Wednesday, March 1, 2017

अब मोदी के सामने है राष्ट्रपति-चुनाव की जटिल चुनौती

पाँच राज्यों के चुनाव परिणाम नरेन्द्र मोदी और भाजपा की भावी राजनीति पर बड़ा असर डालने वाले हैं. इसका पहला संकेत राष्ट्रपति चुनाव में दिखाई पड़ेगा. इस साल 25 जुलाई को प्रणब मुखर्जी का कार्यकाल समाप्त हो रहा है. सवाल है कि क्या बीजेपी राष्ट्रपति पद पर अपना प्रत्याशी बैठा पाएगी? राष्ट्रपति-चुनाव का एक गणित है. उसे देखते हुए एनडीए बहुमत से अभी कुछ दूर है. 11 मार्च को आने वाले परिणाम इस गणित को स्पष्ट करेंगे. पर सवाल केवल गणित का ही नहीं है.

नरेन्द्र मोदी संघ से जुड़े किसी व्यक्ति को राष्ट्रपति पद पर बैठाना चाहेंगे या एपीजे अब्दुल कलाम जैसे किसी व्यक्ति को लाएंगे? कलाम को सन 2002 में अटल बिहारी वाजपेयी के दौर में एनडीए का प्रत्याशी बनाया गया था. इससे उस सरकार की उदार छवि बनी थी. राजनीतिक रूप से तब भाजपा इतनी ताकतवर नहीं थी कि अपनी विचारधारा के अनुरूप फैसला करती. तब एनडीए ने चतुराई से एक ऐसे व्यक्ति के नाम को सामने रखा, जिसपर कांग्रेस ने भी अपनी सहमति दे दी.
तब के मुकाबले आज भाजपा बेहतर स्थिति में है. फिर भी इतनी ताकतवर आज भी नहीं है कि अकेले अपने दम पर राष्ट्रपति चुनाव जीत सके. संसद में उसे बहुमत हासिल है. राज्यों की विधानसभाओं में भी पहली बार भाजपा के विधायकों की संख्या कांग्रेस के विधायकों से ज्यादा है. इन दिनों हो रहे चुनावों के ठीक पहले देशभर में कुल 4120 विधायकों में से भाजपा के 1096 विधायक हैं, जबकि कांग्रेस के विधायकों की संख्या 819 है. पाँच राज्यों में कुल 690 सीटों का चुनाव हो रहा है. इनमें से 167 सीटें कांग्रेस के पास और 100 सीटें बीजेपी के पास हैं. अब पता लगेगा कि कौन कितनी सीटें हासिल करेगा.  
राष्ट्रपति का चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के आधार पर एकल हस्तांतरणीय मत द्वारा होता है. इसकी एक गणना पद्धति है, जो 1974 से चल रही है और 2026 तक लागू रहेगी. एक सांसद के वोट का मूल्य 708 है. विधायकों के वोट का मूल्य अलग-अलग राज्यों की जनसंख्या पर निर्भर है. सबसे अधिक जनसंख्या वाले राज्य उत्तर प्रदेश के एक विधायक के वोट का मूल्य 208 तो सबसे कम सिक्किम के वोट का मूल्य मात्र सात है.
उत्तर प्रदेश में विधायकों की संख्या भी सबसे बड़ी है, इसलिए वहाँ के कुल वोट भी सबसे ज्यादा हैं. देशभर के 4120 विधायकों के कुल वोट का मूल्य है 5,49,474. सन 2012 के चुनाव में सांसदों की संख्या थी 776. इन सांसदों के वोटों का कुल मूल्य था–5,49,408. इस प्रकार राष्ट्रपति चुनाव में कुल वोट थे–10,98,882. हाल में एक विश्लेषक ने गणना की है कि पाँच राज्यों के विधानसभा चुनाव के पहले बीजेपी राष्ट्रपति को चुनाव जिताने की स्थिति से 1,70,146 वोट दूर है. उसके सहयोगियों के वोटों को भी जोड़ लें तो 75,106 वोट की जरूरत फिर भी होगी.
