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Monday, September 10, 2012

पाकिस्तान के साथ ठंडा-गरम

पाकिस्तान से जुड़ी इस हफ्ते की दो बड़ी खबरें हैं। एक, पाकिस्तान के साथ सार्थक बातचीत और दूसरे हक्कानी नेटवर्क पर कसता शिकंजा। विदेश मंत्री एसएम कृष्णा की पाकिस्तान यात्रा की सबसे बड़ी उपलब्धि है नई वीज़ा व्यवस्था। पर इसे आंशिक उपलब्धि कहा जाना चाहिए। मई में यह समझौता तैयार था। दोनों देशों के विदेश सचिव इसपर दस्तखत करने वाले थे कि पाकिस्तान के गृहमंत्री रहमान मलिक ने कहा कि इसपर दस्तखत राजनीतिक स्तर पर होने चाहिए। अलबत्ता यह उपलब्धि है, क्योंकि दोनों देशों के लोग बड़ी संख्या में आना-जाना चाहते हैं। तमाम रिश्तेदारियाँ हैं, सांस्कृतिक रिश्ते हैं, मीडिया का संवाद है और नया व्यापारिक माहौल है। दोनों देशों के बीच एक सांस्कृतिक समझौते के आशय पत्र पर भी दस्तखत हुए हैं। एक लिहाज़ से हम एक एक कदम आगे बढ़े हैं। 26 नवम्बर 2008 के बाद से रिश्तों में तल्खी आ गई थी, उसमें कुछ कमी हुई है। पर कुछ बुनियादी सवाल सामने आते हैं। एक, क्या भारत और पाकिस्तान के रिश्ते कभी खुशनुमा हो पाएंगे? क्या दोनों देशों की सरकारों में इतनी सामर्थ्य है कि वे बुनियादी सवालों पर समझौते कर सकें? और क्या अमेरिका के अफगानिस्तान से हटने के बाद इस इलाके में अस्थिरता और नहीं बढ़ेगी?

Sunday, September 9, 2012

पाकिस्तान ने प्रवीण स्वामी का वीज़ा क्यों रद्द किया?

विदेश मंत्री एसएम कृष्णा की पाकिस्तान यात्रा में उनके साथ 61 भारतीय पत्रकार भी गए थे। आमतौर पर पत्रकारों को वीज़ा मिलने में दिक्कत नहीं होती, पर एसएम कृष्णा के साथ जाने वाले 'हिन्दू' के दिल्ली संस्करण के स्थानीय सम्पादक प्रवीण स्वामी को वीज़ा नहीं दिया गया। खास बात यह है कि वीज़ा दे दिया गया था और प्रवीण स्वामी को पाकिस्तान के उच्चायोग में बुलाया भी गया था, पर बाद में 'हिन्दू' से कहा गया कि वे किसी दूसरे पत्रकार का नाम दें। 'हिन्दू' के सम्पादक ने ऐसा करने से इनकार कर दिया। देश के अखबारों में 'हिन्दू' शायद अकेला है, जो पाकिस्तान में अपना संवाददाता रखता है। वहाँ इस समय अनिता जोशुआ तैनात हैं।

प्रश्न कवरेज से ज्यादा पत्रकार को लेकर है। प्रवीण स्वामी राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े प्रश्नों पर लिखते रहते हैं। उनके समाचारों और विश्लेषणों में नई बात होती है। प्रायः उनके पास काफी सूचनाएं होतीं हैं। इन सूचनाओं में पाकिस्तानी सरकार और सेना की भूमिका का अक्सर ज़िक्र होता है। ऐसा समझा जा रहा है कि उनका वीज़ा रोकने में पाकिस्तानी सेना की भूमिका है। बहरहाल कोई भी देश अपना वीज़ा देने के मामले में जवाबदेह नहीं है, पर प्रवीण स्वामी के मामले से इतना ज़ाहिर ज़रूर होता है कि सरकारें ज़रूरत से ज़्यादा संवेदनशील हो जाती हैं। प्रवीण स्वामी के पासपोर्ट में अब वीज़ा और उसपर कैंसल किए जाने की मुहर है जो इतिहास का हिस्सा बन गई। दोनों देशो के बीच वीज़ा व्यवस्था को आसान बनाने की कोशिशों के दौर में यह खबर बताती है कि सब कुछ इतना सरल नहीं है।

