Wednesday, March 7, 2012

इस ‘जीत’ के पीछे है एक ‘हार’


दावे हर पार्टी करती है. पर सबको यकीन नहीं होता। समाजवादी पार्टी को यकीन रहा होगा, पर इस बात को खुलकर मीडिया नहीं कह रहा था। वैसे ही जैसे 2007 में नहीं कह पा रहा था। फिर भी यह चुनाव समाजवादी पार्टी की जबर्दस्त जीत के साथ-साथ बसपा, कांग्रेस और भाजपा की हार के कारण भी याद किया जाएगा। इन पराजयों के बगैर सपा की विजय-कथा अपूर्ण रहेगी। साथ ही इसमें भविष्य के कुछ संदेश भी छिपे हैं, जो राजनीतिक दलों और मतदाताओं दोनों के लिए हैं।

यह वोट बसपा की सरकार के खिलाफ वोट था। वैसे ही जैसे पिछली बार सपा की सरकार के खिलाफ था। जिस तरह मुलायम सिंह पिछली बार नहीं मान पा रहे थे लगता है इस बार मायावती भी नहीं मान पा रहीं थीं कि हार सिर पर मंडरा रही है। सरकार को बेहद मामूली काम करना होता है। सामान्य प्रशासन। उसके प्रचार वगैरह की ज़रूरत नहीं होती। और न आलोचनाओं से घबराने की ज़रूरत होती है। छवि को ठीक रखने के लिए सावधान रहने की जरूरत होती है।


मायावती के लिए वास्तव में 2007 में महत्वपूर्ण मौका था। पर उन्होंने यह नहीं सोचा कि यह कुर्सी एक मुकर्रर वक्त के लिए है। दलितों की अस्मिता और सम्मान से बहुत कम लोगों की असहमति थी। मायावती ने जब हजार-हजार के नोटों की माला पहनी तभी समझ लिया जाना चाहिए था कि यह माला एक दिन ‘हार’ साबित होगी। बड़ी संख्या में लोगों को यह सब पसंद नहीं आएगा। पत्थर की प्रतिमाओं से भी दलितों का वोट बैंक भी मजबूत नहीं हुआ। मायावती की व्यक्तिगत नेतृत्व क्षमता को प्रदेश की जनता कद्र करती है, पर उतने से ही सब कुछ नहीं होता। उन्होंने गुंडागर्दी को काबू में किया, पर जनता से खुद को काटकर रखा। ऐसी सरकारी व्यवस्था पनपी जिसमें मंत्रियों पर न सिर्फ भ्रष्टाचार के खुले आरोप लगे बल्कि उन्हें एक के बाद एक हटना पड़ा। वे जो कुछ कर सकती थीं वह उन्होंने नहीं किया।

कांग्रेस पार्टी दो-चार सीटों की बढ़त को अपनी सफलता मानती है तो उसे खुश होने का अधिकार है, पर उत्तर प्रदेश ने दिल्ली की यूपीए सरकार के लिए खतरे की घंटी बजा दी है। राहुल गांधी बेहतरीन, ईमानदार और उत्साही नेता हैं, पर पार्टी में उन्हें कोई यह बात समझा नहीं पाया कि पहले स्थानीय संगठन खड़ा करें फिर उसकी सलाह पर चलें। कांग्रेस ही नहीं अब किसी भी पार्टी को सफल होने के लिए जनता से जुड़े रहना होगा। किसी दलित की झोपड़ी में खाना खा लेना प्रचार के लिए अच्छा है, पर उससे ज्यादा ज़रूरी है उन जानकारियों को हासिल करना जो सबसे नीचे के लेवल के कार्यकर्ता के पास है। सामान्य जनता को सरकारी खर्चे से पत्थर की इमारतें खड़ी करना पसंद नहीं आता है। पर यह परम्परा बसपा की नहीं है। दिल्ली में तमाम सरकारी इमारतें राजनेताओं के नाम पर संग्रहालयों में तबदील हो चुकी हैं। यह कांग्रेस की देन है।

