भारत
में चुनावी ओपीनियन और एक्ज़िट पोल बजाय संजीदगी के मज़ाक का विषय ज्यादा बनते
हैं। अलबत्ता लोग एक्ज़िट पोल को ज्यादा महत्व देते हैं। इन्हें काफी सोच-विचारकर
पेश किया जाता है और इनके प्रस्तोता ज्यादातर बातों के ऊँच-नीच को समझ चुके होते
हैं। थोड़ी बहुत ज़मीन से जानकारी भी मिल जाती है। फिर भी इन पोल को अटकलों से
ज्यादा कुछ नहीं कहा जा सकता। वजह है इनके निष्कर्षों का जबर्दस्त अंतर। कुल
मिलाकर ये आमराय बनाने की कोशिश जैसे लगते हैं, इसीलिए कुछ मीडिया हाउस ‘पोल ऑफ पोल्स’ यानी इनका औसत पेश करते हैं। एक और विकल्प है, एक के बजाय दो
एजेंसियों का एक्ज़िट पोल। यानी कि एक पर भरोसा नहीं, तो दूसरा भी पेश है। यह बात
उनके असमंजस को बढ़ाती है, कम नहीं करती।
शुक्रवार
की शाम पाँच राज्यों में मतदान प्रक्रिया पूरी होने के बाद चैनल-महफिलों के
निष्कर्षों का निष्कर्ष है कि राजस्थान में कांग्रेस को बहुमत मिलना चाहिए, मध्य
प्रदेश और छत्तीसगढ़ में काँटे की लड़ाई है और तेलंगाना में टीआरएस का पलड़ा भारी
है। मिजोरम को लेकर किसी को ज्यादा चिंता नहीं है। कुछ ने तो वहाँ एक्ज़िट पोल भी
नहीं कराया। बहरहाल अब 11 दिसम्बर को परिणाम बताएंगे कि देश की राजनीति किस दिशा
में जाने वाली है। इनके सहारे बड़ी तस्वीर देखने की कोशिश की जा सकती है।
पिछले
साल से जितने भी चुनाव हो रहे हैं उन्हें मीडिया 2019 के लोकसभा चुनाव का सेमी
फाइनल बताता रहा है, पर वास्तव में इन पाँच राज्यों के चुनाव को सेमीफाइनल कहा जा
सकता है। फिर भी पूरी तरह नहीं कहा जा सकता कि ये परिणाम लोकसभा चुनाव की झलक
देंगे। हालांकि इस संग्राम को मोदी बनाम राहुल कहा जा रहा है, पर कांग्रेस खुद इसे
इस तरीके से पेश करने से बच रही है। तीन राज्यों में कांग्रेस और बीजेपी का सीधा
मुकाबला है। इन चुनावों में कांग्रेस को जो भी सफलता मिलेगी, वह राज्यों की
एंटी-इनकम्बैंसी के कारण मिलेगी। जो मोदी के नेतृत्व पर नहीं, राज्यों के
मुख्यमंत्रियों पर टिप्पणी होगी।
यह
देखना होगा कि ये चुनाव मोदी के लिए महत्वपूर्ण हैं या राहुल गांधी के लिए।
कांग्रेस पार्टी को इन चुनावों से बड़ी उम्मीदें हैं। ये उम्मीदें राहुल गांधी के
नेतृत्व को लेकर हैं। सवाल है कि कितनी बड़ी जीत को जीत माना जाएगा? उत्तर के तीन राज्यों के अलावा
कांग्रेस की दिलचस्पी तेलंगाना में भी है, क्योंकि वहाँ उसने तेदेपा के साथ गठबंधन
किया है, जो उसके ‘महागठबंधन’ का आधार बनेगा। यदि वह तेलंगाना में सत्ता हासिल करने में सफल हुई,
तो ‘महागठबंधन’ को मजबूत आधार मिलेगा। कर्नाटक के बाद तेलंगाना में सत्ता हासिल
करने से दक्षिण में कांग्रेस का आधार मजबूत होगा। इसके बाद वह आंध्र में विजय पाने
की कोशिश करेगी, जिसमें तेदेपा उसकी सहायक होगी। पर यदि तेलंगाना में कांग्रेस को
सफलता नहीं मिली तो महागठबंधन को धक्का लगेगा।
उत्तर
के तीनों राज्य कांग्रेस और बीजेपी दोनों के लिए महत्वपूर्ण हैं। इनमें मध्य
प्रदेश और छत्तीसगढ़ में 15-15 साल की एंटी-इनकम्बैंसी है। राजस्थान में पाँच साल
बाद सरकारें बदलने का चलन है। ऐसे में तीनों राज्यों में सफल होने के बाद भी इसे
कांग्रेस के नेतृत्व और कार्यक्रम की सफलता के मुकाबले बीजेपी सरकारों की विफलता