जिन पाँच राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं वहाँ के कुल वोट हैं 1,03,756. उत्तर प्रदेश से 83,824, पंजाब से 13,572, उत्तराखंड से 4,480, मणिपुर से 1,090 और गोवा से 800. यह पहला मौका है जब विधानसभाओं में कांग्रेस कमजोर स्थिति में है. सन 2002 के राष्ट्रपति चुनाव के वक्त संसद में एनडीए के मुकाबले कांग्रेस कमजोर थी, पर विधानसभाओं में उससे बेहतर थी. उस स्थिति में अटल सरकार ने समझदारी का परिचय देते हुए ऐसे व्यक्ति को चुना, जिससे टकराव टल गया. वाम मोर्चे ने लक्ष्मी सहगल को प्रत्याशी बनाया, पर वह मुकाबला एकतरफा साबित हुआ.
अब क्या होगा? कांग्रेस और भाजपा के बीच कड़वाहट पराकाष्ठा पर है और एनडीए बहुमत से दूर है. क्या इस मौके का फायदा उठाकर गैर-भाजपा विपक्ष एक हो जाएगा? या नरेन्द्र मोदी ऐसे प्रत्याशी का नाम आगे करेंगे, जिसकी वजह से विपक्षी एकता कायम नहीं हो पाएगी? पिछले साल अमर सिंह ने एक टीवी इंटरव्यू में दावा किया कि नरेन्द्र मोदी देश के अगले राष्ट्रपति के रूप में अमिताभ बच्चन के नाम का प्रस्ताव करने वाले हैं. अमर सिंह की बातों पर इन दिनों कोई ध्यान नहीं देता, पर नाम महत्त्वपूर्ण है.
अचानक कई नाम चर्चा में हैं. एन नारायण मूर्ति और रतन टाटा का नाम भी लिया गया है. पार्टी के अपने दो सीनियर नेता लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी हैं. अरुण जेटली और सुषमा स्वराज के नाम भी लिए जा रहे हैं. राजनीतिक कारणों से मुलायम सिंह और शरद पवार जैसे नाम भी इस सूची में शामिल हैं. इस वक्त सरकार को ऐसे नाम की जरूरत है, जिसके कारण अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी भारत का सम्मान बढ़े और जिसकी राजनीतिक स्वीकार्यता भी हो.
मोदी राजनीतिक कारणों को प्रमुखता देंगे या ऐसे व्यक्ति को राष्ट्रपति बनाएंगे, जिससे देश का नाम रोशन हो? राष्ट्रपति के अलावा उप-राष्ट्रपति पद का चुनाव भी होना है. उसका मतदाता मंडल छोटा होता है, पर इस पद के लिए काबिलीयत बड़ी शर्त है. उप-राष्ट्रपति राज्यसभा के पदेन सभापति होते हैं. उन्हें सदन का संचालन करना होता है. उस सदन का जिसके सदस्य अपेक्षाकृत विचारवान और विद्वान होते हैं. राजनीतिक लिहाज से भाजपा राज्यसभा में कमजोर है. वह किसी ऐसे व्यक्ति को इस पद पर लाना चाहेगी, जो उसकी फज़ीहत न होने दे.   
मोदी सरकार के लिए राष्ट्रपति का चुनाव जटिल चुनौती है. उसे फैसला करने के पहले बीजद, तृणमूल, अद्रमुक, जेडीयू, सपा, बसपा जैसे दलों से बात करनी होगी. कई राज्यों में सफलता पाने के बावजूद बीजेपी बिहार, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, बंगाल, कर्नाटक, उड़ीसा और केरल जैसे राज्यों में कमजोर है. तमिलनाडु में जयललिता के निधन के बाद से स्थिति डांवांडोल है. यह सम्भावना कम लगती है कि पार्टी किसी ऐसे व्यक्ति का नाम सामने रखेगी जिसपर कांग्रेस की सहमति भी हो. राज्यों के सेक्युलर दलों से समर्थन लेने के लिए उसे ऐसा नाम चाहिए, जिसपर व्यापक सहमति हो. पर उसके पहले उसे उत्तर प्रदेश में बड़ी सफलता हासिल करनी होगी.
inext में प्रकाशित

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