हिन्दू में प्रकाशित समाचार

फर्स्ट पोस्ट की रपट पाकिस्तान ने प्रवीण स्वामी को कविता की पुस्तक दी वीज़ा नहीं दिया

Monday, September 3, 2012

भारत-पाकिस्तान रिश्तों में उम्मीदें और उलझाव

तेहरान में राष्ट्रपति आसिफ अली ज़रदारी से मुलाकात के बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि मैं पाकिस्तान यात्रा पर ज़रूर जाना चाहूँगा, पर उसके पहले माहौल बेहतर बनना चाहिए। व्यावहारिक रूप में इसका मतलब यह है कि मुम्बई हमले के आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए। पर इस मामले से जुड़े सात अभियुक्तों के खिलाफ पाकिस्तानी अदालत में कारवाई बेहद सुस्ती से चल रही है। रावलपिंडी की अडियाला जेल में सुनवाई कर रही अदालत में पाँच जज बदले जा चुके हैं। अभियुक्तों के खिलाफ साक्ष्य पेश करने की जिम्मेदारी भारत की है। पाकिस्तान के वकील और जज सातों अभियुक्तों से हमदर्दी रखते हैं। यह अदालत इंसाफ करे तो भारत-पाक रिश्तों को बेहतर बनाने में इससे बड़ा कदम कोई नहीं हो सकता। भारत की सबसे बड़ी निराशा इस कारण है कि लश्करे तैयबा का प्रमुख हफीज़ सईद खुले आम घूम रहा है। पाकिस्तानी अदालतों को उसके खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला।

Friday, August 31, 2012

कसाब की फाँसी से हमारे मन शांत नहीं होंगे

जिन दिनों अजमल कसाब के खिलाफ मुकदमा शुरू ही हुआ था तब राम जेठमलानी ने पुणे की एक गोष्ठी में कहा कि इस लगभग विक्षिप्त व्यक्ति को मौत की सजा नहीं दी जानी चाहिए। उनका आशय यह भी था कि किसी व्यक्ति को जीवित रखना ज्यादा बड़ी सजा है। मौत की सजा दूसरों को ऐसे अपराध से विचलित करने के लिए भी दी जाती है। पर जिस तरीके से कसाब और उनके साथियों ने हमला किया था उसके लिए आवेशों और भावनाओं का सहारा लेकर लोगों को पागलपन की हद तक आत्मघात के लिए तैयार कर लिया जाता है। आज पाकिस्तान में ऐसे तमाम आत्मघाती पागल अपने देश के लोगों की जान ले रहे हैं। हाल में कामरा के वायुसेना केन्द्र पर ऐसा ही एक आत्मघाती हमला किया गया। ऐसे पगलाए लोगों को समय सजा देता है। बहरहाल कसाब की फाँसी में अब ज्यादा समय नहीं है। पर फाँसी से जुड़े कई सवाल हैं।

