Friday, September 2, 2022

भारत से खास रिश्तों के लिए याद रहेंगे गोर्बाचेव

गोर्बाचेव जब भारत आए

भारत की जनता के मन में कुछ विदेशी राष्ट्राध्यक्षों के प्रति विशेष सम्मान है। इनमें अमेरिकी जॉन एफ कैनेडी और रूसी मिखाइल गोर्बाचेव के नाम शामिल किए जा सकते हैं। पूर्व सोवियत संघ के अंतिम नेता मिखाइल गोर्बाचेव (गोर्बाचोव या गोर्बाचौफ) को हिंदी वर्तनी के अलग-अलग रूपों की तरह अलग-अलग कारणों से याद कर सकते हैं। शीतयुद्ध खत्म कराने या अनायास हो गए साम्यवादी व्यवस्था के विखंडन में उनके योगदान के लिहाज से या फिर भारत के साथ उनके विशेष रिश्तों के कारण। यह आलेख भारत के साथ रिश्तों को लेकर ही है। उन रिश्तों को समझने के लिए भी उस पृष्ठभूमि को समझना होगा, जिसकी वजह से वे महत्वपूर्ण हैं।

सन 1985 में जब वे सत्ता में आए, तब उनका इरादा सोवियत संघ को भंग करने का नहीं था, बल्कि वे अपनी व्यवस्था को लेनिन के दौर में वापस ले जाकर जीवंत बनाना चाहते थे। वे ऐसा नहीं कर पाए, क्योंकि अपने समाज के जिन अंतर्विरोधों को उन्होंने खोला, उन्हें पिटारे में बंद करने की कोई योजना उनके पास नहीं थी। उन्हें न केवल सोवियत संघ में, बल्कि रूस के इतिहास में सबसे साफ-सुथरे और निष्पक्ष चुनाव कराने का श्रेय जाता है। उन्होंने व्यवस्था को सुधारने की लाख कोशिश की, फिर भी सफल नहीं हुए। दूसरी तरफ कट्टरपंथियों ने उनके तख्ता पलट की कोशिशें भी कीं, वे भी सफल नहीं हुए। अंततः 1991 में सोवियत संघ 1991 बिखर गया।

ताजा हवा का झोंका

गोर्बाचेव सोवियत कम्युनिस्ट पार्टी के पहले ऐसे महासचिव थे, जिनका जन्म 1917 की क्रांति के बाद हुआ था और कई उम्रदराज नेताओं के बाद उन्हें राजनीति में ताज़ा हवा के झोंके जैसा माना जाता था। उनका खुला रवैया उन्हें अपने दूसरे नेताओं से अलग बनाता था। उनके सामने पहली चुनौती ध्वस्त हो रही सोवियत अर्थव्यवस्था में फिर से जान फूंकने की थी। वे कम्युनिस्ट पार्टी में सिर से लेकर पैर तक बदलाव करने की इच्छा लेकर आए थे, जो लगभग असंभव संकल्प था। उन्होंने दुनिया को दो नए रूसी शब्द दिए, ग्लासनोस्तयानी खुलापन और 'पेरेस्त्रोइका' यानी पुनर्गठन। उनके विचार से नए निर्माण के लिए खुलापन जरूरी है। पर यह खुलापन बाजार की अर्थव्यवस्था का खुलापन नहीं है।

एक बात उन्होंने पार्टी प्रतिनिधियों से 1985 में कही थी, हमें अपने जहाज को बचाना है, जो समाजवाद है। उनके नेतृत्व में पहली बार सोवियत संघ की सर्वोच्च संस्था 'कांग्रेस ऑफ़ पीपुल्स डेप्युटीज़' के चुनाव हुए थे। वैश्विक स्तर पर वे गोर्बाचेव शीत युद्ध को ख़त्म करना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रेगन के साथ निरस्त्रीकरण संधि भी की। उनके खुलेपन और लोकतांत्रिक भावना पर पहला उन गणराज्यों पर पड़ा, जो कालांतर में सोवियत संघ में शामिल हुए थे। उन इलाकों में आज़ादी की मांग उठने लगी।

Wednesday, August 31, 2022

कर्नाटक में गणेशोत्सव से जुड़े दो विवादों की खबरों के कारण गलतफहमी


कर्नाटक के दो ईदगाह मैदानों में गणेश पूजा की खबरों को कुछ लोग शायद ठीक से पढ़ नहीं पाए हैं। कुछ लोगों को लगता है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी रात में कर्नाटक हाईकोर्ट ने आदेश क्यों दे दिया। एक मैदान बेंगलुरु में और दूसरा हुब्बली में है। मंगलवार (30 अगस्त) को सुप्रीम कोर्ट के तीन सदस्यों के पीठ ने बेंगलुरु के मैदान में यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश दिया। यानी कि वहाँ गणेश चतुर्थी से जुड़े समारोह नहीं हो सकेंगे।

राज्य सरकार ने इस मैदान पर 31 अगस्त और 1 सितंबर को गणेश चतुर्थी से जुड़े समारोह की अस्थायी अनुमति दी थी। यह संपत्ति वक्फ बोर्ड की है या सरकार की, इसे लेकर विवाद है। अदालत ने इस मामले से जुड़े पक्षों से कहा कि वे इस मसले पर कर्नाटक हाईकोर्ट के सामने अपना पक्ष रखें। हाईकोर्ट में इस मामले पर 23 सितंबर को सुनवाई होगी।  

हुब्बली

दूसरी तरफ मंगलवार की रात कर्नाटक हाईकोर्ट ने हुब्बली के मेयर द्वारा शहर के ईदगाह में गणेश चतुर्थी के समारोह की अनुमति देने से जुड़े आदेश को रोकने से इनकार कर दिया। अदालत ने कहा कि हुब्बली के ईदगाह मैदान के स्वामित्व को लेकर कोई विवाद नहीं है। दोनों मामलों के तथ्य अलग-अलग हैं। अंजुमन-ए-इस्लाम को बेंगलुरु के मामले में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के आदेश का लाभ नहीं दिया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आधार पर अंजुमन ने हाईकोर्ट में अर्जी दी थी।

रात 10 बजे, न्यायमूर्ति अशोक एस किनागी ने चैंबर में मामले की सुनवाई की और कहा कि विचाराधीन भूमि हुबली धारवाड़ नगर निगम के स्वामित्व में है। यह ज़मीन 999 साल के पट्टे पर अंजुमन को दी गई है। फिर भी म्युनिसिपल कॉरपोरेशन के पास ज़मीन के इस्तेमाल का अधिकार है। अदालत ने रात 1 बजकर 45 मिनट पर याचिका खारिज करने का आदेश जारी किया।

Monday, August 29, 2022

ट्विन-टावर प्रकरण: भ्रष्टाचार की बहती धारा में स्नान करने वालों को सजा कौन और कब देगा?

नोएडा की ट्विन-टावर गिरा दी गईं, पर अपने पीछे कुछ सवाल छोड़ गई हैं। इनका निर्माण अवैध था, तो उन्हें बनने क्यों दिया गया? जब ये अधूरी थीं, तभी रोकते।  अब इन्हें गिराकर एक गलत काम की सजा तो दे दी गई, पर इनके निर्माण की अनुमति देने वालों का क्या हुआ? देश में भ्रष्टाचार की गंगा बहती है। वह दो टावरों तक सीमित नहीं है। चंद अफसर ही इसमें शामिल नहीं हैं। अलबत्ता यह प्रकरण जनता की लड़ाई का प्रस्थान-बिंदु बन सकता है।

करोड़ों रुपये खर्च करके जब ये इमारतें बन ही गई थीं, तो बनाने वालों को सजा देने के बाद इमारतों का कोई इस्तेमाल कर लेते। इन्हें गिराने से क्या मिला? तमाम इमारतें गलत बनी हुई हैं। उनसे जुर्माना वगैरह लेकर आप चलने देते हैं। बहरहाल इन्हें अदालत के फैसले से गिराया गया है, इसलिए उसे स्वीकार कर लेते हैं।

इमारतें गिर जाने के बाद एमराल्ड कोर्ट के निवासियों को क्या उनका गार्डन वापस मिलेगा? उन अफसरों का क्या होगा, जिन्होंने यह सब होने दिया? इस सोसायटी रहने वालों में सरकारी अफसर, वकील और रिटायर्ड जज भी हैं। उनके प्रयासों से यह कानूनी-उपचार संभव हो पाया। क्या वे अफसरों पर कार्रवाई के लिए भी कोई मुहिम चलाएंगे? क्या ऐसी मुहिम मामूली लोग भी चला सकेंगे, जो बिल्डरों की गलत-सलत हरकतों के शिकार हैं।  

इस प्रकरण का एक असर यह है कि एनसीआर क्षेत्र में तमाम सोसाइटियों के निवासी अब अपने मसलों को उठाने पर विचार कर रहे हैं। शिकायतें कई तरह की हैं, पर न्याय के दरवाजे दूर हैं। बिल्डरों ने अफसरों की मदद से तमाम नियम-विरुद्ध काम किए हैं। ट्विन-टावरों ने चेतना जगाने का काम किया है। अब जरूरत इस बात की है कि लोग मिलकर कानूनी उपाय खोजें।

Sunday, August 28, 2022

ट्विन-टावरों को गिराकर क्या मिला?


