Thursday, December 4, 2014

छह महीने में उम्मीदें बढ़ीं

नरेंद्र मोदी सामान्य तरीके से सत्ता हासिल करके नहीं आए हैं। उन्होंने दिल्ली में प्रधानमंत्री बनने के पहले अपनी पार्टी के भीतर एक प्रकार की लड़ाई लड़ी थी। उनकी तुलना उस योद्धा से की जा सकती है जिसका अस्तित्व लगातार लड़ते रहने पर आश्रित हो। इस हफ्ते जब 26 मई को उनकी सरकार के छह महीने पूरे हुए तो उसके तीन दिन पहले राहुल गांधी ने झारखंड उपचुनावों में प्रचार के दौरान मोदी पर हमला बोलते हुए पूछा, क्या आपके अच्छे दिन आ गए? कहां है अच्छे दिन? छह महीने नहीं सौ दिन नहीं 26 मई को ही लोग पूछ रहे थे कि क्या आ गए अच्छे दिन? मोदी ने उम्मीदें जगाईं, अपेक्षाएं तैयार कीं और जीत हासिल करने के लिए अपने विरोधियों पर करारे वार किए, इसलिए उनपर वार होना अस्वाभाविक नहीं। नई सरकार की उपलब्धियों पर पाँच साल बाद ही बात होनी चाहिए, पर कम से कम समय की बात करें तो अगले बजट को एक आधार रेखा माना जाना चाहिए। वह भी पर्याप्त इसलिए नहीं है, क्योंकि सरकार के पूरे एक वित्तीय वर्ष का लेखा-जोखा तबतक भी तैयार नहीं हो पाएगा। फिर भी मोटे तौर पर मोदी के छह महीनों की पड़ताल की जाए तो कुछ बातें सामने आती हैं वे इस प्रकार हैः-

काम करने की संस्कृति
नेताओं और मंत्रियों के वक्तव्यों पर रोक
कुछ बड़े फैसले
वैश्विक मंच पर ऊर्जावान भारत का उदय
नरेंद्र मोदी ने अच्छे दिनों का वादा किया था। अच्छे दिनों से जनता का मतलब होता है महंगाई में कमी, आय में वृद्धि, रोजगार मिलना, कानून-व्यवस्था में सुधार, भ्रष्टाचार में कमी और सीमा पर शांति। इन सभी मामलों की पड़ताल करने की कोई ऐसी पद्धति नहीं है जो बता सके कि सरकार की दिशा क्या है। मसलन सरकार बनने के कुछ दिन बाद ही रेल-भाड़े में वृद्धि हुई। हालांकि वह फैसला पिछली सरकार का था, जिसे चुनाव परिणाम आने पर रोक दिया गया था। पर वह पिछली सरकार का नहीं भी होता तब भी होता, क्योंकि रेलवे के कुशल संचालन के लिए माल-बाड़े में वृद्धि की माँग अरसे से हो रही थी। इसके बाद सरकार के सामने पेट्रोलियम पर सब्सिडी का सवाल आया। गैस सिलेंडरों की कीमत बढ़ी। हाल में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने संदेश दिया है कि मध्य वर्ग को सब्सिडी नहीं मिलनी चाहिए। इसका मतलब यह हुआ कि कुछ लोगों को सस्ते सिलेंडरों के दायरे से बाहर किया जाएगा। सरकार के सामने आर्थिक उदारीकरण से जुड़े कानूनों को पास करने की जिम्मेदारी है। इनमें सबसे महत्वपूर्ण है बीमा विधेयक, जीएसटी और आयकर कानून।

सरकार के लिए यह जोखिम भरा दौर है। उसके पास राज्यसभा में बहुमत नहीं है, घायल साँप की तरह विपक्ष उससे बदला लेने के मूड में है। सरकार चलती रहेगी, पर उसे अलोकप्रिय बनाने वाली घटनाएं बार-बार होंगी। इसके बावजूद मोदी का जादू अभी जनता के दिमाग से उतरा नहीं है। यह बात हरियाणा और महाराष्ट्र के फैसलों से साबित हुई है और अभी झारखंड ही नहीं कश्मीर में भी इसकी झलक देखने को मिलेगी। हालांकि दिल्ली के चुनाव घोषित नहीं हुए हैं, पर कोई आश्चर्य नहीं कि दिल्ली में भी मोदी का जादू दिखाई पड़े। मोटे तौर पर पहले छह महीने में मोदी एक्सप्रेस इत्मीनान के साथ चली है। कोई अगले विस्मय नहीं कि छह महीने भी वह निर्बाध चले। उसके बाद के हालात बताएंगे कि गाड़ी बुलेट ट्रेन की स्पीड पकड़ेगी या पैसेंजर की।

