Sunday, February 7, 2016

फिर ढलान पर उतरेगी राजनीति

संसद का पिछले साल का बजट जितना रचनात्मक था, इस बार उतना ही नकारात्मक रहने का अंदेशा है। कांग्रेस ने घोषणा कर दी है कि वह गुजरात की मुख्यमंत्री आनंदी बेन के खिलाफ मामले उठाएगी। साथ ही रोहित वेमुला और अरुणाचल में राष्ट्रपति शासन के मामले भी उठाए जाएंगे। दो भागों में चलने वाला यह सत्र काफी लम्बा चलेगा और इसी दौरान पाँच राज्यों के विधान सभा चुनाव भी होंगे, इसलिए अगले तीन महीने धुआँधार राजनीति का दौर चलेगा। और 13 मई को जब यह सत्र पूरा होगा तब एनडीए सरकार के पहले दो साल पूरे हो रहे होंगे।


संसद का यह सत्र अर्थ-व्यवस्था की दशा-दिशा भी तय करेगा। आशा है कि इस साल देश की विकास दर आठ के अंक को छू लेगी। पर उसके पहले कई किन्तु-परन्तु हैं। इस बीच केन्द्रीय मंत्रिमंडल के विस्तार की सम्भावना भी थी, पर लगता है कि वह मई के बाद ही होगा, क्योंकि उसके साथ कई तरह के विवाद भी खड़े होंगे, जिनकी भूमिका नकारात्मक होगी।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा है कि केवल एक परिवार के कारण राज्यसभा में काम नहीं हो पा रहा है और जरूरी विधेयक रुके पड़े हैं। यह परिवार लोकसभा चुनाव में हुई हार का बदला इस तरह से ले रहा है। मेरा विरोध करने वालों में विपक्षी दलों के तमाम नेता हैं, पर वे चाहते हैं कि संसद में कामकाज हो। लेकिन एक परिवार कामकाज रोकने पर अड़ा है। संसद के बजट सत्र की तारीखें घोषित होने के बाद देश का ध्यान फिर से संसदीय कर्म की ओर वापस लौटा है। सवाल है कि क्या यह सत्र भी निष्फल जाएगा? प्रधानमंत्री ने यह बात असम के चुनाव के मद्देनज़र कही है या संसद के बजट सत्र पर आसन्न संकट को देखते हुए?

संसद के शीत सत्र के पहले दो दिन की विशेष चर्चा और उसके बाद नरेन्द्र मोदी के साथ सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह की मुलाकात के बाद दो बातें स्पष्ट हुईं थीं। एक, भारतीय जनता पार्टी की रणनीति में सुधार करना होगा। पर दूसरी बात भी जल्द स्पष्ट हो गई कि कांग्रेस पार्टी सहयोग के मूड में नहीं है। इस रणनीति का आंशिक असर यह हुआ था कि शीत सत्र से उम्मीदें बढ़ी थीं। पर लगता नहीं कि राजनीति की दिलचस्पी राष्ट्रीय महत्व के विषयों में है।

शीत सत्र के जब तीन दिन बाकी थे, राज्यसभा के सभापति हामिद अंसारी ने सर्वदलीय सभा बुलाई, ताकि सत्र के शेष बचे तीन दिनों में ज्यादा से ज्यादा संसदीय कार्य हो सके। इसमें सहमति बनी कि छह विधेयकों को पास किया जाएगा। इन छह में किशोर न्याय विधेयक का नाम नहीं था। कांग्रेस समेत विपक्ष के ज्यादातर नेता इस विधेयक को प्रवर समिति के पास भेजने के पक्ष में थे. उधर निर्भया मामले में किशोर अपराधी के जेल से छूटने की खबरें आईं और निर्भया के परिवार के सदस्यों ने धरने पर बैठने की घोषणा कर दी। संसद के बाहर जनता का दबाव बढ़ने पर सारे दलों की राय बदल गई और राज्य सभा ने इसे आनन-फानन पास कर दिया। पर जीएसटी विधेयक अपनी जगह पड़ा रहा। राज्य सभा में पहले से 18 विधेयक लम्बित हैं, पर उन्हें लेकर जनता का दबाव नहीं है.

