Wednesday, October 2, 2024

इसराइल के तूफानी हमलों का निशाना कौन है?


पहले हमास के प्रमुख इस्माइल हानिये और अब हिज़्बुल्ला के प्रमुख हसन नसरल्ला की मौत के बाद सवाल है कि क्या इससे पश्चिम एशिया में इसराइल की प्रतिरोधी-शक्तियाँ घबराकर हथियार डाल देंगी? हो सकता है कि कुछ देर के लिए उनकी गतिविधियाँ धीमी पड़ जाएं, पर यह इसराइल की निर्णायक जीत नहीं है.

किसी एक की जीत देखने की कोशिश करनी भी नहीं चाहिए, बल्कि समझदारी के साथ रास्ता निकालना चाहिए. यह युद्ध है, जिसमें इसराइल की रणनीति है प्रतिस्पर्धियों के मनोबल को तोड़ना और दीर्घकालीन उद्देश्य है ईरानी-चुनौती को कुंठित करना.

मौके की नज़ाकत को देखते हुए अब ईरान के रुख पर भी नज़र रखनी होगी. काफी दारोमदार उसपर है, क्योंकि शेष इस्लामिक देशों के हौसले आज वैसे नहीं हैं, जैसे सत्तर साल पहले हुआ करते थे. ईरान ने मंगलवार की रात इसराइल के ऊपर दो सौ से ज्यादा बैलिस्टिक मिसाइलें दागकर शुरुआत कर दी है, जिनमें से ज्यादातर को इसराइल ने बीच में ही रोक लिया.

हमास, हिज़्बुल्ला और हूती तीनों को ईरान के प्रॉक्सी संगठन माना जाता है. क्या ईरान इन संगठनों को खामोशी बरतने का निर्देश देगा, या पूरी ताकत के साथ खुद सामने आएगा?

यह टकराव भारत के लिए भी चिंता का विषय है. भारत ने अब तक इसराइल और फलस्तीनियों के बीच संतुलन बनाकर रखा है, पर ईरान भी संघर्ष का हिस्सा बनेगा, तब जटिलता पैदा होगी, क्योंकि उस स्थिति में अमेरिका भी लड़ाई में शामिल हो सकता है.

ईरान क्या करेगा?

ज्यादा बड़ा सवाल अब यही है कि ईरान क्या करेगा?  ईरान ने नसरल्ला की हत्या का बदला लेने की घोषणा की है, साथ ही सुरक्षा परिषद की बैठक बुलाने का आग्रह किया है. पर उससे क्या होगा?  

पिछले कई वर्षों से अमेरिका इस इलाके से बाहर निकलने की भूमिका बना रहा है. इस संभावना को देखते हुए चीन और रूस खाली जगह को भरने का प्रयास कर रहे हैं. पर चीन और रूस दोनों की सामर्थ्य इस जगह को भरने लायक नहीं है. फिलहाल यह संधिकाल है.

इसराइल के विरोधियों के भीतर भी दरारें उभर रही हैं. खबरें हैं कि सीरिया में राष्ट्रपति बशर अल-असद के विरोधियों ने नसरल्ला की मौत पर जश्न मनाया. कुछ अरब देश चाहते हैं कि समझौता हो, ताकि इस इलाके में आर्थिक-गतिविधियों को चलाया जा सके.

अब होगा क्या?

इस लिहाज से अब कोई बड़ा मोड़ आए, तो हैरत भी नहीं होगी. पिछले साल लड़ाई शुरू ही तभी हुई थी, जब कहा जा रहा था कि पश्चिम एशिया में कोई बड़ा समझौता होने वाला है.  

पिछले हफ्ते दुनिया का ध्यान गज़ा से हटकर लेबनान पर आ गया, जहाँ जबर्दस्त इसराइली हवाई हमलों में एक हजार से ज्यादा लोग मारे गए हैं. इसराइल डिफ़ेंस फ़ोर्सेज़ (आईडीएफ़) का दावा है कि उसके हवाई हमलों में हिज़्बुल्ला के प्रमुख हसन नसरल्ला के परिवार के अलावा एक और कमांडर नबील काउक, मिसाइल यूनिट के कमांडर मुहम्मद अली इस्माइल और उनके डिप्टी हुसैन अहमद इस्माइल मारे गए हैं.