सरकार के सामने जो चुनौतियाँ हैं वे अभी मामूली लगती हैं। पर वे किसी भी वक्त बड़ा मोड़ ले सकती हैं। चुनाव के दौरान वोट जीतने के लिए नरेंद्र मोदी और भाजपा ने काले धन को लेकर जो बातें कहीं थीं, उन्हें लेकर विपक्ष ने उन्हें घेरा है। इस हफ्ते संसद में काले धन की वापसी पर बहस के दौरान विपक्ष ने उसी अंदाज में भाजपा को घेरा जिस अंदाज में विपक्ष में रहते हुए भाजपा मनमोहन सरकार को घेरती थी। हालांकि भाजपा सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार विशेष जाँच दल बनाया और विदेशी बैंक खातों की एक सूची अदालत को सौंपी है, पर अभी देश काले धन को लेकर आश्वस्त नहीं है।

मोदी सरकार की उपलब्धि है ‘मेक इन इंडिया’ योजना। वे चीन की तरह भारत को उत्पादन का गढ़ बनाना चाहते हैं। इसके लिए अरबों डॉलर के निवेश की ज़रूरत है। उन्होंने अपने हर विदेशी दौरे में निवेशकों से अपील की है भारत में निवेश करें। उन्होंने अपनी सरकार के गठन में पूर्णकालिक रक्षा मंत्रि को नियुक्त न करके देश को विस्मय में डाला था, पर मनोहर पर्रिकर को यह काम सौंपकर उन्होंने यह भी जाहिर किया कि वे इस मसले को लेकर संजीदा है। मोदी की एक पसंदीदा योजना है 100 स्मार्ट सिटी। एक प्रकार से यह नए भारत का निर्माण है। सरकार का अंदाज़ा है कि इस परियोजना में हर साल 35,000 करोड़ रुपये का खर्च आएगा। इस योजना की सफलता भी विदेशी निवेश पर निर्भर करती है। विशेषज्ञ कहते हैं कि बिजली और पीने के साफ पानी जैसे बुनियादी ढाँचे की कमी के कारण इसमें बाधाएं आएंगी। पिछड़े और ग़रीब लोगों को औपचारिक वित्तीय प्रणाली में शामिल करने की जन-धन योजना भी युगांतरकारी है, पर तभी जब यह काम करे।

मोदी सरकार यूपीए के आधार कार्यक्रम को आगे बढ़ा रही है। इसका मतलब यह भी है कि वह व्यावहारिक तरीके से सोच रही है भावनात्मक आधार पर नहीं। मोदी ने 'सन 2019 तक डिजिटल इंडिया' का विज़न दिया है। इस योजना में ई-गवर्नेंस, सब के लिए ब्रॉडबैंड, आईटी की शिक्षा और दूसरे क्षेत्रों में इस्तेमाल तथा वाई फाई वाले शहर शामिल हैं। यह कार्यक्रम सफल हुआ तो अपने आप देश को दिखाई पड़ेगा। उनका स्वच्छता अभियान वास्तविक है या केवल प्रचारात्मक इसके लिए इंतज़ार करना होगा।

सरकार की सफलता के तीन कारक सबसे महत्वपूर्ण हैं। एक, बड़े स्तर पर निवेश। सरकार विदेश में अपनी छवि सुधारना चाहती है ताकि निवेशक भारत में निवेश को सुरक्षित मानें। देश का विदेशी मुद्रा भंडार बेहतर हुआ है, पेट्रोलियम की अंतरराष्ट्रीय कीमतें कम हुईं हैं, जिससे रुपए की कीमत बढ़ी है। विदेशी कम्पनियों पर टैक्स के मामले में सरकार का रुख नरम हुआ है। पर सरकार के सामने राह आसान नहीं है। इस साल जुलाई से सितंबर की तिमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर 5.3 फ़ीसदी रही है, जो कि उससे पहले की तिमाही में 5.7 प्रतिशत थी। हालांकि यह कोई बड़ी चेतावनी नहीं है, पर विनिर्माण क्षेत्र में गति बढ़े बगैर काम नहीं होगा। दूसरी ओर मुद्रास्फीति को लेकर चिंताएं हैं। इसपर काबू पाया जा सका तो ब्याज की दरें गिरेंगी और आर्थिक गतिविधियों में तेजी दिखाई पड़ेगी। इतनी कहा जा सकता है कि पिछले छह महीने उसके पिछले छह महीनों के मुकाबले ज्यादा आशावान थे। 
हरिभूमि में प्रकाशित



2 comments:

  1. जब तक हमारी सोच यह होगी के देश को सरकार चलाती तब तक देश आगे नहीं बड़ेगा. देश तब आगे बड़ेगा जब लोग आगे बड़ेंगे. अब सड़क हादसों को ही लें एक लाख से अधिक लोग हर साल मर जाते हैं अगर सब नियमों का पालन करने लगें तो कितनी जानें बच सकती हैं कितने परिवार बर्बाद होने से बच सकते हैं.हर दिन लोग मरते हैं पर कितने लोग सबक लेते हैं,

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