माना जाएगा। कांग्रेस को तीनों राज्य नहीं मिले तो यह सफलता फीकी होगी। एक भी
राज्य नहीं मिला, तो निश्चित रूप से उसका भविष्य अंधेरे में होगा।
कांग्रेस
को केवल राजस्थान में जीत मिली तो यह केवल सांत्वना देने भर की सफलता होगी। बेशक
तीनों राज्यों में सफल होने से उसके कार्यकर्ताओं का विश्वास बढ़ेगा और संगठन में
जान आएगी। पार्टी इसे राहुल गांधी की व्यक्तिगत जीत के रूप में प्रचारित करेगी।
बीजेपी तीनों राज्यों में हारी तब भी वह कहेगी कि यह मोदी की हार नहीं, मुख्यमंत्रियों की हार है। हाँ, यह
हार इस तरफ इशारा भी करेगी कि 2019 के चुनावों में संख्याबल किस अनुपात में कम
होने जा रहा है। दूसरे इस धारणा की पुष्टि होगी कि बीजेपी का क्रमशः ह्रास हो रहा
है। पिछले साल गुजरात में पार्टी ने किसी तरह से इज्जत बचाई। फिर इस साल कर्नाटक
में उसे जीत के दरवाजे से टकराकर वापस आना पड़ा।
बीजेपी
के नज़रिए से सबसे महत्वपूर्ण राज्य मध्य प्रदेश है, जहाँ पार्टी का सबसे मजबूत
आधार है। गुजरात के बाद बीजेपी की सबसे मजबूत संगठन शक्ति मध्य प्रदेश में है।
ज्यादातर एक्ज़िट पोल मध्य प्रदेश में किसी की निर्णायक जीत नहीं दिखा रहे हैं।
राजस्थान में बीजेपी की हार की खबरें पिछले एक साल से हवा में तैर रहीं हैं, पर
मध्य प्रदेश के बारे में दावे सो कोई यह बात नहीं कह रहा है। छत्तीसगढ़ और मध्य
प्रदेश में बीएसपी की उपस्थिति को एक्ज़िट पोल ज्यादा महत्व नहीं दे रहे हैं।
बहरहाल
मध्य प्रदेश के परिणामों पर खासतौर से ध्यान देना होगा। यहाँ यदि बीजेपी की पराजय
हुई तो वह ज्यादा बड़ी खबर होगी। पर यदि सरकार फिर से बन गई तो यह बात पार्टी से
ज्यादा शिवराज सिंह चौहान के लिए महत्वपूर्ण होगी। वे आज भी बीजेपी के महत्वपूर्ण
नेताओं में गिने जाते हैं, पर इस जीत के बाद निश्चित रूप से उनका कद बहुत बड़ा हो
जाएगा। यदि 2019 के चुनाव में त्रिशंकु संसद रही तो पार्टी के पक्ष में बहुमत
जुटाने में शिवराज सिंह चौहान की भूमिका बहुत ज्यादा होगी। सम्भव है कि वे
केन्द्रीय स्तर भी सक्रिय हों। रमन सिंह भी पार्टी के महत्वपूर्ण नेताओं के रूप
में बने रहेंगे, पर वसुंधरा राजे का पराभव सम्भव है।
11
दिसम्बर को चुनाव परिणाम आएंगे, साथ ही संसद का शीत सत्र भी शुरू होगा। बीजेपी की
2019 की राजनीति की प्रस्तावना भी उसी दिन से स्पष्ट होने लगेगी। हाल में अयोध्या
में विहिप की धर्मसभा ने मंदिर का नारा फिर से बुलंद कर दिया है। वहाँ यह भी कहा
गया कि नरेन्द्र मोदी 11 दिसम्बर को मंदिर के बाबत कोई बड़ी घोषणा करने वाले हैं। मोदी
सरकार के पास अब नीतियों में बदलाव के लिए ज्यादा समय नहीं बचा है, फिर भी कुछ न
कुछ बदलाव किया जा सकता है। खासतौर से किसानों के लिए बड़ी घोषणाएं की जा सकती
हैं। छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में किसानों की नाराजगी उभर कर सामने आई है। संसद
के इस सत्र में कांग्रेस की चुनावी-रणनीति स्पष्ट होगी और विरोधी-एकता का कोई
टेम्पलेट भी सामने आएगा।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (10-12-2018) को "उभरेगी नई तस्वीर " (चर्चा अंक-3181) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी