Thursday, February 5, 2015

Man That Never Seen Again.

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https://twitter.com/FreakyTheory

No documentation verifying this story has yet surfaced, but it was mentioned in several books, including The Directory of Possibilities (1981, p. 86) and Strange But True: Mysterious and Bizarre People (1999, p. 64). And given its puzzling ending, I doubt that any official would have written up a report concluding that the man and all his documented evidence simply vanished.

Surprisingly, misplaced travelers such as the business man from Taured have appeared on many occasions. In 1851, a man was found wandering Frankfurt an der Oder in northeast Germany who claimed he was from a country called Laxaria on the continent of Sakria. Another young man who spoke a completely unrecognizable language was caught stealing a loaf of bread in Paris in 1905; he said he was from Lizbia, which authorities assumed was Lisbon—or Lisboa in Portuguese, yet his language was not Portuguese nor did he recognize a map of Portugal as his homeland.
Is Taured out there somewhere? And what about Laxaria or Liziba? Did these men fall backward through time or pass through dimensions? Or were they simply perpetrating a hoax or mentally ill?
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Sunday, February 1, 2015

किरण बेदी पहली आईपीएस हैं या नहीं?



सोशल मीडिया पर खबरें हैं कि किरण बेदी पहली महिला आईपीएस अधिकारी नहीं हैं। इसके पक्ष में एक अखबारी कतरन लगाई है। वास्तव में तथ्य क्या है यह बाद की बात है एक तथ्य यह सामने आया कि इंटरनेट पर ऐसी साइट्स जो अखबारों की फर्जी कतरनें तैयार करती हैं। नीचे मैं वह कतरन लगा रहा हूँ जो सोशल मीडिया में वायरल हुई है साथ ही उसी अंदाज में बनाई गई कतरनें भी हैं। इन्हें देख कर अंदाज लगाया जा सकता है कि सुरजीत कौर वाली कतरन भी फर्जी है। अलबत्ता सच क्या है इसकी छानबीन होनी चाहिए। अखबारों की कतरनें तैयार करने वाली एक साइट का यूआरएल इस प्रकार है http://www.fodey.com/generators/newspaper/snippet.asp

आक्रामक डिप्लोमेसी का दौर

मोदी सरकार के पहले नौ महीनों में सबसे ज्यादा गतिविधियाँ विदेश नीति के मोर्चे पर हुईं हैं। इसके दो लक्ष्य नजर आते हैं। एक, सामरिक और दूसरा आर्थिक। देश को जैसी आर्थिक गतिविधियों की जरूरत है वे उच्चस्तरीय तकनीक और विदेशी पूँजी निवेश पर निर्भर हैं। भारत को तेजी से अपने इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास करना है जिसकी पटरियों पर आर्थिक गतिविधियों की गाड़ी चले। अमेरिका के साथ हुए न्यूक्लियर डील का निहितार्थ केवल नाभिकीय ऊर्जा की तकनीक हासिल करना ही नहीं था। असली बात है आने वाले वक्त की ऊर्जा आवश्यकताओं को समझना और उनके हल खोजना है।

Saturday, January 31, 2015

अफसर बनाम सियासत, सवाल विशेषाधिकार का

विदेश सचिव सुजाता सिंह को हटाए जाने के पीछे कोई राजनीतिक मंतव्य नहीं था। इसके पीछे न तो ओबामा की भारत यात्रा का कोई प्रसंग था और न देवयानी खोबरागड़े को लेकर भारत और अमेरिका के बीच तनातनी कोई वजह थी। यह बात भी समझ में आती है कि सरकार सुब्रमण्यम जयशंकर को विदेश सचिव बनाना चाहती थी और उसे ऐसा करने का अधिकार है। यही काम समझदारी के साथ और इस तरह किया जा सकता था कि यह फैसला अटपटा नहीं लगता। अब कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। साथ ही सुजाता सिंह और सुब्रमण्यम जयशंकर की राजनीतिक प्रतिबद्धताओं को लेकर चिमगोइयाँ चलने लगी हैं। प्रशासनिक उच्च पदों के लिए होने वाली राजनीतिक लॉबीइंग का जिक्र भी बार-बार हो रहा है। यह देश के प्रशासनिक अनुशासन और राजनीतिक स्वास्थ्य के लिहाज से अच्छा नहीं है। अलबत्ता नौकरशाही, राजनीति और जनता के रिश्तों को लेकर विमर्श शुरू होना चाहिए। इन दोनों की भूमिकाएं गड्ड-मड्ड होने का सबसे बड़ा नुकसान देश की गरीब जनता का होता है। भ्रष्टाचार, अन्याय और अकुशलता के मूल में है राजनीति और प्रशासन का संतुलन।

Thursday, January 29, 2015

ओबामा यात्रा, खुशी है खुशहाली नहीं

ओबामा की यात्रा के बाद भारत आर्थिक उदारीकरण के काम में तेजी से जुट गया है. सरकार विदेशी निवेशकों से उम्मीद कर रही है. इसके लिए वोडाफोन के मामले पर हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील नहीं करने का फैसला कैबिनेट ने किया है. ओबामा यात्रा मूलतः भारतीय विदेश नीति की दिशा तय करके गई है. भारत कोशिश कर रहा है कि अमेरिका के साथ बनी रहे और रूस और चीन के साथ भी. हमारी कोशिश होनी चाहिए कि दुनिया एक और शीतयुद्ध की ओर न बढ़े. इस रविवार को सुषमा स्वराज चीन जा रही हैं. यह बैलेंस बनाने का काम ही है. फिलहाल मोदी सरकार के सामने सबसे बड़ा काम है देश की अर्थव्यवस्था को ढर्रे पर लाना. 

ओबामा यात्रा के बाद वैश्विक मंच पर भारत का रसूख बढ़ेगा, पर क्या यह हमारी बुनियादी समस्याओं के हल करने में भी मददगार होगी? शायद नहीं.  जिस बड़े स्तर पर पूँजी निवेश की हम उम्मीद कर रहे हैं वह अभी आता नजर नहीं आता. उसके लिए हमें कुछ व्यवस्थागत बदलाव लाने होंगे, जिसमें टाइम लगेगा. आर्थिक गतिविधियों को बढ़ाने के लिए के लिए इस इलाके में शांति का माहौल चाहिए. इस यात्रा पर पाकिस्तान और चीन की जो प्रतिक्रियाएं आईं हैं उनसे संदेह पैदा होता है कि यह इलाका भावनाओं के भँवर से बाहर निकल भी पाएगा या नहीं. डर यह है कि हम नए शीतयुद्ध की ओर न बढ़ जाएं.