Saturday, August 18, 2012

अपने आप से लड़ता पाकिस्तान

पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद के करीब कामरा में वायुसेना के मिनहास बेस पर हमला काफी गम्भीर होती स्थितियों की ओर इशारा कर रहा है। पाकिस्तान का यह सबसे बड़ा एयरबेस होने के साथ-साथ यहाँ एटमी हथियार भी रखे गए हैं। जो शुरूआती जानकारी हासिल हुई है उसके अनुसार तकरीबन बारह हमलावर हवाई अड्डे में दाखिल हुए। इनमें से ज्यादातर ने आत्मघाती विस्फोट बेल्ट पहन रखे थे और एक ने खुद को उड़ा भी दिया था। सवाल केवल हवाई अड्डे की सुरक्षा का नहीं है, बल्कि ताकत का है जो इस तरह के हमलों की योजना बना रही है। अभी तक किसी ने इसकी ज़िम्मेदारी नहीं ली है, पर इसके पीछे तहरीके तालिबान पाकिस्तान का हाथ लगता है। इस्लामी चरपंथियों ने इससे पहले भी पाकिस्तान के फौजी ठिकानों को निशाना बनाया है। इनमें सबसे बड़ा हमला मई 2011 में कराची के पास मेहरान हवाई ठिकाने पर हुआ था। उसमें दस फौजी मारे गए थे, पर सबसे बड़ा नुकसान पी-3 ओरियन विमान को हुआ था, जो अत्याधुनिक टोही विमान है, जिसे अमेरिका ने गिफ्ट में दिया था।

Monday, August 6, 2012

पाकिस्तान के साथ कारोबारी राह पर चलने में समझदारी है

पिछले बुधवार को भारत सरकार ने पाकिस्तान के निवेशकों पर भारत में लगी रोक हटा ली। अब पाकिस्तानी निवेशक रक्षा, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष कार्यक्रमों के अलावा अन्य कारोबारों में निवेश कर सकेंगे। हालांकि यह घोषणा अचानक हुई लगती है पर ऐसा नहीं है। पाकिस्तानी निवेश को स्वीकार करने का फैसला दोनों देशों के वाणिज्य मंत्रियों की अप्रेल में दिल्ली में हुई बैठक में कर लिया गया था। परोक्ष रूप में यह आर्थिक निर्णय लगता है और इसके तमाम महत्वपूर्ण आर्थिक पहलू हैं भी। फिर भी यह फैसला राजनीतिक है। उसी तरह जैसे पाकिस्तान की क्रिकेट टीम को भारत बुलाने का फैसला। दोनों देशों के रिश्ते बहुत मीठे न भी नज़र आते हों, पर ऐसा लगता है कि दोनों नागरिक सरकारों के बीच संवाद काफी अच्छे स्तर पर है। पाकिस्तान में एक बड़ा तबका भारत से रिश्ते बनाने के काम में लगातार अड़ंगे लगाता है। पर लगता है कि खेल, संगीत और कारोबारी रिश्ते दोनों देशों के बीच भरोसा कायम करने में मददगार होंगे।

Monday, July 16, 2012

इस बार भी वक्त से पहले दम तोड़ेगी पाकिस्तान की नागरिक सरकार

पाकिस्तान की संसद ने पिछले सोमवार को अदालत की अवमानना के जिस नए कानून को पास किया उसपर गुरुवार को राष्ट्रपति आसिफ अली ज़रदारी के दस्तखत हो गए। उसी रोज़ देश के सुप्रीम कोर्ट ने नए प्रधानमंत्री राजा परवेज़ को निर्देश दिया कि वे स्विट्ज़रलैंड के अधिकारियों को चिट्ठी लिखकर आसिफ अली ज़रदारी के खिलाफ मुकदमों को फिर से खोलने का अनुरोध करें। अदालत ने यह चिट्ठी लिखने के लिए 25 जुलाई तक का वक्त दिया है। अदालती अवमानना के कानून में संशोधन होते ही अदालत में उसके खिलाफ याचिका दायर हो गई और प्रधानमंत्री, अटॉर्नी जनरल सहित दस प्रतिवेदकों के नाम शुक्रवार की शाम नोटिस ज़ारी हो गए। इस मामले में सुनवाई 23 जुलाई को होगी। प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखने की समय सीमा के दो दिन पहले। सुप्रीम कोर्ट ने राजा परवेज़ अशरफ को दिए निर्देश में इस बात का हवाला भी दिया है कि पिछले प्रधानमंत्री यूसुफ रज़ा गिलानी इस मामले की वज़ह से हटाए जा चुके हैं। साथ ही यह भी कि फैसले पर अमल नहीं हुआ तो प्रधानमंत्री के खिलाफ कार्रवाई होगी। अदालत और नागरिक शासन के बीच सीधे टकराव को टालने का अब कोई रास्ता नहीं बचा है। न्यायपालिका के आक्रामक रुख को देखते हुए सरकार के पास अब न तो वक्त बचा है और न सियासी हालात उसके पक्ष में हैं। पाकिस्तान में आज तक किसी प्रधानमंत्री ने अपना कार्यकाल पूरा नहीं किया और न किसी संसद ने। इस संसद का कार्यकाल अभी आठ महीने बाकी है। लगता नहीं कि यह पूरा होगा। और हो भी जाए, तो स्वस्थ लोकतांत्रिक परम्पराएं बुरी तरह घायल हो चुकी होंगी।