इसराइली सेना ने अब लेबनान में ज़मीनी हमले भी शुरू कर दिए हैं, जिसकी वजह से खूँरेज़ी बढ़ने का अंदेशा है. लेबनान के अलावा यमन के हूती ठिकानों पर भी हमले किए हैं. हिज़्बुल्ला के दर्जनों ठिकानों पर हवाई बमबारी जारी है. शुक्रवार को लेबनान की सीमा के निकट एक हमले में पाँच सीरियाई सैनिक भी मारे गए.

इसराइली प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने कहा है कि 60 हज़ार से ज़्यादा इसराइली नागरिकों को हम सुरक्षित अपने घर लेकर आएंगे. ये सभी लोग उत्तरी इसराइल के निवासी हैं और हिज़्बुल्ला के साथ शुरू हुई जंग के बाद अपने घरों को छोड़ कर वहाँ से भागने पर मजबूर हो गए हैं.

अमेरिका की अनसुनी?

इसराइल ने अमेरिका और उसके सहयोगियों द्वारा प्रस्तावित युद्ध-विराम योजना को खारिज कर दिया है. उसकी सेना जमीनी हमले की तैयारी कर रही है. इसका उद्देश्य इसराइल पर गोलीबारी रोकना, हिज़बुल्ला की ताकत और उसके नेतृत्व को खत्म करना और सीमावर्ती क्षेत्रों को साफ करना है.

संयुक्त राष्ट्र के आँकड़ों के अनुसार, पिछले सोमवार से इसराइली विमानों ने जो बमबारी की है, उससे लगभग एक लाख 18 हजार लोगों का पलायन हुआ है. दूसरी तरफ समझौते के रास्ते भी खोजे जा रहे हैं. सवाल है कि क्या किसी एक पक्ष की निर्णयात्मक पराजय होगी, क्या कोई पक्ष झुकेगा या दोनों पक्ष समझदारी दिखाते हुए समझौता करेंगे?

इसराइल और हमास-हिज़बुल्ला तक मसले सीमित नहीं हैं. इसमें ईरान और अमेरिका की भी भूमिका है. पिछले साल अक्तूबर में लड़ाई शुरू होने के ठीक पहले इसराइल और अरब देशों के बीच समझौते की संभावनाएं हवा में थीं. उस वक्त एक कयास यह भी था कि समझौते को विफल करने के इरादे से हमास ने ईरानी इशारे पर वह हमला बोला था.  

ईरान ने कई बार कहा है कि इसराइल की हरकतों का जवाब ज़रूर दिया जाएगा. इसे देखते हुए बड़ी लड़ाई का खतरा भी लगातार बना हुआ है, पर ईरान में राष्ट्रपति पेज़ेश्कियान के जीतकर आने से उम्मीदें बँधी हैं कि माहौल सुधर भी सकता है.

पेज़ेश्कियान की पेशकश

23 सितंबर को राष्ट्रपति पेज़ेश्कियान ने न्यूयॉर्क में मीडिया से कहा, इसराइल हमें जंग में लपेटने की कोशिश कर रहा है, जबकि हम उसके साथ तनाव ख़त्म करना चाहते हैं. इसराइल लड़ाई रोके, तो हम भी ऐसा करने के लिए तैयार हैं.

पेज़ेश्कियान ने इसराइली कार्रवाइयों की आलोचना की है, पर उसे तबाह करने जैसी बातें नहीं कही हैं. संरा महासभा में उन्होंने कहा, हम सभी के लिए शांति चाहते हैं. किसी भी देश के साथ विवाद नहीं चाहते. उन्होंने यह भी कहा कि हमारी सरकार पश्चिमी ताकतों के साथ परमाणु मामले में बातचीत को फिर शुरू करने के लिए तैयार है.

