ध की घोषणाएं हो रहीं थीं। ऊँचे-ऊँचे बोलों, उन्मादों, रंगीनियों, शोर-गुल, धूम-धड़ाके के बाद भारत फाइनल में पहुँच गया है। भारत-ऑस्ट्रेलिया मैच को हमारे मीडिया ने सेमी फाइनल माना था। भारत-पाकिस्तान मैच फाइनल था। और अब शायद भारत-श्रीलंका मैच साउथ एशिया कप का फाइनल है।

Thursday, March 31, 2011

क्रिकेट का संग्राम

भारत-पाकिस्तान के बीच विश्व कप सेमी फाइनल मैच मुझे खेल के लिहाज से शानदार नहीं लगा। पाकिस्तानी खिलाड़ियों ने सचिन के चार-चार कैच गिराए और उसकी सेंचुरी फिर भी नहीं बनी। शुरू में वीरेन्द्र सहवाग ने एक ओवर में पाँच चौके मारकर अच्छी शुरुआत की, पर चले वे भी नहीं। पूरे मैच में रोमांच स्टेडियम से ज्यादा घरों के ड्रॉइंग रूमों, रेस्तराओं और मीडिया दफ्तरों में ही था। इतना जरूर लगता है कि भारतीय मीडिया, खासतौर से हिन्दी मीडिया के पास युद्ध के अलावा दूसरा रूपक नहीं है। 




बहरहाल आज मुझे अखबारों में ध्यान देने लायक जो लगा सो पेश है।  

पाकिस्तानी अखबार डॉन के पहले सफे पर क्रिकेट की खबर का शीर्षक



Dropped catches, scratchy shots 
and Misbah’s ‘Test innings’ 
blamed for defeat 
Cricket mania evaporates 
after anti-climax

Wednesday, March 30, 2011

अरब देशों में जनाक्रोश है, लोकतांत्रिक संस्थाएं नहीं


मगरिब से उठा जम्हूरी-तूफान

मिस्र का राष्ट्रीय आंदोलन भारतीय आंदोलन के लगभग समानांतर ही चला था। अंग्रेज हुकूमत के अधीन वह भारत के मुकाबले काफी देर से आया और काफी कम समय तक रहा। सन 1923 में यह संवैधानिक राजतंत्र बन गया था। उस वक्त वहाँ की वाफदा पार्टी जनाकांक्षाओं को व्यक्त करती थी। सन 1928 में अल-इखवान अल-मुस्लिमीन यानी मुस्लिम ब्रदरहुड की स्थापना हो गई थी। पाबंदी के बावजूद यह देश की सबसे संगठित पार्टी है। सन 1936 में एंग्लो-इजिप्ट ट्रीटी के बाद से मिस्र लगभग स्वतंत्र देश बन गया, फिर भी वहाँ लोकतांत्रिक संस्थाओं का विकास नहीं हो पाया है। दूसरे विश्वयुद्ध में यह इलाका लड़ाई का महत्वपूर्ण केन्द्र था। 1952-53 में फौजी बगावत के बाद यहाँ का संवैधानिक राजतंत्र खत्म हो गया और 1953 में मिस्र गणराज्य बन गया।