Friday, June 29, 2012

सरबजीत या सुरजीत, गलती मीडिया की थी !!!

सरबजीत या सुरजीत के नाम को लेकर जो भी भ्रम फैला उसके लिए जिम्मेदारी पाकिस्तान सरकार के ऊपर डाली जा रही है, पर जो बातें सामने आ रहीं हैं इनसे लगता है कि गलती मीडिया से हुई है। दोनों देशों के मीडिया ने इस मामले में जल्दबाज़ी की। पाकिस्तानी राष्ट्रपति के दफ्तर ने इस मामले में स्पष्टीकरण देने में आठ घंटे क्यों लगाए यह ज़रूर परेशानी का विषय है।

28 जून के हिन्दू में अनिता जोशुआ की छोटी सी रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तानी राष्ट्रपति के मीडिया सलाहकार ने पहली बार भी सुरजीत सिंह का नाम लिया था, सरबजीत का नहीं। इस रिपोर्ट की निम्न लिखित पंक्तियों पर ध्यान दें-
'Farhatullah Babar, media adviser to President Asif Ali Zardari, can be clearly heard in his interviews to Indian television channels referring to Surjeet Singh as the Indian prisoner Pakistan planned to release. But after a Pakistani news channel referred to the person as Sarabjit, that became the name the media ran away with.'

Wednesday, June 27, 2012

सरबजीतः यह क्या हुआ?




देर रात टीवी की बहस देख और सुनकर जो लोग सोए थे उन्हें सुबह के अखबारों में खबर मिली कि धोखा हो गया, सरबजीत नहीं सुरजीत की रिहाई का आदेश है। दिल्ली में इंडियन एक्सप्रेस या देर से छूटने वाले अखबारों में ही यह खबर थी, पर फेसबुकियों ने सुबह सबको इत्तला कर दी। बहरहाल आज इस बात पर बहस हो सकती है कि धोखा हुआ या नहीं? पाकिस्तान सरकार जो कह रही है वह सही है या नहीं? मीडिया ने जल्दबाज़ी में मामले को उछाल दिया क्या? हो सकता है कि पाकिस्तानी राष्ट्रपति के दफ्तर के ही किसी ज़िम्मेदार व्यक्ति से गलती हो गई हो।

आज के हिन्दी अखबारों का सवाल है कि राष्‍ट्रपति आसिफ अली जरदारी क्‍यों पलट गए? राजस्थान पत्रिका के जालंधर संस्करण का शीर्षक है पाकिस्तान का दगा। कहीं शीर्षक है आधी रात को धोखा। बहरहाल विदेश मंत्री एसएम कृष्णा सर्बजीत की रिहाई का स्वागत कर चुके हैं। आमतौर पर डिप्लोमेटिक जगत में बगैर पूर्व सूचना के ऐसा नहीं होता। पीटीआई के इस्‍लामाबाद संवाददाता रियाज उल लश्‍कर का भी कहना है कि राष्‍ट्रपति ने शायद फौज के दबाव में आकर पलटी मारी होगी। 


पाकिस्‍तान में मंगलवार शाम से ही मीडिया में खबरें चलने लगीं कि राष्‍ट्रपति ने फैसला किया है कि सरबजीत सिंह रिहा होंगे। इसे लेकर वहां मीडिया पर बहस भी चलने लगी। भारतीय विदेश मंत्री ने जरदारी को बधाई तक दे दी। तभी रात करीब 12 बजे राष्‍ट्रपति की ओर से सफाई जारी हुई कि रिहाई सरबजीत की नहीं, सुरजीत की हो रही है।

Monday, June 25, 2012

तख्ता पलट बतर्ज पाकिस्तान-पाकिस्तान


सी एक्सप्रेस में प्रकाशित

पाकिस्तान में इन दिनों अफवाहों का बाज़ार गर्म है। कोई कहता है कि फौज टेक ओवर करेगी। दूसरा कहता है कि कर लिया। युसुफ रज़ा गिलानी से शिकायत बहुत से लोगों को थी, पर जिस तरीके से उन्हें हटाया गया, वह बहुतों को पसंद नहीं आया। कुछ लोगों को लगता है कि उन्हें हटाने में फौज की भूमिका भी है। भूमिका हो या न हो पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के सहयोगी दल एमक्यूएम ने कुछ दिन पहले ही कहा था कि फौज को बुला लेना चाहिए। फिलहाल सवाल यह है कि मुल्क में जम्हूरियत को चलना है या नहीं। बहरहाल राजा परवेज़ अशरफ को चुनकर संसदीय व्यवस्था ने लोकतांत्रिक प्रक्रिया को आगे बढ़ा दिया है। इसके पहले पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी ने मख्दूम शहाबुद्दीन को इस पद के लिए प्रत्याशी बनाया था। पर अचानक एक अदालत ने उनके खिलाफ गिरफ्तारी वॉरंट जारी कर दिया और प्रत्याशी बदल दिया। क्या यह सिर्फ संयोग था? इस विषय पर कुछ देर बाद बात करेंगे।

भारत के हित में है लोकतांत्रिक पाकिस्तान


पाकिस्तानी अखबार डॉन में फेका का कार्टून


पिछले गुरुवार की रात काबुल के एक होटल पर तालिबान फिदाई दस्ते ने फिर हमला बोला। तकरीबन 12 घंटे तक होटल पर इनका कब्ज़ा रहा। हालांकि संघर्ष में सुरक्षा बलों ने सभी पाँचों हमलावरों को मार गिराया, पर बड़ी संख्या में निर्दोष नागरिक मारे गए। पिछले दो-तीन महीनों में तालिबान हमलों में तेजी आई है। अफगानिस्तान में नेटो सेना के कमांडर जनरल जॉन एलेन का कहना है कि कहा कि इन हमलों के पीछे तालिबान के हक्कानी नेटवर्क का हाथ है जो पाकिस्तान के वजीरिस्तान इलाके में सक्रिय है। इसके पहले अमेरिका के रक्षा सचिव लियोन पेनेटा कह चुके हैं कि पाकिस्तान हमारे सब्र की और परीक्षा न करे। पर क्या पाकिस्तान पर इस किस्म की चेतावनियोँ का असर होता है या हो सकता है?

Saturday, June 23, 2012

Prime Ministerial history of Pakistan



Prime Ministers of Pakistan
with tit-bits of history

1.Liaquat Ali Khan – Pakistan Muslim League (14 August 1947 – 16 October 1951)
1951 - Jinnah's successor Liaquat Ali Khan is assassinated.

2.Sir Khawaja Nazimuddin – Pakistan Muslim League (17 October 1951 – 17 April 1953)
One of the notable Bengali Founding Fathers of modern-state of Pakistan, career statesman from East-Pakistan, serving as the second Governor-General of Pakistan from 1948 until the assassination of Prime minister Liaquat Ali Khan in 1951.His government lasted only two years but saw the civil unrest, political differences, foreign challenges, and threat of communism in East Pakistan and socialism in West Pakistan, that led the final dismissal of his government in response to Lahore riots in 1953, Nazimuddin was the first one to have declared the Martial law in Punjab Province under Major-General Azam Khan and Colonel Rahimuddin Khan, initiating a massive repression of the Right-wing sphere in the country.