इन बातों का हिज़्बुल्ला के साथ चल रहे इसराइली टकराव के साथ सीधा रिश्ता नहीं है, पर इससे ईरान के वृहत्तर-दृष्टिकोण में बदलाव ज़रूर दिखाई पड़ रहा है. ईरानी नेतृत्व की धारणा है कि इसराइल को लगातार धमकाने, और फिर कार्रवाई नहीं करने से ईरान की विश्वसनीयता को नुक़सान पहुंच रहा है. अप्रेल के महीने में ईरान ने इसराइल पर हवाई हमले किए थे, जिन्हें रोक लिया गया था.

कुछ सवाल

खबरें ऐसी भी हैं कि ईरान के सुप्रीम लीडर आयतुल्ला अली खामनेई के निकटवर्ती नेताओं ने पेज़ेश्कियान के बयान को पसंद नहीं किया है. वे मानते हैं कि पेज़ेश्कियान को इस किस्म के इंटरव्यू से बचना चाहिए. ईरानी व्यवस्था में राष्ट्रपति की भूमिका सीमित है.

वास्तविक सत्ता सुप्रीम लीडर में केंद्रित है. क्या वे राष्ट्रपति को कुछ ढील दे रहे हैं?  देश के जनमत का झुकाव भी पेज़ेश्कियान के साथ है, जो उनके चुनाव से स्पष्ट है, पर यह स्पष्ट नहीं है कि पेज़ेश्कियान को कितनी गुंजाइश मिलेगी.

आयतुल्ला खामनेई ने पिछले महीने ईरान की नागरिक सरकार से कहा था कि अपने दुश्मन के साथ बातचीत करने में कोई बुराई नहीं है. उन्होंने 25 सितंबर के अपने संदेश में भी इसराइल को धमकाने या जवाब देने जैसी कोई बात नहीं कही.

लेबनान पर हमला

उधर गज़ा के बाद लड़ाई का रुख अब उत्तर में लेबनान की ओर भी घूम गया है. हमास के प्रमुख इस्माइल हानिये और हिज़्बुल्ला के प्रमुख हसन नसरल्ला, टॉप कमांडरों फवाद शुकर और इब्राहिम अकील की हत्याओं के बाद से इसराइल और ईरान के बीच सीधी लड़ाई होने का जो अंदेशा पैदा हुआ है, उसके निहितार्थ को भी समझने की कोशिश करनी चाहिए.

ईरान को लड़ाई में खींचने के पहले इसराइल को पूरा गणित समझना होगा. कहा जा रहा है कि इसराइल ने लेबनान में अपनी कार्रवाई की जानकारी अमेरिका को भी आख़िरी पलों तक नहीं दी थी. ऐसा संभव नहीं है. शायद ऐसा राजनीतिक कारणों से प्रचार के लिए कहा जा रहा है.

बाहरी तौर पर इसराइली प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने 21 दिनों के युद्धविराम की अपील को मानने से इनकार कर दिया है. अमेरिका और फ्रांस जैसे देशों के इस सुझाव का जवाब देते हुए उन्होंने कहा है कि मेरा फोकस अपने नागरिकों को सुरक्षित वापस लाने पर है. हम तब तक हमले जारी रखेंगे, जब तक हमारे नागरिक पूरी तरह से सुरक्षित नहीं हो जाते.

पेजर-विस्फोट

लेबनान में संचार-संवाद के उपकरणों पेजरों और फिर वॉकी-टॉकी में हुए धमाकों और उसके बाद इसराइली हवाई हमले ने थोड़ी देर के लिए दुनिया को स्तब्ध कर दिया है. इसराइल ने हवाई हमलों की बात स्वीकार की है, पर पेजर और वॉकी-टॉकी धमाकों की न तो जिम्मेदारी ली है और न उससे इनकार किया.