नोएडा की ट्विन-टावर गिरा दी गईं, पर अपने पीछे कुछ सवाल छोड़ गई हैं। पहला सवाल है कि इनका निर्माण अवैध था, तो उन्हें बनने क्यों दिया गया? इन्हें गिराकर एक गलत काम की सजा तो मिल गई, पर इनके निर्माण की अनुमति देने वालों का क्या हुआ? एक बात यह भी कही जा रही है कि करोड़ों रुपये खर्च करके जब ये इमारतें बन ही गई थीं, तो इन्हें बनाने वालों को सजा देने के बाद इन इमारतों का कोई इस्तेमाल कर लेते। इन्हें गिराने से क्या मिला?

इमारतें गिर जाने के बाद एमराल्ड कोर्ट को विशाल गार्डन मिलेगा। पर ज्यादा महत्वपूर्ण विषय यह है कि इससे जुड़े अफसरों पर हुई क्या कार्रवाई हुई। एमराल्ड कोर्ट में रहने वालों में सरकारी अफसर, वकील और रिटायर्ड जज भी हैं। उनके प्रयासों से यह कानूनी-उपचार संभव हो पाया। देखना होगा कि संबद्ध अफसरों पर कार्रवाई के लिए भी क्या कोई मुहिम चलेगी?

पूरे एनसीआर क्षेत्र में तमाम सोसाइटियों के निवासी अब इस बात पर विचार कर रहे हैं कि वे किस प्रकार अपने मसलों को उठाएं। इस पूरे क्षेत्र में बिल्डरों ने जबर्दस्त निर्माण-कार्य किया है, जिसमें कई तरह के नियम-विरुद्ध काम हुए हैं। इन कार्यों में अफसरों की मिली-भगत रही है। ट्विन-टावरों ने चेतना जगाने का काम किया है। अब जरूरत इस बात की है कि इनमें रहने वाले मिलकर कानूनी उपाय खोजें।

आज़ाद ने खोले कांग्रेसी अंतर्विरोध


गुलाम नबी आजाद के इस्तीफे की चिट्ठी हाल के वर्षों में कांग्रेस के अंतर्विरोधों का सबसे महत्वपूर्ण दस्तावेज है। इसलिए महत्वपूर्ण यह देखना है कि इस पत्र पर कांग्रेस पार्टी की प्रतिक्रिया क्या है। उस प्रतिक्रिया से ही पता लगेगा कि पत्र में जो लिखा गया है, वह किस हद तक सही है और किस हद तक एक दिलजले की भड़ास। यह पत्र सोनिया गांधी को लिखा गया है और इसमें राहुल गांधी को निशाना बनाया गया है। उन्होंने लिखा है, ‘पार्टी के सभी वरिष्ठ और अनुभवी नेताओं को किनारे कर दिया गया है, अब अनुभवहीन चाटुकारों की मंडली पार्टी चला रही है।’ दूसरी तरफ कहा जा रहा है कि गुलाम नबी को कांग्रेस ने हीरो बनाया। संगठन-सरकार में कई पदों से नवाजा। दो बार लोकसभा सांसद बनाया, जम्मू-कश्मीर का सीएम बनाया। चुनाव की हार से बचाकर पाँच बार राज्यसभा सांसद बनाया। उन्होंने मलाई काटी, आज दगाबाजी कर रहे हैं। पार्टी नेतृत्व को इस बात पर विचार करना चाहिए कि इतना सीनियर नेता पार्टी क्यों छोड़ रहा है। क्या इसलिए कि उसे राज्यसभा की सीट नहीं मिली और दिल्ली में रहने के लिए उसे बंगला चाहिए? राज्यसभा की सीट तो अब की बात है, गुलाम नबी कम से कम तीन साल से तो अपनी बात कह ही रहे हैं। यह बात उन्होंने पार्टी के फोरम पर ही की है। वे अपने विचार पार्टी अध्यक्ष को लिखे पत्रों में व्यक्त करते रहे हैं। उनकी बात सुनने के बजाय उनपर आरोपों की बौछार क्यों लगी?