Friday, June 22, 2012

पाकिस्तान में बिखरता लोकतंत्र

हिन्दू में केशव का कार्टून
पाकिस्तान में नागरिक सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को सीधे-सीधे स्वीकार करके टकराव को टालने की कोशिश की है, पर इससे लोकतांत्रिक व्यवस्था के पुष्ट होने के बजाय बिखरने के खतरे ज्यादा पैदा हो गए हैं। संवैधानिक संस्थाओं के बीच टकराव की नौबत नही आनी चाहिए थी, पर लगता है कि देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था और राजनीति के बीच फर्क करने वाली ताकतें मौजूद नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला किया है उसकी याचिका देश को राजनीतिक दलों ने ही की थी। 26 अप्रेल को जब सुप्रीम कोर्ट ने गिलानी को दोषी पाने के बाद उन्हें प्रतीकात्मक सजा दी थी और सदस्यता खत्म करने का फैसला न करके यह निर्णय कौमी असेम्बली की स्पीकर पर छोड़ दिया था। उस वक्त तक लग रहा था कि विवाद अब तूल नहीं पकड़ेगा। अदालत ने अब अपने फैसले को बदल कर दो संदेह पैदा कर दिए हैं। पहला यह कि गिलानी के बाद जो दूसरे प्रधानमंत्री आएंगे उन्हें भी आदेश थमाया जाएगा कि आसिफ अली ज़रदारी के खिलाफ स्विट्ज़रलैंड की अदालतों में मुकदमे फिर से शुरू कराने की चिट्ठी लिखो। वे चिट्ठी नहीं लिखेंगे तो उनके खिलाफ भी अदालत की अवमानना का केस चलाया जाएगा। दूसरा अंदेशा यह है कि कहीं देश की न्यायपालिका सेना के साथ-साथ खुद भी सत्ता के संचालन का काम करना तो नहीं चाहती है। ऐसे मौकों पर टकराव टालने की कोशिश होती है पर यहाँ ऐसा नहीं हो रहा है, बल्कि व्यवस्था की बखिया उधेड़ी जा रही है।

Monday, April 30, 2012

पाकिस्तानी लोकतंत्र की परीक्षा

जिसकी उम्मीद थी वही हुआ। पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट ने प्रधानमंत्री युसुफ रज़ा गिलानी को अदालत की अवमानना का दोषी पाया। उन्हें कैद की सज़ा नहीं दी गई। पर अदालत उठने तक की सज़ा भी तकनीकी लिहाज से सजा है। पहले अंदेशा यह था कि शायद प्रधानमंत्री को अपना पद और संसद की सदस्यता छोड़नी पड़े, पर अदालत ने इस किस्म के आदेश जारी करने के बजाय कौमी असेम्बली के स्पीकर के पास अपना फैसला भेज दिया है। साथ ही निवेदन किया है कि वे देखें कि क्या गिलानी की सदस्यता खत्म की जा सकती है।