इसके पहले गुरुवार 19 सितंबर को नसरल्ला ने कहा था कि ये हमले आतंकवादी कृत्य हैं और लेबनान और उसके लोगों के खिलाफ युद्ध की घोषणा भी. इसके बाद 20 सितंबर को बेरूत पर हुए एक हवाई हमले में हिज़्बुल्ला के शीर्ष सैन्य कमांडरों में से एक इब्राहिम अकील की मृत्यु हो गई.

ये घटनाएं इस बात की ओर इशारा कर रही हैं कि या तो सामरिक-पेशबंदी में या ईरान को उकसाने के इरादे से इसराइली सेना अब हिज़्बुल्ला को निशान बना रही है. इब्राहिम अकील पर अमेरिकी सरकार ने भी 70 लाख डॉलर का इनाम रखा था.

लड़ाई का नया दौर

अंतरराष्ट्रीय-कानून के विशेषज्ञ मानते हैं कि हजारों संचार उपकरणों में एकसाथ विस्फोट कराना युद्ध-अपराध की परिभाषा में आता है. इसराइल ने हालांकि इन विस्फोटों की जिम्मेदारी नहीं ली है, पर यह कहा है कि हम अब अपना ध्यान उत्तर की ओर कर रहे हैं.

इसराइली रक्षामंत्री योआव गैलेंट ने अपनी खुफिया एजेंसी मोसाद की तारीफ की है और उसके काम को महान उपलब्धि बताया है. इसके पहले उन्होंने 'युद्ध का नया दौर' शुरू होने की बात कही थी.

विशेषज्ञ इस बात का अनुमान लगा ही रहे हैं कि इसराइल ने हिज़्बुल्ला के कम्युनिकेशन नेटवर्क को निशाना क्यों बनाया है. और वह हिज़्बुल्ला से सीधे टकराना क्यों चाहता है.

गज़ा में झगड़ा हमास की 7 अक्तूबर की कार्रवाई के जवाब में शुरू हुआ था, पर उस समय हिज़्बुल्ला के खिलाफ कार्रवाई की कोई सीधी वजह नज़र नहीं आती थी. बाद में गज़ा में कार्रवाई के दौरान हिज़्बुल्ला की तरफ से इसराइल पर रॉकेट-प्रहार हुए, जिसकी वजह से इसराइल ने इस तरफ अपनी इंटेलिजेंस बढ़ा दी.  

ईरान को संदेश

दो महीने पहले 27 जुलाई को गोलान हाइट्स में फुटबॉल के एक मैदान पर हुए रॉकेट हमले में 12 लोगों की मौत हुई थी, जिनमें ज्यादातर बच्चे थे. हालांकि हिज़्बुल्ला ने उस हमले की जिम्मेदारी नहीं ली थी, पर माना गया कि वह हमला हिज़्बुल्ला ने किया था. इसके बाद 30 जुलाई की रात इसराइली हमले में हिज़्बुल्ला के टॉप कमांडर फवाद शुकर की मृत्यु हो गई.

इसराइल को लगता है कि हमास में पलटवार करने की ताकत बची नहीं है. इसलिए, समय आ गया है कि उत्तर में कहीं अधिक शक्तिशाली हिज़्बुल्ला पर ध्यान केंद्रित किया जाए. हिज़्बुल्ला के संचार उपकरणों को निशाना बनाने का उद्देश्य उसकी कमान और कंट्रोल संरचना को कमजोर करना है.

माना जा रहा है कि जिन हजारों लोगों को पेजरों के मार्फत निशाना बनाया गया, वे हिज़्बुल्ला के एक लाख सदस्यों के सबसे टॉप लेवल के सदस्य हैं-जिन्हें सेना की शब्दावली में कर्नल से लेकर जनरल तक के पदों के बराबर माना जा सकता है. ऐसे लोग खुफिया माध्यमों से संवाद करते हैं. दूसरे इन हमलों का उद्देश्य ईरान को संदेश देना भी है,  जो हिज़्बुल्ला, हमास और यमन के हूतियों का हितैषी है.

आवाज़ द वॉयस में प्रकाशित

 

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