परिवार खामोश

सोनिया, राहुल और प्रियंका की कोई प्रतिक्रिया इन पंक्तियों के लिखे जाने तक नहीं आई है। बाकी सीनियर नेताओं के स्वर वैसे ही हैं, जैसे 1969 में इंदिरा कांग्रेस बनने के बाद से रहे हैं। शुक्रवार को दिन में पार्टी ने अजय माकन की एक प्रेस कांफ्रेंस रखी थी, पर उसका एजेंडा दिल्ली की आम आदमी पार्टी को निशाना बनाने का था। गुलाब नबी के इस्तीफे की खबर आने के बाद वह प्रेस कांफ्रेंस रद्द कर दी गई, क्योंकि स्वाभाविक रूप से सवाल इस इस्तीफे को लेकर ही होते। आज 28 अगस्त को कार्यसमिति की बैठक बुलाई गई है। इस बैठक का विषय पार्टी अध्यक्ष के चुनाव के कार्यक्रम को तय करना है। क्या उसमें कांग्रेस के आंतरिक प्रश्नों पर खुलकर विचार-विमर्श होगा? इस बैठक के विमर्श से भी आपको पार्टी की सोच-समझ का अंदाज लगेगा।

संकट या नया दौर?

कांग्रेस के लिए यह संकट की घड़ी है या नहीं है, यह अलग-अलग दृष्टिकोणों पर निर्भर करता है। पिछले नौ वर्षों में, यानी मोदी के आने के बाद, काफी लोग पार्टी छोड़कर गए हैं। हरबार कहा जाता है कि अच्छा हुआ, गंध गई। यानी कि अब ताजगी का नया दौर शुरू होगा। इस नजरिए से कहा जा सकता है कि गुलाम नबी का जाना, अच्छा ही हुआ। अब पार्टी का नया दौर शुरू होगा। पार्टी को अगले तीन हफ्तों में अपने अध्यक्ष का चुनाव करना है। साल के अंत में गुजरात और हिमाचल प्रदेश में चुनाव होने वले हैं। 

अगले साल कर्नाटक, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और तेलंगाना में विधानसभा चुनाव हैं। दूसरे कई राज्यों में भी चुनाव हैं, पर पाँच में पहले चार राज्यों में कांग्रेस के महत्वपूर्ण हित जुड़े हुए हैं। राजनीति की निगाहें इससे आगे हैं, वह 2024 और 2029 के चुनावों तक देख रही है। गुलाम नबी के रहने या जाने से कांग्रेस की सेहत पर भले ही बड़ा फर्क पड़ने वाला नहीं हो, फिर भी उनके इस्तीफे से धक्का जरूर लगेगा। ऐसी परिघटनाओं से कार्यकर्ता का मनोबल गिरता है। उनके इस्तीफे के पहले पार्टी-प्रवक्ता जयवीर शेरगिल ने इस्तीफा दिया है। दोनों ने बदहाली के लिए राहुल गांधी को जिम्मेदार माना है। इसके पहले भी जो लोग पार्टी छोड़कर गए हैं, सबका निशाने पर राहुल गांधी रहे हैं।

वरिष्ठों की उपेक्षा

पाँच पेज के पत्र में गुलाम नबी आजाद ने सोनिया गांधी की तारीफ़ की है और कहा है कि उन्होंने यूपीए-1 और यूपीए-2 को शानदार तरीके से चलाया जिसकी वजह थी कि तब वरिष्ठ और अनुभवी लोगों की सलाह मानी जाती थी। उनके अनुसार पार्टी के शीर्ष पर एक ऐसा आदमी थोपा गया जो गंभीर नहीं है। राहुल गांधी का रवैया 2014 में कांग्रेस पार्टी की पराजय का कारण बना। अब पार्टी के अहम फ़ैसले राहुल गांधी की चाटुकार मंडली कर रही है और अनुभवी नेताओं को दरकिनार कर दिया गया है। फ़ैसले राहुल गांधी के सिक्योरिटी गार्ड और पीए कर रहे हैं। इसी चाटुकार मंडली के इशारे पर जम्मू में मेरा जनाज़ा निकाला गया। जिन्होंने यह हरकत की उनकी तारीफ़ पार्टी के महासचिवों और राहुल गांधी ने की। इसी मंडली ने कपिल सिब्बल पर भी हमला किया, जबकि आपको और आपके परिवार को बचाने के लिए वे क़ानूनी लड़ाई लड़ रहे थे। उन्होंने राहुल गांधी के अध्यादेश फाड़ने के कृत्य को बचकाना बताया। पार्टी अब इस हाल में पहुँच गई है कि वहाँ से वापस नहीं लौट सकती।