पिछले साल बजट सत्र के बाद से संसदीय विमर्श में ह्रास आया है। पिछले साल का बजट सत्र पिछले 15 साल में सबसे अच्छा था। लोकसभा ने अपने निर्धारित समय से 125 फीसदी और राज्यसभा ने 101 फीसदी काम किया। पर मॉनसून और शीत सत्र में कहानी बदल गई। मॉनसून सत्र में लोकसभा में कुल 48 फीसदी समय काम हुआ और राज्यसभा में केवल 9 फीसदी। पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च के अनुसार शीत सत्र में 22 दिसम्बर तक यानी सत्र-समापन के एक दिन पहले तक राज्यसभा में 50 फीसदी काम ही हुआ, जबकि लोकसभा ने इस दौरान 102 फीसदी काम किया। सवाल है कि क्या जनता का दबाव राजनीतिक दलों पर है? है तो जनता की समझ किस प्रकार बनती है? जनता को क्या जीएसटी का महत्व समझ में नहीं आता?

पिछले सत्र के दौरान प्रधानमंत्री के कांग्रेस नेताओं के साथ चाय पर चर्चा के संदर्भ में राहुल गांधी का कहना था कि जनता के दबाव में सरकार ने कांग्रेस की तरफ हाथ बढ़ाया था। अब मोदी के बयान के फौरन बाद राहुल गांधी ने कहा है कि प्रधानमंत्री का काम बहाने बनाना नहीं है। उन्हें देश चलाना शुरू करना चाहिए। भारत ने उन्हें बहाने बनाने के लिए नहीं चुना। कांग्रेस की राजनीति गाँवों और गरीबों के बीच अपनी जगह बनाने की है। उधर आर्थिक उदारीकरण से जुड़े कामों में देरी होने से अर्थ-व्यवस्था के उठान में देरी हो रही है। कांग्रेस नहीं चाहेगी कि भाजपा को उसका लाभ मिले। देखना होगा कि मोदी सरकार इसका तोड़ क्या निकालेगी।  

चुनाव को देखते हुए पहले सरकार बजट सत्र की अवधि कम रखना चाहती थी, पर पिछले गुरुवार को विपक्षी दलों के साथ बातचीत के बाद तय हुआ कि सत्र अपने पूरे आकार में होगा। सवाल है कि क्या दोनों सदन संसदीय कर्म को पूरा करेंगे? जीएसटी बिल को लेकर तस्वीर साफ नहीं है। हाल में वित्तमंत्री ने उम्मीद जाहिर की है कि सरकार इसे पास करा लेगी, पर कैसे? विपक्षी दलों से चर्चा में सरकार ने इसका जिक्र तक नहीं किया। सम्भावना कि है सरकार इसे बजट सत्र के दूसरे हिस्से में लाए। इस बीच पांच राज्यों के विधानसभा के नतीजों से भी राजनीतिक तस्वीर बदल सकती है। सरकार को उम्मीद है कि विपक्ष का संख्या बल अप्रैल के बाद कुछ कम हो जाएगा, क्योंकि तब राज्यसभा में कुछ नए सदस्य आएंगे। इससे शायद उसे बिल पास कराने में कामयाबी मिल जाए।

वित्तमंत्री अरुण जेटली ने शीत सत्र के बाद कहा था कि जीएसटी लागू होगा, क्योंकि मुख्य विपक्षी दल का संख्या बल राज्यसभा में कम हो रहा है। सदन के अगले द्विवार्षिक चुनाव में कांग्रेस की संख्या कम होगी और उनके नामित समर्थकों की संख्या भी घटेगी। जेटली ने कहा कि ज्यादातर राज्य जीएसटी के लिए तैयार हैं और इसे साल के मध्य में भी लागू किया जा सकता है। इस विधेयक के पास होने से ज्यादा महत्वपूर्ण है संसदीय कर्म की गम्भीरता का कायम रहना। और इसकी परीक्षा इस सत्र में होगी।


हरिभूमि में प्रकाशित

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