Friday, January 13, 2012

कसौटी पर पाकिस्तानी लोकतंत्र

इस वक्त भारत के पाँच राज्यों में चुनाव हो रहे हैं और हैं और हम अपने लोकतंत्र के गुण-दोषों को लेकर विमर्श कर रहे हैं, पड़ोसी देश पाकिस्तान से आ रही खबरें हमें इस बातचीत को और व्यापक बनाने को प्रेरित करती हैं। भारत और पाकिस्तान की आंतरिक राजनीति एक नज़र में एक-दूसरे को प्रभावित करती नज़र नहीं आती, पर व्यापक फलक पर असर डालती है। मसलन भारत और पाकिस्तान के रिश्ते सामान्य हो जाएं तो पाकिस्तान की राजनीतिक संरचना बदल जाएगी। वहाँ की सेना की भूमिका बदल जाएगी। इसी तरह भारत में ‘राष्ट्रवादी’ राजनीति का रूप बदल जाएगा। रिश्ते बिगड़ें या बनें दोनों देशों के नागरिक एक-दूसरे में गहरी दिलचस्पी रखते हैं। इसीलिए पिछले साल अगस्त में अन्ना हजारे के अनशन के बाद पाकिस्तान में भी भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन की हवाएं चलने लगी थीं। भारत की तरह पाकिस्तान में भी सबसे बड़ा मसला भ्रष्टाचार का है। पाकिस्तान में लोकतांत्रिक संस्थाएं मुकाबले भारत के अपेक्षाकृत कमज़ोर हैं और देर से विकसित हो रहीं हैं, पर वहाँ लोकतांत्रिक कामना और जन-भावना नहीं है, ऐसा नहीं मानना चाहिए। हमारे मीडिया में इन दिनों अपने लोकतंत्र का तमाशा इस कदर हावी है कि हम पाकिस्तान की तरफ ध्यान नहीं दे पाए हैं।

Tuesday, October 4, 2011

अंतर्विरोधों से घिरा पाकिस्तान



अफगानिस्तान के राष्ट्रपति हामिद करज़ाई भारत यात्रा पर आ रहे हैं। एक अर्से से पाकिस्तान की कोशिश थी कि अफगानिस्तान में भारत की कोई भूमिका न रहे। जो भी हो पाकिस्तान के नज़रिए से हो। ऐसा तभी होगा, जब वहाँ पाक-परस्त निज़ाम होगा। शुरू में अमेरिका भी पाकिस्तान की इस नीति का पक्षधर था। पर हाल के घटनाक्रम में अमेरिका की राय बदली है। इसका असर देखने को मिल रहा है। पाकिस्तान ने अमेरिका के सामने चीन-कार्ड फेंका है। तुम नहीं तो कोई दूसरा। पर चीन के भी पाकिस्तान में हित जुडें हैं। वह पाकिस्तान का फायदा उठाना चाहता है। वह उसकी उस हद तक मदद भी नहीं कर सकता जिस हद तक अमेरिका ने की है। अफगानिस्तान की सरकार भी पाकिस्तान समर्थक नहीं है। जन संदेश टाइम्स में प्रकाशित मेरा लेख


भारत-पाकिस्तान रिश्तों के लिहाज से पिछले दो हफ्ते की घटनाओं पर ध्यान देने की ज़रूरत है। अमेरिका-पाकिस्तान, चीन-भारत और अफगानिस्तान इस घटनाक्रम के केन्द्र में हैं। अगले कुछ दिनों में एक ओर भारत-अफगानिस्तान रक्षा सहयोग के समझौते की उम्मीद है वहीं पाकिस्तान और चीन के बीच एक फौजी गठबंधन की खबरें हवा में हैं। दोनों देशों के रिश्तों में चीन एक महत्वपूर्ण देश के रूप में उभर रहा है। जिस तरह भारत ने वियतनाम, सिंगापुर, मलेशिया और जापान के साथ रिश्ते सुधारे हैं उसके जवाब में पाकिस्तान ने भी अपनी ‘लुक ईस्ट पॉलिसी’ घोषित की है।

Saturday, May 7, 2011

इतिहास के सबसे नाज़ुक मोड़ पर पाकिस्तान



बहुत सी बातें ऐसी हैं, जिनके बारे में हमारे देश के सामान्य नागरिक से लेकर बड़े विशेषज्ञों तक की एक राय है। कोई नहीं मानता कि बिन लादेन के बाद अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद खत्म हो जाएगा। या पाकिस्तान के प्रति अमेरिका की नीतियाँ बदल जाएंगी। अल-कायदा का जो भी हो, लश्करे तैयबा, जैशे मोहम्मद, तहरीके तालिबान और हक्कानी नेटवर्क जैसे थे वैसे ही रहेंगे। दाऊद इब्राहीम, हफीज़ सईद और  मौलाना मसूद अज़हर को हम उस तरह पकड़कर नहीं ला पाएंगे जैसे बिन लादेन को अमेरिकी फौजी मारकर वापस आ गए।