भारतीय जनता पार्टी की पराजय के पीछे भी वही कारण है जो कांग्रेस का कारण है। इस पूरे दौर में सबसे विचारशून्य पार्टी भाजपा ही रही। उसका प्रचार अभियान सुशासन के नाम पर शुरू हुआ, पर उन्हीं दिनों कर्नाटक और उत्तराखंड में भ्रष्टाचार की कहानियाँ भी हवा में उड़ रही थीं। राष्ट्रवाद की भावनात्मक हवा के सहारे बहुत लम्बे समय तक उड़ान भरी नहीं जा सकती। उत्तर प्रदेश में सपा की विजय को क्रांति नहीं मान लेना चाहिए। वोटर सरकार बदलना चाहता था, जिसके लिए सबसे तैयार पार्टी सपा थी। अब सपा को साबित करना है कि वह अपनी परम्परागत राजनीति की जगह नए कार्यक्रमों के साथ सामने आएगी। वह वक्त की आवाज़ सुनने में कामयाब रही तो भविष्य में सफल भी होगी। सपा को यह भी साबित करना है कि क्षेत्रीय पार्टियाँ पारिवारिक धरोहर मात्र नहीं होतीं। उनके पीछे एक इलाके की चेतना होती है।

आप पूरे चुनाव अभियान को देखें तो इसमें आरोप-प्रत्यारोपों की कतारें देखेंगे। प्रदेश के भावी औद्योगिक विकास और युवा वर्ग के लिए ठोस कार्यक्रम किसी ने पेश नहीं किया। राहुल गांधी ने उत्तर प्रदेश से बाहर जाने वाले नौजवानों के अपमान की बात कही ज़रूर, पर उसका कोई समाधान नहीं दिया। प्रदेश के शहरों को मेट्रो परिवहन, टेक्निकल शिक्षा के नए केन्द्रों और रोज़गार के नए अवसरों की ज़रूरत है। पर ज्यादातर पार्टियों का प्रचार एक-दूसरे पर कीचड़ उछालने तक सीमित रहा। अखिलेश यादव के लैपटॉप और अंग्रेजी शिक्षा में नयापन ज़रूर था, पर उसका व्यावहारिक अर्थ क्या था यह अब पता लगेगा। बहरहाल प्रचार के दौरान किसी पार्टी ने प्रदेश के विकास का नया मॉडल पेश नहीं किया है। और किया भी है तो इस प्रचार के इस शोर में वह महत्वपूर्ण साबित नहीं हुआ। नई अर्थव्यवस्था के दौर में बड़ा हुए युवा ने मोबाइल क्रांति देखी है, वह इंटरनेट की ताकत जानता है। उसे अब बदलाव चाहिए।

ऐसा नहीं कि प्रदेश में जातीय राजनीति का दौर खत्म हो गया। हाँ सरकार से जनता की अपेक्षाएं अब बढ़ रहीं हैं। वह जवाबदेही चाहती है। ईमानदार और जनता से जुड़ी राजनीति के लिए यह बेहतर मौका है। लम्बे अर्से से त्रिशंकु विधानसभा देने वाला प्रदेश लगातार दूसरी बार साफ बहुमत दे रहा है तो इसके पीछे का संदेश समझना चाहिए।

डेली न्यूज एक्टिविस्ट में प्रकाशित




4 comments:

  1. बहुत सटीक और साफ़ समीक्षा है प्रमोद जी ! काश इसे अधिकाधिक राजनेता गंभीरता से पढ़ें, गुनें और लागू भी करें.

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  2. सुन्दर प्रस्तुति |

    होली है होलो हुलस, हुल्लड़ हुन हुल्लास।
    कामयाब काया किलक, होय पूर्ण सब आस ।।

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  3. अच्छा है ।

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  4. बहुत सुन्दर ।

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