बिन लादेन की मौत के बाद लाहौर में हुई नमाज़ का नेतृत्व हफीज़ सईद ने किया। मुम्बई पर हमले के सिलसिले में उनके संगठन का हाथ होने के साफ सबूतों के बावजूद पाकिस्तानी अदालतों ने उनपर कोई कार्रवाई नहीं होने दी। अमेरिका और भारत की ताकत और असर में फर्क है। इसे लेकर दुखी होने की ज़रूरत भी नहीं है। फिर भी लादेन प्रकरण के बाद दक्षिण एशिया के राजनैतिक-सामाजिक हालात में कुछ न कुछ बदलाव होगा। उसे देखने-समझने की ज़रूरत है। 

Tuesday, March 29, 2011

क्रिकेट डिप्लोमेसी



भारत और पाकिस्तान को आसमान से देखें तो ऊँचे पहाड़, गहरी वादियाँ, समतल मैदान और गरजती नदियाँ दिखाई देंगी। दोनों के रिश्ते भी ऐसे ही हैं। उठते-गिरते और बनते-बिगड़ते। सन 1988 में दोनों देशों ने एक-दूसरे पर हमले न करने का समझौता किया और 1989 में कश्मीर में पाकिस्तान-परस्त आतंकवादी हिंसा शुरू हो गई। 1998 में दोनों देशों ने एटमी धमाके किए और उस साल के अंत में वाजपेयी जी और नवाज शरीफ का संवाद शुरू हो गया, जिसकी परिणति फरवरी 1999 की लाहौर बस यात्रा के रूप में हुई। लाहौर के नागरिकों से अटल जी ने अपने टीवी संबोधन में कहा था, यह बस लोहे और इस्पात की नहीं है, जज्बात की है। बहुत हो गया, अब हमें खून बहाना बंद करना चाहिए। भारत और पाकिस्तान के बीच जज्बात और खून का रिश्ता है। कभी बहता है तो कभी गले से लिपट जाता है।

Tuesday, March 8, 2011

पाकिस्तानी अखबारों में समझौता विस्फोट का विज्ञापन

पाकिस्तान के साथ भविष्य में जो बातचीत होगी उसमें अब शायद समझौता एक्सप्रेस के विस्फोट का मामला भी शामिल हो जाएगा। 7 मार्च को पाकिस्तानी अखबारों में चौथाई पेज का विज्ञापन छपा है जिसमें समझौता एक्सप्रेस के मामले को खूब रंग लगाकर छापा गया है। इसमें माँग की गई है कि भारत की सेक्युलर व्यवस्था की जिम्मेदारी है कि वह जवाब दे। लगता है कि इसका इसका उद्देश्य अपने ऊपर लगे  कलंकों की ओर से दुनिया का ध्यान हटाना है। इस विज्ञापन को किसने जारी किया, कहाँ से पैसा आया कुछ पता नहीं. 


Sunday, December 19, 2010

भारत-चीन और पाकिस्तान




आज के इंडियन एक्सप्रेस में सी राजमोहन की खबर टाप बाक्स के रूप में छपी है। इसमें बताया गया है कि चीन अब भारत-चीन सीमा की लम्बाई 3500 किमी के बजाय 2000 किमी मानने लगा है। यानी उसने जम्मू-कश्मीर को पूरी तरह पाकिस्तान का हिस्सा मान लिया है। चीनी नीतियाँ जल्दबाज़ी में नहीं बनतीं और न उनकी बात में इतनी बड़ी गलती हो सकती है। स्टैपल्ड वीजा जारी करने क पहले उन्होंने कोई न कोई विचार किया ही होगा। इधर आप ध्यान दें कि पाकिस्तानी राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी हर तीन या चार महीने में चीन जा रहे हैं। फौज के अध्यक्ष जनरल कियानी भी चीन का दौरा कर आए हैं। स्टैपल्ड वीजा का मामला उतना सरल नहीं है जितना सामने से नज़र आता है।